बहुत करीब मंजिल - भाग 8 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बहुत करीब मंजिल - भाग 8

उस व्यक्ति का घर में इस तरह आ जाना तारा के पिताजी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा फिर भी उन्होंने कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कैलाश से कहा - ‘ बैठिए।’’
कैलाश को पिताजी से बात करते देख तारा चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई।
कैलाश ने बैठने के लिए मना करते हुए बिना इधर-उधर की बात किए बड़े आत्मविश्वास से सीधे-सीधे पिताजी से कहा - ‘‘आपकी बेटी तारा बहुत गुणी है, मैं इसे पसंद करता हूँ और इससे शादी करना चाहता हूँ।’’
कैलाश की बात सुनकर पिताजी के तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई और वो आग बबूला हो गए। उन्होंने कैलाश को लगभग घर से धकेलते हुए कहा- "शर्म नहीं आती तुम्हें अपने से उम्र में इतनी छोटी बच्ची पर गलत नज़रे डालते हुए । चलते बनो यहाँ से और अगर मेरे घर के आस-पास भी दिख गए तो देखना तुम्हारी खैर नहीं।’’
पिताजी का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था ही साथ ही माँ और दादी ने भी उसे सुनाने में कसर नहीं छोड़ी। दादी ने तो यहाँ तक कह दिया- ‘‘बापकणा छोरी की बाप की उमर को है, तनै ईसू ब्याव री बात करता सरम नीं आई।’’ सब लोग उसके इस तरह पीछे पड़ गए कि उस समय कैलाश को वहाँ से निकल जाना ही सही लगा।
उसने इधर-उधर नजरें दौड़ाई तो उसे तारा कहीं नहीं दिखी इस पर उसे बहुत गुस्सा आया। वो उन लोगों के व्यवहार से भी काफी गुस्सा था। उसके जाने के बाद घर में बहुत बहस हुई सबने माँ को सुनाया कि - ‘‘हर किसी को बुला लेती हो घर पर। क्या हमारे खाने के लाले पड़े है? "
पिताजी को लगा तारा इन सबसे डर गई है इसलिए उन्होंने चंदा को भेजकर उसे नीचे बुलाया और उसे बिल्कुल भी ना घबराने के लिए कहा और उसे समझाया कि थोड़े दिन वो सामान लेने बाहर ना जाए।
तारा के मन में अलग ही उथल-पुथल मच रही थी। वो तो ये सब देखकर सूनी हो गई थी। कभी सोचती- "अगर मैंने कैलाश से शादी की बात पिताजी को कही होती तो शायद पिताजी मुझे मार ही डालते ।’’
घर में देर रात तक इसी बात की चर्चा हो रही थी। दादी तो अखबार पढ़ - पढ़़कर इस तरह के लोगों के अपराधिक प्रवृत्ति के होने तक की पुष्टि करने लगी । दादी के अनुसार ऐसे लोग शांत नहीं बैठते अपमान का बदला जरूर लेते है इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए।
रात को खाना खाकर सोते-सोते बारह बज चुके थे इसलिए तारा कैलाश का फोन नहीं देख पाई।
लेकिन सवा बारह बजे के करीब जैसे ही तारा ने फोन हाथ में लिया। फोन में फिर लाइट जल गई।
हर बार की तरह फोन उठाने से पहले उसने अपने कमरे के दरवाजे की कुंडी को देखा कि अच्छी तरह बंद है कि नहीं। ये निश्चय कर लेने के बाद उसने फोन उठाया और उठाते ही माफी मांगी- हालांकि कैलाश गुस्से में था पर उसने तारा पर बिल्कुल गुस्सा नहीं किया और तारा से कहा - तुम्हें माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं।इसमें तुम्हारी क्या गलती है।"

क्रमशः..
सुनीता बिश्नोलिया