बहुत करीब मंजिल - भाग 10 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बहुत करीब मंजिल - भाग 10

तारा को पता था कि एक दो दिन में वो हमेशा के लिए घर से जा रही है इसलिए वो भाई और दादी के पास ज्यादा बैठा करती थी। माँ और पिताजी तो उसे चंदा के पक्षधर लगते थे इसलिए वो उन लोगों से कम ही बात करती थी।
धीरे-धीरे करके उसने सिलाई-कढ़ाई में काम आने वाले छोटे-छोटे सामान को एक थैले में रख लिया था। उसने अपने बैग में कपड़े में खिंचाव के काम आने वाले फ्रेम तो चार-पाँच साइज़ के रख लिए और साथ में हर रंग के धागे।
अपने तीन चार सूट भी अब तो उसने अलमारी में अलग रख दिए थे। कढ़ाई वाला महरून रंग का सूट तो उसने शादी के समय पहनने के लिए अलग से रख लिया और उसकी मेचिंग की चूडियाँ भी साथ रख दी। शादी के नाम से उसके दिल में धक-धक शुरू हो जाती थी कि क्या वास्तव में अब मैं माँ-पिताजी दादी, जीजी और भाई से कभी नहीं मिल पाऊँगी। लेकिन दूसरे ही पल वो सोचती कि उस दिन सब मुझे शाबासी देंगे सब मुझे माफ कर देंगे जब वो किसी फिल्म में की ड्रेस डिज़ाइनर के नीचे मेरा नाम देखेंगे।
वो सोचती माँ तो देखते ही पहचान लेगी कि ये कढ़ाई तारा ने की है। इन्हीं सब बातों को सोचते हुए उसके मन में घर छोड़ने को लेकर उथल-पुथल मच रही थी कि आगे क्या होगा?
माँ-पिताजी की इज्ज़त का क्या होगा? सोचकर वो अपना विचार बदलने को होती तब तक कैलाश फिर फोन कर उसे सपनों की दुनिया में ले जाता।
परन्तु एक बार फिर से तारा ने सोचा कि - नहीं - नहीं नहीं जाऊंगी कहीं। तेईस साल तक माता-पिता की छाया में पली-बढ़ी , उनकी हर बात को मानती आई हूँ और उन्होेंने भी जी-जान से मुझ पर प्यार लुटाया हैं। "
अगले ही पल वहीं तारा तेईस सालों के प्यार को भुलाकर दो महीने के छलावे में आकर रात के अंधेरे में उतर गई अपने कमरे की सीढ़ियाँ और चल दी अपने सपनों की तलाश में.. ....
सुबह के नौ बज गए घर में सब उठ गए थे बस तारा ही थी जो उठी नहीं। माँ ने सोचा रात को देर तक काम कर रही थी शायद इसलिए नींद नहीं खुली।
पर साढ़े नौ बजे तक तारा नीचे नहीं आई तो पिताजी ने चंदा से कहा- ‘‘ जा बेटा तारा को जगाकर ला और आज अम्मा भी अपने कमरे से बाहर नहीं आई।’’ कहते हुए उन्होंने अम्मा को आवाज़ लगाई।
चंदा जल्दी-जल्दी नीचे आई और बोली- ‘‘ पापा तारा तो अपने कमरे में नहीं है ।’’
‘‘क्या ? कहाँ है बाथरूम में होगी। ’’
‘‘नहीं एक में नन्नू है और दूसरे पर बाहर से कुंडी बंद है, ‘‘ चंदा ने कहा।
"तो कहाँ गई बिना बताए, कमरे में ही होगी मशीन के पास बैठकर अपनी सिलाई-कढ़ाई करती रहती है नीचे बैठे - बैठे ही नींद आ गई होगी।चलो मैं ही बुलाकर लाता हूँ उसे।" कहते हुए पिताजी सीढ़ियाँ चढ़ने लगे तो चंदा और माँ भी उनके पीछे - पीछे ऊपर आ गईं ।
वास्तव में ..... तारा कमरे में नहीं थी। पर ... मशीन के ऊपर एक कागज ज़रूर रखा था। पिताजी ने उसे उठाया और - "अरे ये क्या ? ये तो तारा की हैंडराइटिंग है क्या लिखा है?" कहते हुए वो उसे एक साँस में पढ़ गए....
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया