बहुत करीब मंजिल - भाग 5 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बहुत करीब मंजिल - भाग 5

चंदा जीजी से तो नन्नू बहुत ज्यादा डरता था उसे पता था कि वो पीटती है तो बीच में बोलने की किसी की हिम्मत नहीं और किसी के मनाने का तो सवाल ही नहीं उठता। बेचारा कितना ही रो ले। फिर तो कोई खाने तक को नहीं पूछता इसलिए वो चंदा जीजी से थोड़ा दूर ही रहता है।
नन्नू रात के लगभग दस बजे तक सो जाता है। पर आज न जाने नन्नू को क्या हुआ उसे नींद ही नहीं आ रही और वो बार-बार में तारा जीजी के कमरे के चक्कर काट रहा था।
उसके इस तरह आने-जाने से तारा को घबराहट हो रही थी कि कहीं उन सूट बूट वाले बाबू का फोन आ गया तो! पर तभी चंदा जीजी का कमरा खुला और उन्होंने गुस्से से चिल्लाते हुए नन्नू को सो जाने की चेतावनी दी। चंदा की आवाज़ से पिताजी तक डर जाते है तो नन्नू क्या चीज़ है। बहन की एक आवाज़ के साथ ही नन्नू चुपचाप नीचे जाकर दादी के पास सो गया।
चंदा की आवाज सुनकर काँप तो तारा भी गई थी क्योंकि उसे पता था कि चंदा को जब गुस्सा आता है तो सब को लपेटे में ले लेती है। इसलिए चुपचाप अपने कमरे में बैठी रेशमी धागों को सुई में पिरोती रही।
चंदा ने झांक कर तारा के कमरे में देखा। तारा को कढ़ाई करते देख वो वापस अपने कमरे में चली गई।
तारा ने ठंडी सांस ली, पर ये क्या चंदा वापस उसके कमरे में आ गई और तारा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ‘‘तू वास्तव में बहुत अच्छी कढ़ाई करती है।अब सोजा रात को ये सुई-धागा करेगी तो आँखें खराब हो जाएंगी। "
" हाँ जीजी, बस थोड़ी देर में सो जाऊँगी।" तारा ने घबराते हुए कहा।
"ठीक है मैं जाती हूँ पढ़ाई करुँगी । तुम भी अपना काम जल्दी खत्म करो।’’ कहती हुई चंदा तारा के कमरे से बाहर निकल गई।
धीरे-धीरे घर में सन्नाटा छा गया। चंदा ने जाते समय अपने कमरे के बाहर लगे बटन से नीचे के बरामदे का बल्ब बंद कर दिया।इसका एक बटन नीचे है एक ऊपर। बहनों को जरूरत होती तो वो बल्ब जला देती और नीचे किसी को जरूरत हो तो वो जला देते या बंद कर देते।
अब पूरे घर में अंधेरा हो गया था बस दोनों बहनों के कमरों में रोशनी थी। ग्यारह बजने वाले थे तारा का दिल धौंकनी की तरह धक-धक कर रहा था।वो सोच रही थी कि मैंने क्यों लिया ये फोन। क्या बात करनी है उनको मुझसे... यही सोचते सोचते उसने खड़े होकर एक बार फिर निश्चय कर लिया कि दवाजे के कुंडी लगी है कि नहीं।
अब उसने चुपचाप फोन उठाया, वो देखना चाहती थी कि आखिर यह है कैसा। पर तभी उसे याद आया कि उस व्यक्ति ने कहा था कि इसके कोई बटन नहीं छेड़ने वरना इसकी घंटी सभी को सुन जाएंगी।
तारा मोबाइल को देख ही रही थी कि उसमें से रोशनी हुई और वो समझ गई कि फोन आया है। पहले तो डर के मारे उसने फोन नहीं उठाया पर दूसरी बार में उसने फोन उठा लिया।
उधर से उस व्यक्ति ने बहुत ही मीठी बातों से तारा की सिलाई-कढ़ाई की तारीफ कर उसे खुश कर दिया ।
क्रमशः..
सुनीता बिश्नोलिया