हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग अट्ठारह) Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग अट्ठारह)

वक्त बीत रहा है।रिटायर हुए दो साल होने को हैं।नौकरी और जिंदगी दोनों से भागम-भाग खत्म हो चुका है। आय के स्रोत बंद हो चुके हैं पर जरूरी खर्चे ज्यों के त्यों है।रिश्तेदार,भाई -बहन पहले से ज्यादा दूरी बना चुके हैं।छोटा बेटा आयुष तो अब कभी बात ही नहीं करता।यहां तक कि तीज- त्योहारों की बधाई देने पर जवाब भी नहीं देता।मैंने भी अब अपनी तरफ से पहल करना बंद कर दिया है।बड़े बेटे ने मेरी आँख के ऑपरेशन के बाद व्हाट्सऐप किया था कि उसकी अपने पिता से अनबन हो गई है।वे उसके सौतेले भाई की शादी के लिए उससे लाखों रूपए मांग रहे हैं जबकि सौतेली माँ के ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए हाल में ही दोनों भाइयों ने कई लाख रूपए दिए थे।वे उन्हें सोने का अंडा देने वाले मुर्गी की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।इस्तेमाल न होने पर पुस्तैनी जायजाद से बेदखल कर देने की धमकी देते हैं।उन्हें नमक-हराम कहते हैं।कहते हैं कि जब तुमलोगों की माँ तुम लोगों को छोड़कर भाग गई तो मैंने और तुम्हारी दूसरी माँ ने तुम लोगों को पाला,वरना सड़क पर भीख मांगते होते।आज कमाने लगे तो पैसे देने में तुम लोगों की जान जाती है।
बेटे ने आगे लिखा कि हम दोनों भाइयों ने उनसे कह दिया है कि उनकी जायजात हमें नहीं चाहिए।अपनी जायजात वे दोनों सौतेले भाइयों को ही दे दें।हम हस्ताक्षर करने को तैयार हैं ।वैसे हम सामर्थ्य भर आर्थिक मदद करते रहेंगे।

बेटे के मेरे पास इस तरह का मैसेज भेजने का क्या उद्देश्य था,मैं नहीं समझ पाई थी।उस मैसेज को पढ़कर भावुक हो गई थी।जी चाहा था कि उसे फोन करके सांत्वना दूं और उसके पिता को बुरा -भला कहूँ।आखिर वह आदमी अपने जायज बेटों को पालने को अहसान कैसे कहता है?सात साल तक तो वे मेरे पास ही रहे।उसने अपना कोई दायित्व नहीं निभाया।मुझसे बदला लेने के लिए ही बच्चों को ले गया तो उन्हें पालना पड़ा।समाजिक भय से पढ़ाना-लिखाना पड़ा।इंटर बाद ही छोटे को एयरफोर्स की नौकरी के लिए ट्रेनिंग पर भेज दिया और बड़ा दिल्ली भाग गया।खुद काम करके पढ़ा- लिखा। जब दोनों अच्छा कमाने लगे तो उनका दोहन करने लगा।कैसा है यह आदमी!मेरे आरती तो कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई।थोड़ा बहुत बच्चों के लिए निभाया तो उस अहसान के बदले उनको आजीवन गुलाम बनाकर रखना चाहता है।उसे सिर्फ अपनी दूसरी बीबी और उससे पैदा हुए बच्चों की चिंता है।
उन दिनों मेरी आँख पर काला चश्मा लगा था।पढ़ना मना था क्योंकि दो दिन पहले ही मेरी आँख की सर्जरी हुई थी।छोटी बहन के घर ही थी।बहन ने ही मैसेज पढ़कर सुनाया और मुस्कुराकर बोली-इमोशनल कार्ड खेल रहा है।सोच रहा है कि भावुकता में आकर तुरत अपनी सम्पत्ति उसको दे दोगी।
ऑपरेशन के बारे में नहीं पूछा न कोई मदद की ऊपर से पिता से मनमुटाव की बात कर खुद ही सहानुभूति लेना चाहता है।
बहन की बात गलत नहीं थी पर मैं बेटे को कोई कड़ा जवाब नहीं देना चाहती थी।मैंने बहन से ही मैसेज लिखवाया कि चिंता न करो ,मैं हूँ अभी।अपना तथा अपने परिवार का ख्याल रखो।रहा पिता से मनमुटाव तो ,वो तो एक दिन होना ही था,उसके लिए ज्यादा परेशान मत हो।समझदार हो जो उचित लगे करो।अभी मैंने आँख की सर्जरी कराई है।एक हफ्ते में घर लौटूँगी।
प्रत्युत्तर में बेटे ने प्रसन्नता वाला इमोजी भेजा।उसने मेरे ऑपरेशन से रिलेटेट कोई बात नहीं की।मैं घर लौटी और तमाम परेशानियों में रही।ऑपरेशन के बाद झाड़ू बुहारू जैसे घरेलू काम,खाना बनाना आदि मना होता है।बेटे को भी ये बात पता थी फिर भी एक ही शहर में रहने के बावजूद उसने मेरी कोई खोज- खबर नहीं ली,न कोई मदद की।बीच -बीच में कभी- कभार कोई मैसेज कर देता।वो भी अपनी ही किसी परेशानी के सम्बंध में।मैंने भी सोच लिया था कि उससे कोई मदद नहीं माँगूँगी।न उससे कोई उम्मीद ही रखूँगी। उसके पास कार थी ।वह अक्सर शहर के मालों और अपने ससुराल में घूमता पर एक बार भी मेरे पास नहीं आया।
एक महीने मैंने बहुत परेशानी झेली।खाने के लिए एक दो बार टिफिन मंगाई तो वह महंगा और अस्वास्थ्यकर लगा,फिर खुद पकाने लगी।अपने हिसाब से बचाकर ही काम करती।दाई रखने पर अतिरिक्त खर्च के साथ रोज नया सिरदर्द होता,इसलिए पड़ोसियों का यह सुझाव भी नहीं माना।वैसे भी ऑपरेशन में ही काफी खर्चा हो गया था,ऊपर से जरूरी खर्चे भी थे।आय था नहीं । सेविंग के ब्याज़ का ही आसरा था।
दो महीने बाद अचानक बेटे ने फोन करके कहा कि वह सपरिवार मेरे घर आ रहा है।जी चाहा कि मना कर दूँ पर मैं अपनी तरफ से कोई गलती नहीं करना चाहती थी।
उनके आने पर मैंने नार्मल व्यवहार किया।कोई शिकवा- शिकायत नहीं।बच्ची पहली बार घर आई थी,इसलिए उसके लिए गिफ्ट पहले से ही मंगवा लिया था।उसने बताया कि दो दिन बाद उसकी बच्ची का पहला बर्थडे है और उसे अच्छी तरह सेलिब्रेट करना चाहता है।उसने एक रिसोर्ट बुक किया है।मुझे भी आना होगा।महंगा रिसोर्ट है इसलिए विशेष रूप से ससुराल के लोगों को ही बुलाया है।एक सौतेला भाई पिता पक्ष से आएगा और इधर से आप आ जाइए।
मैं धर्मसंकट में फंस गई।