हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग एक) Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग एक)

भारतीय समाज में मान्यता है कि स्त्री की डोली पिता के घर से उठती है तो फिर पति के घर से उसकी अर्थी ही निकलनी चाहिए।ससुराल में चाहें जैसी भी असहय स्थितियां हो,चाहे उसकी हत्या का षड्यंत्र ही रचा जा रहा हो या उसे आत्महत्या के लिए विवश ही क्यों न किया जा रहा हो या हर पल उसके आत्मसम्मान को कुचला ही क्यों न जा रहा हो,उसे हर हाल में वहीं रहना चाहिए ।जो स्त्री ऐसा नहीं करती उसके प्रति समाज का नजरिया अच्छा नहीं होता।उसको सारी उम्र इस गुस्ताखी की सजा भुगतनी पड़ती है।विषम परिस्थितियों में पति का घर छोड़कर भागी हुई एक ऐसी ही स्त्री की मार्मिक व्यथा -कथा आपके लिए ।

अध्याय---एक

मैं भागी हुई स्त्री हूँ।मुझे आप गलत कह सकते हैं,पर मेरी कहानी तो सुन लीजिए फिर जो फैसला चाहे,कर लीजिएगा।

उसने आगे बढ़कर मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे दीवार से टकरा दिया ।मैं भी हाथ –पैर,मुंह सब चला रही थी पर प्रकृति -प्रदत्त शारीरिक ताकत के बल पर वह पशुता पर आमदा था |मेरे सिर से खून बह रहा था पर वह इसकी परवाह किए बिना मुझे पीटे जा रहा था |फिर उसने मेरे सिर को अपने घुटनों के बीच में दबा लिया और मेरी पीठ पर मुक्के मारने लगा |हर चोट के साथ मेरे मुंह से 'बाप' निकल जाता |मेरे फेफड़े कमजोर थे !अभी दो साल पहले मुझे खून की उल्टियाँ हुई थीं और पूरे एक साल इलाज चला था |उस समय तो वह मुझे 'टीबी' का मरीज कहकर माँ के घर छोड़ आया था |किसी तरह माँ ने मेरा इलाज कराया ।भाई और बहन मुझे झिड़कते कि शादी के बाद भी बोझ बनी हुई है ,पर माँ तो माँ थी |अपना जेवर बेचकर मेरा इलाज कराती रही थी |बड़ी मुश्किल से मैं ठीक हुई |सूखी ठठरियों पर मांस आया |अब मैं ससुराल नहीं जाना चाहती थी |अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी |मैंने बी-एड का फार्म मंगा लिया था। जैसे ही उसे पता चला ,वह मुझे लेने आ गया |मैं माँ के सामने गिड़गिड़ाई --माँ मुझे वहाँ मत भेजो ।मैं वहाँ मर जाऊँगी |एक महीने में ही क्या हालत हो गयी थी मेरी !
पर उसने माँ को जाने क्या पटरी पढ़ाई थी कि माँ उसी के पक्ष में हो गयी।वैसे भी वह माँ का दुलारा दामाद था।माँ उससे अपने घर का सारा हाल बता देती थी |वह पूरे घर में यूं ही घूमता रहता था |उस दिन रात को वह खा-पीकर सोया और सुबह माँ से बोला-मुझे जरूरी काम है ।आप इसे बाद में किसी के साथ भिजवा दीजिएगा |
उसकी भल-मनसाहत देखकर माँ पसीज गयी और उसके चले जाने के बाद मुझे ही कोसने लगी कि मैं सहनशील नहीं हूँ |मेरे मन में कुछ शंका हुई ।मैं जल्दी से उस कमरे में गयी,जहां रात को वह सोया था |उसी कमरे में एक बक्सा था,जिसमें मेरे सार्टिफिकेट रखे थे |बक्से में ताला नहीं लगा था |मैंने जाकर बक्सा खोला तो धक से रह गयी ,मेरे शैक्षिक सर्टिफिकेट की फाइल गायब थी |मैं चीख मारकर रोने लगी |माँ दौड़ी हुई आई और सच जानकर वहीं धम से बैठ गयी |उस समय मुझे नहीं पता था कि सर्टिफिकेट दुबारा भी बन जाते हैं |अब क्या हो ?अब तो मैं बी. एड. नहीं कर पाऊँगी |माँ ने कहा-अब तुम्हें वहाँ जाना ही पड़ेगा |किसी तरह सारा सर्टिफिकेट वापस लाना होगा |माँ ने राय दी कि तुम भाई के साथ चली जाओ और मौका निकालकर भाई को सारे कागज दे देना ।तुम्हें बाद में किसी बहाने बुला लूँगी |वही हुआ मैं ससुराल पहुंची |संयोग से वह अपने कमरे में नहीं था |मैंने उसका सूटकेस खोला ।फाइल ऊपर ही रखी हुई थी |मैंने भाई के झोले में वह फाइल डाली और उसे तुरत ही निकल जाने को कहा |भाई चला गया |थोड़ी देर बाद वह आया तो पहले तो मुझे आया देखकर खुश हुआ |प्यार से पूछने लगा –किसके साथ आई ?मैंने बताया भाई के साथ आई थी ,पर उसे काम था ,इसलिए पहुँचाकर चला गया |
-अच्छा किया अपने –आप आ गयी |मैं तो जाने वाला नहीं था,भले ही तुम्हें छोड़ना पड़ता |
मैं कुछ नहीं बोली और नहाने के लिए चली गयी |नहाकर कमरे में आई तो कमरा अस्त-व्यस्त था और पूरा सूटकेस उलटा पड़ा था |
'क्या हुआ –'मैंने अनजान बनकर पूछा |
-खिलड़पन कर रही हो |इस सूटकेस में एक फाइल थी ,कहाँ गई?
'मैं क्या जानूँ |मैं तो अभी थोड़ी देर पहले ही आई हूँ |'
-तुमने अपने भाई को दे दिया न !और वह साला लेकर भाग गया |
'मैं क्यों दूँगी आपकी फाइल!'
-वह तुम्हारी फाइल थी!
'तो उसे आप चुरा लाए थे ?पर क्यों?'
-क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम बी एड करो |मैं सिर्फ बी ए हूँ और तुम बी एड करोगी ...फिर नौकरी ...फिर दूसरी शादी...!
'क्या कह रहे हो तुम?'
-मुझे तुमने तुम कहा !तुम्हारी इतनी हिम्मत!
'माफ करिए ।गलती से निकल गया।'
-तुमने बिना मेरी मर्जी के बी -एड का फार्म क्यों भरा ?मैंने बी. ए .के लिए भी मना किया था ,पर अपनी छिनाल माँ के शह पर तुमने आखिर बी. ए. कर ही लिया।मेरे बराबर हो ही गयी ।अब मुझसे आगे बढ़ना चाहती हो?
'तो मैं वहाँ खाली बैठकर क्या करती |आप नौकरी करिए, अपने साथ रखिए तो मैं पढ़ाई-लिखाई छोड़ दूँगी |'
-पर मैं तुम्हें यहाँ कैसे रख सकता हूँ ...पिता के भरोसे शादी की थी पर उन्हें लकवा मार गया |माँ दुकान न करती तो भूखों मर जाता |
'इसीलिए तो मैं चाहती थी कि बीएड कर लूँ ।कोई नौकरी मिल जाएगी तो घर की स्थिति ठीक हो जाएगी |अगर इसके पहले आपकी नौकरी लग गयी तो फिर आप जैसा चाहिएगा, करूंगी।'
-यानि मेरी नौकरी नहीं है तो तू छिनरपन करेगी और अपनी माँ की तरह छिनार बनेगी?
'देखिए आप जरूरत से ज्यादा बोल रहे हैं मैं यह सब नहीं सहूँगी |'
इसी बात पर लड़ाई शुरू हुई थी और उसने मुझे बहुत मारा |मैं पछता रही थी कि यहाँ लौटकर आई ही क्यों ?अब कैसे इस नरक से निकल पाऊँगी ?इसके घर में न खाने को है न पहनने को |घर में बिजली तक नहीं, फिर भी इसका गुरूर देखिए |पति है तो क्या मेरा भाग्य विधाता है?कितनी बेरहमी से मुझे मारा है इसने |बीमारी ठीक होने के बाद डॉक्टर ने कहा था कि मुझे सदमे और कमजोरी दोनों से बचना होगा क्योंकि बीमारी कभी भी वापस आ सकती है |
वह बेरोजगार था ,इसलिए मैं चाहती थी कि मैं ही कोई नौकरी कर लूँ |हो सकता है कि पैसा आते ही हमारे रिश्ते मधुर हो जाएँ |मैं नहीं चाहती थी कि उससे अलग हो जाऊँ |मेरे मन में उसके प्रति कोई दुराग्रह नहीं था ,पर वह मेरे पढ़ने के फैसले को जाने किस अर्थ में ले रहा था |जब मैंने बी ए में दाखिला लिया ,तब भी उसने खूब हो-हल्ला मचाया |सारे रिश्तेदारों को इकट्ठा कर लिया |मुझे अपने घर ले जाने की जिद पर उतर आया |यह ले जाना सिर्फ इसलिए था कि मैं बी ए की परीक्षा न दे पाऊँ |बी ए प्रथम वर्ष बिना उसे बताए मैं पास कर चुकी थी |सबने मुझे समझाया कि किताबें साथ लेकर ससुराल चली जाओ ,वही पढ़ती रहना और यहाँ आकर परीक्षा दे देना |मेरी इच्छा नहीं थी,पर मुझ पर इतना दवाब पड़ा कि मैं मान गयी |मान क्या गयी ,मानना पड़ा क्योंकि माँ ने 'हाँ 'कर दी और उसके ही संबल पर मैं पढ़ रही थी वरना पिताजी व भाई-बहनों में से कोई नहीं चाहता कि मैं यहाँ रहूँ और पढूँ |माँ भी डर गयी कि दामाद कहीं बेटी को छोड़ न दे |अभी उसके सिर पर चार और बेटियों का बोझ था | उसने भी वादा किया कि वह परीक्षा दिलाने ले आएगा |पर जाने क्यों मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था ,फिर भी मैं मन को मारकर उसके साथ चल दी थी |बस स्टेशन पर भी मेरे आंसू बहे जा रहे थे ।अभी-अभी सभी लोग छोड़कर गए थे |मुझे रोते देखकर वह बोला--लात खाने के डर से रो रही हो ?घर चलो बताता हूँ |मैंने चौंककर उसे देखा तो वह मुस्कुराने लगा |मैंने इसे मज़ाक समझा ।काश मैंने उसके मुंह से अनायास निकल गए वाक्य की गंभीरता को समझ लिया होता और वहीं से वापस लौट गयी होती |मैंने सोचा कि अभी कुछ देर पहले तो वह मेरे घर वालों के सामने गिड़गिड़ा रहा था और सबको बता रहा था कि वह मुझसे कितना प्यार करता है |मेरे बिना नहीं रह पा रहा है,इसलिए साथ ले जा रहा है |इतना ही प्यार था तो फिर उसने चार साल से मुझे मैके क्यों छोड़ रखा था ?हाईस्कूल में शादी हुई थी ,तब मैं खुद ही पढ़ना नहीं चाहती थी फिर उसने इंटर करने के लिए क्यों दबाव डाला ?यहाँ खाली बैठकर मैं क्या करती |पढ़ाई में मन लगा लिया |इंटर तक उसे कोई एतराज नहीं था, फिर बी ए कर लेने से क्या परेशानी थी ?तर्क भी कितना मूर्खतापूर्ण था कि मैं बी ए कर रहा हूँ तुम भी कर लोगी, तो मेरे बराबर हो जाओगी |लोग क्या कहेंगे ?तुम पढ़ाई छोड़ दो ,जब मैं नौकरी करने लगूँगा तो तुम्हें बी ए करा दूँगा |मैं जानती थी कि पढ़ाई का सिलसिला एक बार टूटा तो फिर मैं नहीं पढ़ पाऊँगी।फिर जब माँ के ही घर रहना है तो खाली बैठकर क्या करूंगी ?भाई-बहनों के तानों से वैसे ही मन खराब रहता है |मैंने उससे बिना पूछे बी .ए .प्रथम कर लिया तो वह जैसे मेरा दुश्मन हो गया |अपनी मर्जी से पढ़ना भी जैसे पाप हो |पढ़ने के सिवा और कोई गलत काम तो नहीं किया था |कभी उससे खर्च नहीं मांगा ।कभी किसी बात के लिए ताना नहीं दिया |पूर्ण पतिव्रत -धर्म का पालन करती रही। पर पढ़ाई जारी रखकर मैं उसकी दृष्टि में ऐसी अपराधिनी बन गई थी,जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता |एक स्त्री की यह मजाल कि पति की बात काटे ,उसकी इच्छा का मान न रखे |इस अपराध के लिए उसे कोई भी सजा दी जा सकती है |
और वह मुझे सजा देता रहा |उसने मुझे अपनी माँ के घर रख दिया और खुद हॉस्टल चला गया |एक दिन मैंने उसे अपने माता-पिता से कहते सुना कि --इसे परीक्षा देने नहीं जाने देना है ।इसकी माँ इस घर की हालत जानती है |वह इसे पढाकर नौकरी कराएगी और इसकी दूसरी शादी कर देगी |
मैं सातवें आसमान से गिरी |उसके इतनी गिरावट की मुझे उम्मीद नहीं थी |मैं एक सीधी-सादी, पढ़ाकू लड़की इतने वर्षों से सारे अभाव झेलकर भी अपने घर्म का पालन कर रही हूँ और यह मेरे प्रति ऐसे मनोभाव रखता है |आखिर क्यों ?किसने इसे भड़काया है या फिर यह सब इसके अपने मन की कुंठा है ?अपनी हीनता को छुपाने के लिए यह सब कर रहा है।
मैं लगातार रोती रही |मेरा दिल टूट गया था |विश्वास की दीवार गिरकर मुझे ही घायल कर गयी थी |मैंने माँ को पत्र लिखकर इसकी मंशा बताई तो माँ ने आश्वासन दिया कि छल के बदले छल ही करना पड़ेगा |परीक्षा की तिथि निकट आते ही माँ ने अपनी गंभीर बीमारी का हवाला देते हुए मुझे बुला भेजा |पिता जी आए और सास ने मुझे विदा कर दिया |ससुराल के दो-तीन महीने में ही मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी |वहाँ के रहन-सहन,खान-पान और ऊपर से न पढ़ पाने के तनाव ने मुझे बीमार कर दिया था |माँ के घर आते ही मैं स्वस्थ हो गयी और परीक्षा की तैयारी करने लगी |जब उसे पता लगा तो दौड़ा आया और माँ से झगड़ने लगा |मेरी तो जैसे शामत ही आ गयी |किसी तरह समझा-बुझाकर मामला शांत किया गया ,पर वह इस बात को कभी नहीं भूला |हमेशा उल्टा-सीधा इल्जाम लगाता |परीक्षा के बाद मुझे फिर ले गया और इतना टार्चर किया कि एक महीने के भीतर ही मुझे खून की उल्टी हो गई |यह देखकर वह और ताने देने लगा कि पढ़ने की वजह से ऐसा हुआ है |अब मैं इसको नहीं रखूँगा |उसने पिता जी को पत्र लिखा कि आकर मुझे ले जाएं |
बीमारी ठीक होने के बाद ही मैंने बी .एड .करना चाहा था ,तो वह फिर नौटंकी करने आ गया और फिर मुझे उसके घर जाना पड़ा |जहां उसने मुझसे मार-पीट की |अब तो वह खुलेआम मेरी माँ को चरित्र-हीन कहता पिता को नामर्द कहता |माँ अब पछता रही थी कि मेरी बात न मानकर क्यों यहाँ भेज दिया ?बेटी से क्यों कहा कि एक बार और देख लो |
मैं तो पहले से ही इसे जानती थी |किसी को परखने के लिए इतना लंबा समय नहीं चाहिए होता है |यह स्वभाव से ही ऐसा है और स्वभाव नहीं बदलता |इसका पुरूष अहंकार इस पर इतना हावी है कि यह स्त्री को अपने पैर की जूती समझता है |ससुराल में पहली ही रात को इसने मुझसे यह कहकर अपना चरणामृत पीने को विवश किया था कि 'मैं देवता हूँ तुम्हारा |'उसके मोजे उतारते ही बदबू का जो भभूका उठा कि मेरा मन घिना गया ,पर क्या करती ?पहली रात थी और अनजान जगह |वह मुझबपर शासन करने लगा |अपना जूठन ही खिलाता-पिलाता |क्या मजाल कि मैं उससे पहले खा लूँ |वह आधी रात को भी लौटता तो मैं भूखी-प्यासी जागी रहती |मैं सोचती- क्या इसी का नाम विवाह है ?मैं प्यार की भूखी थी,पर यहाँ प्यार-व्यार कुछ न था |यह जब चाहता मुझे बाहों में समेटता ,जब चाहे धकेलकर बाहर लगे दूसरे बिस्तर पर
सो जाता ।मैं रात भर जागती|मैं तन-मन दोनों से प्यासी रह जाती |वह रात को अक्सर मुझसे कटा-कटा रहता |इतना ही नहीं मुझे हर बात में जलील करता |
इस बार उसने मुझे अपने घर में कैद कर लिया।पिताजी आए तो मिलने नहीं दिया।चिट्ठी-पत्री पर प्रतिबंध लगा दिया।माँ रोते -रोते परेशान थी कि बेटी के न चाहने पर भी दामाद पर विश्वास किया।उसको बेटे की तरह प्यार किया ।विवाह के इतने वर्षों बाद तक उसकी पत्नी का भरण- पोषण किया। हारी-बीमारी में देखभाल की।पढ़ाया-लिखाया।उस एहसान का बदला उसने इस तरह लिया।बेटी को ठीक से रखता तो भी मंजूर था पर वह तो उसे खत्म कर देने पर तुला है।क्या करूं?
मैं भी आखिर कब तक सहती?एक दिन मौका मिलते ही मैं उसका जेलखाना तोड़कर भाग आई।अब यह परम्परा,संस्कार और धर्म के खिलाफ तो है ही। आप मुझे गलत कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं !सच तो यही है कि मैं भागी हुई स्त्री हूँ।