पति के घर से भागते समय मैंने यह नहीं सोचा था कि मैं एक बड़े संघर्ष -क्षेत्र में कूद रही हूँ।जहां अंततः अकेलापन ही मेरा साथी होगा,जहां अपयश के सिवा कुछ हाथ न आएगा।जहां किसी भी नजर में मेरे लिए सम्मान और प्यार नहीं होगा।सारे अपने पराए हो जाएंगे और पराए मुझे नोंच खाने की जुगत नें रहेंगे और ऐसा न कर पाने पर मुझ पर लांछन लगायेंगे।शराफत का नकाब पहने लोग अपने घर की स्त्रियों को मुझसे दूर रखेंगे और अकेले में मिलने की मिन्नतें करेंगे।मेरे बारे में हजारों कहानियां गढ़ी जाएंगी।मेरे बारे में झूठी -सच्ची लाखों किंवदन्तियाँ होंगी।
इतनी सारी बातों को सीधी- सादी ,भावुक ,किताबी -कीड़ा रही अधमरी-सी सत्रह साल की लड़की कैसे सोचती?मैंने भी नहीं सोचा था। मैं तो इसलिए भागी कि मेरे सामने भागने के सिवा कोई रास्ता न था। मैं जीना चाहती थी और मेरा पति सीधे- सीधे एक बार में ही मुझे मार भी नहीं रहा था।मैं उसे प्रेम से ,त्याग से,सोच -समझ से समझाकर हार गई थी।वह शायद नहीं चाहता था कि मैं उसके साथ रहूँ पर उस कायर में इतना साहस नहीं था कि मुझे छोड़ सके या तलाक दे सके।अगर वह मुझे रखना चाहता तो मुझे इतनी तकलीफें क्यों देता?वह मेरी यह कमजोरी जानता था कि मैं रोज -रोज अपने माँ -बाप के लिए गाली नहीं सुन सकती।वह जानता था कि मैं रूखी -सूखी खाकर जी सकती हूँ ,पर अपमान सहकर नहीं जी सकती।वह मेंरे आत्मसम्मान को कुचल रहा था ।घर के सामने की एक बदनाम औरत के कमरे में रात -भर सोता था।वह जानता था कि मैं ज्यादा दिन यह सब नहीं सह पाऊँगी और खुद कोई ऐसा कदम उठा लूंगी कि उसके सिर कोई अपयश नहीं आएगा।काश, वह यह बात उसे कह देता तो उसे इतना सब कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती ।मैं उसे खुशी से मुक्त कर देती।वैसे भी मैं परित्यक्ता कहलाने की अपेक्षा पतित्यक्ता का इल्जाम लेने को तैयार थी और लिया भी।उसने रो- रोकर पूरे समाज से कहा--मेरी पत्नी भाग गई।उसने संसार से कहा कि मेरी पत्नी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण मुझे छोड़ गयी।गांव -मुहल्ले,नात -रिश्तेदारों से कहा--अब मैं ऐसी पत्नी के साथ नहीं रहूँगा।
पर किसी ने उससे पलटकर नहीं पूछा कि क्या वह किसी प्रेमी के साथ भागी?क्या वह दुश्चरित्र थी?जिसने कभी कोई शहर तक नहीं देखा।जिसकी जरूरतें जरूरत से ज्यादा कम रहीं ।जो एक पढ़ाकू,सरल, सादगी पसन्द ,साधारण- सी लड़की थी।एकाएक कैसे वह इतनी महत्वाकांक्षिणी हो गयी?क्यों पति के चरणोदक लेने वाली इस कदर बागी हो गयी कि पति के घर छोड़कर भाग गई।कोई भी ये न कह सका कि इसे भागना न कहकर नाराजगी में माँ के घर जाना भी कह सकते हो।वह कहीं और या किसी और के साथ तो नहीं भागी।
पर भागने को इस रूप नें लेने से उसकी गंभीरता कम हो जाती है,इसलिए उसने इस भागने का इतना दुष्प्रचार किया कि मैं कभी वापसी के बारे में विचार भी न कर सकूँ।आखिर मैं किस मुँह से उसके घर ,उसके उस समाज में वापसी कर सकती थी,जिसमें मेरी छवि एक भागी हुई स्त्री के रूप नें बना दी गयी थी।
भागते वक्त मैं यह सोच रही थी कि मेरे लिए तड़प रही माँ मुझे अपने सीने से लगा लेगी ।मेरे भाई- बहन आंखों में आंसू लिए मेरे इर्द -गिर्द होंगे।पड़ोसी और रिश्तेदारो के चेहरों पर इत्मीनान होगा कि सीता अशोक -वाटिका से वापस आ गई ।सारे पहरेदारों को चकमा देकर ,सारी जंजीरों को तोड़कर एक राक्षस के चंगुल से निकल आई ।सभी मेरे साहस की सराहना करेंगे।जब मैं रिक्शे से माँ के दरवाजे पर पहुंची तो बेसुध होते-होते देखा सब कुछ ठीक वैसे ही हो रहा है,जैसा मैंने सोचा था ।
पर क्या वह सच था?गर सच था भी तो कितने दिनों का सच!और आगे कैसा भविष्य मेरे सामने आने को था!आखिरकार मैं एक भागी हुई स्त्री थी ।