हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग तीन) Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग तीन)

आकाश गिद्धों से भरा हुआ था,यही समय था कि एक नन्हीं चिड़ियाँ पिंजरा तोड़कर उड़ी थी।उसे नहीं पता था कि आसमान इतना असुरक्षित होगा।उसने तो सपनें में आसमान की नीलिमा देखी थी।ढेर सारे पक्षियों की चहचहाहटें सुनी थीं।शीतल ,मंद पवन की शरारतें देखीं थी।स्वच्छ जल से भरा सरोवर देखा था और फर- फरकर करती हुई अपनी उड़ान देखी थी पर यथार्थ कितना भयावह था!कहां -कहां बचेगी और किस -किससे !वे आसमान से धरती तक फैले हुए हैं ।कोई पंजा मारता है कोई चोंच ।बचते- बचाते भी उसकी देह पर कुछ निशान बन ही जाते हैं ।कैसे प्राण बचाए ?कैसे क्षितिज तक जाए ?कोई साथ नहीं,पर हौसला है हिम्मत है चाहत है।वह अकेले ही उड़ेंगी !गिध्दों से खुद को बचाते हुए उनसे भिड़कर तो आगे नहीं बढ़ सकती।वे सबल है,समूह में हैं,पूरे आकाश पर उनका कब्ज़ा है।क्षितिज तक पहुंचना आसान नहीं होगा ,बिल्कुल आसान नहीं होगा पर चिड़िया हार नहीं मानेगी।
मैं भी हार नहीं मानूँगी, सारी प्रतिकूल स्थितियों का सामना करूँगी।जरूर करूंगी ...करूंगी ही।
मैं स्वप्न में बड़बड़ा रही थी। मैं ही नन्ही चिड़ियाँ थी गिद्धों से भरे आकाश में अकेले उनसे जूझती हुई। उनसे खुद को बचाते हुए......!तभी माँ ने मुझे झकझोर कर जगा दिया।
ससुराल से आने के बाद मेरी बदतर हालत देखकर संबको सहानुभूति हुई थी पर एक माह बीतते ही स्थिति बदलने लगी।छोटी बहनें बात-बेबात ताना देने लगीं।भाई गुस्से से देखते जैसे मैंने उनकी नाक कटा दी हो। एक माँ ही थी जो सब समझती थी पर कभी -कभी वह भी बहुत- कुछ सुना देती जैसे सारा दोष मेरा हो।माँ पर मेरे सिवा दूसरे और बच्चों की भी जिम्मेदारी थी और आय का स्रोत मात्र एक चाय-मिठाई की दूकान थी।मैं बहुत कम में जीवन गुजार रही थी पर मेरा बोझ तो था ही परिवार पर।भाई -बहन सोचते उनका हक बांट रही हूँ।पिताजी तो कई बार मारने को हाथ उठा देते। कहते-ससुराल में सहकर नहीं रह सकती थी।आजादी नहीं होगी न ,छुट्टा घूमने के लिए,इसलिए चली आई।
मैं कैसे कहती कि दसवीं फेल एक लड़के से रिश्ता तय करते समय क्यों नहीं सोचा गया ? वह कैसे पत्नी को रखेगा,जो खुद मुहताज हो और अभी पढ़ रहा हो,उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में वक्त तो लगेगा न।तब तो झटपट स्वीकार लिया कि जब तक लड़का कमाएगा नहीं ,तब तक हम लड़की को रख लेंगे ।कोई उसका घर -परिवार तक देखने नहीं गया। देखा गया कि कम दहेज देना पड़ेगा। देखा गया कि लड़का देखने में हीरो टाइप का है।
फिर अब यह सब मेरा भाग्य- दोष क्यों कहा जा रहा है? मैं तो शादी के लिए राजी भी नहीं थी ।मैं पढ़ना चाहती थी पर मुझे इमोशनल ब्लैकमेल किया गया कि कम दहेज में लड़का मिल रहा है और अभी चार बहनें और ब्याहने को हैं।बोझ उतारने के चक्कर में और बोझ बढ़ा लिया गया तो इसमें मेरा क्या दोष!अब तो बेटी के अलावा दामाद भी महीने आकर यहीं पड़ा रहता है।
पर मेरे द्वारा यह सब कहने पर मेरी जुबान खींच ली जाती और धक्के मारकर इस घर से भी बाहर कर दिया जाता फिर अकेली जवान जहान मैं कहां जाती ? सहने के सिवा क्या विकल्प था मेरे पास ?
सोचा कि फिर से पढ़ाई में मन लगा लूँ।बी एड नहीं कर पाई तो एम ए ही कर लूं शायद कहीं प्राध्यापक बन जाऊं,पर मैं नहीं जानती थी कि नियति अभी मेरे साथ और क्रूर खेल खेलना चाहती है।
मैं गर्भ से थी।पता लगते ही घर में जैसे भूचाल आ गया।एक और खर्च एक और नया सदस्य।