दानू ने कढ़ी बनाई
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दानी अपनी बातें सुनाते हुए हर बार किसी न किसी ऎसी बात का ज़िक्र करतीं जिससे बच्चों को कोई न कोई सीख मिलती | इसके लिए हमने कभी उनको डाँटते हुए नहीं देखा | वह बात को इस प्रकार से घुमाकर मनोरंजक तरीके से बातें सुनतीं कि हमें लगता कि हमें भी कुछ ऐसा तो करना चाहिए जो किसी न किसी के लिए उपयोगी हो | समाज के लिए हम कुछ कर सकें |
हमें हमेशा दानी या तो झूले पर बैठी हुई मिलतीं या फिर बरामदे में अपनी उस कुर्सी पर जिस पर पहले दानू बैठकर अखबार पढ़ा करते या फिर बच्चों को कुछ न कुछ बातें सुनाते | दानू के बाद दानी पहले तो ख़ाली कुर्सी को देखकर बहुत रोती थीं | जब दानू अचानक चले गए दानी अकेली रह गईं तब दानी कुर्सी को देखतीं, उन्हें दानू की याद आती | दानू और दानी पचास साल से भी अधिक समय तक साथ रहे थे और अब अपनी तीसरी पीढ़ी के बच्चों के साथ अच्छा समय गुज़ारते थे लेकिन दानू के अचानक परलोक गमन से दानी अकेली पड़ गईं थीं |
इतनी बड़ी उम्र में दानू और दानी बच्चों जैसा व्यवहार करते, हम बच्चों को देखकर बड़ा मज़ा आता | वे जैसे बच्चों वाली हरकतें करते और फिर हमारे साथ मिलकर खूब हँसते |
एक बार दानू ने कहा कि वो बच्चों के लिए कढ़ी बनाएंगे | एक बार दानी ने बताया तो था कि दानू बड़ी अच्छी कढ़ी बनाते हैं और उस दिन महाराज भी छुट्टी पर थे | मम्मी -पापा को अपने ऑफ़िस में जाना था | दानू ने सबको आश्वस्त कर दिया था कि उस दिन लंच का मीनू रहेगा, पकौड़े वाली कढ़ी और चावल | बच्चे कढ़ी चावल बहुत खुशी से खाते |
यह तय हुआ कि जो बनाएगा, वही किचन में रहेगा | और किसी को वहाँ जाने की इज़ाज़त नहीं थी | दानू की बारी थी सो वे गए और अपना काम करने लगे |
चावल बनाने का काम दानी के पास आया और सलाद काटने का बच्चों के पास | दानी पहले ही चावल बना आईं थीं जबकि कढ़ी पहले बनानी चाहिए थी जिससे उसमें पकौड़े डालकर वह पकाई जा सके | अब दानू तो दानू थे | अड़ गए;
"तुम पहले अपने हिस्से का काम कर लो और मुझे किचन खाली करके दे दो | मैं आराम से अपना काम कर लूँगा |"
दानी ने चावल बना लिए, बच्चे सलाद काटने के लिए सब सामान लेकर बाहर आ गए और
बाहर दानी से बातें करते हुए सलाद काटने लगे | दानू की झूलने वाली आराम कुर्सी ख़ाली थी सो दानी ने उसे हथिया लिया और उस पर झूलते हुए कुछ बातें सुनाने लगीं |
दानू कहकर गए थे कि अलग तरह की कढ़ी बनाएँगे जो जल्दी बन जाती है और बहुत स्वादिष्ट होती है | जल्दी बनने वाली में इतनी देर लग गई थी | सबके पेट में चूहों ने उपद्रव मचा रखा था | जब काफ़ी देर हो गई, दानी के साथ बच्चे किचन में पहुँच गए |
"सबको बहुत भूख लग रही है,, टेबल लगा लें ?" दानी ने कहा |
बच्चे प्लेट्स लगाने चल दिए | दानू जी कुछ बोल ही नहीं रहे थे |
"आप हटिए, मैं डोंगे, में कढ़ी निकालती हूँ ---"
दानू हट तो गए लेकिन कढ़ी की कढ़ाई तो सिंक में पड़ी थी |
"ये क्या ? "दानी ने चौंककर पूछा |
"भई, मुझे दस मिनट दो, अभी खाना मिलता है --"दानू ने धीरे से कहा लेकिन कारण नहीं बताया |
बच्चे प्लेट्स बजाने लगे थे | भूख के कारण सबका बुरा हाल था |
गेट खुलने की आवाज़ आई तब दानू के चेहरे पर कुछ रौनक आई और वे टेबल पर आकर बैठ गए | घर में दिन भर काम करने वाला सोहन था और उसके हाथ, में थे कई खाने के कई पार्सल !
"सोहन.जल्दी खोल, भूख के मारे सब बेहाल हैं |"
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन अभी सबसे पहले खाना | खाना बढ़िया था, सब खाने पर टूट पड़े | कुछ खाना अंदर जाने के बाद दानी ने पूछा ;
"आख़िर हुआ क्या था ?"
"अरे ! भाई हमने बेसन की जगह केक- पावडर की कढ़ी बना ली थी, प्याज़ के हरे पत्तों की |"
अब दानू ने कढ़ी का राज़ खोला | अब पेट भी काफ़ी भर चुका था तो हँसी भी खूब आई |
फिर कभी दानू खाना बनाने के बारे में 'अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बने |"
डॉ प्रणव भारती