धर्मी कर्मी Rohit Kumar Singh द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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धर्मी कर्मी

सूरज बाबू घबरा के उठ बैठे,उन्हें भूख भी लग रही थी,और कुछ अजीब सी महक भी आ रही थी,जो उन्हें बरदाश्त नहीं हो रहा था।उनके शरीर से पसीना छूट रहा था,क्योंकि अजीब सा चिपचिपा पदार्थ उन्हें अपने जिस्म पर मला हुआ सा महसूस हो रहा था,जो गर्मी को और भी बढा रहा था।उन्होंने बडे चिडचिडे भाव से अपने उपर लपेटी पांच छ: शाले उतार फेंकी,क्या है ये तमाशा?मुंह के भीतर कोई चीज फंसी हुई थी,वो उन्होंने ऊंगली से निकाली,हथेँली पे एक पांच का सिक्का आया,जो उन्होनेँ फेंक डाली,और साथ मे आये दो तीन काजू,किशमिश और बादाम के दाने,जो.उन्होंने आश्चर्य से देखे।
उनके इर्द गिर्द आठ दस लोोग खडे थे,वो अनमने भाव से एक किनारे खडे हो गये,और सबका अवलोकन करने लगे,चंद मिनटो मे उन्हें समझ मे आ गया कि वे दरअसल मर चुके है,और ये लोग उनकी लाश के साथ धर्म कर्म की पूर्ति कर रहे है,और अब उन्हें याद आया कि पिछली रात वे ज्वर से काफी तडप रहे थे,और बडे भूखे भी थे।उनकी बेचैनी सीमा लांघ गयी थी,और लगता है कि वे उसी बेचैनी मे चल बसे।
मगर ये लोग उन्हें इतनी शाले क्यों ओढा रहे है,इतनी गर्मी है,जब कडाके की ठंड थी,तो किसी ने उनका ख्याल तक नही किया,मै एक चादर मे कैसा लिपटा और सिकुडा रहता था,एक कम्बल मांगते मांगते थक गया,पर ना तो बेटे ने,ना बहु ने कभी ध्यान दिया,और अब इतनी कीमती शालें?
फिर मेरा चिपचिपेपन पर ध्यान गया,तो मैने समझा कि लगता है जैसे ढेरो घी मेरे शरीर पर मला गया है,कमाल है,घी खाये तो मुझे दसियों साल से उपर हो चुका था,मुझे तो उसकी गंध तक याद नही,किसी ने कभी मेरी रोटी पर दो बूंद घी कभी नही चुपडी,और अब इतना घी?
और ये देखो,मेरे मुंह मे ये काजू,किशमिश और बादाम, मुझे याद था कि आखिरी बार मैने कब काजू,बादाम खाये थे,जब मेरी मां जिंदा थी,कोई दस बारह साल हो गये,तब वे मुझे कभी कभी खिलाया करती थीं,ये मेरा बेटा,चुपके चुपके रसगुल्ले और खोये की बरफियां,अपनी बीवी को ला के खिलाया करता था,मुझे तो कभी पूछा तक नहीं, और आज ये काजू,किशमिश?
पिछले कई सालो सै इन्होंने मेरा खाना तक सीमित कर दिया था,गिन के दो रोटियां, दाल और थोडी सब्जी, मेरे बाल और दाढी काफी बढे रहते थे,किन्ही जंगलियो की तरह,कभी बनाने को पैसे नही मिलते,और देखो मै मरने के बाद कैसा चकाचक लग रहा हूं,दवाईयां जो मै ट्रस्ट के अस्पताल से ले आता,बस वे ही मुझे जिन्दा रख रही थीं,मेरी कमीज पैंट तार तार हो के फट चुकी थी,पर किसे फिकर थी,और आज इतने कीमती साफ साफ वस्त्र मेरे शरीर पर?बस मुझसे इतनी सी गलती हो गयी थी कि कुछ सालो पहले मैने अपना घर बार,रुपया पैसा सब कुछ अपने बेटे और बहु के नाम कर दिया था,उपर से मेरी पत्नी भी गुज़र चुकी थी,और मै उस गलती की वजह से असहाय हो के रह गया था,और अब सजा भुगत रहा था।
कल रात मै भीषण ज्वर से तडप रहा था,और इन्होंने मुझे डाक्टर के पास ले जाने के बजाय एक क्रौसिन की गोली खिला के फुर्सत पा ली थी,और खुद दोनो फिल्म देखने चले गये,और.जब आधी रात को पिक्चर देख के लौटे तो सीधे सोने चले गये,मुझे खाने तक को नही पूछा,मै चिल्ला भी नही पाया।
मेरा मन वितृष्णा से भर गया,ये घी,चंदन की लकडी छोटी सी,सुंगधित धूप,कीमती शालें,मेवे और
मेरे मुंह.मे पैसा,छी:?अभी जला के आयेंगे,और घंटे दो घंटे मे भूल भी जायेंगे,चलो एक बोझ तो हटा।काश कि इन्होंने मुझे थोडा ढंग से खिलाया पिलाया होता,दवा दारु की होती,ठंड सै बचाया होता,और मुझे थोडा सा प्यार दिया होता,तो मै अभी शायद जिन्दा होता,कुछ और साल जी लेता,पर इनकी लापरवाही ने मेरी जान ले ली।
अरे मै कम से कम इनके घर का एक वफादार नौकर तो था,इनके बच्चों की देखभाल तो किया करता था,सब्जियां और दूध तो ला दिया करता था,बिना तनख्वाह का एक नौकर तो था।
अब दिखा रहे है,महल्ले वालो को ,दोस्तो को,समाज को,बस अपनी नाक ऊंची रखने के लिये, जैसे बडा प्यार करते थे अपने बाप को।
मैने सिर को झटका,और अपनी लाश मे प्रवेश कर गया,इनके धर्मी कर्मी होने का नाटक देखने से तो यही अच्छा था।