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सातवां आसमान

सुरेश थापा आजकल सातवें आसमान पर रहता था,यूं तो वो अपनी बिल्डिंग मे पिछले दो सालो से वाचमैन था,रहने के लिये उसे एक कमरा भी सेक्रेटरी के सौजन्य से मिला हुआ था,उसका विश्वासपात्र था,सो अपनी बीवी और अपने छोटे बच्चे को भी साथ रखता था,पगार भी ठीकठाक थी,सो वो अपने किरायेदारो और ओनरो को भी खुश रखता था,सबके काम आता था,मिलनसार था,सभी उसका और उसके परिवार का ख्याल रखते थे,किसी बात की कमी नही होने देते थे।हलांकि दो और भी वाचमैन थे,पर वो ही सबके आंखो का तारा था,सब उसे ही वक्त बेवक्त ढूंढते रहते थे।
पर जब से ये लाकडाउन शुरु हुआ था,लोगो को गेट से बाहर निकलने पे रोक लग गयी थी,खुद लोगो को कोरोना वायरस का भय लग गया था,उपर से बाजार से दूध लाने या किराने के सामान आदि लाने की जहमत हो गयी थी,छोटे छोटे सामान,सब्जियां भी लाने की दिक्कत हो चली थी,तब से सुरेश थापा की कीमत और भी बढ गयी थी,जिसे देखो,वो सुरेश को ही मोबाइल पर या आवाज लगाते ढूंढता फिरता था,क्योंकि वो सबका विश्वास पात्र था,और इसीलिये उसका सर आजकल सातवे आसमान पर रहता था।एक वाचमैन की इतनी इज्ज़त काफी थी,सारी औरते उसे भय्या कह के ही सम्बोधित किया करती थी, और उसके तीन साल के बच्चे को अपने गोद मे लेकर खिलाया करती थीं।उसकी चुप्पी बीवी भी सबकी सहेली बन चुकी थी,और सबके घरो मे घुसना भी उसका फ्रीक्वेंट हो चला था,किसी के घर मे कोई लजीज चीज बनती,तो सुरेश के भी घर मे जरुर जाती,कभी कभी कोई उसके बीवी बच्चों के कपडे भी ला दिया करता,और ये सब था कोरोना वायरस का चमत्कार, मौत का भय सभी को बाजार जाने से रोकता,बाजार जाने के लिये अगर कोई था,तो वो था सुरेश थापा।वैसे सुरेश भी बडा खुश था,इज्ज़त पाना,और ईमानदार कहलाना किसे नही सुहाता,यहां तक कि इस कोरोना महामारी मे उसे सोसायटी की तरफ से दस हजार रुपयो का डोनेशन भी मिला था,सो वो मगन था।
एक रात जब वो घर लौटा तो उसने बीस हजार रुपये बीवी के सामने निकाल के रख दिये,पूछने पर उसने बताया कि ये पैसा बिल्डिंग वालो का है,जो उसे कल के दिन बाजार से सामान लाने को मिला है,क्योंकि कल के दिन सिर्फ दो घंटो के लिये मार्केट खुलेगा,और सबकी जरूरत के सामान लाने है,सबकी लिस्ट तैयार हो गयी है,और घर घर जा के उसने ये पैसा इकठ्ठा कर लिया है,सुरेश की बीवी ने अपने पति की तरफ गौर से देखा,कि लोगबाग उस पर कितना विश्वास करते है,और उसे भी फख्र हुआ कि वो सुरेश की पत्नी है।
रात बीती और सुबह सुबह रोज का काम निपटाने के बाद सुरेश घर से बाहर आया,हाथो मे रुपये और थैले लेकर,उसे बाजार जो जाना था,पर सामने कम्पाउंड मे बीसो औरत और मर्दो की भीड देख वो अकचका गया,और वही रुक गया।बडे जोर शोर से कोई चर्चा चल रही थी,पता चला कि चौथे मंजिल पे रहने वाले जयंत कुशवाहा के यहां कोई चोरी हो गयी थी,उनके ड्राईंग रुम मे रखा हीरो का नेकलेस जो लाखो का था,वो गायब था,और इसका पता अभी अभी चला था।सुरेश के वहां पहुंचते ही वहाँ शांति छा गयी,और कितनों की ही निगाहें उस पर ही टिक गयी,और सुरेश हडबडा गया,जब कुशवाहा ने सीधे सीधे उंगली उसकी ही तरफ उठा दी कि उसे सुरेश पर ही शक है,कि नेकलेस उसी ने गायब किया है।पिछली रात सुरेश ही उनके घर राशन के पैसे लेने आया था,और उस समय नेकलेस वही टेबल पर रखा था,उस वक्त उसकी बीवी घर मे अपना नेकलेस साफ कर रही थी,और बाद मे बेख्याली मे वो उसे वहां भूल ही गयी थी,कि किधर रख दिया और रात से सुबह तक ढूंढने पर भी पता नही चला,और अब उन्हें यकीन है कि कल रात ही सुरेश ने उसे उठा लिया होगा।
सुरेश के तो पसीने ही छूट गये,और तब तक दौडती हुई उसकी बीवी भी पहुंच गयी,औल रोने धोने लगी,उसे पूरा विश्वास था कि उसका पति ऐसा नही कर सकता।सुरेश तो मानो सबके सामने नंगा ही हो गया था,उपर से किसी ने सलाह दे डाली कि पुलिस को बुला लिया जाये,सुरेश ने हाथ जोड कर प्रार्थना की कि ऐसा ना करे,उसने चोरी नही की है,मगर अब उसकी बातो पर बहुतेरो को यकीन नही हो रहा था,सबको ये लग रहा था कि एक गरीब के सिवा कौन चोरी कर सकता है।
सुरेश सर पर हाथ धर के बैठ गया,और रात की बाते याद करने लगा,वो बडा मायूस था,कि रातो रात वो इनकी नजरो मे चोर कैसे बन गया,क्या उसे मिलने वाली इज्जत झूठी थी।
अचानक उसके दिमाग मे एक बात कौंधी,और उसने कुशवाहा परिवार को अपने साथ चौथी मंजिल पर उसके घर चलने को कहा,उसे अचानक से एक बात याद आ गयी थी।सेक्रेटरी,मिसेज कुशवाहा, और उसके पति के साथ और भी दो चार लोग उसके साथ उपर गये,दरवाजा खोला गया,अंदर उनका ढाई साल का बेटा था,जिसे वो रुम मे छोड कर नीचे गये थे।भीतर जाने के बाद सुरेश ने पुरजोर आवाज मे कहा कि कल रात उसने बच्चे के हाथ मे कोई चमकती सी चीज देखी थी,जिसे लेकर वो टायलेट मे घुस रहा था,उस समय मिसेज कुशवाहा भीतर राशन का पैसा लाने को गयी थी,और वो समझ नही पाया था कि वो चमकती चीज क्या थी,वो तो दरवाजे पर ही खडा था।उसे विश्वास है कि वो नेकलेस ही रहा होगा,वो फिर से उसे टायलेट के भीतर ढूंढे।
ठीक से क्या,मिं कुशवाहा ने तो सीधे पैन के अंदर ही हाथ घुसेड डाला,और भीतर तक टटोल डाला।
अभी सुबह के आठ बजे थे,और सारी कुशवाहा फैमिली को 9 बजे ही टायलेट जाने की आदत थी,सो नेकलेस नजदीक ही कही फंसा हुआ था,और अब वो कुशवाहा के हाथो मे चमक रहा था,उनके बेटे की करामात शायद फेल हो गयी थी।
सुरेश धीरे धीरे पीछे की ओर सरकता गया,और फिर से नीचे आ गया,अब उसका सर भी सातवे आसमान से उतर के नीचे आ चुका था,सारे लोग पीछे पीछे दौड के आये कि उससे माफी मांगे,पर वो सबको उनके थैले और पैसे वापस कर रहा था,उसका खुद का विश्वास टूट चुका था,वो गलती से अपने आप को उस बिल्डिंग मे रहने वालो का ही एक हिस्सा समझ बैठा था।

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