मै जि़न्दा हूं, चाचा Rohit Kumar Singh द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मै जि़न्दा हूं, चाचा

मेरे जूते के सोल की सिलाई उधड गयी थी,ढूंढते हुये मै एक मोची के पास पहुंचा,और मोल भाव करके जूता उसे सीने को दे दिया,बगल मे उसके एक छोटा सा टेबल पडा था,उसी पर बैठ गया,और उससे बाते करने लगा,जो मेरी आदत थी,कहानियां ऐसे ही तो मिलती थी मुझे।
थोडी ही देर मे उससे नजदीकी बढ गयी,और उसने दो चाय के लिये बगल वाली दुकान मे आवाज़ लगा दी,मै आराम से बैठ गया,और उसका नाम पूछा,वो कोई 65 साल की उमर का था। उसका नाम अब्दुल रहमान था,और कोई 5 साल से जूते ठीक करने का काम कर रहा था,उससे पूछने पर कि पहले वो क्या किया करता था,उसने जो बताया,उसने मेेेरी उत्सुकता उसमे बढा दी।पहलै वो लाशों का म्युनिसपल हास्पिटल मे पोस्टमार्टम किया करता था,कान्ट्रेक्ट बेस पर,महीने मे आठ दस काम आ जाता था,एक लाश के उसे 3000 रुपये मिल जाया करते थे।
अब मैने उससे पूछा कि चचा,पोस्टमार्टम का कोई रोमांचक किस्सा हो तो बताओ,वो ये सुन कर खामोश हो गया,कुछ मिनटो के बाद वो आहिस्ता से बोला,एक किस्सा है,सुनाता हूं।मैने कान लगा दिये,
उन दिनो अब्दुल की उमर कोई 59 या 60 की थी,करीब महीने भर से अब्दुल के हाध कोई काम नही आया था,क्योंकि वो थोडा बीमार चल रहा था,घर मे पैसो की तंगी हो गयी थी,बीवी फातिमा भी झिक झिक करती रहती थी,ऐसे मे फातिमा ने उसे सुनाया कि आलिया अपने शौहर सलीम के साथ घर पे आने वाली है।दोनो चुप हो गये,क्योंकि वो पहली बार कोई तीन साल के बाद घर वापस आ रहे थे,कारण सिर्फ ये था कि उन दोनो ने उनकी मर्जी के खिलाफ घर से भाग के शादी की थी,और अब वो फातिमा की इजाजत से घर वापस आना चाहते थे,फातिमा को भी और अब्दुल को भी अपने दामाद को देखने की इच्छा थी,और अब तो उनके घर एक नहीं दो दो नये मेहमान आने वाले थे,उनका नाती सुलेमान भी,दोनो रोमांचित थे,खुश थे,ऊन्होने अपनी बेटी को माफ कर दिया था,क्योंकि सलीम भी फर्नीचर के काम मे तरक्की कर रहा था,उनकी बिरादरी का नहीं था,तो क्या हुआ।खुशियां तो थी,पर फातिमा ने कहा,कि पहली बार सलीम घर आ रहा है,और घर नंगा पडा है,कोई सजावट नहीं,ठीक से खाने पीने तक को नही,उपर से साथ मे सुलेमान भी है,उसके उपर भी खर्च आयेगा,कुछ करो।इन दिनो कोई काम हाथ नही आ रहा था,फिर भी उसने अस्पताल फोन कर के काम पे आने की इजाजत मांगी,डाक्टर ने कहा,अच्छा जल्दी ही बुलाते है।आलिया और सलीम दो दिनो के भीतर ही आने वाले थे,बगल के ही दो मील दूर तो वै रहते थे,ये कहिये,लगभग एक ही शहर मे,बस आपस मे नाराजगी थी,और कुछ नहीं,सो फातिमा ने घर को दुरुस्त करना शुरु कर दिया।
आज 8 अगस्त था,और वो आज ही आने वाले थे,और आज ही इत्तेफाक सै अब्दुल को काम मिला,दोपहर मे उसे बुलावा आया कि आ जाओ,तीन लाशे एक्सीडेंट की आई है,एक का पोस्टमार्टम उसे करना है,अब्दुल हर्षित हो गया,पैसो की समस्या हल हो गयी थी,ये अच्छा था कि इस काम मे पैसे नगद मिला करते थे,काम खत्म,पैसा हाथ मे।वो फातिमा के गालो को सहला के अस्पताल भागा,फातिमा अपने यहां मेहमानों के इंतजार मे खाना वाना बनाने लगी।
पोस्टमार्टम के कमरे मे अब्दुल को एक लाश दे दी गयी,टैक्सी एक ट्रक से टकरा गयी थी,और उसे सर पे भयानक चोटें आई थी,डाक्टर के पास उसे प्राथमिक चिकित्सा के लिये ले जाया गया,पर चंद मिनटो मे ही उसे मृत घोषित कर दिया गया,बाकी के दो तो पहले ही आन दी स्पाट मृत हो चुके थे।ये हर पोस्टमार्टम करने वाले का नियम था कि लाश को हाथ लगाने से पहले,वो एक बोतल देसी दारु पीता,फिर ही उसका हाथ धारदार चाकूओं पर पडता,लाशो को चीर फाड करना कोई मामूली बात थोडे ही थी ना,दिल तो दहलता था ना।
अब्दुल ने भी कोई पौना बोतल एक ही बार मे पी ली,तो उसमे हिम्मत आई,हालांकि वो बीमारी से उठा था,और महीने बाद लाश को छूने जा रहा था।
उसने लाश के कपडे उतार कर उसे पूरा नंगा किया,और एक बडा सा धारदार चाकू हाथ मे लिया,और लाश के पेट के पास जगह ढूंढने लगा,जहां से वो काम शुरु करता,कि अचानक वो चौंका,उसे लगा कि लाश के हाथ मे बडी हल्की सी जुम्बिश हुई,और शांत हो गयी।वो आंखे फाड फाड के लाश को गौर से देखने लगा,कि उसे क्या धोखा हुआ था,फिर उसे महसूस हुआ कि लाश की दोनो आंखे करीब आधी या पौना मिलीमीटर खुल के बंद हो गयी।अब्दुल घबरा गया,ये उसके महीने बाद काम करने का नतीजा है,या पौना बोतल चढा लेने का,ऐसा कहांं होता है।फिर भी मुतमईन होने के लिये वो पूरी तरह लाश पर झुक गया,और उसके सीने पर दिल के पास अपने कान सटा दिये,कुछ टप टप तो करता था,पर वो विश्वस्त नही था,उसने फिर आंखे फाड कर लाश के चेहरे को देखा,ये किसी नौजवान की लाश थी,और अब फिर से उसकी आंखे आधी मिलीमीटर खुल गयी थी,लाश शांत थी,कोई जुम्बिश नहीं थी,पर मानो आंखे बोल रही थी,"अभी मै जि़न्दा हूं,चाचा।"
अब्दुल के हाथ थम गये,वो पेशोपेश मे पड गया,क्या करें,डाक्टर तो बोलता है कि ये मर चुका है,उसकी रिपोर्ट गलत थोडे ही होगी ना,पर इसकी आंखे?ये कहीं कोमा मे तो नहीं, शायद कही प्राण अटके हो,डाक्टर से भी तो गलती
हो सकती है,पर ये तो मरा सा जान पडता है,वो काफी दुविधा मे पड गया।उधर घर मे रुपयो की जरूरत है,सलीम और आलिया आ रहे है,सुलेमान भी है,पैसे नही ले गया तो बडी बेइज्जती होगी,फातिमा का गुस्सा वो जानता था,पर इधर? समझ नही आ रहा था कि क्या करें,डाक्टर को खबर करु क्या, पर अगर ये जिन्दा निकल गया तो?,पैसे तो हाथ से गये।पर ये जिन्दा कैसे हो सकता है,डाक्टर बेवकूफ है क्या, इतनी जांच पडताल करते है वो,उसकी उहापोह खत्म ही नही हो रही थी,वो अपने इमान और विवेक के जाल मे फंस चुका था।
करीब दो मिनट वो सोचता रहा,फिर उसने चाकू हाथ मे लिया और शायद जिन्दा लाश के पेट पर चला दिया,अंतडियां दिखाई देने लगी,लाश की अधखुली आंखो को उसने अपना मुंह घुमा के बंद कर दिया,उसके विवेक ने ऐसा ही जवाब दिया था।
पसीने से लथपथ अब्दुल पोस्टमार्टम रुम के बाहर निकला,बची हुई शराब भी उसने हलक मे उंडेल ली थी,घबराहट दूर हो चुकी थी,वो बाहर आ के एक किनारे बैंच पर बैठ गया,और उन परिवारों को देखने लगा,जो अपने अपने परिजनों की लाशों को क्लेम करने आये थे,उनके आंसू अब तक सूख चुके थे,पर चेहरे वीरान थे।उसकी निगाहें घूमते हुये एक जगह पर ठहर गयी,उसे वो चेहरा जाना पहचाना सा लगा,वो जल्दी से उसके नजदीक पहुंचा,
अरे,ये तो आलिया है,ये यहां कैसे? वो घबरा के पास पहुचा,पीछे उसे फातिमा का चेहरा दिखाई पडा,उसकी गोद मे छ: महीने का एक बच्चा पडा था,आलिया जोरो सै रोते हुये,अपने अब्बा से लिपट गयी,और चिल्लायी,अब्बा.....सलीम भीतर है,वो मर गया......वो मर गया।
अब्दुल के हाध जूते सीते हुये रुक चुके थे,और अब उसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे,फिर वो घूम के मेरे घुटनो मे सर छुपा के रोने लगा,वो किसी हिस्टीरियाई मरीज के समान बोल रहा था,"वो जिन्दा था साहेब,वो जिन्दा था,मैने उसे मार दिया"
"उसने कहा था,मै जिन्दा हूं,चाचा"
मेरा भी दिल भर आया,मै क्या बोलता,सिवा उसका सर सहलाने के,हम थोडी देर तक यूं ही बैठे रहे,फिर मै अपना जूता सरका के चुपचाप उठ गया,आखिरी बात जो अब्दुल ने कही,कि वो उसका आखिरी पोस्टमार्टम था,कुछ दिनो बाद उसने जूते चप्पल सीने का काम शुरु कर दिया।