जौनी ने अपना सर धीरे धीरे उपर उठाया,और अपनी आंखे झुका कर उसने कुबूल किया कि,
"हां,मैने ये अपराध किया है"
जज़ ने आश्चर्य से उस बूूढे आदमी की ओर देखा,जो कटघरेे मे सर को झुुुकाये खडा था,जो तन पर मैले कुुुचैले कपडे पहने था
बाल और दाढी महीनो से लगता था नहीं बने है,लग रहे थे
तन कमजोर,मन कमजोर, उमर कोई 70 से उपर,पर चेहरे से शालीन दिखता था।
जज साहेब ने,मुलायमियत से पूछा
"आप करते क्या हैं?"
"कुछ अगर करने को होता,तो शायद यहां नहीं होता"
"म...म..मेरा मतलब ये है कि पहले क्या करते थे"
"फिल्मी दुनिया मे था साहेब,मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन के ग्रुप मे वायलिन बजाया करता था"
"अच्छा,तो फिर क्या हुआ,क्या छोड दिया",
"होगा क्या,वही जो होता है,वौ लोग रहे नहीं, ग्रुप खत्म तो सब खत्म,मै भी अलग हो गया,इधर उधर भटकने लगा,उसने ठंडी सांस खींची
"किसी और जगह काम नहीं मिला,जज ने सहानुभूति से पूछा"
"मिलता तो था,पर भूले भटके,इधर उधर,वहाँ भी तो ग्रुपिंग ही चलती है,किसी ने लिया,किसी ने नही,और फिर मै भी तो बूढा ही हो गया था न साहेब,बूढे को कौन पूछता है"
जज साहेब ने अपना सर झुका लिया,और किसी सोच मे डूब गये,फिर थोडी देर बाद बोले।
"अब आप कुछ भी नहीं करते,मतलब कोई और काम धाम?
"हां,करता तो हूं,वही ट्रेन मे लोगो को घूम घूम कर वायलिन बजा के सुनाता हूं,
"तो फिर कुछ तो आमदनी हो ही जाती होगी""
"कभी कभी कोई कदरदान मिल भी जाता है,वायलिन की आवाज़ पसन्द आती है,तो कोई कुछ दे भी देता है
"आपके कोई बाल बच्चे नही, कोई बेटा या बेटी?""
"थे ना हुजूर,पर धीरे धीरे सब छोड के चले गये,अपनी दुनिया बसा ली,एक बेटी थी साहेब,बूढे जौनी ने विषाद पूर्वक सर को हिलाया।
"अब आपका ध्यान नही रखती,मतलब कि आपके पास नही आती"
"अब कई सालो से तो पता भी नहीं, कहा है,पहले कुछ महीनो तक तो ध्यान रखती थी,शायद मर गयी,कुछ पता नही चला,जौनी का चेहरा फिर से विद्रूप हो उठा।"
ऐसा लगता था कि उसे शायद पता है,पर मायूसी मे वो बताना नही चाहता था।जज साहेब परेशान हो गये,उन्हें समझ नही आ रहा था कि इस बूढे कलाकार से कैसे बात की जाये,वो उसके साथ दयालुता से पेश आना चाहते थे।
"कोई बात नहीं, आपकी पत्नी तो होगी?'
"बूढा हंसा,आपको पता नहीं?,आज उसी के वजह से तो यहाँ खडा हूं हुजूर।"
जज साहेब को मालूम था कि किसी छोटी मोटी चोरी के इल्ज़ाम मे जौनी यहां खडा है,पर पूरी बात उन्हें भी नहीं मालूम थी।उन्होंने अकचका कर सवाल किया,
"पत्नी की वजह से,हम.समझे नहीं,जरा डिटेल मे समझाईये"
बूढा जौनी थोडा सकुचाया,कुछ क्षण शांत रहा,फिर आंखे झुकाये धीमे धीमे स्वर मे उसकी आवाज निकलने लगी,जज साहेब को अपना चेहरा आगे करके कान लगाने पडे।
"वो काफी दिनो से बीमार है साहेब,65 की हो गयी है,शायद ही बच पाये,पिछले हफ्ते ही मेरा पुराना साथी,मेरा वायलिन गिर कर टूट गया,और शायद बन भी ना सके,मेरा रोजगार खत्म हो गया,और मै...मै..उसकी आवाज़ फंसने लगी,रूंधने लगी,फिर कुछ क्षण रुक के उसने कहा,मै भीख मांगने की नौबत पे आ गया सरकार, मजबूर हो गया,पर वो भी जरुरत के हिसाब से नहीं मिल पा रहा था हुजूर,मेरी बीवी ने दो दिनो से कुछ नही खाया है,और मेरी ये जिम्मेदारी बनती थी साहेब,कि मै उसे किसी तरह खाना ला के दूं,वो कम से कम भूखे तो नहीं मरे,भले मै मर जाऊं....मै मर जाऊं"
जौनी ने फिर फुसफुसाते हुये कहा," और इसीलिये मैने मजबूरी मे मे उस दिन उस होटल से थोडा खाना पैक करवाया, और दुकानदार की नजरे बचा कर चुपके से बिना पैसे दिये भाग खडा हुआ,पर उसने मुझे देख लिया,अपना आदमी दौडा के मुझे पकडवा लिया,और मेरी कुछ नही सुनी,मुझे पुलिस के हवाले कर दिया,अब मै यहाँ आपके सामने खडा हूं सरकार, मै अपनी सज़ा भुगतने को तैयार हूं,पर एक ही इल्तिजा है हुजूर,मेरी बीवी को खाना पहुंचवा दिया जाये,वो खा पी के मरे साहेब,खा पी के मरे"
जौनी चुप हो गया,वो सुबुक रहा था,उसकी आंखो से बेबसी के आंसू टपक रहे थे।।
अब जज साहेब के सामने ये जिम्मेदारी खडी थी कि वो जौनी को क्या सजा दें?