सोई तकदीर की मलिकाएँ - 22 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 22

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

22 

 

22

उस दिन चरण सिंह और शरण सिंह ने जो भोला सिंह के मन की पीङा सुनी तो मन में एकदम जयकौर का ख्याल आया । इतना अमीर और रसूख वाला सरदार है । अगर कहीं यह बात सिरे चढ जाय तो उनके दिन फिर जाएंगे । गाँव में होने वाली निंदा चर्चा से भी छुटकारा मिल जाएगा । अभी तो नाते रिश्तेदारी के साथ साथ पूरे गाँव में दंतकथा चल रही है कि भाई और भाभियों को मुफ्त की नौकरानी मिली हुई है तो शादी ब्याह क्यों करेंगे । आँख के अंधों को दिख नहीं रहा कि लङकी की शादी की उम्र निकल गयी है । घर में बिठा रखी है बेचारी ।
तो उस दिन फरीदकोट से कम्मेआना आते हुए दोनों भाई इसी बात को सोच रहे थे ।
भाई अगर भोला सिंह का मन बन जाए तो हम अपनी जयकौर की शादी उससे कर देंगे ।
हाँ छोटे , मैं भी यही सोच रहा हूँ ।
पर भाई , बहन मान जाएगी । यह जाट उससे कम से कम बीस साल बङा होगा ।
फिर क्या हुआ , मर्दों का खानदान देखा जाता है । जमीन जायदाद देखी जाती है । समाज में रुतबा देखा जाता है । उम्र कौन देखता है । और अपनी जयकौर कौन सा बच्ची है । तीस के पार हो गयी है । अब इस उम्र में बाईस साल का दूल्हा तो मिलने से रहा । भोला सिंह पंद्रह साल ही बङा होगा । इतने से क्या फर्क पङता है ।
लोग बातें करेंगे ।
अब कौन सा नहीं करते । सारा गाँव कहता है , माँबाप मर गये । भाइयों को कोठे जितनी बहन की परवाह ही नहीं है । घर में पङी पङी बुड्ढी हो गयी है । भाभियों के बच्चे पाल रही है । ये सब सुन सुन के मेरे तो कान पक गये ।
वो तो है भाई , पर कहीं लङका देखने जायं तो दस बीस लाख का खर्चा मामूली बात है । अब अपने बच्चे पालें या इसका लगन करें ।
वही तो । मैंने शुरु शुरु में रिश्ता ढूढने की कोशिश बहुत की पर खर्चे के लिए पैसे कहाँ से लाऊँ । हर जगह लेन देन , अँगूठियाँ कङे , कम्बल इसलिए हार कर चुप हो गया । अब ये बात सिरे चढ जाय तो गंगा नहा लें ।
वो तो है भाई ।
सुन , घर में जाकर इस बात का अभी जिक्र न करना । पता नहीं वे दोनों इस बात को कैसे लेंगी । वैसे भी भोला सिंह के मूड का अभी क्या पता । घर जाकर क्या सोचेगा , क्या करेगा भगवान जाने ।
ठीक है भाई ।
वे दोनों घर आ गये । दो दिन जकोतकी में बीत गये । आखिर उन्होंने मान लिया कि भोला सिंह इंकार कर गया । उस रात दोनों भाइयों ने जम कर शराब पी । अपने मरे हुए माँ बाप को जी भर कर याद किया । दुनिया को जी भर कर गालियाँ दी । फिर थक कर सो गये । सुबह दोनों का सिर भारी था । दोनों में से किसी से उठा न गया । कोई खेत न गया । न चरी आई , न पशुओं को चारा डाला गया । बिना खाये पशु दूध कैसे देते । जयकौर ने दोनों भाइयों को बारी बारी से आवाज दी पर दोनों ही हूं हाँ करके रह गये ।
भाभी , तू इन्हें खट्टी लस्सी पिला , मैं चारे का कोई जुगाङ करती हूँ । - जयकौर घर से निकली । गली में तीन घर छोङ कर झीवरों का घर था । उनका बेटा सुभाष जयकौर पर लट्टू हो रहा था । उस दिन जब जयकौर ने सुभाष से मदद मांगी तो वह तो सारी मुरादें पा गया ।
चल तू घर जा , मैं तुम्हारे खेत से चारा काट कर ले आता हूँ ।
सुभाष , भैंसें रस्सा तुङाने को हो रही हैं । मैं भी तेरे साथ चलती हूँ । मिल कर काटेंगे तो जल्दी चारा ले आएंगे ।
अंधे को क्या चाहिए , दो आँखें । सुभाष ने फट से साइकिल निकाला । डंडे पर जयकौर को बिठाया और खेत को चल दिया । खेतों से आती सुबह की ताजी हवा ने उनके गाल और बाल सहला कर उनको खुशआमदीद कहा । सूरज की किरणों ने उनका हँस कर स्वागत किया । कच्ची पगडंडी उनके रास्ते में बिछ गयी । नीम और शिंरीह ने अपने कोमल पत्ते उस राह पर बिछा दिये । सुभाष दिन में चार पाँच बार तो इस रास्ते से गुजरता होगा पर इतनी हसीन सफर कभी न लगा था । उसके पैरों में जैसे पंख लग गये थे । वह गुनगुनाने लगा -
जुगनी जा बैठी लहौर ।
खेत पहुँच उन्होंने क्यारे से चरी काटी । करीब आधा घंटा लगा होगा जब उन्होंने दो गट्ठर बना लिए ।
चल बहुत हो गया । अभी के लिए काफी है । शाम के लिए शरण ले जाएगा । चल वापस चलें ।
सुभाष को अफसोस हुआ कि उसने इतनी जल्दी काम खत्म क्यों किया । पर लौटना तो था ही तो वह साइकिल के कैरियर पर गट्ठर लाद कर वापिस लौटे । जयकौर ने चारा पशुओं को डाला और धार निकालने लगी । धार निकाल कर उसने दूध हारी में कढने रख दिया । बच्चों को नहलाया फिर चूल्हा तपा कर परौंठे बनाने लगी । तभी बाहर भोला सिंह ने आवाज दी – चरण सिंह , शरण सिंह ।
अंग्रेज कौर गुस्से में भरी हुई उठी कि वह दरवाजे पर आए उस बेवक्त के मेहमान को चार बातें सुना कर विदा करेगी । पर जैसे ही उसने भोला सिंह को देखा , उसकी बोलती बंद हो गयी । ऊँचा लंबा , गोरा चिट्टा भोला सिंह सफेद कुर्ता , चादरा पहने , सिर पर नीली पगङी सजाए पैरों में पंजाबी जूती पहने दरवाजे के बीचोबीच खङा उसके पति को पुकार रहा था । ऊँगलियों में चार मोटी मोटी अँगूठियाँ , गले में तवीत और कलाई पर कङा । पीछे उसकी बङी सी कार थी । पहली नजर से ही खाते पीते घर का ऊँची जात का सरदार दिखाई दे रहा था । अंग्रेज कौर ने सिर का पल्ला माथे तक खींचा । दोनों हाथ जोङ कर फतह बुलाई और तेजी से घूम कर चरण सिंह की खाट की ओर मुङी – सुन बाहर कोई बङा सरदार तुझे और शरण को मिलने आया है । बहुत बङी कार है । तुझे पुकार रहा है ।
चरण एक झटके से उठा । - कहाँ है
बाहर ही
बेवकूफ , जल्दी से अंदर लाकर मंजी पर चादर बिछा कर बिठा । मैं तब तक हाथ मुँह धोकर आता हूँ ।
उसने अधीर होकर शरण को झिंझोङा – उठ ओए , बाहर भोला सिंह आया है । शरण आँखें मलता हुआ उठ गया – क्या कहा ? कौन आया है ?
भोला सिंह !
शरण भाग कर नहाने घुस गया । दो मिनट में ही नहा कर तैयार होकर आ गया । तब तक अंग्रेज कौर ने मंजा बिछाकर उस पर कढी हुई चादर बिछा दी थी । चरण सिंह भोला को अंदर ले आय़ा । छोटी ने थाली में पानी का गिलास रख कर कटोरे में गुङ की डलियाँ रखी और पानी ले आई । भोला सिंह ने थोङा सा गुङ मुँह में डाला और पानी का गिलास उठा लिया ।
शरण सिंह भीतर से आया – सत श्री अकाल सरदार जी । धन भाग हमारे । आज तो कीङी के घर साक्षात नारायण आ गये । मन खुश हो गया ।
नारायण वाली तो कोई बात नहीं चरण सिंह । मैं तो कल ही आना चाहता था पर कल काम के झमेले ही इतने रहे कि निकला ही नहीं गया तो सोचा आज सुबह सुबह धूप चढने से पहले पहले जा आऊँ । आज खेत पर नहीं गये ? मुझे तो लगा था कि तुम लोग खेत न निकल गये हों ।
चरण सिंह इसका जवाब सोच ही रहा था कि शरण बोल उठा – जाना तो था भाई जी पर ट्रैक्टर मांगा था सरपंच से । उसका ट्रैक्टर खाली नहीं है तो आज गये नहीं ।
ट्रैक्टर तो अपने घर में दो दो खङे हैं । तुम लोगों को चाहिए तो एक ले आओ । खेत जोत लो ।
जी भाई जी ।
दोनों मन ही मन खुश हो गये । इस बहाने भोला सिंह के घर आने जाने का अवसर मिलेगा । चरण सिंह प्रशंसा की नजरों से शरण को देखा ।

 

बाकी फिर ...