सोई तकदीर की मलिकाएँ - 23 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 23

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

23


रिश्ते की बात तो जब पक्की होगी तब होगी , न भी हो तो कोई चक्कर नहीं । फिलहाल तो ट्रैक्टर का मिलना पक्का हो गया है , यही बहुत बङी बात है । पहले ट्रैक्टर के लिए गाँव के जमींदारों की मिन्नतें करते करते फसल बोने का समय बीतने वाला हो जाता था तब जाकर ट्रैक्टर का जुगाङ हो पाता , वह भी बङा अहसान जता कर । इस बार ट्रैक्टर मिल जाने की उम्मीद तो बंधी , अब फसल समय से बोई जाएगी । - चरण का मन इस समय बल्लियों नाच रहा था पर वह ऊपर से गंभीर बना बैठा था ।
शरण इन्हें चाय शाय तो पिलाओ - उसने शरण को चाय लाने भेजा । थोङी देर में ही शरण सिह दो थालियों में प्याज , आलू और हरी मिर्च के पकौङे लिए हाजिर हुआ । साथ में गिलासों में चाय लिए उसकी बीबी ।
अरे इस सब की क्या जरूरत थी ।
लो आप पहली बार हमारे झोपङे में आए , इतना तो हमारा हक बनता है । - उसने शरण के हाथों से थाली लेकर भोला सिंह की ओर बढा दी ।
चाय पीकर और पकौङे खाकर भोला सिंह उठ गया । पूरा परिवार उसे दरवाजे पर छोङने आया । जयकौर भी साफ धुले कपङे पहने , बाल संवारे आई । भोला सिंह ने सरसरी नजर से उसे देखा । कार चल पङी ।
अगले दिन सवेरे ही शरण सिंह संधवा जाने के लिए तैयार हो गया । करीब आधा घंटा बस का सफर करके वह संघवा पहुँचा । घर ढूंढने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई । एक साइकिल चला रहे लङके से उसने भोला सिंह का घर पूछा तो वह उसे भोला सिंह की हवेली के भीतर तक छोङ गया ।
सत सिरी अकाल बहनजी – आवाज सुन कर बसंत कौर पलटी । सत सिरी अकाल बहनजी । शरण ने उसकी ओर देखते हुए वाक्य दोहराया ।
बसंत कौर ने उस आए हुए अपरिचित युवक को देखा – सत श्री अकाल भाई । भाई मैंने पहचाना नहीं ।
बहन जी मैं शरण सिंह हूँ कम्मेआना गाँव से । भोला सिंह भाई से काम था थोङा । मिलने आया था ।
कोई न । आप बैठो । वे अभी आ जाते हैं ।
केसर ने टेढी खङी चारपाई को सीधा करके बिछा दिया । शऱण सिंह बैठ गया और चारों ओर नजर घुमाकर हवेली का जायजा लेने लगा ।
ये हवेली कम से कम पाँच कनाल जमीन में तो बनी ही होनी है । इतनी बङी हवेली ! वह हैरान हो रहा था । वह यह तो समझता था कि भोला सिंह अमीर किसान होगा पर इतने बङे घर का मालिक होगा , ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था । इस हवेली का तो गेट ही इतना बङा है कि फाटक से दो ट्रैक्टर एक साथ निकल सकते हैं । उस फाटक में बना छोटा गेट भी उनके घर के दरवाजे से बङा है । ये आँगन कितना बङा है कि कोई एक साथ पचास चारपाइय़ाँ यहाँ बिछा ले । अपनी जयकौर यहाँ आ जाय तो मजा ही आ जाय । अपने गाँव में भी हमारी धाक बन जाएगी ।
वह यह सब देख सुन ही रहा था कि लस्सी का लोटा और गिलास लिए बसंत कौर आई – लो तब तक लस्सी पिओ ।
शऱण ने अब बसंत कौर को ध्यान से देखा – चेहरे पर तेज , आँखों में गर्व और हाथों में सोने की बारह बारह चूङियाँ , गले में मोटी और लंबी चेन के साथ झूलता मोटा सा लाकेट , उँगलियों में चार अँगूठियाँ । उसने मोटा सा हिसाब लगाया – चौबीस चूङी मतलब कम से कम छत्तीस तोले सोना , पाँच छ तोले से कम गले का हार क्या होगा और कानों के झुमके और अँगूठी मिलाकर तीन तोले तो होगी ही होगी । अरे बाप रे पचास तोले के आसपास तो ये चौबीस घंटे पहने रहती है । आने जाने पर तो पूरा किलो पहनती होगी । उसे अपनी बीबी का ध्यान आया जो सिर्फ बालियाँ और एक अँगूठी पहने रहती है , मुश्किल से डेढ तोला होगा । कहीं जाना होता है तो कांटे पहन लेती है और कुछ है ही नहीं उसके पास । अगर यह रिश्ता सिरे चढ जाए ...।
तब तक भोला सिंह लौट आया था । उसे देखते ही खुश हो गया । आकर गले मिला ।
बङे भाई ने ट्रैक्टर लेने के लिए भेजा है । कहा है , दो दिन का काम है । दो दिन में खेत तैयार करके वापिस कर देंगे ।
ले जाओ , ले जाओ । दो दिन क्या , आराम से काम करो । जब काम पूरा हो जाय , लौटा देना ।
जी –वह जाने के लिए उठा ।
पर कुछ खा के तो जाओ ।
नहीं भाई साहब, खाना पीना कुछ नहीं । बहन जी ने लस्सी पिला दी । अब चलूं , गाँव पहुँचते पहुँचते धूप चढ जाएगी ।
तब तक बसंत कौर रोटी परोस कर थालियाँ ले आई थी ।
धूप का क्या है , ये तो रोज चढती उतरती रहती है । आप खाना खाओ ।
थोङी नानुकर के बाद शरण ने थाली पकङ ली और मिस्से परोंठे मक्खन और ताजा दही के साथ खाने लगा । रोटी स्वाद बनी थी । शरण ने पेट भर कर रोटी खाई । तृप्त होकर हाथ धोए । बसंत कौर और भोला सिंह के पैर छुए । तब तक गेजे ने ट्रैक्टर हवेली के बाहर खङा कर दिया था । भोला सिंह ने गेजे को साथ जाकर ट्रैक्टर छोङ आने की ताकीद की ।
शरण और गेजा ट्रैक्टर लेकर चले तो शरण एक बार फिर भोले के पैर छूने के लिए झुका - भाई जी , चरण भाई की बात पर विचार जरूर करना । और लपक कर ट्रैक्टर पर जा चढा । गेजे ने ट्रैक्टर स्टार्ट किया और पलक झपकते ही वे सङक का मोङ पार कर गये ।
भोला सिंह कुछ देर तो वहीं खङा रहा फिर हवेली के भीतर आ गया । केसर कपङे निचोङ कर रस्सी पर सूखने के लिए फैला रही थी और बसंत कौर चौका समेट रही थी । उसने एक निगाह उन पर मारी और कार उठाकर बाहर निकल आया । गेजा तो शाम से पहले लौटने वाला नहीं , तो जानवरों के लिए चारा लाना पङेगा । वह खेत की ओर चल पङा । मक्की काटते हुए भी शरण की बात बार बार गूँज रही थी – चरण भाई की बात पर विचार जरूर करना ।
इन दूर दूर तक फैली फसलों के लिए वारिस तो चाहिए । पर बसंत कौर के साथ अन्याय वह कैसे करे । वह सोचता रहा । सोचता रहा । समस्या सुलझने की जगह और उलझ रही थी ।
एक मन हो रहा था कि चरण सिंह को मना कर दे । इस उम्र में सेहरे बाँध कर क्या करेगा ? जग हँसाई हो जाएगी फालतू में ।
बेकार में किसी की बेटी को घर में लाकर तीन तीन औरतों को कैसे वह संभालेगा । ऊपर से समाज , बिरादरी , गाँव , चौपाल में चर्चा होगी , वह अलग सुननी पङेगी । और यह भी क्या पक्का है कि वारिस पैदा हो ही जाएगा ।
दूसरी ओर जयकौर का चेहरा सामने जाता और साथ ही दोनों भाइयों का आग्रह कानों में गूँजने लगता । वह अपने आप से भागता । इस सबसे निकल जाना चाहता पर निकल न पाता ।
शाम को गेजा वापिस आ गया । आते ही उसने चरण सिंह की सज्जनता और जयकौर की सुघढता का बहुत बखान किया तो भोला उखङ गया – लगता है तेरी बङी खातिर कर दी उन्होंने जो भाटों की तरह से उनके विरद गाए जा रहा है । गेजा खिसिया गया और गाय का दूध निकालने चला गया ।

 


बाकी फिर ...