गरीबी हटाओ Prabodh Kumar Govil द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गरीबी हटाओ

कॉलेज की छुट्टियां होने वाली थीं, शाम को गली के नुक्कड़ पर तीनों दोस्त मिले। करण ने पूछा - "तो इस बार छुट्टियों का थीम क्या रहेगा?"
- थीम? थीम क्या? शाबान ने आश्चर्य से पूछा।
- अरे, थीम माने एजेंडा। अर्थात इस बार हम छुट्टियों में किस विचार पर काम करेंगे? थॉमस ने समझाया।
शाबान के गले ये बात फिर भी नहीं उतरी। उसने कहा - क्या हम छुट्टियों में भी काम करेंगे? फिर छुट्टियों का मतलब ही क्या?
- भाई, जब हम कॉलेज नहीं जायेंगे, तब भी टाइम पास के लिए कुछ तो करना होगा न, बस वही हमारा छुट्टियों का थीम या एजेंडा होगा। करण ने समझाया।
थॉमस ने कहा - मेरे विचार से हमें इस बार का थीम "गरीबी हटाओ" रखना चाहिए।
- क्यों रे, तेरे पापा रिटायर हो रहे हैं क्या? शाबान ने पूछा।
- रिटायर तो नहीं हो रहे, पर कोई भरोसा भी तो नहीं, चुनाव का माहौल है, कोई करप्शन फैक्ट्री बनाने की बात करता है, तो कोई सरकार का खर्चा घटाने की बात लाता है, पापा की लालबत्ती चली गई तो हम भी अंधेरे में डूब जायेंगे। खाली सैलरी से क्या पॉकेट मनी मिलेगा! थॉमस ने कहा।
- ओके- ओके, तू हज़ार के नोट निकाल, मैं गले के लिए कुछ ठंडा लाता हूं। तू तब तक प्लान का ब्लू - प्रिंट बना। करण ने कहा।
आख़िर ये योजना बनी कि ए ब्लॉक के कॉर्नर के डबल स्टोरी बंगले के लॉन में खड़ी टोयोटा को इस बार मोक्ष दिलाया जाए।
थॉमस का कहना था कि उनके पास तीन - तीन गाड़ियां हैं, बंगले में पार्किंग तक के लिए जगह नहीं है। एक सप्ताह तक तो उन्हें पता भी नहीं चलेगा कि गाड़ी उठ गई। बस, तब तक अगले महीने का खर्चा अपने पॉकेट में आ जायेगा।
दो दिन बाद रात को साढ़े बारह बजे मिशन गरीबी हटाओ सफ़ल हो गया।
दादी आज बहुत खुश थी। घर की नई नौकरानी रत्ना मन ही मन सोच रही थी कि मोनी तो बोलती थी बुढ़िया बहुत खेंट है, हर समय चिड़चिड़ करती रहती है, सारा घर सिर पर उठाए रहती है, एक मिनट भी न चैन लेती है और न लेने देती है, पर यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है।
बस, सुबह डाइनिंग टेबल पर ज़रूर बुढ़िया कुछ तड़तड़ाई थी कि पास्ता स्पाइसी नहीं है, लेकिन फिर चिली सॉस के साथ सब हज़म कर गई। और अब तो देखो कैसी बांछें खिली हुई हैं इसकी। लॉन में खिली धूप में कैसी ठसके के साथ बैठी है।
दादी कह रही थी कि आठ दिन से गज़ब की ठंड पड़ रही है। मैं सारे दिन बिस्तर पर हीटर चला कर बैठी भी बोर हो जाती हूं। मोनी को कहती थी कि ज़रा बाहर लॉन में कुर्सी डाल दे, तो ये दस बहाने बनाती थी कि वहां धूप नहीं है, या जगह नहीं है, या फ़िर सफ़ाई नहीं है, या मोटर खड़ी है।
अब देखो, यहां जगह है या नहीं?
रत्ना मन ही मन खुश होती हुई ऊपर गई और मोनी को यह सब बताने लगी।
मोनी ने रसोई से निकल कर बालकनी में आकर झांका और नीचे लॉन में बैठी दादी को देखने लगी। फिर एकाएक हड़बड़ा कर चिल्लाई - अरे, यहां से गाड़ी कहां गई?
थोड़ी देर में सारे में हड़कंप मच गया। - गाड़ी कहां गई, गाड़ी कहां गई करते सब इकट्ठे हो गए।
फिर तो जिसे देखो वही अपनी- अपनी हांकने लगा।
चौकीदार बोला - मैंने दो दिन पहले भैया से पूछा था कि गाड़ी कहां गई, तो वो बोले पापा ने किसी को दी होगी।
उधर माली कह रहा था कि हमने सोचा - गुलमोहर के पेड़ के लिए हटाई होगी।
मम्मी जी कह रही थीं कि रात को रॉक्सी के ज़ोर - ज़ोर से भौंकने की आवाज़ आई तो थी।
...पर गाड़ी कौन कहां ले गया ये किसी को पता न था।
दादी जो धूप में बैठी खाली जगह देख कर खुश हो रही थीं, अब फिर से बौखला कर रत्ना को लताड़ने लगी थीं।
ए ब्लॉक के कॉर्नर वाले दुमंजिले बंगले पर चहल- पहल पल भर में चिल्ल - पौं में बदल गई।
रात के एक बजे मैरियट के गेट के बाहर थॉमस शाबान की जेब में जबरन हाथ डाल रहा था मगर शाबान बार- बार उसकी कलाई पकड़ कर उसका हाथ परे हटा रहा था।
करण को अचंभा हो रहा था, आख़िर ये माजरा क्या है, शाबान पैसे ले क्यों नहीं रहा? पैसे कम हैं इसलिए, या फिर वो किसी संदेह में घिरा है!
शाबान कह रहा था कि चौबीस घंटे बाद वह इसका कारण बता देगा कि ए ब्लॉक के कॉर्नर वाले दुमंजिले बंगले से चुराई गई टोयोटा को बेचने से मिले पैसों में से अपना हिस्सा वो क्यों नहीं लेना चाहता।
करण को हंसी आ गई।
वह तरह - तरह के कयास लगाने लगा - क्यों रे, वह बंगला क्या तेरा ससुराल है? या फिर तू अब पीर- फ़कीर बन कर दुनिया छोड़ने चला है? कहीं तुझे अपने पुलिस केस में फंसने का डर तो नहीं सताने लगा?
थॉमस बोला - शायद इसे ये लग रहा है कि गाड़ी चुराने में इसने कोई मदद नहीं की, इसलिए इसे पैसा नहीं लेना चाहिए।
करण बोला - क्यों, मदद क्यों नहीं की, गाड़ी का लॉक मैंने खोला, ड्राइव करके निकाली मैंने, रॉक्सी के भौंकने की आवाज़ मोहल्ले भर में सुनाई न दे, इसके लिए वॉल्यूम बढ़ाया मैंने...और वॉचमैन को फ़ोन पर अटकाए रखा तूने!
- हां- हां तो इस शाबान ने क्या किया? थॉमस ने सवाल किया।
- क्यों? बैडरूम की खिड़की से आंटी की छोटी वाली बेटी न झांक ले, इस पर तो शाबान ने ही नज़र रखी थी। करण बोला।
- हां - हां फिर तो इसे पैसे लेने ही चाहिए। थॉमस ने कहा।
शाबान इस मज़ाक पर झेंप गया।
तीनों को होटल से खाना खाकर निकले हुए काफ़ी देर हो चुकी थी इसलिए अब वो गाड़ी में बैठ कर वहां से रवाना हो गए।
करण ने स्टियरिंग संभालते हुए कहा - चलो जब ये चौबीस घंटे बाद बता ही देगा कि ये पैसे क्यों नहीं ले रहा तो बेकार में सिर खपाने से क्या फायदा? इंतज़ार कर ही लेते हैं।
ए ब्लॉक के कॉर्नर वाले दुमंजिले बंगले के डाइनिंग हॉल में थॉमस अपने दोस्तों - करण और शाबान के साथ रात को बैठा कॉफी पी रहा था। करण और शाबान केवल उसके दोस्त ही नहीं थे बल्कि उसी के घर में किराए से रहने वाले उसके किरायेदार भी थे। वे तीनों एक ही कॉलेज में एक साथ ही पढ़ते भी थे।
करण थॉमस की दादी पर इस बात के लिए हैरान था कि उन्होंने धूप में बैठने के लिए जबरन घर की नौकरानी से आग्रह कर के गाड़ी के गुम हो जाने का राज खुलवा दिया था।
इतना ही नहीं, बल्कि उसकी मम्मी जी ने तो थॉमस के पिता को, जो बड़े सरकारी अफ़सर थे, बच्चों की शरारत के बाबत कुछ बताया भी नहीं था।
थॉमस ने बताया कि उन्होंने कोई चोरी नहीं की है क्योंकि इस पुरानी गाड़ी को तो उसके पापा वैसे भी बहुत दिनों से निकालना ही चाहते थे।
लेकिन इस पुरानी खटारा गाड़ी को बेचने से मिले थोड़े से पैसे जब थॉमस दोस्तों को बांट रहा था तो शाबान ने पैसे लेने से इंकार कर दिया था। क्योंकि वो चाहता था कि थॉमस उसके हिस्से के पैसे अपनी मम्मी को देदे। उसने कई महीने से उन्हें कमरे का किराया नहीं चुकाया था।
घर के चौकीदार ने सारी घटना पर कोई ध्यान नहीं दिया था क्योंकि इनमें से कोई अजनबी तो था नहीं। रॉक्सी के भौंकने को भी किसी ने गंभीरता से नहीं लिया था, खुद रॉक्सी ने भी नहीं, उसे मालूम था कि लड़के शरारतें तो करते ही हैं।