तुमने कभी प्यार किया था? - 15 महेश रौतेला द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुमने कभी प्यार किया था? - 15

तुमने कभी प्यार किया था?-१५

वह मुझसे पूछती है," तुम भी पढ़ने के बाद यहाँ से चले जाओगे क्या?"
हाँ, जा सकता हूँ।
सुमन बोली तब बहुत बुरा लगेगा।
लगभग सभी जाते हैं मैंने कहा।
वह बोली मैं तो बुढ़ापे तक इन्हीं पहाड़ों को चढ़ती रहूँगी। बर्फ की फाँहों सी उड़ा करूंगी। तुम चिट्ठी में गाँव का हालचाल पूछते रहना।
मेले में जाओगे इस बार?
हाँ जाऊँगा।
मैं भी आऊँगी। बहुत अच्छा लगता है मुझे मेला देखना। सजूंगी,सबरूंगी । माँ चोटी बनायेगी। साड़ी पहन के जाऊँगी।
तुम देखते रह जाओगे, मुझे। तुम्हें पता है, एक राक्षस था। एक बार उसका महल आग में जल गया।
वह पास के स्थानों में दूसरा महल बनाने के लिये घूमने लगी। वहाँ एक सुन्दर मकान में पति-पत्नी रहते थे। पति,पत्नी में बहुत प्रेम था।घूमते-घूमते राक्षस उनके घर गया। उसको वह स्थान पसंद आ गया। उस दिन पति-पत्नी घर पर नहीं थे। राक्षस ने वहाँ महल खड़ा कर दिया। पति-पत्नी जब लौटे तो वे भौंचके रह गये। वे महल में गये और राक्षस के लिये चाय बनाये। चाय पीते समय चाय के कप का सिरा टूटा और उसके पेट में चला गया। राक्षस उसी समय मर गया।दोनों पति-पत्नी बर्षों तक साथ-साथ वहाँ रहे। पास के मैदान में वे हर साल मेले का आयोजन करने लगे,वह मेला अब भी होता है।
मैं उस मेले में हर साल जाती हूँ। सभी मेलों में जाती हूँ। जिन मेलों में जानवरों की बलि दी जाती है, वे मुझे अच्छे नहीं लगते हैं। उनमें मैं नहीं जाती हूँ। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये बहुत निर्दयी हो जाता है।
तुम शादी तो यहीं करोगे? वह बोली
हाँ, तुमसे करूँ तो?
"हट" एक गाँव में शादी थोड़ी होती है,हम दोनों एक गाँव के ही हैं। ऐसा नहीं बोलते।
उसने मुझे गौर से देखा और मुस्कुरा दी। फिर बोली गाँव वाले बोलते हैं तुम पढ़ने- लिखने में बहुत होशियार हो।
तुम कहानी भी पढ़ते होगे? सुनाओ तो।
" एक लड़का था। दो हाथ,दो पैर,दो आँख,एक नाक वाला,सुन्दर। और एक लड़की थी दो हाथ,दो पैर,दो आँख,एक नाक वाली,सुन्दर।" वह बोली यह क्या बात हुयी! ये तो सबके होते हैं। वह बोला लड़की तुम्हारी जैसी थी, सुन्दर, सौम्य, समझदार, कर्मठ।"
वह बोली मेरी चाची जैसी साहसी और वीर। मेरी चाची जंगल में भालू से लड़ गयी थी। बहुत देर तक सामना करती रही। लेकिन अन्त में भालू ने उन्हें मार दिया। चाची घट( घराट) भी अकेले ठीक कर देती थी। पूरी मरम्मत कर लेती थी, अकेले। घट के ऊपर के पाट (भारी पत्थर) को उठा लेती थी। मैंने बात काटी और कहा उन्हें मैंने भी घट की मरम्मत करते देखा था।वह बहुत सुदृढ़ और मेहनती थी। वह आगे बोली घराट के चिड़ियों की खट-खट उन्हें बहुत अच्छी लगती थी। वह गुनगुनाती रहती थी, कोई न कोई गीत। उनकी कोई संतान नहीं थी। घास काटने में निपुण थी। उस दिन वह जंगल में घास काटने जा रही थी और भालू से सामना हो गया। भालू दुष्ट जानवर होता है।
तुम चले जाओगे तो मैं अकेले आया- जाया करूंगी घट। हम कितनी बार साथ-साथ आया-जाया करते हैं और डर भी नहीं लगता। बसंती बोलती है, हमारी दोस्ती पक्की है। चलो,धूप बढ़ रही है, चलते हैं। उसने मेरा थैला अपने सिर में रख लिया। मैंने कहा यह भारी है मुझे दो। वह बोली नहीं," मुझे आदत है भारी घास का गुढव (गठरी) लाने की। ये उतना भारी नहीं है। गाँव में मुझे किरसांण( कर्मठ) बोलते हैं।ऊपर बांझ के पेड़ पर ठंडा पानी पियेंगे। बहुत प्यास लगी है।