तुमने कभी प्यार किया था? - 6 महेश रौतेला द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुमने कभी प्यार किया था? - 6

 
 
पतझड़ का मौसम था।ठंड दाँत कटकटा रही थी।झील पर मरी छोटी-छोटी मछलियाँ तैर रहीं थीं। जो रात में कड़ाके की ठंड से मर चुकी थीं।वह अपने दोस्त के साथ झील के किनारे बनी सड़क में घूम रहा था।वह सड़क मेरे छात्रावास से लगभग १०० मीटर नीचे से गुजरती थी। दोनों काफी खुश लग रहे थे। विज्ञान के विषयों पर चर्चा कर रहे थे।सड़क के किनारे एक छोटा मन्दिर था, वहाँ पर दोनों ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया।और उसने मेरे छात्रावास की ओर मुड़कर देखा,यह सोचकर कि मैं दिखाई दूँ।मैं नहाकर, धूप में साथियों के साथ बैठी थी।उसने हल्के से हाथ हिलाया। मैंने अनदेखा कर दिया और दूसरी ओर मुड़ गयी।उसके बाद वे आगे बढ़ गये। और धूप सेकने के लिये, एक बहुत बड़े पत्थर पर पर चढ़ गये। यह पत्थर झील और सड़क के बीच में था। दोनों पत्थर पर बैठ गये। उसने अपने दोस्त से कहा,"एक कहानी सुनाता हूँ।" और वह सुनाने लगा-
"वह भयावह रात,जब शतुमुर्ग की तरह मैं अपने को बचाने घास की दो टानों के बीच पड़ा रहा। धान कूटते समय मेरा भाई के साथ झगड़ा हो रहा था। पिताजी जब पिटाई करने आये तो में भाग निकला था। मेरी उम्र तब ९ साल होगी। ध्रुव की वह कहानी भी याद आ रही थी जिसमें वह पाँच साल की अवस्था में जंगल में तपस्या करने चला जाता है।निडर होकर। न जंगली जानवरों का डर, न किसी बात का भय।और साथ में भूतों की सभी सुनी कहानियां याद आ रही थीं।वह कहानी जिस में बिशन सिंह अधिकारी शहर से बिस्कुट ले कर दूसरे दिन बिस्कुट बेचने दूर गाँव को जाता है। रास्ते में उसे रात हो जाती है। वह देखता है कि एक पुल के नीचे तीन लोग जुआ खेल रहे हैं। उसने बिस्कुट की टोकरी(डाल)सिर से उतारी और उन लोगों के पास गया। उन्होंने उससे पूछा "क्या खेलोगे?" उसने मना किया और कहा "मैं केवल देखूँगा।" वे खेलते गये। उनमें एक बहुत हार रहा था।जब वह एक लाख रुपये हार गया तो उसने अपने हाथ को लम्बा कर शहर के बैंक से एक लाख रुपये निकाल लिये और रुपयों का ढेर वहाँ लगा दिया। यह सब देख कर बिशन सिंह वहीं बेहोश हो गया। होश आने पर वहाँ कोई नहीं था।
रात को ठंड बहुत बढ़ गयी थी। आसमान साफ था।तारे टिमटिमा रहे थे। मुझे लोकप्रिय कुमाऊँनी भाषा का गीत याद आ रहा था।
"स्वर्गी तारा,य जुनाली रा ता,
को सुण ल ,को सुण ल
मेरी तेरी बा त ।" ( जुनाली-चाँदनी, सुणल-सुनना)
जून वाली रात तो नहीं थी,अँधेरी रात थी। घर में सभी लोग चिंतित थे। रह रह कर आवाज लगा रहे थे,घर आने के लिये।डरा रहे थे कि रात में बाघ ,भूत आ सकते हैं । लेकिन में टस से मस नहीं हुआ। लगभग बारह बजे तक वे मुझे बुलाते रहे। मेरी गलती को माफ करने का आश्वासन देते रहे।पर मुझे शायद विश्वास नहीं हुआ क्योंकि बचपना था।
रात खिसक रही थी पर बहुत धीरे धीरे।मैं ठंड से ठिठुर भी रहा था। आकाश के तारों को बीच - बीच में गिन रहा था।डर लग रहा था कहीं बाघ न आ जाय।नींद दूर दूर तक नहीं थी।मैं दोनों टानों के बीच अपनी स्थिति थोड़ा थोड़ा बदल रहा था। कहीं से कोई आवाज आती तो मुझे लगता बाघ या भूत आ रहा है।एक बार छोटी सी झपकी आने पर कोई थपकी देकर कहता " डरना नहीं,मैं हूँ तुम्हारे साथ।" फिर मेरा ध्यान तारों पर स्थिर हो गया था। तारों भरे आकाश को देखते देखते उषा का आगमन होने लगा और भीतर का डर अपने आप तिरोहित होने लगा।सूरज का सप्तरंगी उजाला हमें निडरता प्रदान करता है।इसी सप्तरंगी प्रकाश में हम अपना ईश्वर और प्यार देखते हैं। इसमें किसी को भूत नहीं दिखता है।"
कहानी पूरी होने के बाद, दोनों आँख बन्द कर धूप में सो गये।उस दिन आसमान में बादल नहीं थे, अन्यथा बादलों की आँखमिचौनी वहाँ चलती रहती है।
थोड़ी देर में उसकी आँख खुली और उसने अपनी दायीं ओर देखा और देखा कि एक मोटा साँप उसके नीचे लेटा है। वह इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप लम्बी छलाँग लगाया और जोर से बोला,"साँप।" उसका दोस्त भी तेजी से उठकर वहाँ से भागा। उसके बाद साँप को उन्होंने तेजी से पत्थर से उतरते और आँखों से ओझल होते देखा। इस घटना के बाद ,बहुत देर तक, उसके रोंगटे खड़े रहे।वास्तव में,जहाँ पर वह लेटा था, उसकी पीठ और पत्थर के बीच एक ओर से खाली जगह थी और दूसरी ओर से जाने का रास्ता नहीं था। सांप एक ओर से घुसा लेकिन दूसरी तरफ से निकल नहीं पाया। इस घटना को वह अपने दोस्तों में बहुत उत्सुक होकर सुनाता था।----।
 
*** महैश रौतेला