दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 18 VARUN S. PATEL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 18

अंक १८ अंतिम विदाई

     नमस्कार दोस्तों। आशा करता हु की आप सब ठीक ही होंगे। आज मे लेखक वरुण पटेल फिरसे हाजिर हु आप के बिच हमारी बहुत ही मजेदार कहानी दो पागल के एक और अंक के साथ लेकिन मेरी बिनती है आप सब लोगो से कि अगर आपने आगे के १७ अंको को नहीं पढा है तो सबसे पहले उन अंको को पढले ताकी आपको यह अंक अच्छे से  समझ आए । तो आइए शुरु करते है हमारी इस बहेतरीन नवलकथा के इस बहेतरीन अंक को जिस मे दर्द है अंतिम विदाई का ।

     आगे हमने देखा की केसे जीज्ञा और रुहान के बिच झगड़ा हो जाता है और रुहान बरोडा जाने के लिए निकल जाता है। अब आगे।

     रुहान और उसके दोस्तो बरोडा जाने के लिए अहमदाबाद बस स्टेशन पहुचते है। तीनो स्टेन्ड पे खडी बरोडा की बस में बेठते है। रुहान अभी भी जीज्ञा के एसे बर्ताव को लेकर परेशान था और उसी के ख्यालो मे खोया हुआ था। टिकट मास्टर आगे से टिकट लेते हुए रुहान और उसके दोस्त जहा बेठे थे वहा पहुचता है। टिकट मास्टर को देखकर महावीर को सारी टिकटे ना लेनी पडे इसलिए बहाने बनाने की कोशीश करता है।

     रवी मुझे यहा पे बेठना नहीं जमेगा तो मे थोडा पीछे जाके बेठता हुं ...महावीरने बहाना बनाते हुए कहा।

     हा चला जा लेकिन हम तीनो की टिकटे लेकर क्योकि आते समय मेने दी थी और यह तो अभी गम में है बस तु एक बचा है तो तु हम तीनो की टिकटे ले और फिर बाद में पीछे चला जा... रवीने महावीर की चाल को परखते हुए कहा।

     बोलो टिकटे... टिकट मास्टरने महावीर के पास आते हुए कहा।

     तीन बरोडा... अपना मु बिगाडते हुए महावीरने कहा।

     यह लो ३०० रुपये दो... टिकट मास्टरने महावीर को टिकट निकालकर हाथ में थमाते हुए कहा।

     महावीर अपनी जेब मे से ३०० रुपये निकालकर टिकट मास्टर को देता है।

    अच्छा रवी मे सोच रहा था कि इसको तु अकेला नहीं संभाल पाएगा इसलिए मे भी यही उसके साथ ही बेठता हुं... अब पीछे जाने की कोई वजह नही थी इसलिए महावीरने रवी को अपनी जगह पे बेठते हुए महावीरने कहा ।

     ज्यादा नाटक किए बिना बेठजा अपनी जगह पे... रवीने महावीर से कहा।

     तीनो की बस अब बरोडा जाने के लिए जेसे ही निकलती है तीनो को पुर्वी बस स्टेशन मे आते हुए दिखती है। पुर्वी तीनो को बस में देख लेती है।

     रुहान, रवी प्लीज़ बस से निचे उतर जाओ मुझे कुछ कहना है तुमसे... पुर्वीने तीनो को चिल्लाकर कहा।

     रुहान पुर्वी हमे निचे बुला रही है... रवीने कहा।

     नहीं अब नहीं उतर सकते हमने ३०० रुपये की टिकटे ली है... महावीरने बेफालतु बाते बोलते हुए कहा।

     रुहान जीज्ञाने तुम्हारे लिए कुछ संदेश भेजा है... पुर्वीने बस के पीछे पीछे बहार निकलने के दरवाजे की और दोडते दोडते रुहान से कहा।

     चल रवी... रुहानने अपनी जगह से उठकर बस के दरवाजे की और जाते हुए कहा।

     रुहान, रवी और महावीर तीनो उठकर बस के दरवाजे की और दोडते है।

     साले मेरा नुकसान करना यह लोग अच्छे से जानते हैं... महावीरने कहा।

     रोको रोको बस रोको हमने उतरना है... रवीने टिकट मास्टर को बोलते हुए कहा।

     अरे क्या है क्यु उतरना है पहले सोच कर नहीं आ सकते थे... बस रोकने के लिए बस की घंटी बजाते हुए कहा।

     मास्टर यह लो टिकट और मेरे पेसे वापस दो प्लीज़... महावीरने अपनी कंजुसी जताते हुए कहा।

     बे एडे जाना टिकट फटने के बाद पैसा वापस नहीं मिलता। पहली बार सफर कर रहा है बस मे क्या... टिकट मास्टरने महावीर को घक्का मारकर निचे उताकर अपनी बस का दरवाजा बंद करते हुए कहा।

     तो कुछ एसे तीनो बस से निचे उतरते है और पुर्वी जो बात बताने आइ है उसे सुनने के लिए चारो बस स्टेशन की कैंटीन में जाकर बेठते है और चारो के बिच संवाद की शरुआत होती है।

     रुहान मुझे पता है कि तुम जीज्ञा के एसे बर्ताव के कारण उससे काफी नाराज हो लेकिन उसमे जीज्ञा की कोई गलती नही है... पुर्वीने अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहा।

     तो क्या गलती रुहान की है... रवीने पुर्वी से कहा।

     मे एसा नहीं बोल रही की गलती रुहान की है। गलती ना तो रुहान की है और ना तो जीज्ञा की गलती तो बस समय की है... पुर्वीने कहा।

     समय की है मतलब... रुहानने कहा।

     पुर्वी रुहान, महावीर और रवी को जीज्ञा के साथ जो कुछ भी हुआ वो सब बताती हैं।

     कुछ दिन पहेले। जीज्ञा की माता यानी प्रेमीलाबेन जीनको लंबे अरसे से केंसर था लेकिन उन्होने यह बात अपने दोनो बच्चो से छुपाकर रखी थी। रवीवार के दिन जीज्ञा से मिलने न आने का कारण कुछ और नहीं पर प्रेमीलाबेन का चल रहा केंसर का उपचार ही था। दिन भर दिन यह केंसर प्रेमीलाबेन को खाए जा रहा था और एक दिन एसा आया की डोक्टरने गीरधनभाई से बोल दिया की अब आपकी पत्नी आठ से नो घंटे की ही मेहमान है। इसलिए जीज्ञा को तत्काल मे बरोडा से अहमदाबाद बुला लिया जाता है जीससे जीज्ञा आखरीबार अपनी मम्मी से मिल सके। आप को सायद यह लगा होगा की जीज्ञा आखीरी बार अपनी मम्मी से नहीं मिल पाई होगी लेकिन जीज्ञा की तकदीर इतनी भी बुरी नहीं थी वो आखीरीबार अपनी माता से मिलती भी है और अच्छे से संवाद भी करती है जो संवाद कुछ इस तरह का था।

     जीज्ञा अपनी मां के पास अपने भाई के साथ आखो में आसुओ के साथ बेठी हुई है और पीछे गीरधनभाई और जीज्ञा के मामा-मामी और पुर्वी खडी हुई थी। जीज्ञा और उसके परिवार के लिए आज का वक्त सबसे कठिन था। सभी के आखो में आसु थे सिवाय प्रेमीलाबेन के। प्रेमीलाबेन अंदर से काफी मजबुत बन चुके थे और आखरीबार अपने परिवार से बाते कर रहे थे।

     मेरा गब्बर एसे रोते हुए अच्छा नहीं लगता और तुम दोनो अपनी मम्मा को एसे विदा करोगे... प्रेमीलाबेनने कठीन होकर अपने बच्चो से कहा।

     जीज्ञा और उसका भाई दोनो कुछ भी बोलने की हालत मे नहीं थे।

     तु मुझसे वादा कर की तु कभी एसे रोएगी नहीं और हंमेशा खुश रहेगी... प्रेमीलाबेनने अपने बच्चो से कहा।

     जीज्ञा कुछ भी जवाब देने के बजाए रोए जा रही थी।

     अगर तु एसे रोते रहेगी तो मे तुझसे नाराज़ होकर जाउंगी और वो तुझे अच्छा नहीं लगेगा है ना... बेड पर लेटे हुए प्रेमीलाबेनने अपनी बच्ची के हाथ को अपने हाथ से छुते हुए कहा।

     पुर्वी आगे आती है और जीज्ञा के कंधे पर हाथ रखकर उसे संभालने की कोशिश करती है। रोती हुइ जीज्ञा अपनी मां की गोद को लिपटकर और रोने लगती है और यह सब देखकर प्रेमीलाबेन भी अपने आसु ज्यादा देर तक रोक नहीं पाते हैं और खुद भी रोने लगते हैं।

     जीज्ञा के पापा मेने जीवनभर आपसे कुछ नहीं मांगा है आज कुछ मांगना चाहती हु क्या आप मुझे जो मे मांगुगी वो देंगे... अपनी गोद में लिपटी जीज्ञा के शिर पे अपना वहाल रुपी हाथ को रखते हुए अपने घर्म पती यानी गीरधनभाई से कहती है।

     जरुर बोल तुझे क्या चाहिए... गीरधनभाईने आगे आते हुए कहा।

     मुझे जो चाहिए वो सिर्फ आप नहीं दे सकते इसके लिए जीज्ञा को भी मुझे हा कहना होगा... गिरते हुए दर्द के आसुओ के साथ प्रेमीलाबेनने अपनी बेटी से कहा।

     अपनी मम्मी की गोद को लिपटकर रो रही जीज्ञा को पुर्वी अपनी मम्मी के सामने देखने के लिए खडा करती है और अपनी माता के सामने देखने का कहती है।

     जीज्ञा अपनी मम्मी से बात करो वो कुछ मांग रही है... पुर्वीने कहा।

     जीज्ञा के जीवन आज का सबसे भयानक दिन था ।

     अब प्रेमीलाबेन कुछ एसी मांग गीरधनभाई से रखते हैं जीसे सुनकर वहा खडे सभी लोगो की आखो में नमी छा जाती है ।

     जीज्ञा के पापा मेरी आखरी इच्छा यह है की मेरी चिता को आग मेरी बेटी जीज्ञा देगी। क्या आप मेरी यह इच्छा पुरी करेंगे... प्रेमीलाबेनने अपनी आखरी इच्छा को सबके सामने ज़ाहिर करते हुए कहा।

     थोडी देर पुरे आइ सी यु मे खामोशी सी छा जाती है। गीरधनभाई पुराने खयालात वाले व्यक्ती जरुर थे लेकिन वो इतने भी बुरे इंसान नही थे की मरते हुए की आखरी इच्छा भी पुरी ना करे।

     जरुर तुम्हारी चिता को आग तुम्हारी बेटी ही देगी... गीरधनभाईने कहा।

    और बेटा तु भी मुझे वचन दे की तु कभी पापा के साथ झगडेगी नहीं और उनकी हर बात मानेगी... प्रेमीलाबेनने जीज्ञा से आखरी बात करते हुए कहा।

    जीज्ञा अपनी मम्मी को कोई भी उत्तर दे इससे पहले ही जीज्ञा की माता यानी प्रेमीलाबेन अपना देह छोड देते हैं और भगवान को प्यारे हो जाते हैं।

    प्रेमीलाबेन की इच्छा अनुसार जीज्ञा प्रेमीलाबेन के अग्नि संस्कार अपने हाथ से करती है और जीज्ञा की आधी दुनिया अपनी मम्मी के जाने के बाद जेसे लुट सी जाती हैं।

    तो कुछ एसा हुआ था उन कुछ दिनो मे लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं हुआ था।

     जीज्ञा की मम्मी के साथ जो भी हुआ वो सबकुछ पुर्वी अहमदाबाद बस स्टेशन की केन्टीन मे बेठे रुहान, रवी और महावीर को बताती हैं।

     है अल्लाह तु क्यु जीज्ञा को इतनी तकलीफ दे रहा है... रुहानने पुर्वी की बातो को सुनकर कहा।

     बडी मुश्किल घडी है जीज्ञा के लिए यार... रवीने कहा ।

     सही बात है एसी घडी में हमे जीज्ञा को अकेला छोडकर नहीं जाना चाहिए... महावीरने कहा।

     सही बात है मुझे इस पल उसके साथ ही रहना चाहिए... अपनी जगह से खडे होकर रुहानने कहा।

     नहीं रुहान जीज्ञा सिर्फ इतनी मुश्किलों से ही नहीं गुजर रही एक और भी मुश्किल उसका दरवाजा खटखटा चुकी है जीसने उसको अंदर से और भी तोड दिया है और सायद वो सुनकर क्या पता तुम भी तुट जाव... पुर्वीने बात और आगे बढाते हुए कहा।

     क्या मतलब तुम कहना क्या चाहती हो... रुहानने कहा।

     यही की जीज्ञा की सगाई नक्की कर दी गई है और छे दिन बाद उसकी मंगनी है और वो नहीं चाहती की वो अपने पापा के फेसले के विरुद्ध जाए और तुम वहा जाकर बखेडा खडा करो। जीज्ञाने तुम्हे अपनी कसम दी है कि तुम यहा से चले जाओगे और उसकी मंगनी तक उससे कोई संपर्क नहीं करोगे... पुर्वीने जीज्ञा की हालत रुहान को बताते हुए कहा।

     लेकिन यह सब केसे और जीज्ञा के पापा को कोई शर्म है की नही अभी जीज्ञा अपनी माता के जाने के दुःख से उभरी भी नहीं है और उसका बाप है की उसको मारने पे तुला हुआ है... रुहानने कहा।

      मुझे पता है रुहान की तुम उससे बहुत प्यार करते हो और तुम दोनो के लिए यह समय बहुत ही मुश्किल है लेकिन अभी तुम यहा चले जाओ मे जीज्ञा को संभालने की पुरी कोशिश करुगी और बाकी भगवान के उपर छोड दो... पुर्वीने रुहान को समझाने की कोशिश करते हुए कहा।

      मुझे भी पता है कि आप भी यह सोच रहे होंगे कि गीरधनभाई अपनी बेटी के साथ एसा केसे कर सकते हैं। माता को मरे अभी पंदरा दिन नहीं हुए और जीज्ञा की सगाई ? केसे ? इसके पीछे किसी की बडी साजीस है जिसका शिकार गीरधनभाई, रुहान और जीज्ञा तीनो हो रहे हैं। अब देखना रसप्रद होगा की क्या रुहान और जीज्ञा की दोस्ती यही पे खत्म हो जाएगी या अब इस दोस्ती का क्या प्यार मे परिवर्तित होने का कोई चान्स है ? सभी सवालो के जवाब जानने के लिए पढते रहे दो पागल के आनेवाले सारे अंको को। 

TO BE CONTINUED NEXT PART...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY