दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 17 VARUN S. PATEL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 17

अंक १७ दोस्ती में दुरी

     नमस्कार दोस्तों। आशा करता हु की आप सब ठीक ही होंगे। आज मे लेखक वरुण पटेल फिर से हाजिर हु आप के बिच हमारी बहुत ही मजेदार कहानी दो पागल के एक और अंक के साथ लेकिन मेरी बिनती है आप सब लोगो से कि अगर आपने आगे के १६ अंको को नहीं पढा है तो सबसे पहले उन अंको को पढले ताकी आपको यह अंक अच्छे से  समझ आए। पढ़िए दोस्ती में दुरी वाला अंक | 

    आगे आपने देखा की केसे पुर्वी के पापा का फोन पुर्वी को आता है और फिर जीज्ञा और पुर्वी दोनो कोफीशोप से वापस होस्टेल चले जाते हैं और होस्टेल से बिना रुहान और उसके दोस्तो को बताए जीज्ञा और पुर्वी अहमदाबाद चले जाते हैं। अब एसा क्या हुआ होगा की दोनो को तत्काल मे घर ले जाया गया। अब आगे।

    पाच दिन बित जाते हैं। इन पाच दिनो मे रुहान, महावीर और रवी जीज्ञा और पुर्वी का पता लगाने की पुरी कोशीष करते हैं। बार बार पुर्वी और जीज्ञा को रुहान फोन लगता है लेकिन दोनो मे से एक का भी फोन नहीं लग रहा था। अब रुहान चिंता मे आ गया था क्योकी उसको अब एसा लग रहा था की कुछ तो गडबड जरुर हुई है।

    तीनो दोस्त ढाबे पे बेठे हुए थे। अंत में रवी जीज्ञा और पुर्वी की होस्टेल वाली दोस्त को फोन करके पता लगाने की कोशिश करता है और वहा से उसे पता चलता है कि दोनो कुछ दीन पहले ही अहमदाबाद चले गए हैं।

    यार यह दोनो तो अहमदाबाद वापस चली गई है... जीज्ञा की दोस्त का फोन काटने के बाद रवीने अपने दोस्तो से कहा।

    क्या अहमदाबाद ? पर क्यु और इतने छुपते छुपाते क्यु... महावीर ने अपनी जगह पे खडे होकर कहा।

    अबे क्यु क्यु क्या कर रहा मुझे थोडी बता के गई है दोनो... रवीने महावीर से कहा।

    बिना बताए अहमदाबाद चले जाना और उनका फोन न लगना मतलब कुछ तो गडबड जरुर है रवी... रुहानने कहा।

    हा यार मुझे भी एसा लग रहा है क्योकी पुर्वी का भी कभी फोन स्वीचओफ आता है तो कभी वो फोन उठाती ही नहीं है... रवीने भी अपनी दोनो दोस्तो की चिंता करते हुए कहा।

    मुझे लगता है कि हमे अहमदाबाद जाना चाहिए... रुहानने कहा।

    चलो फिर चलते हैं वेसे भी अहमदाबाद की बहुत सी डिशे चखनी बाकी है... महावीरने अपनी जगह से खडे होकर कहा।

    साले हम यहा पे फिक्र से मर रहे हैं और तुझे अभी खाने का सुझ रहा है... रवीने भी अपनी जगह पे खडे होकर कहा।

    अरे यार देखो तुम दोनो को इतना चिंतित होने की जरुरत नहीं है कुछ शादी के काम मे होंगे कल जाते हैं और पता लगाते हैं... महावीरने कहा।

    कल क्यु आज ही जाते हैं ना... रुहानने भी अपनी जगह से खडे होकर कहा।

    आज... रवी और महावीर दोनो ने एक साथ थोडी सी उच्ची आवाज मे बोला।

    हा आज। क्योकि अभी सुबह के आठ ही बज रहे हैं अगर अभी बस से निकलेंगे तो दो घंटे में तो अहमदाबाद पहुच ही जाएंगे... रुहानने कहा।

    चलो आज का तो समझा पर बससे क्यु भाई... महावीरने रुहान से कहा।

    बस से इसलिए क्योकि वो हमारी जीप की तरह बार बार रुठकर रुक नहीं जाती है और अब कोई भी सवाल के बिना चलो सीधा बस स्टेशन... रुहानने अपनी बुलेट पर बेठकर अपनी बुलेट स्टार्ट करते हुए कहा।

    तीनो दोस्त बस स्टेशन जाने के लिए निकलते है। इस तरफ तीनो दोस्त बस स्टेशन की और जा रहे थे और सामने की और से संजयसिह की गाडीया गुजर रही थी। रुहान की नजर तो संजयसिह पर नहीं पडती परंतु संजयसिह की नजर रुहान पर पड जाती है और उसको देखकर संजयसिह अपने आदमीओ को बोलता है।

    लगता है कि जीज्ञा और रुहान के फिट होने का समय आ गया है...अपनी कार मे बेठे हुए सजंयसिहने अपने सामने से गुजरते हुए रुहान और उसके दोस्तो को देखते हुए कहा।

    तीन घंटे बितते है। जीज्ञा हंमेशा की तरह आज भी अपना दुःख रिवरफ्रन्ट के साथ शेर करने के लिए आ गई थी। चारो तरफ खामोशी का माहोल था और जीज्ञा की आखो में न रुकते हुए आसु थे। जीज्ञा के आसुओ को देखकर इतना तो जरुर पता चल रहा था कि उसके साथ कोई न घटने वाली घटना जरुर घटी है। पुरे रिवरफ्रन्ट पर अभी तक तो जरुर खामोशी थी लेकिन वो खामोशी अब दोस्ते के बिच के एक और झगडे का कारण बनने वाली थी। सोच मे डुबी हुई जीज्ञा को फिर से पीछे से आवाज आती है।

    यार तुना बडी अजीब है। हम बार बार वहा तेरी चिंता मे मर रहे हैं और तु बार बार इस जगह पे शांति से आकर बेठजाती है। तुझे पता है तुझे ढुडने के लिए हमने अहमदाबाद के कितने चक्कर लगाए होंगे। यह तो ठीक है की पुर्वीने अपना फोन उठा लिया जीससे तेरा पता हमे मिल गया। जाने से पहले कम से कम हमे बता तो देती की मे अहमदाबाद जा रही हुं...रुहान अपनी बाते जीज्ञा के पीछे खडे रहेकर बोल ही रहा था तभी जीज्ञा अपनी जगह से खडी होती हैं और गुस्से में जीज्ञा रुहान को वो बोल देती है जो जीज्ञा को नहीं बोलना चाहिए था।

    क्यु तु मेरा पति है की जहा जाउ वहा तुझे बताकर जाउ। हा बोल तु पति है मेरा। बार बार बोलता है कि मुझे बताना तो चाहिएना बताना तो चाहिएना क्या पति है तु मेरा ... आखो में गुस्से का लाल रंग और बहते आसुओ के साथ चिल्लाई रही जीज्ञा आज रुहान को कुछ और ही लग रही थी।

    देख तु यह सब ड्रामा छोड पीछली बार की तरह इसबार मे तुझे मनाने नहीं वाला। इसलिए मजाक छोड... रुहानने जीज्ञा को कहा।

    जीज्ञा के साथ जो भी घटना घटित हुइ थी उसकी रुहान को अभी तक भनक भी नही लगी थी।

    तुझे यह सब ड्रामा लगता है। देख तु दोस्त है तो सिर्फ दोस्त ही बनकर रहे बाप या पति बनने की कोशिश मत कर... जीज्ञा अपने दुःख और गुस्से के कारण क्या कुछ भी बोल रही थी उसका उसे कुछ होश नही था।

    रुहान को जीज्ञा की यह बात सुनकर बहुत बुरा लगता है। महावीर और रवी भी जीज्ञा के इस तरह के बर्ताव को देखकर चौके हुए थे। जीज्ञा और रुहान के बिच बहस चल ही रही थी की तभी पुर्वी वहा पे आ पहुचती है।

    जीज्ञा अब तु ज्यादा बोल रही है। मेने कभी तेरे पती या बाप होने जेसा बर्ताव नहीं किया है और तुझे हो क्या गया है तु एसा बर्ताव क्यु कर रही हैं... रुहानने जीज्ञा से कहा।

    मुझे कुछ भी नहीं हुआ है तु बस अब मेरा पीछा छोड दे। तुम सब मुझसे दुर चले जाओ मुझे किसीसे कोई दोस्ती नही रखनी है प्लीज़ चले जाओ यहा से...आखो में आसु और गुस्से के साथ जीज्ञाने अपने तीनो दोस्तो से कहा।

    जीज्ञा यह क्या बोल रही है तु। पहले तु शांत हो जा और बाद में शांति से बात करते हैं ना... पुर्वीने भी जीज्ञा के इस बर्ताव को देखते हुए उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा।

    मुझे नहीं होना शांत और नहीं करनी किसीसे शांति से बात। इन लोगो को बोल दो यहा से चले जाए... जीज्ञाने पुर्वी से कहा।

    अरे यार जीज्ञा तुझे क्या हो गया है तु हमसे एसे क्यु बात कर रही है... महावीरने जीज्ञासे कहा।

    हा यार यह तो हमारी अच्छाई की बेइज्जती हैं... रवीने भी जीज्ञासे कहा।

    तुम्हें जो समझना है समझो लेकिन यहा से चले जाओ... जीज्ञाने महावीर और रवी दोनो की बातो का जवाब देते हुए कहा।

    देखो रुहान, रवी और महावीर तुम लोग प्लीज़ उसे समझने की कोशिश करो... पुर्वी के इतना बोलते ही रुहान उसको बिच मे अटकाकर खुद बोलने लगता है।

    देखो पुर्वी अब बहुत हो गया। अब समझने और समझाने का कोई मतलब नहीं है। बार बार एसे रुठजाना और किसी भी तरह का बर्ताव करना सही थोडी है। अब हम जा रहे और हा आप मेडम जी आगे से हमे कभी मीलीएगा मत... इतना बोलकर अपने दोनो हाथ जीज्ञा के सामने जोडकर वहा से चलने लगता है।

     जीज्ञा के तीनों दोस्त जीज्ञा से रुठकर उसकी नजरो के सामने उसे छोडकर जा रहे थे। रोती हुई जीज्ञा जमीन पर अपने घुटनो के बल बैठ जाती है। पुर्वी उसे अपनी बाहो मे लेकर शांत करने की कोशिश करती है। पुर्वी अभी भी जीज्ञा से दुःखी नही थी क्योकि उसे पता था कि जीज्ञा के साथ पीछले दिनो मे क्या क्या घटित हुआ है। रडती हुई जीज्ञा की नजरें उससे दुर जा रहे रुहान पर ही थी। कुछ ना बोल रही पुर्वी को जाते हुए रुहान और उसके दोनो दोस्त की तरफ उगली करती है और पुर्वी को कुछ समझाना चाहती थी और पुर्वी जीज्ञा का इशारा साफ साफ समझ रही थी। पुर्वी जीज्ञा के आखो के आसु पोछती हैं।

    बरोडा वापस जाने के लिए निकला हुआ रुहान जरुर जानता था की जीज्ञा बहुत दुःखी है लेकिन इसबार रुहान जीज्ञा के इस बर्ताव से काफी नाराज था। पता नहीं जीज्ञा के साथ एसा क्या हुआ था कि वो धीरे धीरे अपने आपको ही खो रही थी।

    रिवरफ्रन्ट का माहोल कुछ एसा था कि एक तरफ पुर्वी की बाहोमे अपने दुःख से बिखरी हुई जीज्ञा उसको छोड के वापस जा रहे रुहान को देख रही थी और उस तरफ अपनी उंगली करके पुर्वी को समझा रही थी की वो रुहान को समझाए की मेरी हालत क्या है। रुहान और उसके दोस्तो जीज्ञा के इस बर्ताव से नाराज होकर बरोडा जाने के लिए अहमदाबाद के बस स्टेशन पहुचते है।

     एसा क्या हुआ था उस बिते दिनो मे जीससे जीज्ञा अपने आपको पुरी तरह से खो चुकी थी और उस वजह से वो हर कीसी पे गुस्सा होने लगी थी और उसी वजह से रुहान भी उससे नाराज हो गया था और जीज्ञा को हंमेशा के लिए बाय कहकर बरोडा वापस जाने के लिए निकलने वाला था। क्या इस बार दोनो के बिच सचमे दुरीया आ जाएगी या फिर पुर्वी दोनो कि दोस्ती बनाए रखने के लिए बिच वाली कडी बनेगी ? एसा क्या हुआ उन दिनो मे की दोनो के बिच प्यार की शरुआत तो छोडो दोनो की दोस्ती भी अंत तक पहुचती हम लोगो दिख रही है अब आगे देखना रसप्रद होगा की इन दोनो की जींदगी इन्हे कहा ले जाती है। आगे का अंक पढना न भुले क्योकी उस अंक मे जीज्ञा के जीवन में बनी सबसे बुरी घटना का लिखित वर्णन होनेवाला है तो पढिएगा जरुर।

     अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेर जरुर करे

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

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