*एक अनाम कुटुंब बलिदानी वीरांगना मानवती बाई हैहयवंशी की अमरकथा*
महारानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक प्रमुख पद पर वीर खुमान सिंह हैहयवंशीय तैनात थे जो कि डाकुओं के दमन के लिए भेजी गई टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे डाकुओं से युद्ध करते हुए वीर खुमान सिंह शहीद हुए उनकी मृत्यु उपरांत उनकी धर्मपत्नी मानवती बाई के समक्ष जीविकापार्जन की विकट समस्या आ खड़ी हुई कहते हैं कि जब महारानी लक्ष्मीबाई एक बार नगर भ्रमण को निकली तो उन्होंने मानवती बाई को बाजार में रोते हुए देखा और उनसे कारण पूछा जब महारानी को ज्ञात हुआ कि वह उनके एक सैनिक की विधवा है तो वह उन्हें अपने साथ ले गई और एक महिला सैनिक के रूप में नियुक्त किया तथा जल्दी ही अपने श्रेष्ठ युद्ध कौशल की बदौलत महिला सेना प्रमुख का पद प्राप्त कर लिया।
सन 1856 में टीकमगढ़ के मुगल आक्रांता नत्थे खां ने झांसी पर आक्रमण कर दिया, झांसी में भी युद्ध की तैयारियां जोर पर थी कहते है झांसी के किले में एक विशाल तोप भवानी शंकर थी तोप के बारे में कहा जाता था कि यह तो तभी हिलती है जब इसे नर बलि दी जाती है क्योंकि झांसी की सुरक्षा की बात थी देश के सम्मान में मानवती बाई ने अपने १६ वर्षीय पुत्र वीर सिंह को महारानी के समक्ष बलि स्वरूप प्रस्तुत किया १६ वर्ष की उम्र कोई विशेष उम्र नहीं होती है अतः महारानी ने मानवती बाई को मना किया और उनके पुत्र को समझाया जिसपर वीर सिंह ने कहा की माता की आज्ञा है और शत्रुओं से देश की रक्षा करना उनका परम धर्म है अतः देश हित में मेरी बलि दी जाए।
वीरसिंह की भावनाओ और तर्कों से प्रभावित हो कर तोप के समक्ष उन्होंने अपनी तलवार से अपना शीश अलग कर दिया, वहीं दूसरी ओर ओरछा के समीप प्रतापपुरा नामक स्थान पर वीरांगना मानवती बाई और नत्थे खां के मध्य की दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ....
युद्ध में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की रक्षा करते हुए मानवती बाई वीरगति को प्राप्त हुई.. उन्होंने और उनके परिवार ने सर्वोच्च बलिदान देकर राष्ट्र तथ हैहयवंश को गौरवान्वित किया...
युद्ध उपरांत रानी ने कुटुंब बलिदानी वीरांगना मानवती बाई हैहयवंशी के पति, पुत्र और उनकी समाधि स्थल किले प्रांगण में ही स्थापित करवा दिया।
३० सितंबर १८५६ को झांसी उनकी स्मृति दिवस, शौर्य और बलिदान दिवस के रूप में मनाता है और हर वर्ष उनकी समाधि स्थल पर 30 सितंबर को पुष्पांजलि देने के लिए इकट्ठा होता है!
हैहयवंश वीरांगना मानवती बाई, शाहिद खुमान सिह अमर बलिदानी वीरसिह का सदैव ऋणी रहेगा।
इतिहास में एक ही परिवार का ऐसा बलिदान कम ही देखने को मिलता है।
३० सितंबर १८५६ को झांसी उनकी स्मृति दिवस, शौर्य और बलिदान दिवस के रूप में मनाता है और हर वर्ष उनकी समाधि स्थल पर 30 सितंबर को पुष्पांजलि देने के लिए इकट्ठा होता है!
हैहयवंश वीरांगना मानवती बाई, शाहिद खुमान सिह अमर बलिदानी वीरसिह का सदैव ऋणी रहेगा।
इतिहास में एक ही परिवार का ऐसा बलिदान कम ही देखने को मिलता है।
*एक अनाम कुटुंब बलिदानी वीरांगना मानवती बाई हैहयवंशी की अमरकथा*: - DINESH KUMAR KEER