हाड़ी रानी सहल कंवर दिनू द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हाड़ी रानी सहल कंवर

हाड़ी रानी सहल कंवर -

नाम- बून्दी इतिहास में हाड़ी रानी का नाम सलेह कंवर या सहल कंवर मिलता है।
कविराजा श्यामलदास द्वारा रचित वीर विनोद में हाड़ी रानी का नाम कुँवरा बाई का उल्लेख है।
जबकि सलूम्बर में हाड़ी रानी का नाम इन्द्र कंवर होने का उल्लेख मिलता है।

जन्म - बसन्त पंचमी

पिता व वंश-
हाड़ी रानी सहल कंवर का जन्म हाड़ा चौहान राजवंश में हुआ था,वे बून्दी नरेश राव राजा शत्रुशाल हाड़ा के पुत्र भूपति सिंह की पौत्री व संग्राम सिंह की पुत्री थी।
भूपति सिंह,राव राजा भाव सिंह जी भ्राता थे।जिनका स्मारक क्षार बाग में स्थित है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि हाड़ी रानी के पिता संग्राम सिंह खटकड़ के जागीरदार थे।

बाल्यकाल-
सहल कंवर का बचपन बून्दी में ही बिता। हाड़ी रानी को बचपन मे गुरा नामक रोग था।रोग के निदान के लिए शेरनी/बाघिन के दूध की आवश्यकता थी अतः बून्दी नरेश के आदेश पर शेरनी को पकड़ कर लाया गया व बून्दी के एक चौराहे पर बाँधा गया,उस स्थान को आज भी "नाहर का चोहट्टा" के नाम से जाना जाता है।शेरनी का दूध पीने के कारण हाड़ी रानी ,शेरनी की भांति ही निडर,वीरांगना बनी। वे शेरनी के शावकों के साथ खेला करती थी।

इतिहास-
हाड़ी रानी का विवाह मेवाड़ के ठिकाने सलूम्बर के राव रतन सिंह चूण्डावत से सम्पन्न हुआ था।
विवाह के अगले ही दिन महाराणा राज सिंह , राव रतन सिंह को युद्ध के लिए बुलावा भिजवाते हैं।

राव रतन सिंह चुण्डावत मेवाड़ के सेनापति थे,जब उन्हें महाराणा का पत्र मिला उस समय वैवाहिक जोड़े के ग्रह प्रवेश की रस्म चल रही थी। युद्ध का पत्र पढ़कर वे विचलित हो उठे।
जब वे हाड़ी रानी से विदा लेने पहुँचे तो रतन सिंह जी हाड़ी रानी की प्रेम पाश में फंसकर विचलित होने लगे व अनमने भाव से तिलक करवाकर युद्ध के लिए प्रस्थान किया, परन्तु उन्होंने हाड़ी रानी को याद करते हुए सेवक से निशानी मंगवाई।
रानी को लगा कि कहीं उनके कारण पतिदेव अपने कर्तव्य से विचलित न हो जाए। हाड़ी रानी ने सेविका को निशानी के रूप में अपना शीश काटकर दे दिया। जब निशानी रूपी शीश रतन सिंह जी के पास पहुँचा तो उनका कलेजा दहल उठा। उन्होंने कटे शीश के रक्त से तिलक किया व युद्धक्षेत्र में अविश्वसनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए बादशाह औरंगजेब की सेना को परास्त किया।

युद्ध का कारण - औरंगजेब ,रूपनगर की राजकुमारी से विवाह करना चाहता था जबकि राजकुमारी राणा राज सिंह जी को पति मान चुकी थी व उनसे विवाह के लिए पत्र लिख देती है।

चुण्डावत मांगी सैलाणी।
सिर काट दे दियो क्षत्राणी।।

हाड़ी रानी सहल कंवर -

नाम- बून्दी इतिहास में हाड़ी रानी का नाम सलेह कंवर या सहल कंवर मिलता है।
कविराजा श्यामलदास द्वारा रचित वीर विनोद में हाड़ी रानी का नाम कुँवरा बाई का उल्लेख है।
जबकि सलूम्बर में हाड़ी रानी का नाम इन्द्र कंवर होने का उल्लेख मिलता है।

जन्म - बसन्त पंचमी
हाड़ी रानी सहल कंवर -

नाम- बून्दी इतिहास में हाड़ी रानी का नाम सलेह कंवर या सहल कंवर मिलता है।
कविराजा श्यामलदास द्वारा रचित वीर विनोद में हाड़ी रानी का नाम कुँवरा बाई का उल्लेख है।
जबकि सलूम्बर में हाड़ी रानी का नाम इन्द्र कंवर होने का उल्लेख मिलता है।

जन्म - बसन्त पंचमी