वीर बाला चम्पा दिनू द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वीर बाला चम्पा


महाराणा प्रताप सिंह जी की वीर पुत्री के त्याग के बारे पढे।।
वीर बाला चम्पा :- महाराणा प्रताप परिस्थितियों के कारण वन-वन भटक रहे थे किन्तु उन्होंने मुगलों के सामने झुकना मंजूर नहीं किया। महाराणा को बच्चों के साथ दिन रात पैदल चलना पड़ता था। बहुधा बच्चों को उपवास करना पड़ता था। तीन-तीन, चार-चार दिन जंगली बेर व घास की रोटियों पर निकल जाते। कई बार ऐसा अवसर भी आता कि घास की रोटियां भी बनाते-बनाते छोड़कर भागने को विवश होना पड़ता।
महाराणा की पुत्री चम्पा ग्यारह वर्ष की थी। चम्पा एक दिन अपने चार-वर्षीय भाई के साथ नदी किनारे खेल रही थी। कुमार को भूख लगी थी। वह रोटी मांगते हुए रोने लगा। उस चार वर्ष के बच्चे में समझ कहां थी कि उसके माता-पिता के पास अपने युवराज के लिए रोटी का टुकड़ा भी नहीं है। चम्पा ने अपने भाई को कहानी सुनाकर व फूलों की माला पहनाकर बहला दिया। राजकुमार भूखा ही सो गया।
चम्पा जब अपने छोटे भाई को गोद में लेकर माता के पास सुलाने आई तो महाराणा को चिन्ता में डूबे हुए देखकर बोली, ``पिताजी! आप चिन्तित क्यों हैं?´´ `बेटी! हमारे यहां एक अतिथि पधारे हैं। आज ऐसा भी दिन आ गया है कि चित्तौड़ के राणा के यहां से अतिथि भूखा चला जाय।´ महाराणा ने उत्तर दिया।
चम्पा बोली, `पिताजी! आप चिन्ता न करें! हमारे यहां से अतिथि भूखा नहीं जायेगा। आपने मुझे कल जो दो रोटियां दी थीं, वे मैंने भाई के लिए बचा कर रखीं थीं, वह सो गया है। मुझे भूख नहीं है। आप उन रोटियों को अतिथि को दे दीजिये।´ पत्थर के नीचे दबाकर रखी घास की रोटियां पत्थर हटाकर चम्पा ले आई। थोड़ी सी चटनी के साथ वे रोटियां अतिथि को दे दी गयीं। अतिथि रोटी खाकर चला गया।
महाराणा बेटी के त्याग को देखकर द्रवित हो उठे, उनसे अपने बच्चों का कष्ट देखा नहीं गया। उस दिन उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए पत्र लिख दिया। ग्यारह-वर्षीय सुकुमार बालिका चम्पा दो-चार दिन में तो घास की रोटी पाती थी और उसे भी बचाकर रख लिया करती थी। अपने भाग की रोटी वह अपने भाई को थोड़ी-थोड़ी करके खिला देती थी। भूख के मारे वह स्वयं दुर्बल व कृश-काय हो गई थी। उस दिन अतिथि को रोटियां देने के बाद वह मूर्छित भी हो गयी।
महाराणा ने उसे गोद में उठाते हुए रोकर कहा- `मेरी बेटी! अब मैं तुझे और कष्ट नहीं दूंगा। मैंने अकबर को पत्र लिख दिया है।´ यह सुनकर चम्पा मूर्छा में भी चौक पड़ी, बोली, `पिताजी! आप यह क्या कहते हैं? हमें मरने से बचाने के लिए आप अकबर के दास बनेंगे? पिताजी! हम सब क्या कभी मरेंगे नहीं? पिताजी! देश को नीचा मत दिखाइये! देश और जाति की गौरव-रक्षा के लिए लाखों लोगों का मर जाना भी उत्तम है। पिताजी! आपको मेरी शपथ है, आप अकबर की अधीनता कभी स्वीकार न करें।´ बेचारी चम्पा महाराणा की गोद में ही सदा के लिए चुप हो गयी।
कहा जाता है जब अकबर के दरबार में महाराणा का पत्र पहुंचा तो पत्र देखकर पृथ्वीराजजी ने पत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए महाराणा को पत्र लिखा और उसे पढ़कर महाराणा ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने का विचार त्याग दिया। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि बालिका चम्पा ने अपने बलिदान से ही महाराणा को दृढ़ता देकर हिंदुकुल गौरव की रक्षा की।
शत शत नमन वीर बाला चम्पा को