दानी की कहानी - 29 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 29

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रवि -शशि के कमरे में से आज फिर शोर आ रहा था | दोनों जुड़वाँ,  दोनों की आदतें एक सी ही | दोनों एक ही कक्षा में और दोनों के बीच चकर-चकर एक जैसी ही | न एक झुकने को तैयार,  न  दूसरा रुकने को |

दानी से दोनों ही  बहुत प्यार करते, बहुत सम्मान भी ! बहुत कुछ सीखते थे उनसे ! कहानियाँ  सुनने का भारी शौक ! और दानी --उनका बस चलता तो सारे बच्चों को गले में चिपकाए घूमतीं | दानी पर यह बात सौ फ़ीसदी सही बैठती थी,  'मूल से ज़्यादा ब्याज़ प्यारा |'

कभी-कभी दानी भी बच्चों को समझाने में कमज़ोर पड़ जातीं | आज भी अभी तो रवि -शशि को इतना समझाकर भेजा था | दोनों हँसते हुए उनके सामने से गए थे लेकिन बच्चे ही तो हैं, जाने कब फिर से उन दोनों में चूँ-चीं होने लगी थी | दानी सोच ही रही थीं कि देखकर आएँ क्यों शोर मचा रहे हैं कि दोनों आते हुए दिखाई दिए |

दोनों की मुख-मुद्राएँ ऎसी कि कोई भी पराजित नहीं होना चाहता जैसे | वैसे भी कौन पराजित होना चाहता है चाहे वह गलत हो या सही ? बड़े अपनी पर अड़े रहते हैं तो ये  बच्चे हैं |

"दानी ! इसका क्या मतलब है धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का ?"रवि ने आते ही दानी पर प्रश्न दागा |

दानी मुस्कुराईं। ओह! तो यह बात है | इन दोनों की लड़ाइयाँ ऎसी ही बातों पर होती थीं | एक को लगता कि  वह ज़्यादा समझदार है,  दूसरे से लगता वह अधिक समझदार है|

"बताइए न दानी ---" दोनों ने ठुमककर एक साथ कहा |

दानी के दाहिनी ओर एक था तो बाईं ओर दूसरा !

दानी पल भर को चुप रहीं फिर उन्होंने बड़े प्यार से कहा ;

"तुम सोच कर बताओ ---मैंने तुम्हें एक बार इसकी कहानी सुनाई थी --" ्

"नहीं, दानी, आपने हमें  नहीं सुनाई, किसी और को सुनाई होगी --" दोनों जब एक ही सुर में बोले तो दानी को समझ में आया कि ज़रूर किसी और बच्चे को सुनाई होगी | दरसल, दानी बहुत सी बातें भूल जाती थीं | उनका दिमाग़ सोचने की कोशिश कर रहा था कि उन्होंने किस बच्चे को सुनाई होगी वह कहानी जिसमें यह मुहावरा छिपा था |

न जाने कहाँ से नन्हे अंशु जी भी ठुमकते-ठुमकते वहीं आ पहुंचे और बोले;

"हा -हा- धोबी के पास कुत्ता कहाँ  गधा होता है ---!!"

बात तो अंशु की सही थी, छोटा ज़रूर था लेकिन सभी बातों  को ऐसे पकड़ लेता था जैसे न जाने कितना बड़ा और समझदार हो | उसकी स्मृति बड़ी तीव्र थी |

रवि-शशि को अच्छा नहीं लगा कि अंशु उनसे छोटा होते हुए भी उनका मज़ाक उड़ा रहा था | उनका मुँह फूल गया | बेकार ही दानी के पास आए और इस छुटके से अपनी मज़ाक बनवाई|

" दानी, जब यह बात ही गलत है तो सोचने की बात है कि  यह कहावत क्यों बनी होगी ?

'धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का'!

"अब पता नहीं कहावत बनाने वाले तो न जाने क्या-क्या बनाते रहते हैं दानी--- "

दानी सोचने लगीं  कैसे समझाया जाए कि इसका मतलब क्या है ? वैसे बच्चे कह रहे हैं कि उन्हें कहानी नहीं सुनाई तो झूठ तो बोलेंगे नहीं | वे स्वयं कहानी का आदि-अंत सोचने की कोशिश कर रही थीं | इस उम्र में आकर वे कभी-कभी भूल जाती थीं |

"लो, आ गई याद ---" अचानक दानी ने कहा और सब बच्चे सावधान होकर बैठ गए |

बच्चे ऐसे चुप्पी साधे बैठे थे जैसे अगर कुछ बोलेंगे तो दानी कहानी भूल जाएँगी या फिर

सुनाना ही बंद कर देंगीं |

"हाँ.तो यह पुराने ज़माने की बात है --फ़ारसी भाषा में एक शब्द है कुतका --जिसका मतलब होता है वह चीज़ (स्टेंड)जिस पर धोबी  घाट पर जाकर कपड़े धोकर सूखने के लिए टाँगते हैं | वे  गधे पर लादकर कपड़ों को ले जाते हैं और  हाथ में पकड़कर कुतका ले जाते हैं | कपड़े सुखाकर वे दुबारा गधे पर लादकर कपड़ों को  घर ले जाते हैं, साथ ही कुतके को भी उठाकर घर ले जाते हैं --" दानी सोचते हुए कहानी सुनती जा रही थीं |

"पर--दानी ---कुत्ता कहाँ से आ गया ?" रवि बीच में आखिर बोल ही तो पड़ा |

"यही तो बता रही हूँ बच्चों ---धीरे-धीरे लोग कुतका शब्द भूल गए और शब्द कुतके से कुत्ता बोला जाने लगा | "

"ओहो !  तो ये कुतका ही कुत्ता है ?" शशि ने अपने मुँह पर  आश्चर्य के भाव लाकर कहा और दानी सहित सारे बच्चे दिल खोलकर हँसने लगे |

बच्चों को समझ आ गया था कि धोबी के पास कुतका यानि कपड़े सुखाने का स्टैंड था जो कुत्ता बोला जाने लगा था |

"बच्चों !ऐसे ही शब्दों में बदलाव होता  है और हमें नए शब्द मिलते रहते हैं !" दानी ने कहा |

ऐसे ही बच्चे बातों बातों में कई नई  बातें, कई नए शब्द सीख लेते  हैं  |

 

डॉ.प्रणव भारती