डॉ. रसबाला असमंजस में पड़ गईं। उनके इक्कीस साल के कैरियर में अब तक ऐसा कोई केस नहीं आया था। न भारत में, और न ही जमैका में, जहां उनके पति की पोस्टिंग के कारण उन्होंने सात साल रह कर प्रैक्टिस की थी। उन्होंने किसी भी पेशेंट को डील करने में अब तक एक सिटिंग में पौने चार घंटे कभी नहीं लिए थे। और अब, इस सुदर्शन से युवक के साथ चार घंटे अकेले में बिता लेने के बाद उनकी उलझन ये थी कि इसे "रोगी" मानें या नहीं। ...नो, ही इज़ नॉट ए पेशेंट, ही कांट बी! मरीज़ से चार घंटे चली इस पूछताछ में कम से कम नौ बार उन्होंने डॉ. सनाली को फ़ोन किया था। डॉ. सनाली उनकी बैचमेट ही थीं और वास्तव में ये केस उन्होंने ही रैफर किया। सनाली ने लड़के को साइकियाट्रिक डॉ. रसबाला के पास भेजने से पहले चार- पांच बार उसकी ख़ुद जांच की थी।
कहीं ये युवक ऐसा न समझने लगे कि डॉक्टरों का कोई रैकेट पैसा बनाने के लिए उसके कष्ट से खेल रहा है, इस डर से डॉ. सनाली ने उससे केवल एक बार पैसे लिए थे। और बाद में तो उनके मन में ये भी आया कि वह एक बार की फ़ीस भी वापस लौटा दें। लेकिन ये भी लड़के के मन में संदेह पैदा करता, इसलिए उन्होंने सारी बात रसबाला को बता कर उसे वहां भेजा था।
लड़के का नाम सौरभ था। डॉ. सनाली के पास आने से पहले वह लगभग दो माह से जिम में जाता रहा था। यह जिम सनाली के नर्सिंग होम के अहाते में ही था और इसे उनके पति ही चलाते थे।
सौरभ ने जब वो जिम ज्वाइन किया तो पहले दो सप्ताह तक सब ठीक- ठाक चला। इस उम्र के बाकी लड़कों की तरह सौरभ ने भी वहां रखे उपकरणों के बारे में जानकारी की और प्रैक्टिस शुरू कर दी। लेकिन धीरे धीरे जिम के संचालक, जो कोच भी थे, उन्होंने नोट किया कि सौरभ और लड़कों की तरह एक्सरसाइज नहीं कर रहा है। उसका ध्यान केवल अपनी चेस्ट को उभारने की एक्सरसाइज पर ही है। सौरभ किसी कंपनी में नौकरी कर रहा था, शादीशुदा था, और ऑफिस के बाद बाइक से जिम आता था। उम्र थी लगभग चौबीस साल। कोच ने सोचा, शायद यह लड़का सेना या पुलिस में जाना चाहता होगा इसलिए चेस्ट इम्प्रूवमेंट के लिए लालायित है। कोच ने एक बार उससे कहा - दौड़ने के लिए मज़बूत पिंडलियां और थाइज़ का मज़बूत होना भी बहुत ज़रूरी है, इन पर भी ध्यान दो अन्यथा असंतुलित ग्रोथ हो जायेगी।
सौरभ ने उनकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, वह अभ्यास में लगा रहा।
लेकिन एक दिन जिम में मसाज करने वाले लड़के ने जब संचालक को बताया कि यह लड़का लेडीज़ क्रीम से मसाज करने पर जोर देता है तो उनका माथा ठनका। उन्हें पता लगा कि सौरभ ने महिलाओं वाली महंगी क्रीम खुद ही ख़रीद कर लाकर दी थी। संचालक ने सौरभ को एक बार अपनी डॉक्टर पत्नी सनाली से मिलने भेज दिया, जिन्होंने सौरभ की इच्छा जानकर उसे हार्मोन ट्रीटमेंट देना शुरू कर दिया। उन्होंने सौरभ को बताया कि कभी - कभी लड़कों के शरीर में हार्मोन्स के असंतुलन से लड़कियों जैसे लुक्स और इच्छाएं दिखने लगते हैं इसलिए उसे इंजेक्शंस और दवाएं लेकर अपने शरीर को पुष्ट करना चाहिए। किंतु जब डॉ. सनाली को पता लगा कि सौरभ तो ख़ुद अपनी चेस्ट महिलाओं की तरह बढ़ाना चाहता है तो वो सकते में आ गईं।
उन्होंने सौरभ को वक्ष बढ़ाने वाली दवाएं और इंजेक्शंस दे तो दिए लेकिन उनका मन न माना। आख़िर वो डॉक्टर थीं। उन्हें लगा कि उनके पेशे की ज़िम्मेदारी इससे कहीं बड़ी है। उन्हें जानबूझ कर एक रोगी को एक रोग से उबार कर दूसरे रोग की ओर धकेलने का कोई हक नहीं है। उन्होंने एकबार सौरभ को समझाया कि उसे इस तरह अपनी पर्सनैलिटी के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। वह अच्छी कद काठी का, संभ्रांत परिवार का स्वस्थ युवक है। वह क्यों अपना सीना महिलाओं की तरह बढ़ा कर रखना चाहता है। लड़के जब अपना सीना बढ़ाते हैं तो पूरे शरीर की मजबूती और स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं ताकि सेना, पुलिस या सुरक्षा संबंधी सेवाओं में जा सकें। छत्तीस इंच का सीना पुरुषोचित तरीके से ही बढ़ा हुआ अच्छा लगता है। उसके साथ -साथ पूरा शरीर तंदुरुस्त नज़र आता है।
डॉ. सनाली ने कहा - क्या आप जानते हैं कि शरीर की हॉर्मोनल गड़बड़ी के कारण जिन युवकों में इस तरह छाती बढ़ जाती है वो कितने शर्मिंदा होते हैं? चुस्त कपड़ों से उसे छिपाने की कोशिश करते हैं।
सौरभ कुछ न बोला। लेकिन उसने कुछ ऐसा भी संकेत नहीं दिया कि डॉक्टर की बात उसे समझ में आ गई है और वह इससे सहमत है। डॉक्टर ने मन ही मन इस बात को कुदरत के प्रकोप की तरह माना। उन्हें याद आया कि किस तरह एक पुलिस अधिकारी देखते- देखते महिला वेशभूषा धारण करके उसी तरह व्यवहार करने लगे थे। शरीर की ये विचित्र माया कौन समझे!
हार कर उन्होंने सौरभ को अनुभवी मनोचिकित्सक डॉ. रसबाला के पास भेज दिया। वह अपने मन पर ये अपराध बोध नहीं लेना चाहती थीं कि उन्होंने जानते बूझते हुए एक युवक को बीमार मानसिकता के रास्ते पर जाने दिया।
डॉ. रसबाला को ये जानकर आश्चर्य हुआ कि सौरभ अपने माता - पिता के साथ ही रहता है और उसके एक डेढ़ वर्ष की नन्ही सी बिटिया भी है। उसकी पत्नी के बारे में पूछते ही सौरभ एकाएक खामोश हो गया और डॉ. रसबाला ने देखा कि उसकी आंखें किसी भीगे हीरे की तरह चमक कर सजल होने लगीं।
- इज़ शी नो मोर... क्या अब वह जीवित नहीं है? डॉक्टर ने पूछा।
- .....
- हां हां बोलो..
- पिछले वर्ष एक दुर्घटना में उसकी जान चली गई। मेरे माता- पिता मेरा दूसरा विवाह करना चाहते हैं, पर मैं अपनी बिटिया को पालना चाहता हूं। सौरभ ने कहा।
- तो मां बाप की बात मानो, वो ठीक कह रहे हैं।
- पर मैंने अपनी बेटी को कुछ भी नकली या घटिया नहीं दिया। यदि मैं उसे एक सही मां नहीं दे पाया तो मेरी दिवंगत पत्नी मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी।
डॉ. रसबाला बोलीं - पर इसके और भी तो रास्ते हैं। तुम शादी मत करो और अपनी बेटी को पालो। उसे पढ़ाना लिखाना.. लेकिन तुम अपनी पर्सनैलिटी क्यों चेंज करना चाहते हो... इट्स स्ट्रेंज!
- आप नहीं जानतीं डॉक्टर, रात को मेरी बेटी मेरे पास ही सोती है, नींद में वह प्यार से जब अपना हाथ मेरे सीने पर रखती है तो मुझे स्वर्ग मिल जाता है लेकिन...
- लेकिन क्या? डॉ. रसबाला ने कहा।
- पर वह नींद में कभी- कभी बुरी तरह चौंक कर डर जाती है। शायद मेरे कलेजे पर हाथ रखते ही उसे ये अहसास हो जाता है कि उसकी मां उसके साथ नहीं है। वह घबरा जाती है और नींद में भी मुझसे दूर हट जाती है... मैं उसकी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसके मन में एक "हॉर्मोनल फेंसिंग" बना देना चाहता हूं... लक्ष्मण रेखा, जिसमें वह अपने को सुरक्षित समझे.. महफूज़!
डॉ. रसबाला ने अपनी सीट से उठ कर सौरभ को सीने से लगा लिया और दूसरी ओर मुंह फेरकर रुमाल से अपनी आंखें पौंछने लगीं।
सौरभ जब तेज़ी से उनका केबिन खोलकर बाहर निकला तो बाहर बैठा डॉक्टर का सहायक यह देख कर दंग रह गया कि डॉक्टर से चार घंटे इलाज लेकर भी मरीज़ बिना पैसे दिए ही निकल गया है। और डॉक्टर ने उस नीली बत्ती को ऑन नहीं किया है जो वह हमेशा फ़ीस लेने के संकेत के रूप में ऑन करती हैं।
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