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चरित्रहीन - (भाग-16)

चरित्रहीन.......(भाग-16)

संडे को नीरज शाम को जब हमारे घर आया तब आरव घर पर ही था। मैंने नीरज और आरव को मिलवाया। आरव पहले भी मिल चुका था नीरज से जब मैंने घर पर पार्टी दी थी......आरव कुछ देर तो नीरज के पढाई से रिलेटिड सवालों का जवाब देता रहा और मैं चाय बना कर ले आयी। आरव के आस पड़ोस में कुछ दोस्त बन गए थे तो उनसे मिलने चला गया। उसके जाने के बाद मैंने नीरज से पूछा, "क्या बात करनी थी तुम्हें मुझसे? अब बताओ"....! मेरा सीधा ही बात के बारे में पूछने से नीरज थोड़ी सोच में पड़ गया। क्या सोच रहे हो नीरज ? तुम इतना परेशान क्यों हो? बोलो क्या बात है? "वसुधा तुम मुझे माफ कर देना जो मैं अपने पैरेंटस को मना नहीं पाया और तुम्हें वो बेवकूफी भरा काम भाग के शादी करने वाला कह बैठा था"!
"नीरज तुम ये सब मत सोचो और अगर तुम्हारे दिमाग से ये बातें अभी तक नहीं निकली तो ये गलत है"। मैंने उसकी बात सुनकर उसकी आँखो में देखते हुए जवाब दिया तो उसने अपनी आँखे नीची कर ली। "वसु तुम्हारे हस्बैंड के बारे में जब से पता चला है, तब से मैं बहुत परेशान रहने लगा हूँ, तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूँ....कितनी मुश्किल हो गयी है तुम्हारी लाइफ.....तुम कितने सालों से अकेले सब कुछ सह रही हो, तुमने दूसरी शादी क्यों नहीं की" ? तुम
मेरे लिए परेशान रहते हो तो मुझे अच्छा लगा क्योंकि दोस्त अगर फिक्र करें तो कुछ भी मुश्किल नहीं रहता, पर नीरज तुम बिल्कुल टेंशन मत लो मेरी....थोड़ी मुश्किले तो हुई थी पर फिर सब कुछ संभालना भी था तो संभल गयी मैं भी, रहा सवाल दूसरी शादी का तो मुझे अपने बच्चों के लिए दूसरा बाप लाना जरूरी नहीं लगा.....बस इसलिए शादी नहीं की।बच्चों के मामा मामी और चाचा चाची दोनो ही बहुत अच्छे हैं तो मुझे कोई चिंता भी नहीं है"! नीरज की बातें मुझे पसंद तो नहीं आ रही थीं, पर आया था तो बात तो करनी ही थी। "वसु वो सब तो ठीक है, पर पति की कमी तो तुम्हें खलती ही होगी न"!! नीरज से इतने घटिया सवाल की उम्मीद तो मैंने नहीं की थी....." नीरज
8 सालों के रिश्ते में आकाश ने इतना प्यार और इज्जत दी कि मैं किसी और चीज के बारे में सोच ही नहीं पाती। मेरी जो जरूरत की बात कर रहे हो, वो नेचुरल प्रोसेस है, औरतों को वो भी मैनेज करना आता है, अब तुम आदमी लोग तो कोठे पर जा सकते हो या कोई घटिया आदमी रेप करके अपने को संतुष्ट कर सकता है, पर हम औरते "पुरूष वेश्या या जिगलो" ढूँढने जाती हैं, अकेली औरत को देख कर वैसे ही सारे मर्द "जिगलो" बनने को तैयार हो जाते हैं, बस एक इशारा करने की ही तो जरूरत होती है, ठीक कहा न मैने नीरज"! मेरी आवाज की सख्ती को बात खत्म करते हुए मैंने भी महसूस किया था, पर नीरज को सीधे शब्दों में समझाना जरूरी था और वो मेरी बात समझ भी गया था तभी तो वो मेरी बीत खत्म होते ही उठ गया, तुम ठीक कह रही हो वसु अब मैं चलता हूँ, फिर मिलते हैं"। "ठीक है नीरज, एक दोस्त की तरह जब मर्जी आ जाना और हमेशा प्रीति के साथ आओ तो मुझे अच्छा लगेगा और उसका ध्यान रखा करो और खुश रहो"! नीरज चला गया और मेरा मन भी हल्का हो गया क्योंकि जो अभी तक मैं सभी आदमियों की नजरे चुपचाप झेल रही थी वो आज लावा बन कर नीरज के भी वैसे सवाल से फट पड़ा। नीरज को मैं कभी पसंद करती थी, ये सोच कर मुझे अपने पर ही शर्म आ रही थी क्योंकि नीरज भी तो औरो की तरह सिर्फ एक आदमी की तरह सोच गया और कह भी गया। दोस्त की तरह सोचा होता तो ये कभी नहीं कहता। नीरज के जाने के बाद आरव घर आया तो वो मेरे कॉलेज के दिनों की बातें पूछने लगा तो मेरा मूड भी अच्छा हो गया। वो अपने दोस्तों और कॉलेज की बातें करने लगा तो मैंने पूछा कोई लड़की दोस्त बनी अभी कॉलेज में या नहीं तो उसने बहुत सपाट तरीके से कहा...."मॉम मुझे अपना करियर बनाना है और लड़कियों को कैजुअल फ्रैंडस बनाओ तब भी उनके साथ थोड़ा फॉर्मल रहना पड़ता है तो क्या जरूरत है ऐसे दोस्तों की......लड़को के साथ दोस्ती ठीक है मेरी"! उसकी बात सुन कर ऐसा लगा कि अब के बच्चे हम से ज्यादा स्मार्ट और करियर के लिए सीरियस हैं और उन्हें क्या करना है ये भी वो जानते हैं। जब लड़कियों और लड़को की दोस्ती की बात शुरू हुई तो उसने कितने ही नाम गिनवा दिए लड़कियों के जिन्होंने दोस्ती के नामपर इमोश्नल ब्लेकमेल किया था......आरव की समझदारी कभी कभी मुझे भी सरप्राइज कर देती है......
आकाश की छवि दिखती है आरव में!! आरव हर सैमेस्टर में अच्छा कर रहा था।
मैंने उससे इतनी दोस्ती तो बना ली थी कि अगर कोई गलती भी करे तो सबसे पहले मुझे बताता है....."आरव कभी कभार कह देता था कि पापा होते तो बहुत मजा आता मॉम"! मैं समझती थी उसकी बात बस तब से माँ और पापा दोनों बारी बारी से बन जाती....! इस उम्र में बच्चे अक्सर भटक जाते हैं तो मन घबराता था, आकाश होते तो वो लड़को की बातें आसानी से समझा सकते थे, मैंने विकास भैया से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा,"आप चिंता मत करो, मैं बात करता रहता हूँ उससे....हमारा आरव अपना अच्छा बुरा समझता है"! विकास भैया की बात सुन कर मैं रिलैक्स हो गयी। हमारा काम भी अब ठीक से चलने लगा था तो रश्मि में भी कॉंफिडेंस आ गया था। ये नो टाइम आ गया था जब बाजार में स्मार्टफोन आ गए थे। एँडरायड का मजा ले रहे थे, सब फीचर थे। कुछ समझ न आए तो सर्च करना आसान हो गया था। "वॉटसप्प और फेसबुक" जगह बना चुके थे।आरव का तीसरा साल शुरू हो चुका था और अवनी का 12 वीं के बाद मेडिकल में एडमिशन हो गया। मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी कि उसका सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो गया था और वो दूसरे शहर चली गयी। मैं छोड़ने गयी थी उसको ....होस्टल ठीक ठाक था....मैंने बहुत कहा उसको कि अलग घर ले कर भी रह सकती है वो...पर उसने साफ मना कर दिया।उसे आदत थी होस्टल में रहने की पर सरकारी कॉलेज के होस्टल में वो सफाई नहीं थी, जो प्राइवेट स्कूल के होस्टल में होती है.....वो नही मानी तो मैंने उसे इसकी जरूरत का सामान दिलवाया और कहा कि, "कुछ दिन रह कर देखो, अगर ठीक ना लगे तो बता देना"। उसने कहा "मॉम डोंटवरी स्टूडैंटस को ज्यादा सहूलियतों का नही सोचना चाहिए, जो है इसमें एडजस्ट होना सीखना तो चाहिए ना"! क्या बच्चे हैं मेरे? इतने समझदार हम तो नहीं थे.....या इन्हें लगता है कि हमारी माँ के पास पैसे नहीं है, इसलिए अपने आप को समझदार बना लिया है? मैं कुछ पैसे भी उसको दे आयी और सब समझा आयी कि," जब भी जरूरत हो फोन कर देना तुम्हारी मॉम के पास तुम दोनों की जरूरत पूरी करने के लिए पैसे हैं"......वो हँस दी बोली, "मुझे पता है मॉम आपके पास पैसे हैं, मैं आपको बता दूँगी"! मैं भारी मन से वापिस आ गयी, कितने सालों से हम तीनों दूर दूर रह रहे हैं, पर सपने पूरे करने के लिए बच्चों को आजाद तो छोड़ना ही पड़ेगा। यही सब समझा लेती थी, जब भी अवनी की याद आती। फोन पर 2-3 बार बात हो ही जाती थी। वो वहाँ सैटल हो रही थी और आरव और मैं भी बिजी रहने लग गए थे। इस बीच विद्या कई बार आयी और साथ भी रही, पर मैंने हमारे प्रयोग को बंद कर दिया। विद्या की बात समझती थी और हम दोनो की जरूरतों से भी मैं अनजान नहीं थी, पर फिर भी प्रयोग करने के लिए कई बार हम कर ही चुके थे। फिर भी विद्या मेरी न को समझ कर भी कभी कभार ऐसी हरकतें कर जाती कि समझ नहीं आता था कि क्या करूँ.......!
क्रमश:

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