Charitrahin - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

चरित्रहीन - (भाग-15)

चरित्रहीन......(भाग-15)

जॉब छोड़ ने से घर पर बच्चों के साथ टाइम बिताने को मिल गया, आरव का रिजल्ट बहुत अच्छा रहा....मैं खुश थी उसके रिजल्ट से....वो केमिकल इंजिनीयरिंग करना चाहता था, तो उसने एक एग्जाम दिया जिसे उसने बहुत अच्छी रेंक से पास कर लिया। उसका एडमिशन दिल्ली के ही सरकारी कॉलेज में हो गया.....NSIT में मेरे बेटे का एडमिशन मेरे लिए बड़ी बात थी........
वरूण बहुत खुश था आरव के एडमिशन से.....मैंने अपने सब दोस्तों को घर बुला कर पार्टी दी और आरव रो सबसे मिलवाया। 10वीं का रिजल्ट भी अवनी का अच्छा रहा और वो आगे साइंस ले कर डॉ. बनना चाहती है, और मैं जानती हूँ कि वो जरूर बनेगी। वरूण और नीला बच्चों के साथ आए थे, जाते हुए अवनी को भी ले गए और सबसे मिल भी गए। वरूण ने आरव को उसकी पसंद की बाइक ले कर दी, कॉलेज जाने के लिए तो आरव की खुशी का ठिकाना नहीं था।
आरव को कॉलेज बाइक पर जाने से रोकना चाहती थी मैं....पर ये भी जानती थी कि इससे आरव कहना मान तो लेगा पर पूरे मन से नहीं। मैंने बहुत सारी हिदायतें दे दी बाइक चलाने से पहले...
उसने कहा तो था कि वो ध्यान रखेगा, पर मेरा दिल तो जैसे धड़कना ही भूल जाता था जब तक वो आ नहीं जाता। आँखो के आगे सालो पुराना एक्सीडेंट का मंजर सामने आ जाता। "मॉम आप इतना डरा मत करो, मैं ध्यान से बाइक चलाता हूँ। फिर एक्सीडेंट तो कारों के भी होते हैं न? ऐसे आप डरते रहोगे तो मुझे और अवनि को घर पर ही रहना पडे़गा क्योंकि बाहर जाने के लिए कोई सवारी तो चाहिए ही, फिर आप भी कार चलाना छोड़ दीजिए", एक दिन जब मैं उसका इंतजार गेट पर कर रही थी तो उसने मुझे ये सब कहा तो मैं मुस्कुरा दी........उस दिन के बाद मैं थोड़ा रिलैक्स थी कि आरव अपना ध्यान रखता है और मेरा भी......!! विद्या की बहन चली गयी तो वो पार्टी के कुछ दिनों के बाद हमारे साथ रहने के लिए आ गयी। मैं भी ऑफिस खोलने की तैयारियाँ
कर रही थी, जिससे मैं थोड़ा बिजी रहूँगी तो बेकार की सोच हावी नहीं होगी। विकास भैया और सोफिया की बेटी हुई थी, उन्होंने उसका नाम गायत्री रखा था। मैं हैरान थी कि विदेश में हिंदुस्तानी नाम..
तो सोफिया ने बताया कि उसे "इंडियन नेम" ही रखना था। भीकाजी कॉमा प्लेस मैं जो बिल्डिंग वरूण ने बनवायी थी, उसमें हमने एक ऑफिस रखा हुआ था, जो किराए पर दिया था, पर जब वरूण को पता चला कि मुझे ऑफिस बनाना है तो उसने मेरे लिए वो ऑफिस खाली करवा दिया....ऑफिस खोलते ही काम मिलना शुरू नहीं हो जाता....तो थोडे कांटेक्टस बनाने की जरूरत तो थी ही...।
मैंने अपने बॉस को सबसे पहले बताया और छोटे मोटे काम दिलवाने में हेल्प माँगने में भी मुझे झिझक नहीं हुई। रश्मि की याद आयी थी साथ में काम करने के लिए.......उससे न तो मैंने अपनी तरफ से हिस्सेदारी की बात की और न ही नौकरी की......क्योंकि मैं उसकी सोच जानने के लिए चुप थी। घर पर जब पार्टी की थी तो मैंने ग्रुप में ही सबको घर का एड्रैस और टाइम बता दिया था तो सब आ गए थे, नीरज और प्रीति भी....." वाह वसुधा तुम्हारा घर तो बहुत सुंदर और बड़ा है"! प्रीति ने कहा तो मैं जवाब में सिर्फ मुस्कुरा दी......मैं 4-5 बार प्रीति से मिल चुकी थी और कॉलेज में तो हम बातें करते ही थे, फिर भी प्रीति मुझसे खींची खींची रहती है......मुझे हर बार ऐसा लगता है कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती है। उस दिन नीरज और प्रीति सबसे पहले आ ही गए थे.....आरव मार्किट गया हुआ था तो मैंने उसे चाय सर्व करते हुए पूछ ही लिया......"प्रीति तुम्हारे मन में कोई बात है तो कह दो, मन में मत रखो"! प्रीति कुछ कहती उससे पहली ही नीरज बोला, " मेरे ख्याल से ऐसा कुछ नही है वसु, तुम्हें गलत लग रहा है, ठीक कहा न प्रीति"! प्रीति ने उसकी बात सुनी और फिर मेरी तरफ देख कर बोली," हाँ वसुधा, ऐसी कोई बात नहीं है, बस घर और बाहर काम का प्रेशर ऊपर से बच्चों की पढाई बस यही सब मैनेज करते करते थोड़ा परेशान हो जाती हूँ, फिर बच्चों के दादा दादी की भी तबियत ठीक नहीं रहती तो वक्त भी नहीं मिल पाता। ये तो अच्छा है कि कॉलेज ग्रुप के बहाने महीने में कुछ घंटे सबसे मिल कर खुश हो जाते हैं"! उसकी बात सुन कर मुझे राहत मिली कि वो मुझसे नाराज किसी बात को लेकर नाराज नहीं है। मैं नीरज से अकेले बात करने से बचती आयी हूँ। अब जब ऑफिस शुरू किया है तो रश्मि मुझसे खुल कर बात करने लगी है, अपने घर और बच्चों की.....उसी से
मैंने पूछने की कोशिश की थी प्रीति और नीरज के रिश्ते में एक खिचाव की वजह..
पहले तो मुझे लगा कि मैंने गलत पूछ लिया है, कहीं ये जा कर सीधा ऐसे ही न बोल दे...."वसु नीरज और प्रीति परेशान रहते हैं अपने पैरेंटस की वजह से...वो लोग शुरू से ही अपने तरीके से घर को चलाते रहे तो शादी के बाद भी वो वैसे ही घर की बागडोर अब भी खुद ही संभाले रखना चाहते हैं, ऊपर से नीरज के बहन और जीजा भी अपने फैसले इन दोनो पर लादते रहे हैं, फिर ऊपर से ये कहना कि "बड़े घर की बेटी का रिश्ता हमने ठुकरा दिया क्योंकि वो हमारे तौर तरीके न समझती, तुम से रिश्ता जोड़ा कि तुम हमारे परिवार की हैसियत एक सी रही है तो तुम समझोगी पर यहाँ तो तुम चार कदम आगे निकल गयी उससे"! अब तुम बताओ वसु प्रीति जो खुद कमाती है, उसकी राय या सलाह लिए बिना हर छोटे बड़े फैसले सास, ससुर और ननद ही लेगी तो वो कैसे खुश रहेगी? रश्मि की बात बिल्कुल ठीक थी, प्रीति का गुस्सा और परिवार से असतुंष्ट होना जायज था।
नीरज अपने इस रिश्ते को भी सही से नहीं निभा रहा.....अगर नीरज उसकी बात को अहमियत देता तो शायद प्रीति इसी बात से खुश रहती कि कम से कम पति तो उसे समझता है.....रश्मि को मैंने मना कर दिया था इस बारे में किसी से भी बात करने से। उस दिन लगा कि सिर्फ प्यार से वाकई सब नहीं चलता, जब तक बाकी सब ठीक न हो तो कोई रिश्ता नहीं ठहर पाता.....मम्मी ने बिल्कुल ठीक कहा था जब वो नीरज के घर से आए थे....
रश्मि की बात खत्म होते ही सबसे पहले मुझे यही ख्याल तो आया था। नीरज के पैरेंटस प्रीति को भी ठीक से न अपना पाए और मुझे रिजेक्ट करके मेरा और हमारे परिवार का Example भी देते हैं।
धीरे धीरे हम छोटे छोटे काम करके अपने कदम मार्किट में जमा रहे थे। रोहित, राजीव और विद्या इन सबका सपोर्ट मिल ही रहा था......हैरानी की बात ये थी कि प्रीति ने भी सामने से फोन करके पूछा था कि कोई काम हो तो बता देना। मेरे लिए इतना ही काफी था कि उसने ऐसा सोचा।
रश्मि काम में पूरी हेल्प कर रही थी। उसका पति और बच्चे काफी सपोर्ट कर रहे थे तो वो टेंशन फ्री काम को सीख भी रही थी क्योंकि उसने पढने के बाद नौकरी नहीं की थी और न ही इस फील्ड से रिलेटिड कोई काम तो उसे मैं धीरे धीरे सब बताती भी जा रही थी......राजीव और रोहित ने भी हेल्प की हमें कुछ काम दिलवाने के लिए। सभी दोस्त तो अच्छे थे तो बस कभी फिक्र भी नहीं हुई....जो काम हम करते उनमें से अपने खर्चे निकाल कर आधे आधे कर लेते.....! सबसे बड़ी बचत हमारे ऑफिस का किराया न देने की थी। मैंने वरूण को देना चाहा पर उसने मना कर दिया। बाकी ते खर्चे तो थे ही। मेरी और रश्मि को काम पैसा कमाने के लिए उतना जरूरी नहीं था जितना कुछ करते रहने से था.....आरव कॉलेज से शाम तक आता था, हम दोनो की ही कोशिश रहती थी कि बच्चों के साथ भी टाइम बिताया जाए। इसलिए हम शाम 6-6:30 तक घर पहुँच ही जाती थी। आरव आने के बाद खुद के लिए दूध या फ्रूटस ले ही लेता था। मैं तो उसके लिए खाना भी बना कर आती थी। कई बार खाना खा लेता था। घर जा कर उसके साथ थोड़ी बातें करती तो हम दोनो को अच्छा लगता था। कई बार वो ऊपर बच्चों के पास कुछ देर बैठ आता तो कभी उनका बड़ा बेटा नीचे आ जाता। आरव मुझे बताए बिना कहीं नहीं जाता था और ज्यादातर कॉलेज की बातें भी बताने की आदत भी थी....जो इस उम्र के बच्चों में बहुत कम होती है। विद्या को वो मासी कहता था, उससे बात तो करता था पर बहुत कम......वे हमारे साथ कुछ दिन रहने आ जाती थी, पर फिर अपने घर चली जाती थी। आरव के आने के बाद विद्या जब आती तो हम दोनो मेरे कमरे में ही सो जाते बातें करते रहते और कभी कभार अपनी जरूरत को पूरी भी कर लेते.....! कभी कभार तो बस एक दूसरे का हाथ पकड़ कर ही सो जाते थे। विद्या और मेरे बीच कभी कभी बनने वाले रिश्ते की वजह से भी शायद विद्या से लगाव ज्यादा हो गया था। एक दिन नीरज का फोन आया कि वो मुझसे मिलना चाहता है वो भी अकेले....मैंने उसे ऑफिस में ही आने को कहा तो वो बोला नहीं संडे को मिलते हैं...तो मैंने उसे अपने घर पर बुला लिया। उसने बाहर के लिए कहा तो मैंने बोल दिया की घर पर भी मैं अकेले ही होती हूँ, तुम आ जाना। उसने शाम के लिए आने को कहा तो मैंने कहा ठीक है फिर मिलते हैं.....कहने को तो कह दिया कि आ जाओ, पर दिमाग तो उसके मिलने की वजह ढूँढ रहा था। जब भी हम सब दोस्तों के साथ मिले तो नीरज ने कभी भी मुझसे ठीक से बात नहीं की? फिर वो मुझसे अकेले क्यों मिलना चाहता है? सवाल तो बहुत सारे थे, और जवाब भी दिमाग खुद ही दे रहा था फिर भी किसी ठोस वजह पर नहीं पहुँच पायी तो मिल कर ही पता चलेगा सोच कर दिमाग से सब ख्यालों को झटकने की नाकाम कोशिश की....... दो दिन बाद हम मिलने वाले थे और मैं अगले दो दिन तक और परेशान रहने वाली थी......!!!!!
क्रमश:

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