हज़ार चौरासी की माँ - भाग 3 Mallika Mukherjee द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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हज़ार चौरासी की माँ - भाग 3

नाटक ‘हज़ार चौरासी की माँ’

मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी

बांग्ला नाट्य रूपांतर - शांति चट्टोपाध्याय

हिन्दी नाट्य अनुवाद - मल्लिका मुखर्जी

दृश्य 3

 

सोमू की माँ: सोमू....मेरे बेटे.... मेरे सोमू को वापस लाओ साहब...वापस लाओ... मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी। सोमू ने तो कुछ भी नही किया था फिर उस पर गोली कयों चलाई गई? क्यों चलाई?

सरोज: चिल्लाइए मत, कोई भी दूध का धुला नही है। इन समाजविरोधी, लुच्चे, लफ़ंगों  ने  पूरे शहर की नींद हराम कर रखी है। उनके लिए इतना दरद? निकलो यहाँ से, चलो-चलो हमारा समय नष्ट मत करो, जाओ यहाँ से...( डाँटते हुए सोमू की माँ को बाहर निकालता है....तभी सुजाता का प्रवेश)

सरोज:      कौन हैं आप?

सुजाता:      मैं मिसिस चेटर्जी.....

सरोज:      किसे देखने आए हैं?

सुजाता:      व्रती चेटर्जी.....मुझे फ़ोन करके बुलाया गया है।

(सरोज पाल टेबल के सामने कुर्सी पर बैठता है। फ़ाइल खोलकर नाम ढूंढता है।)

सरोज:      हाँ, व्रती चेटर्जी, नंबर एक हजार चौरासी, वन ज़ीरो एइट फोर....चलिए, अंदर....व्रती की पहचान करनी है।

 (दोनों अंदर जाते हैं. ..अन्दर से ही आवाज आती है....)

सरोज:     वेइट.. वेइट.. इतनी देर तक इंतज़ार किया है, कुछ देर और रुक जाइए। क्या आप मुझे अपने बेटे के शरीर पर कोई निशान बता सकती हैं?

सुजाता: उस के गले के बायीं तरफ़ एक बड़ा तिल है।

 (लाश के पास खड़ा व्यक्ति चादर हटाकर तिल देखता है....)

व्यक्ति: हाँ.....हाँ....है साहब।

सुजाता:  क्या मैं उसका चेहरा देख सकती हूँ?

सरोज: नहीं, चेहरा मत देखिए....  

सुजाता: अगर चेहरा नही देखुंगी तो पता कैसे चलेगा कि यही व्रती है?

सरोज:     चेहरा देखकर क्या करेंगी आप? चेहरा तो बचा ही नहीं।

सुजाता:     नहीं.... मुझे  चेहरा देखना ही होगा। व्रती...व्रती...मेरे बेटे 

    (चिल्लाकर रोने लगती है। कुछ पल में दोनों का स्टेज पर प्रवेश)

सुजाता:     क्या मैं उसे घर ले जा सकती हूँ?

सरोज:     नही यह संभव नहीं, माफ़ कीजिए।

सुजाता:     क्या मैं अपने बेटे को अपने घर नहीं ले जा सकती?

सरोज:     नहीं, यह हमारे कानून के ख़िलाफ़ है। लाश को आप के हवाले नहीं किया जा सकता।

    (बहुत सारे स्वर एक साथ गूंज उठते हैं।) 

    लाश को आप के हवाले नहीं किया जा सकता 

सुजाता :   उसका....

सरोज :    वह बंदोबस्त हमने कर लिया है। 

सुजाता:     मतलब?

सरोज: उसका दाह संस्कार हम किसी भी समय कर सकते हैं। सॉरी, मिसिस चेटर्जी हमारे पास समय नहीं है, प्लीज़।  

(स्टेज पर अंधेरा। सोमू की माँ के घर का दृश्य बनायें। टेबल पर से फाइलें हटा ली जाएँ। टेबल क्लोथ बिछा दें। टेबल पर पानी का जग और दो ग्लास रखें। रोशनी सुत्रधार के ऊपर)

सुत्रधार: व्रती की मौत के पहले का प्रश्न.. व्रती वर्तमान समाज व्यवस्था में यकीन क्यों नही करता था? व्रती की मौत के बाद का प्रश्न.... बड़ी दौड़ धूप करके दिव्यनाथ चेटर्जी ने व्रती की तो फाइल बंद करवा दी लेकिन क्या वे उसके क्रांति के जोश को ख़त्म कर पाए? व्रती के जाने से क्या सब कुछ ख़त्म हो गया? यही सवाल दिन-रात तीर की तरह चुभते रहते हैं सुजाता देवी के मन में। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होता जा रहा है। ठीक दो वर्ष बाद आज 17 जनवरी 1972, व्रती का जन्मदिन है आज। आज ही के दिन उनकी छोटी बेटी तुली की सगाई का दिन निश्चित हुआ है। इस कोठी में खो गया है व्रती, उस की हर चीज, यहाँ तक कि उसकी तसवीर को भी हटा दिया गया है। कोई उसे याद रखना नही चाहता। पर सुजाता देवी? उनके लिए आज का दिन एक विशेष दिन है। वे व्रती की स्मृति को सदा जीवंत रखना चाहती हैं, इसीलिए आज उन्हें जाना है जादवपुर, सोमू के घर....

 (रोशनी सूत्रधार के चेहरे से हट जाती है। स्टेज पर रोशनी। सोमू की माँ का घर। वे कुर्सी पर बैठकर कुछ सब्जी काट रही हैं। दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़.....)