Hazar Chorasi ki Maa - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

हज़ार चौरासी की माँ - भाग 1

“हज़ार चौरासी की माँ”- एक माँ की मर्मस्पर्शी कहानी

अपने जीवनकाल में साहित्य अकादमी (1979), पद्मश्री (1986), ज्ञानपीठ (1996), रेमन मैग्सेसे (1997), पद्मविभूषण (2006) जैसे सम्माननीय पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी (14 जनवरी 1926 – 28 जुलाई 2016) ने कई अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाए। उन्होंने पत्रकारिता से लेकर लेखन, साहित्य, समाज सेवा एवं अन्य कई समाज हित से जुड़े किरदारों को बखूबी निभाया। उन्होंने आदिवासियों के हित में भी अपना अमूल्य सहयोग दिया। अपने जीवन में न केवल बेहतरीन साहित्य का सृजन किया बल्कि समाज सेवा के विभिन्न पहलुओं को भी समर्पण के साथ जिया।

उनके बहुचर्चित उपन्यास ‘हज़ार चौरासी की माँ’ में एक ‘माँ’ सुजाता की मर्मस्पर्शी कहानी के साथ-साथ साथ 1970 के दशक के बंगाल मे नक्सलवाद आंदोलन मे हो रहे हिंसक संघर्ष की कहानी भी समान रूप से चलती है। उस समय छात्रों, गरीबों और आम जनता में अपनी सरकार को लेकर भयंकर असंतोष फैला हुआ था। उच्च मध्यमवर्गी परिवार की बहू सुजाता चेटर्जी का बेटा व्रती भी एक नक्सलवादी गिरोह का सदस्य बन जाता है। माँ सुजाता चेटर्जी एक पढ़ी-लिखी, कामकाजी महिला है, अपने जीवन में रिश्ते निभाने में ही उलझी रहती है। वे अपने बेटे व्रती से बहुत प्यार करती है, लेकिन उस के लिए यह गुत्थी बनकर रह जाती है कि बेटे ने जो किया वो क्यों किया ?

एक दिन व्रती पुलिस के हाथों मारा जाता है। जब उसके मृत्यु की खबर उसके परिवार तक पहँचायी जाती है तो उनके परिवार के लिए यह बात बड़ी शर्मनाक बन जाती है। व्रती के पिताजी श्री दिव्यनाथ चेटर्जी अपनी सारी पहुँच लगाकर इस बात को दबा देते हैं कि व्रती एक नक्सलवादी गिरोह का सदस्य था।

सुजाता व्रती से जुड़े लोगों से मिलती हैं। सुजाता को असहनीय दु:ख होता है कि एक माँ होकर भी वह अपने लाड़ले बेटे को पहचान न सकी। ‘खून के रिश्ते की व्यर्थता’ और ‘खून के रिश्ते की तीव्रता’ वे एक साथ महसूस करती हैं। उसी क्षण व्रती के साथ सुजाता का रिश्ता गहरा हो जाता है, और दिव्यनाथ के साथ उनका रिश्ता खत्म हो जाता है।

गमले में पौंधे को पानी देकर या किताबें पढ़कर अपना जीवन व्यतीत करने वाली सुजाता अब सही मायनों में जीने की ठान चुकी है। सुजाता व्रती की स्मृति के सच्चे हिस्सेदारों से मिलकर शांति पाती हैं। अपने ही घर में जानबूझ कर नष्ट किया जाने वाला व्रती यहाँ पर जी रहा है। सुजाता में एक विद्युत शक्ति प्रकट होती है। वे व्रती के जीवनमूल्यों को अपने साथ लेकर चलना चाहती हैं। उन्हें इस बात का पछतावा है कि इस शक्ति को प्रकट करने वाला व्रती आज जीवित नहीं है। व्रती भले ही प्रत्यक्ष रूप में नहीं है, पर परोक्ष रूप में तो उनकी साँसों में समाया हुआ है। सुजाता अपने इस स्व की पहचान तक, अपने अस्तित्व तक कैसे पहुँची है, उसके लिए इस उपन्यास के चारों विभागों से गुज़रना बहुत ज़रूरी है।

वर्ष 2014 में जब हमारे कार्यालय के वार्षिकोत्सव में गुजराती नाटक के साथ, एक हिन्दी नाटक के मंचन की बात हुई, तो मुझे अचानक अपनी निजी पुस्तकालय में रखी बंगाली पुस्तक “निर्वाचित एकांक संभार” याद आ गई। सनातन गोस्वामी ने इस पुस्तक में पंद्रह एकांकी नाटकों का संकलन किया है। मैं अपने भाई वरुण के ससुर महाशय, आदरणीय मनोरंजन दत्त की आभारी हूँ, जिन्होंने साहित्य में मेरी रुचि को जानकर मुझे यह पुस्तक अपने गुजरात दौरे के दौरान उपहार के रूप में दी थी।

एक अभिनेत्री होने के नाते, मैं इस पुस्तक में शामिल सभी नाटकों से बेहद प्रभावित थी। इस संकलन में श्री शांति चट्टोपाध्याय द्वारा महाश्वेता देवी के बांग्ला उपन्यास “हज़ार चौरासी की माँ” का इसी नाम से किया गया नाट्य रूपांतरण भी शामिल है, जो मेरे दिल के बहुत करीब है। मैंने इस नाटक का हिन्दी अनुवाद किया और कार्यालय की साहित्यिक एवं मनोरंजन क्लब की ओर से इस नाटक का मंचन करने की अनुमति मिल गई। मुझे बतौर अभिनेत्री सुजाता चेटर्जी का किरदार निभाने का अवसर मिला। रीना अभ्यंकर ने नाटक को निर्देशित किया।

मुझे विश्वास है कि मेरे पाठकों को इस बांग्ला नाटक का हिन्दी अनुवाद अवश्य पसंद आएगा।

मल्लिका मुखर्जी,

अहमदाबाद, गुजरात.

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हज़ार चौरासी की माँ

मूल बांग्ला उपन्यास - महाश्वेता देवी

बांग्ला नाट्य रूपांतर - शांति चट्टोपाध्याय

हिन्दी नाट्य अनुवाद - मल्लिका मुखर्जी

चरित्र : सूत्रधार, दिव्यनाथ, सुजाता, व्रती, सरोज, सोमू की माँ, नन्दिनी

दृश्य 1

(परदा खुलता है। बैठक कक्ष का दृश्य। डिम लाइट, बेकग्राउंड में संगीत बज रहा है। संगीत के ताल पर कुछ युवक-युवतियों के नृत्य की आवाजें भी आ रही हैं। दिव्यनाथ चेटर्जी के निवास स्थान ‘चेटर्जी विला’ में उन की छोटी बेटी तुली की सगाई का प्रसंग है। धीरे-धीरे संगीत की आवाज कम होती जा रही है। स्टेज  पर सूत्रधार का प्रवेश, रोशनी सूत्रधार के चेहरे पर है। सूत्रधार बोलना शुरु करते ही संगीत की आवाज़ थम जाती है।)

सूत्रधार: यहीं से शुरु होती है नाटक की कहानी। पिछले दो साल में इस कहानी के अस्तित्व पर से कितने आँधी-तूफाँ गुजर चुके हैं। हर घाव पर लगा है  मरहम। सब कुछ पहले जैसा हो चला है...हाँ पहले जैसा। शेयर बाजार में शेयर के दाम उठ-गिर रहे हैं, सोने के दाम आसमान को छू  रहे हैं, रोज़मर्रा की चीजों के बढ़ते दामों ने आम आदमी  की कमर तोड़ दी है। विश्वबेंक ने ऋण मंज़ूर कर दिया है। चुनाव हो रहे हैं, रेलियाँ आयोजित हो रही है, विजयोल्लास मनाया जा रहा है,  खादी  वस्त्रधारी नेता  शपथ ले रहे हैं। कहा जाता है अब  हर कोई चैन से सो सकता है क्यों कि सब से बडे प्रजातान्त्रिक देश में उन हजारों युवाओं के नाम मिट चुके हैं जिन्हों ने सब की नींद हराम कर रखी थी।

व्रती  चेटर्जी, जिस की कहानी मैं कहने जा रहा हूँ, उस की तस्वीर इस ‘चेटर्जी विला’ की तीसरी मंज़िल के एक कमरे टंग चुकी है। शहर के प्रतिष्ठित चार्टड एकाउन्टन्ट की इस आलिशान कोठी में उनकी छोटी बेटी तुली की सगाई की रस्म हो रही है। पार्टी चल रही है। लोग इसका आनंद उठा रहे हैं, लेकिन विशाल की माँ, सुजातादेवी, इस वक़्त कहाँ है? इस वक्त कहाँ है सुजातादेवी?

(स्टेज पर सुजाता का प्रवेश... सुजाता सोफ़े पर बैठती है... गीत-संगीत की आवाज़ तेज हो रही है, हँसी की आवाज़ सुनाई दे रही है।)

सुजाता: ओह! स्टॉप इट, बंद करो यह नाच-गाना। नहीं सही जाती मुझ से यह भयानक यातना.....बंद करो! इन्सान की याददाश्त क्या इतनी कमजोर होती है? आज व्रती का जन्मदिन है, किसी को भी याद नहीं! एक आग जल रही है मेरे भीतर.... प्लीज़... बंद करो यह नाच-गाना। भगवान के लिए बंद करो.....

(नेपथ्य में संगीत की आवाज़ धीमी हो जाती है। सुनाई देती है हँसने की आवाज़, साथ ही कुछ बोलने की.....).

पहली आवाज़ : अ केन्सरस ग्रोथ ऑन द बॉडी ऑफ डेमोक्रेसी...

दूसरी आवाज़ : मिसगाइडेड यूथ, मनमौजी लड़के....दुस्साहसी

तीसरी आवाज़ : थरोली अनफीलिंग वाइफ़, शी हेज़ स्पोइल्ड हर सन....

(हँसने की आवाज़ आ रही है।)

सुजाता: नहीं! नहीं! वो मेरा स्पोइल्ड बेटा नहीं था। व्रती, मेरा बेटा मेरा गौरव था। आज सारा दिन मैंने उसे ढूंढा है। बेटे, तुम भागना नहीं। कहाँ भागोगे? पुलिस ऑफिसर सरोज पाल के हाथ में रिवोल्वर है। फिर कहीं आग लगी है, वो देखो.... हजारों व्रती दौड़ रहे हैं। जनता, छात्र या सारे बंगाल के युवा दौड़ रहे हैं। और आप? आप लोग क्या नीरव दर्शक बन बैठे रहेंगे? मेरे अंदर कुछ हो रहा है। मैं अब इस यातना को बर्दाश्त नहीं कर सकती। नहीं....अब बर्दाश्त नहीं कर सकती....

(सुजाता चेटर्जी असह्य यातना से छटपटा रही है। काले नेट के बने परदे के पीछे से रोशनी जल उठती है। एक नारी मूर्ति दिख रही है, जो नन्दिनी है।)

नारी मूर्ति:  एक्साइटेड मत होइए सुजाता देवी। अस्वस्थता का मतलब ख़ुद को मारना नहीं है। उस टेबल पर पेन किलर टेबलेट और पानी रखा है, ले लीजिए। फिर देखिए, दर्द कुछ ही पलों में कैसे गायब हो जाता है।

सुजाता:     कौन? कौन हो तुम?

नारी मूर्ति:   मैं? मैं एक विस्मय हूँ, अब मेरा कोई परिचय नहीं है। सब कुछ ख़त्म होने से पहले हम ज़रूर मिलेंगे, लेकिन जिस तरह से आप टूट चुकी हैं, उससे तो काम नहीं चलेगा न? हर मृत्यु, मृत्यु नहीं होती सुजाता देवी, हर जीवन जीवन भी नहीं होता। जीने योग्य जीवन को बचाना है तो मृत्यु से गले मिलना होगा, मरना ही होगा। समाज के इस दिखाऊ जीवन का मुखौटा आप लोगों को ही उतारना होगा। आप सिर्फ व्रती की माँ नहीं हैं, उन एक हज़ार तिरासी युवाओं की माँ भी हैं, जिन्होंने विजयपथ पर अपने प्राण खोए हैं।

(नारी मूर्ति के चेहरे से रोशनी हट जाती है। नेपथ्य में नाटक की घोषणा होती है। घोषणा समाप्त होते ही स्टेज पर रोशनी होती है। सोफ़े पर बैठी सुजाता चेटर्जी उठ खड़ी होती हैं। अब उनकी मानसिकता बदल चुकी है।)

सुजाता: हाँ..... मैं हूँ  हज़ार चौरासी की माँ,  मैं सुजाता चेटर्जी, बड़े घर की बहू। एक बैंक में काम करती हूँ। मेरे पति दिव्यनाथ चेटर्जी, चार्टर्ड एकाउन्टन्ट हैं। एक प्रतिष्ठित फर्म के मालिक हैं। छप्पन वर्ष के हो गए हैं, फिर भी अपने यौवन को बचाए रखना चाहते हैं। सज-धज कर अपनी पी.ए. मिस दामिनी के साथ डिनर पार्टी, नाइट क्लब में व्यस्त रहते हैं। बड़ा बेटा शेख़र, बिल्कुल पिता की तरह, एक ब्रिटिश फर्म में एग्जीक्यूटिव है। छोटी बेटी तुली, एक गुजराती बिझनेसमेन के बेटे के साथ जिसका विवाह होने जा रहा है। और व्रती.....व्रती मेरा छोटा बेटा है, सब से अलग। मैं उसे इस घर के माहौल से दूर रखना चाहती थी, तभी तो उस का कमरा तीसरी मंज़िल पर था। कभी-कभी वह मुझे कहता, माँ...माँ...

(कुछ पल के लिए स्टेज पर अंधेरा....उसी वक़्त व्रती स्टेज पर आता है। रोशनी होती है। व्रती  अपनी माँ से कहता है-)

व्रती: जानती हो माँ, बचपन में जब मैं सुबह उठकर अपने कमरे की खिड़की से ऊपर की तरफ़ देखता... तब मेरी आँखों में समा जाता था विस्तृत नीला आकाश, सुर्ख़  रंग का ज्वलंत अग्निपिंड सूरज, कतारबद्ध उड़ते पंछियों का दल और नज़र पड़ती जब नीचे धरती की ओर, तो दिखाई देता मुझे रास्ते के उस पार रखा कूडेदान, पास ही बिखरी झूठन से खाना ढूंढते हुए कुछ भूखे लोग! वहीं खडा वो अधनंगा बच्चा, कातिल ठंड में उष्मा पाने की उसकी प्रचंड चेष्टा! पता है माँ, तब तुम्हारी दी हुई शॉल जो मेरे बदन से लिपटी रहती थी न, वह बर्फ़ की तरह ठंडी हो जाती। मुझे ‘चेटर्जी विला’ की उस खिड़की से स्वर्ग और नर्क एक साथ दिखाई देते! समाज में इतनी विषमता क्यों है माँ? मैं...मैं इस समाज की पूरी सिस्टम को तहस-नहस कर देना चाहता हूँ।

सुजाता:    इतना बड़ा समाज और सदियों से चला आ रहा ये सिस्टम, तुम अकेले कैसे बदल पाओगे? यह पागलपन छोड़ दो बेटे, अपनी पढ़ाई में ध्यान दो।

व्रती  : (माँ की बात को काटते हुए ) मेरी प्यारी माँ, किसी न किसी को तो आगे आना पड़ेगा न? अगर कुछ न कर पाए तो कम-से-कम इस सड़े हुए समाज को एक धक्का तो दे सकते हैं? मैं जानता हूँ हमारे पास ताकत बहुत कम है, पर हमारा संकल्प बड़ा दृढ़ है माँ...

सुजाता: तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा डर लगता है। तुम बहुत बदल गए हो बेटे।

व्रती : तुम निश्चिन्त रहो माँ, कुछ नहीं होगा मुझे।

सुजाता: अरे हाँ! याद आया, कल तुम्हारा जन्मदिन है। बोलो क्या खाओगे?

व्रती : मेरी पसंद तुम्हें पता है माँ...।

(तभी फ़ोन की घंटी बज उठती है। व्रती विशाल दौड़कर फ़ोन उठाता है।)

व्रती : हाँ....हाँ...राजू ... अभी निकलता हूँ। बस आ ही रहा हूँ, हाँ...हाँ... (माँ की ओर पलटकर उनके पैर छूता है।) चलता हूँ माँ.....

सुजाता: जहाँ भी जाओ, जल्दी घर वापस आना बेटे। देर रात तक बाहर रहोगे तो मैं नाराज़ हो जाऊँगी। ठीक है?

व्रती : ठीक है। (बाहर चला जाता है। सुजाता दरवाज़ा बंद करने जाती है, वापस आकर सोफ़े पर बैठती है। समय द्रुत गति से बह रहा है। घड़ी की टिक-टिक आवाज़ तीव्र गति से सुनाई देती है। रात बढ़ चुकी है। कोलिंग बेल बज उठती है। सुजाता उठकर दरवाज़ा खोलती है...)

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