कहानी प्यार कि - 31 Dr Mehta Mansi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानी प्यार कि - 31

" आई एम सोरी मोहित पर में तुम्हारे सामने आकर तुम्हारी होली खराब करना नही चाहती..." अंजली एक कोने में छुपकर मोहित को देखती हुई बोली...

" शायद ये मेरा भ्रम ही था.. वो यहा क्यों आएगी..!" मोहित निराश होता हुआ बोला और फिर वहा से चला गया..

मोहित के जाते ही अंजली ने चैन की सांस ली..

आज सब होली खेल खेलकर बहुत ही थक गए थे इसीलिए रात को सब जल्दी सो गए...

अगली सुबह संजना फ्रेश होकर नीचे आई...

" ओह बहुरानी उठ गई..! देखो तो सूरज सिर पर चढ़ आया है और ये है की अभी नीचे आ रही है..." वैशाली चाची मुंह बिगाड़ती हुई बोली...

संजना को यह सुनकर बहुत बुरा लगा.. पर वो उनके सामने कुछ बोली नहीं..

" क्या कह रही हो वैशाली ? बच्ची है.. कल की थकान की वजह से देर हो गई होगी.. उसमे क्या..! और इतनी भी देर नहीं हुई है साढ़े दस ही बजे है... आओ बेटा नाश्ता कर लो.." अनुराधा जी ने वहा आते हुए कहा..

यह सुनकर संजना के चहेरे पर मुस्कुराहट आ गई..
और वैशाली मुंह फेरकर नाश्ता करने लगी..

संजना सब के साथ नाश्ता करने बैठ गई..
" अनिरूद्ध क्यों नहीं आया नाश्ता करने ..? " अखिल जी ने संजना से पूछा..

" वो तो अभी तक सो रहा है..." संजना थोड़ी जीजक के साथ बोली..

" क्या ? वो नालायक अभी तक सो रहा है ? और ताने सिर्फ मेरी गुड़िया को दिए जा रहे है! " दादी ने वैशाली की और देखते हुए कहा..

" कौन सो रहा है अब तक दादी ? " अनिरूद्ध नीचे आता हुआ बोला..

सब ने अनिरुद्ध की तरफ देखा .. तो वो तैयार होकर वहा खड़ा था..

" अरे ! ये कैसे हुआ.. मैं जब आई तब तो ये सो रहा था..." संजना सोचती हुई मन में बोली..

तभी अनिरुद्ध ने संजना की तरफ देखा ..
" ज्यादा सोचो मत.. संजू.. तुम्हारा अनिरुद्ध क्या क्या कर सकता है उसका अब तक तुम्हे कोई अंदाजा भी नहीं.." अनिरूद्ध स्माइल करता हुआ मन में बोला..

" तुम दोनो को क्या पूरी रात नही मिलती है की तुम दोनो यहां भी ऐसे आंखो से बाते करते हो..." सौरभ ने अपना खंभा अनिरुद्ध को मारते हुए कहा ..
तब अनिरुद्ध का ध्यान संजना पर से हटा..

अनिरूद्ध यह सुनकर हड़बड़ा गया और जल्दी से जाकर खुर्सी पर बैठ गया..
सौरभ भी पीछे पीछे नाश्ता करने बैठ गया..

" वैशाली चाची आपका फैशन डिजाइनर का काम कैसा चल रहा है ..? " सौरभ ने ऐसे ही खाना खाते हुए पूछ लिया..

पर यह सुनते ही अचानक वैशाली का निवाला अपने गले में ही अटक गया और वो खांसने लगी...

मनीष अंकल ने तुरंत ही वैशाली को पानी दिया..

" क्या हुआ चाची..? "

" कुछ नही बेटा.. वो बस गले में कुछ अटक गया..था.." वैशाली ने हस्ते हुए सौरभ से कहा..

" आपने बताया नही आपका काम कैसा चल रहा है ? "

" अच्छा चल रहा है.. " वैशाली ने सिर्फ छोटा सा जवाब दे दिया..

" तो तुम दोनो लंदन वापस कब जाने वाले हो..? " दादी ने इस बार मनीष और वैशाली दोनो से पूछा..

यह सुनते ही दोनो एकदुसरे की तरफ देखने लगे..

" वो वो दादी .. हमने सोचा है की हम कुछ वक्त यहां अपने परिवार के साथ बिताए.. इसीलिए कुछ महीने हम यही है आपके साथ.." मनीष थोड़ा जीजकता हुआ बोला..

" अरे ये तो बहुत ही अच्छी बात है..इसी बहाने हम सब साथ में एंजॉय कर सकेंगे..." अनुराधा जी मुस्कुराती हुई बोली..

पर अनिरुद्ध का ध्यान मनीष और वैशाली पर था.. दोनो कुछ परेशान से लग रहे थे...
" चाचा चाची इतने परेशान क्यों लग रहे है..? कोई बात तो है जो उनको परेशान कर रही है.. डायरेक्ट पुछू क्या उनसे...? नही नही चाचू ऐसे तो बताएंगे नही और चाची से तो बात करना ही बेकार है..." अनिरूद्ध इसी सोच में डूब गया था..

" अनिरूद्ध...अनिरूद्ध.." संजना ने दो बार उसे बुलाया पर अनिरुद्ध ने कुछ जवाब नही दिया..

" अनिरूद्ध..." तीसरी बार संजना ने अनिरुद्ध को हिलाते हुए कहा..

" हा ..." उसने तुरंत कहा..

" कहा खोए हुए हो..? तुम्हारी प्लेट खाली हो चुकी है.. कब से पूछ रही हू की तुम्हे कुछ चाहिए ? "

" नही नही मेरा हो गया..." अनिरुद्ध ने इतना कहा और खड़ा होकर वहा से चला गया..

" हेलो शर्मा जी ... अनिरूद्ध बोल रहा हु... ध्यान से मेरी बात सुनिए... " अनिरूद्ध ने शर्मा जी को फोन लगाकर उनको सब बात बताई..

" ठीक है आपका काम हो जायेगा..." शर्माजी के इतना कहने पर अनिरुद्ध ने फोन कट कर दिया..

इस तरफ मोहित कुछ काम से ओब्रॉय कंपनी में जा रहा था..

कंपनी के बाहर उसने गाड़ी रोकी और वो अंदर की और जाने लगा.. तभी अंजली अपने पापा को छोड़ने के लिए वहा आई..
अंजली ने मोहित को जाते देख लिया तो वो तुरंत छिप गई.. मोहित अंदर की और चला गया.. अंजली के पापा के जाने के बाद अंजली थोड़ी देर के लिए वही कार में बैठ कर अंदर की तरफ देखती रही.. वो कुछ अपने ख्यालों में खो सी गई थी..

" अरे ! मेरी फाइल..? शायद गाड़ी में ही रह गई है... " मोहित को अचानक से याद आया .. वो तुरंत बाहर फाइल लेने आने लगा..
अंजली का ध्यान अभी भी वहा नही था...

मोहित उसकी गाड़ी के पास से निकल गया.. तभी अंजली का ध्यान अचानक से मोहित पर गया.. उसने तुरंत गाड़ी शुरू की और तेजी से घुमाई... मोहित फाइल लेकर मुड़ा तो तेजी से गाड़ी उसके पास से निकल गई.. मोहित एक दम से पीछे हो गया...

" दिखाई नही देता है क्या...? " मोहित गुस्से में जोर से चिल्लाया..

तभी उसे गाड़ी के मिरर में अंजली का चहेरा दिखाई दिया... अंजली जल्दी में अपना चहेरा ढकना ही भूल गई थी...

मोहित ने अपनी आंखे बंध कर फिर से देखा पर तब तक वो वहा से जा चुकी थी...

" ये मुझे क्या हो गया है ..? हर जगह अंजली क्यों दिखाई दे रही है ..? " मोहित थोड़ा सा परेशान हो गया था..

" पर दो बार मेरी आंखे मुझे धोका नही दे सकती है.. मैने देखा वो अंजली ही थी.. पर वो यहां कैसे हो सकती है.." मोहित को कन्फ्यूजन में कुछ समझ नहीं आ रहा था.. और अपनी आंखो पर यकीन भी नही कर पा रहा था..

" अब मुझे पता लगाना होगा की अंजली इस वक्त इस शहर में है या नही..." मोहित ने डिसाइड किया और फिर अपने काम के लिए अंदर चला गया...

तभी मोहित की नजर अंजली के पिता जतिन खन्ना पर गई...
" इनको मैने पहले भी कही देखा है...पर कहा ..? " मोहित ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा पर उसे कुछ याद नहीं आया..

" एक काम करता हु उनको जाकर ही पूछ लेता हु.."
मोहित जतिन खन्ना के पास गया..

" गुड मॉर्निंग अंकल " मोहित ने उनके पास जाते हुए कहा..

" गुड मॉर्निंग बेटा..." जतिन खन्ना ने भी अच्छे से मोहित को विश किया..

" अंकल क्या में आप से एक बात पूछूं ? "

" हा पूछो..."

" वो हम कही पहले मिले है क्या..? "

" हम...? मुझे भी ऐसा ही लग रहा है ... पर मुझे याद नहीं आ रहा है की हम कहा मिले थे...? " जतिन खन्ना याद करने की कोशिश कर रहे थे..

" हा याद आया मैंने तुम्हे अनिरुद्ध के रिसेप्शन पार्टी में देखा था...." वो हस्ते हुए बोले..

"ओह हा....." मोहित अभी भी श्योर नही लग रहा था..

" ठीक है अंकल मैं चलता हु बाय " इतना कहकर मोहित वहा से चला गया..

" मुझे तो याद नही है की मैने इन्हे पार्टी में देखा था या नही...! खेर छोड़ो मुझे इससे क्या..." बोलकर मोहित अपने काम में लग गया..

इस तरफ अंजली अपनी बालकनी में खड़ी हो कर करन के घर की तरफ देख रही थी...

" अभी तक गया क्यों नही ये ? " अंजली लंबी हो हो कर करन के घर में देखने की कोशिश कर रही थी..

तभी करन घर से बाहर आया.. ब्लैक शर्ट, जींस और गोगल्स लगाए हुए वो बड़ा ही हेंडसम लग रहा था..

" हाये... ये कितना हॉट लग रहा है..." किंजल उसे देखकर बोली..

" यहां कोई ऐसी लगा दो.. बहुत गर्मी बढ़ गई है..." किंजल ने अपने माथे पर आए पसीने को पोछते हुए कहा.. और करन को जाते देखने लगी..

तभी करन की नजर ऊपर खड़ी किंजल पर पड़ी..

उसने मुड़कर किंजल की तरफ देखा तो किंजल स्माइल करती हुई उसे ही देख रही थी..

करन ने एक बार पीछे देखा पर वहा तो उसके अलावा कोई नहीं था.. फिर करन वहा से थोड़ा दूर होकर खड़ा हो गया पर किंजल अभी भी मुस्कुराती हुई ऐसे ही खड़ी थी जैसे वो कही ख्यालों में खो गई हो..

" ओ हेलो...! " करन जोर से बोला...

पर किंजल ने मानो कुछ सुना ही नही..

" किंजल...." करन जोर से चिल्लाया..

" हा...कौन है ..? " किंजल घबराहट में इधर उधर देखती हुई बोली..

" इधर इधर ... यहां सामने..." करन ने चुटकी बजाते हुए कहा..

किंजल ने करन को देखा तो शॉक्ड हो गई

" तुम यहां ..? मतलब कैसे..? "

" मैंने कहा तो था में यही रहता हु..."

" हा पर तुम तो चले गए थे ना..."
यह सुनते ही करन उसे घूरते हुए देखने लगा..

" हा जा तो रहा था पर तभी मैने किसी पागल को अकेले अकेले मुस्कुराते हुए देखा तो मैंने सोचा इसे देखकर थोड़ा मजा ही ले लेता हु..."
करन ने स्माइल करते हुए कहा और फिरसे सीरियस हो गया..

किंजल समझ गई की करन उसे ही सुना रहा था तो वो चुप हो गई..और फिर उदास होकर अंदर चली गई..

" अरे ! आज ये सूरज कहा से उगा है..." करन ऊपर आसमान की और देखते हुए बोला..

" सूरज तो अपनी जगह पर ही है ...तो फिर ये बिना जवाब दिए ऐसे क्यों चली गई.. अजीब लड़की है.. ना ही कभी समझ आई और ना ही कभी आएगी..." इतना बोलकर करन भी वहा से चला गया..

" कितने अच्छे मूड का भाजी पाऊं करके चला गया... खडूस कहीं का.. मुझे पागल कहता है मुझे...! अगर मेरा बस चलता ना तो उसके सारे दांत तोड़ देती.. फिर भले ही घूमता बिना दांतो का हीरो बनकर.. " किंजल गुस्से में दांत भिसते हुए बोली जा रही थी..

तभी संजना का फोन आया...

" हा बोल..." किंजल ने फोन उठाते हुए कहा..

" अरे ऐसे क्यों बोल रही हो... अब मैंने क्या किया ? " संजना किंजल की गुस्से भरी आवाज सुनकर बोली..

" नही यार तुमने कुछ नही किया... वो करन..."
किंजल इतना बोलते ही अटक गई..

" क्या ? तुमने अभी अभी करन कहा...? "

" हा वो वो यार इस मोहल्ले में ही रहता है हमारे घर के सामने..."

" क्या बोल रही हो... ये तो बहुत अच्छी बात है.."

" क्या अच्छी बात है.. मुझे रोज रोज अब कुछ सुनाएगा अभी अभी मुझे पागल बोलकर गया है... अब ना जाने क्या क्या कहेगा..."

" पर तुमने ऐसा क्या किया की उसने तुम्हे पागल कहा."

" मैंने तो कुछ भी नही किया था में तो बस उसे जाता हुआ देखकर मुस्कुरा रही थी.."
यह सुनकर संजना जोर जोर से हसने लगी..

" में इतने गुस्से में हु और तुम हो की हस रही हो.. ? " किंजल चिड़ती हुई बोली..

" ओके सोरी बाबा ... पर तू ऐसे अकेली अकेली मुस्कुराएगी तो तुम्हे वो पागल ही कहेगा ना..."

" तुम वो बात छोड़ा ना संजू... ये बता की फोन क्यों किया ? "

" तुम्हे कुछ बताना था इसीलिए.."

" क्या बताना था...? "

" ऐसे नही मिलके बताती हु.. तुम क्या यहां आ सकती हो
? "

" हा आती हु अभी.. "

" तो फिर मिलते है बाय जल्दी आना.."

संजना अपने कमरे में किंजल का इंतजार कर रही थी..

तभी किंजल वहा आई..

" कैसी है संजू..." किंजल ने उसे गले लगाते हुए कहा..

" में ठीक हु.. तू बता..."

" मेरा तो तू जानती ही है .. अभी तो बताया तूजे फोन पर.."

" हा राइट...पर तू ये बता की होली पर यहां क्यों नही आई...? "

" वो में आना तो चाहती थी पर सभी महोल्ले वालो ने बहुत कहा की हम उनके साथ होली मनाए तो फिर वही रूक गए .."

" ओह.. तो फिर ठीक है..."

"तू ये बता की कैसा रहा तेरा हनीमून...हा " किंजल ने संजना को कंधा मरते हुए शरारत से कहा..

" तू भी ना .. वो में क्यों बताऊं..? जब तेरा हनीमून होगा तब तुझे पता चल जायेगा..."

" यार ऐसा मत कर.. तुझे तो पता है मेरा हनीमून ही नही होने वाला.."

" क्यों? तेरा हनीमून क्यों नही होगा. ..? "

" तुझे तो पता है ना... करन के अलावा में किसी और के बारे में सोच भी नही सकती और वो तो ..."

" अरे मेरी भोली किंजू... तेरी शादी भी होगी और हनीमून भी और वो भी तू जिसे पसंद करती है उसके साथ.. मुझे पूरा भरोसा है अपने भगवान पर..."

" पर कैसे संजू...? "

" वो ऐसे की करन की शादी नही हुई है और ना ही अब मोनाली उसकी लाइफ में है..."

किंजल को यह सुनकर अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हुआ..

" क्या क्या मैने सही सुना या फिर मेरे कान बज रहे है..." किंजल कान में अपनी उंगली डालकर उसे ठीक करती हुई बोली...

" तुमने बिल्कुल सही सुना किंजु.... "

" पर ये कैसे हो सकता है ...? "

किंजल का सवाल सुनकर संजना ने पूरी बात उसे बताई... टोरंटो में जो भी हुआ था वो सब उसे बताया..

" मैं पहले से ही जानती थी की यह मोनाली बहुत ही गिरी हुई है पर ये इस हद तक भी जा सकती है ये मुझे नही पता था...करन पर क्या गुजरी होगी जब उसने उसे छोड़ने की बात कही होगी..." किंजल की आंखे नम हो गई थी...

" हा किंजल... और करन इसी बात का बदला अनिरुद्ध से ले रहा है... वो अभी भी उस हादसे से बाहर नहीं आ पाया है... और उसे सिर्फ एक ही चीज इससे बाहर ला सकती है..."

" और वो चीज क्या है ? "

" प्यार... करन की जिंदगी में सिर्फ प्यार की कमी है.. वो हर बार प्यार के लिए तरसा है.. पहले अपने माता पिता के प्यार के लिए और फिर मोनाली के प्यार के लिए.. और इसी वजह से उसने अपने आप को कही कैद कर रखा है..."

" काश में उसके लिए कुछ कर पाती..."

" कर पाती नही किंजू... सिर्फ तुम ही यह कर सकती हो... तुम्हारा प्यार सच्चा है.. और अगर प्यार सच्चा हो तो उसके सामने किसी को भी जुकना पड़ता है... और इस बार किस्मत भी तुम्हारे साथ है... कैसे तुम दोनो को एक ही मोहल्ले में लाकर खड़ा कर दिया है.. अब आगे सब तुम्हारे हाथ में है किंजल... तुम्हे उसे अपने प्यार का यकीन दिलाना होगा..."

" पर वो तो मुझे पसंद भी नहीं करता..."

" तुम कोशिश तो कर सकती हो ना... क्यों ना तुम पहले दोस्ती से शुरुआत करो...? "

" दोस्ती...? मुझे तो नही लगता की वो मुझसे दोस्ती भी करना चाहेगा...! " किंजल उदास होती हुई बोली..

" यार ट्राय तो करो... ऐसी कौन सी चीज है जो मेरी बहन नही कर सकती...! हा बताओ...! "

संजना की बात सुनकर किंजल के चहेरे पर स्माइल आ गई
" नही ऐसा कुछ भी नही है जो में नही कर सकती "
फिर दोनो ही अपनी इस बात पर हसने लगे..

🥰 क्रमश: 🥰