कामवाली बाई - भाग(२९) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कामवाली बाई - भाग(२९)

अब गीता जिन्दगी के एक और रंग से रूबरू हो चुकी थी,लेकिन कुछ भी हो पेट भरने के लिए तो रोटी चाहिए और रोटी खरीदने के लिए पैसें और पैसों के लिए काम करना पड़ता है इसलिए गीता को मजबूर होकर फिर से एक घर का काम पकड़ना ही पड़ा,इस बार उसे एक रईस खातून के यहाँ काम मिला,जिनका नाम मदीहा था,वें बेहिसाब दौलत की मालकिन थी,उन्हें एक ऐसी कामवाली चाहिए थी जो उनके घर खाना पका सकें,क्योंकि अब वें बहुत बूढ़ी और लाचार हो चुकीं थीं,उनकी एक बेटी भी थी लेकिन वो अपनी पढ़ाई के लिए विदेश गई और वहीं नौकरी करने लगी,फिर उसने अपने लिए एक मनपसंद हमसफ़र ढूढ़ कर वहीं घर बसा लिया,वो कभी साल दो साल में अपनी माँ से मिलने आती थी,वो भी इसी ख्वाहिश में कि कहीं उसकी माँ सारी दौलत यतीमों में ना दान कर दें,इसमें उनकी बेटी का अपनी माँ के लिए प्यार नहीं खुदगर्ज़ी छुपी है.....
मदीहा ने एक यतीमखाना खोल रखा है,कभी कभी वें उन बच्चों के पास जाकर अपना मन बहला आतीं हैं,क्योंकि उन यतीम बच्चों में वें खुद को देखतीं हैं क्योंकि उनकी जिन्दगी भी कभी इसी मुकाम से गुजरी थी,सारे बच्चे उन्हें प्यार से मदीहा आपा कहते थे,वें भी कभी गरीब और यतीम हुआ करतीं थीं,उनके पास भी खाने को कुछ भी नहीं होता,वें भी इसी तरह किसी यतीमखाने में अपनी दो बहनों के साथ रहा करतीं थीं......
जब गीता मदीहा से मिली तो गीता को उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा,वें बहुत ही दरियादिल किस्म की औरत थीं,उनकी सादगी ने गीता का मन मोह लिया,मदीहा थी भी बहुत सुन्दर,गोरा रंग,बड़ी बड़ी आँखें,मोती से दाँत जो कि उनकी इस उम्र में भी सही सलामत थे और सफेद बाल,अब उनके चेहरे पर झुर्रियों नें भी अपना डेरा डाल दिया था,मदीहा को गीता की ईमानदारी और सच बोलने की आदत ने अपना बना लिया,अब जब भी गीता बावर्चीखाने से फारिग होती तो वो कभी मदीहा के सिर पर तेल लगा देतीं या जब कभी उन्हें तनाव महसूस होता तो गीता उनका सिर दबा देती,दोनों के बीच एक इन्सानियत का रिश्ता कायम हो गया था,गीता भी उन्हें प्यार से सभी यतीम बच्चों की तरह मदीहा आपा बुलाती थी,मदीहा ने मक्का मदीना की तस्वीर के बगल में एक शख्स की भी तस्वीर लगा रखी थी जिसकी कभी वें इबादत करना ना भूलतीं....
गीता ने कई बार सोचा भी कि वों उनसे उस शख्स के बारें में पूछे लेकिन फिर गीता का दिल गँवारा ना किया,दिन इसी तरह गुजर रहे थे इसी बीच गीता के भाई मुरारी के साथ कुछ ऐसा घटित हुआ जिसकी उसे उम्मीद नहीं थी...
एक दिन कोई व्यक्ति अपनी कार मुरारी के गैराज पर लाया और उससे बोला कि इस कार की नंबर प्लेट बदल दो और हो सके तो इसका रंग भी दूसरा कर दो,इस बात के लिए मुरारी राजी नहीं हुआ उसने उस व्यक्ति से पूछा....
आप इस कार का हुलिया क्यों बदलवाना चाहते हैं?
तु मुझसे सवाल क्यों कर रहा है?तुझसे जो कहा गया है ना पहले तू वो कर,वो व्यक्ति गुस्से से बोला...
नहीं करूँगा,पहले मुझे वज़ह तो पता चले कि आप कार का हुलिया क्यों बदलवाना चाहते हैं?मुरारी बोला।।
तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुझसे वज़ह पूछ रहा है, तू अभी जानता नहीं कि मैं कौन हूँ?वो व्यक्ति बोला।।
मुझे जानना भी नहीं है कि तुम कौन हो?मुझे वो जानना है जो मैनें पूछा है,मुरारी बोला।।
तेरा मालिक कहाँ है ?मेरी उससे बात करा,वो व्यक्ति बोला।।
तब मुरारी अपने मालिक को बुलाकर लाया और उस व्यक्ति से मिलवाते हुए बोला....
मालिक!ये अपनी कार का रंग और नंबर प्लेट बदलवाना चाहते हैं...
गैराज के मालिक ने उस व्यक्ति की ओर देखा फिर बोलें......
अरे!मुन्ना भाई!आप! ओह....कहिए क्या काम है?
तब मुन्ना भाई बोला....
ये तुम्हारा दो कौड़ी का नौकर सवाल जवाब बहुत करता है।।
अब ये आपसे कुछ भी नहीं पूछेगा ,मैं इससे आपकी कार का हुलिया बदलने को कहता हूँ,गैराज मालिक बोला।।
और फिर गैराज मालिक ने मुरारी को हिदायत दी कि वो मुन्ना भाई की कार का हुलिया बदल दें,मालिक की ऐसी प्रतिक्रिया देखकर मुरारी को गुस्सा आ गया लेकिन फिर वो बोला कुछ नहीं और उस व्यक्ति के कहें अनुसार वो कार का हुलिया ठीक करने लगा,उसने मुन्ना भाई से कहा कि कार की चाबी दे दीजिए और आप तब तक उधर जाकर बैठ जाइए़,मुन्ना भाई ने मुरारी को चाबी दी और वो कुर्सी पर जाकर बैठ गया,मुरारी ने कार का दरवाजा खोलकर कार के भीतर देखा फिर पीछे डिग्गी की ओर गया,जहाँ नंबर प्लेट लगी थी,लेकिन तब उसने देखा कि नंबर प्लेट के पास किसी का खून लगा है फिर उसने ध्यान से देखा तो वो खून डिग्गी से बाहर आ रहा था अब मुरारी को शक़ हो गया कि हो ना हो मुन्ना कुछ काण्ड करके आया है जिसे छुपाने के लिए वो कार का हुलिया बदलवा रहा है,
मुरारी मजबूरीवश कार का हुलिया ठीक कर रहा था,वो अपने मालिक की बहुत इज्जत करता था और उनकी ही खातिर वो ये काम कर रहा था,दो तीन घंटों में कार का हुलिया बदल गया ,नंबर प्लेट भी बदल गई और मुन्ना बिना पैसें दिए कार लेकर चला गया,जब मालिक ने डर के मारे मुन्ना से पैसें नहीं माँगें तो मुरारी का भी कोई हक़ नहीं बनता था उससे पैसें माँगने का,लेकिन मुरारी शांत बैठने वालों में से नहीं था,उसके बाद वो बिना किसी को बताएं थाने पहुँचा और उसने पुलिस को सब बता दिया कि शायद मुन्ना की कार की डिग्गी मेँ कोई लाश थी,इसलिए उसने पुलिस से बचने के लिए कार का हुलिया बदलवा लिया,लेकिन बेचारा मुरारी नहीं जानता था कि थानेदार मुन्ना से मिला हुआ है,मुरारी के थाने से वापस लौटने के बाद उस थानेदार ने मुन्ना को सब बता दिया...
अब तो मुन्ना के सिर पर खून सवार हो गया,उसने पहले मुरारी के घर पर अपने एक गुण्डे को भेजकर धमकी दिलवाई,तब मुरारी उस गुण्डे से बोला....
जा...जाकर कह देना अपने मुन्ना भाई से मैं किसी से नहीं डरता,मैं किसी और थाने में उसकी शिकायत दर्ज करूँगा जहाँ का थानेदार ईमानदार हो ,फिर मुरारी ने शहर के दूसरे इलाके के थानेदार के यहाँ मुन्ना भाई की रिपोर्ट दर्ज करवाई,उस थाने का थानेदार ईमानदार था और उसने रिपोर्ट भी लिखी और साथ साथ मुरारी को शाबासी देते हुए बोला.....
मैं जल्द से जल्द इस मामलें की तहकीकात करता हूँ और अगर मुन्ना मुजरिम हुआ तो उसे सजा दिलवाकर ही दम लूँगा...
और फिर उस थानेदार की तहकीकात के बल मुन्ना मुजरिम पाया गया और उसे गिरफ्तार कर लिया,मुन्ना काफी पैसें वाला और दबंग आदमी थी इसलिए उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया लेकिन अब वो मुरारी के खून का प्यासा हो गया....
और इधर मुरारी की पत्नी लाली तीसरी बार माँ बनने वाली थी,प्रसव में अभी वक्त था क्योकिं अभी आठवाँ महीना लगा ही था इसलिए मुरारी ने सोचा एक दो हफ्ते में वो माँ को बुला लेगा,माँ को भी आने जाने में दिक्कत होती है क्योंकि वो अब ज्यादातर बीमार रहने लगी है, प्रसव होने में बहुत वक्त बाक़ी था लेकिन बेवक्त लाली को प्रसवपीड़ा होने लगी,गनीमत थी कि उस वक्त मुरारी घर पर था लेकिन दोनों बच्चे स्कूल गए थे,जब लाली को प्रसवपीड़ा हुई तो उसने मुरारी को बताया और वो आँटो लेने बाहर दौड़ा ताकि लाली को अस्पताल ले जाया जाएं,उसे उस दिन अपने घर के आस पास कोई आँटो नहीं मिला तो वो मेन सड़क पर आया और तभी ना जाने कहाँ से एक ट्रक आया और मुरारी को कुचलकर चला गया,
इधर लाली मुरारी के इन्तज़ार में थी और उधर मुरारी इस दुनिया से रूखसत हो चुका था,अब लाली की पीड़ा इतनी बढ़ गई कि वो उसे सहन नहीं कर पाई और कुछ वक्त के बाद उसके भी प्राण चले गए,घटनास्थल पर पुलिस आई और छानबीन के बाद पता चला कि मरने वाला शख्स मुरारी है,पुलिस घर पहुँची तो वहाँ लाली का मृत शरीर पड़ा था,जब कावेरी और गीता को पता चला तो कावेरी वहीं गश़ खाकर गिर पड़ी,लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था,एक ही दिन में कावेरी अपने बेटा और बहु दोनों को खो चुकी थी,कावेरी के दुख की कोई सीमा नहीं थी,उसके बेटे का हँसता खेलता परिवार एक दिन में उजड़ गया था,गीता उस वक्त जिन्दगी के एक और रंग से रूबरू हुई,जैसे तैसे उसने खुद को सम्भाला क्योंकि अगर वो खुद को नहीं सम्भालती तो उसकी माँ को कौन सम्भालता.....
अब गीता के काँधों पर दो बच्चों की जिम्मेदारी और आ गई,पहले से ही वो अपनी बड़ी बहन की बेटी जानकी को पाल रही थी,अब उसने मुरारी के दोनों बच्चों शिव और पूजा को भी अपने साथ रख लिया और उनका भी जानकी के स्कूल में एडमिशन करवा दिया,जानकी तो पहले से ही गीता को माँ कहती थी ,जानकी के देखा देखी मुरारी के दोनों बच्चे भी गीता को माँ कहने लगें,गीता को भी खुद को उन बच्चों का माँ कहना अच्छा लगता था,अब उसने मदीहा आपा से कहा कि वें उसका पैसा बढ़ा दें क्योंकि अब उसके काँधों पर दो लोगों की जिम्मेदारी और आ गई है....
मदीहा तो वैसे भी नेकदिल औरत थी और उन्होंने गीता के पैसें बढ़ा ही दिए,पैसें बढ़ जाने से अब गीता तीनों बच्चों की परवरिश आराम से कर सकती थीं,ऐसे ही दो चार महीनें और बीते तब गीता ने एक दिन मदीहा से पूछ ही लिया....
मदीहा आपा !आखिर ये कौन हैं,जिसका सजदा करना आप कभी नहीं भूलतीं,ये आपके शौहर हैं।।
तब मदीहा बोली....
ये मेरे शौहर से भी बढ़कर हैं,ये मेरे मालिक थे और ये सारी दौलत और शौहरत उन्ही की है,वें अपनी मौत के वक्त मुझे अपनी सारी मिल्कियत का दावेदार बनाकर चले गए,मैं तो केवल इनकी नौकरानी थी और वो जो जिसे आप सब मेरी बेटी कहते हो,वो मेरी बेटी हैं ही नहीं,वो तो मालिक की बेटी है.....
ये सब क्या माजरा है ?मुझे कुछ समझ नहीं आया,आप जरा मुझे ठीक से समझाऐंगीं...गीता बोली...
गीता की बात सुनकर पहले तो मदीहा आपा हँसीं फिर बोलीं....
तो माजरा समझना चाहतीं हैं आप !तो सुनिए....
और फिर मदीहा आपा ने सारी बात कुछ यूँ बताई.....
मैं तब बहुत छोटी थी तब एक गाँव में रहा करती थी,मेरे अब्बाहुजूर के वालिदैन की एक बहुत पुरानी हवेली थी जिसमें हम सभी रहा करते थें,अब्बाहुजूर के पास बहुत खेती थी वो भी उनके वालिदैन उनके लिए छोड़कर गए थे,अम्मी घर सम्भालतीं थीं और हम तीनों बहने मतलब मैं और मेरी दो बड़ी बहनें पढ़ने के लिए मदरसे जाया करते थें,हम सबकी जिन्दगियाँ बेहतर तरीकें से चल रहीं थीं,हम मनचाहा खाते थे और मनचाहा पहनते थें,तभी हमारे घर किसी करीबी रिश्तेदार के निकाह का बुलावा आया,निकाह में अभी पन्द्रह दिन का वक्त बाक़ी था इसलिए अब्बाहुजूर ने हम सब बहनों के लिए और अम्मी के लिए सलमा सितारों वाले रेशमी गरारे बनवाऐं और उन्होंने खुद के लिए भी नऐ कपड़े बनवाएं.....
और फिर पन्द्रह दिन बाद हम निकाह की तैयारी करके ताँगें में अपना सामान रखकर उस पर सवार होकर उस गाँव की ओर रवाना हो गए,उस जमाने में आजकल के जमाने की तरह ना तो पक्की सड़के होतीं थीं और ना ही ऐसी सुविधाएं,आने जाने के साधन भी बहुत कम थे इसलिए अपने लिए सबकुछ साथ लेकर चलना पड़ता था...
इसलिए हम भी अपना खाना पीना साथ लेकर चले थे,साथ में पानी के लिए एक सुराही और अम्मी ने सुबह सुबह उठकर अण्डा भुर्जी,कीमा कबाब,रोटियाँ और बहुत सी चीजें तैयार कर लीं थीं,जिन्हें हम सफ़र के लिए बाँधकर लाए थे,साथ में रहीम चाचा भी थे जो कि ताँगा चला रहे थे,फागुन माह था इसलिए गुलाबी ठण्ड भी थी,हम सब अपने अपने शाँल लपेटे हुए सफ़र का लुफ्त उठा रहे थे...
ताँगा भी अपनी रफ्तार से बढ़ा चला जा रहा था,दोपहर होने को आई थी और हम सबको अब भूख लग आई थीं,इसलिए हम रूकने के लिए एक मुनासिब सी जगह तलाश करने लगें,फिर एक जगह हमें एक कुआँ दिखा और उसके आस पास लहलहाते हुए गेहूँ के खेत दिखें,साथ में दूसरे खेतों में पीले पीले फूलों वाली सरसों की फसल भी लगी थी,हमने अपना ताँगा सड़क के किनारें रोका और उस कुएं के पास ही अपनी चटाई बिछा दी,अम्मी बोली....
चलों ताँगें से बाल्टी और रस्सी उठा लाओ और कुएँ से पानी निकालकर सब हाथ पैर धो लों,फिर खाना खाते हैं...
तब हम बहनों ने कहा...
नहीं!अम्मी !पहले हम खेतों में घूमकर आतें हैं।।
तब अम्मी बोलीं....
ये तुम्हारे अब्बा के खेत नहीं है,जो तुम सब वहाँ घूमने जा रही हो,यहाँ हमारे लिए सब अजनबी हैं,किसी ने खेत से कुछ चुराते हुए देख लिया तो हमारी सात पुश्तों तक को गालियाँ देगा,
हम ऐसा कुछ भी नहीं करेगें अम्मी!हम बहनों ने अम्मी से वायदा किया....
हम खेत घूमने गए तो वहाँ हमें एक बुजुर्ग मिलें,हम सभी बहनों ने बहुत से जेवर पहन रखें थें,तो वें बोले....
बच्चियों!तुम यहाँ सब अकेली आई हो,कोई बड़ा नहीं है तुम्हारे साथ।।
तब मेरी बड़ी आपा नूरजहाँ बोलीं....
चाचाजान!हमारे वालिदैन हमारे साथ हैं,वो वहाँ उस कुएँ के पास बैठें हैं...
तुम लोंग उनके पास ही जाओ बेटा!यहाँ डकैतों का खतरा बहुत है,तुम सब ने इतने जेवरात भी पहन रखें हैं,वें बुजुर्ग बोलें...
हम उनकी बात सुनकर वापस कुएँ के पास लौट आएं,जब तक हम लौटें तब तक हमारे ताँगेवालें रहीम चाचा ने कुएंँ से पानी निकाल दिया था और अम्मी अब्बू अपने पैर हाथ धुल चुकें थे, उन्होंने हम बहनों के लिए भी बाल्टी भरकर रख दी,हम तीनों बहनों ने भी हाथ पैर धुले और खाना खाने बैठ गए,माशाअल्लाह खाना बहुत ही जायकेदार था,हम सभी ने पेटभर कर खाया और कुछ देर के लिए हम वहीं आराम करने के लिए रूक गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....