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कामवाली बाई--भाग(६)

मुरारी बोला...
मैं गौरी से पहली बार तब मिला था जब वो दसवीं में पढ़ती थी,एक दिन वो साइकिल से स्कूल जा रही थी और उसकी साइकिल का टायर पंचर हो गया,वो खड़ी होकर इधर उधर देखने लगी कि शायद उसे कोई साइकिल पंचर ठीक करने वाले की दुकान दिख जाएं,तभी उसके ही स्कूल के दो लड़के उसके पास आकर उल्टी सीधी फब्तियाँ कँसने लगें,गौरी बहुत डर गई क्योंकि वो एक सीधी सादी लड़की थी इसलिए उन लड़कों से वो कुछ नहीं कह पा रही थी,तभी मैं वहाँ से गुजरा और गौरी को बहुत परेशान देखा तो मैनें उन लड़कों से कहा कि.....
लड़की को क्यों परेशान कर रहे हों?
तब उनमें से एक बोला....
तू जाकर अपना काम कर ,हमारे पचड़े में मत फँस!
तब मैं ने उन दोनों लड़को से कहा कि...
अगर ये लड़की अपने मुँह से कह दे कि तुम इसे परेशान नहीं कर रहे हो तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा,
ये सुनकर दोनों लड़के भाग निकले और जाते जाते कहते गए कि तुझे देख लेगें,मैनें भी कह दिया....हाँ...हाँ...देख लेना,तब मैनें वहाँ खड़ी उस लड़की का चेहरा देखा जो कि डर से बिल्कुल सहमा हुआ सा था,मैनें उसे तसल्ली दी और कहा कि....
अब तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है,वो लोंग चले गए,
तब वो लड़की बोली....
वो मेरे ही स्कूल के लड़के थे,स्कूल में तो छेड़ते ही रहते हैं लेकिन आज तो सड़क पर ....
इतना कहते कहते वो लड़की रूक गई तो मैनें उससे पूछा....
तुम उन सबकी शिकायत क्यों नहीं करती?
तो वो लड़की बोली....
मेरे दादाजी यहाँ के विधायक हैं अगर मैनें उन लड़कों की शिकायत कर दी तो दादाजी उन लड़कों के साथ साथ उनके घरवालों को भी नहीं छोड़ेगें और मेरी पढ़ाई भी बंद करवा देगें,बहुत पाबन्दियाँ है मेरे ऊपर,बस स्कूल जाने की इजाज़त है...
अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?मैनें उससे पूछा।
तो उसने अपना नाम गौरी बताया और फिर उसने मेरा नाम भी पूछा,फिर मैं उसकी साइकिल पंचर ठीक करने वाले के पास ले गया और पंचर ठीक करवाकर उसे दे दी,वो मुझे थैंक्यू बोलकर अपने घर चली गई,वो मुझे ऐसे ही स्कूल से लौटते वक्त अकसर मिल जाया करती और थोड़ी देर रूककर मुझसे जरूर बात करती,मुझे भी उससे बात करना अच्छा लगता,धीरे धीरे हमारी मुलाकातें बढ़ने लगी और वो मुझे पसंद करने लगी,वो मुझे अपने मन का हाल बताकर अपना मन हलका कर लेती और मैं उसकी बातें सुनकर परेशान हो जाया करता,क्योंकि वो अपने घर में खुश नहीं थी,वो वहाँ बहुत अकेली थी,उसकी माँ उसे बचपन में छोड़कर चली गई थी,
फिर उसके पिता ने दूसरी शादी की,उसकी सौतेली माँ बहुत ही बुरी निकली,पहले तो उसने उसके पापा की हत्या करवाकर उसे एक्सीडेंट का रूप दे दिया और फिर उसके बाद सारे घर पर उसका ही राज हो गया,जब गौरी छोटी थी तो उसे ये सब चींजें समझ नहीं आतीं थीं लेकिन एक बार जो उसने देखा था तो उसे देखकर उसके होश उड़ गए,उसकी सौतैली माँ ने घर की सारी बागडोर अपने हाथों में सम्भाल रखी थी,तो उसने उसके चाचा को भी अपने हाथों की कठपुतली बना रखा था,चाची हमेशा आँसू बहाती रहती क्योंकि चाची तो केवल नाममात्र के लिए चाचा की पत्नी थी उनकी सबकुछ तो गौरी की सौतेली माँ थी,
जितनी बार भी चाची ये बात कहतीं तो गौरी की सौतेली माँ उसे मार मार कर उसकी हालत खराब कर देती,चाची का दर्जा उस घर में केवल नौकरानी का था,वो घर के सारे काम करती और गौरी की सौतेली माँ सुनीता घर पर राज करती,सुनीता तो वैसे गौरी से भी बहुत नफरत करती थी लेकिन खुलकर कह नहीं पाती थी,गौरी भी अपनी सौतेली माँ को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी और एक दिन गौरी ने जो देखा था तो उसके बाद से गौरी को सुनीता से घृणा हो गई थी...
एक दोपहर गौरी स्कूल से लौटी और कपड़े बदलकर वो अपनी चाची के कमरें में पहुँची,उनसे खाना देने के लिए कहने को लेकिन चाची तब सोई थी तो गौरी ने उन्हें जगाना ठीक नहीं समझा और स्वयं रसोईघर की ओर खाना लेने चली गई,तभी गौरी को अपनी सौतेली माँ के कमरें से जोर जोर की हँसने की आवाज़ आई तो वो उनके कमरें की ओर चली गई,दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था तो गौरी ने किवाड़ की ओट से अन्दर झाँका और जो उसने देखा उसे देखकर उसकी साँसें रूक गईं,उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ और वहाँ से भागकर अपने कमरें में आ गई और जब चाची सोकर जागी तो उसने वो बात अपनी चाची को बताई तो इस पर चाची बोली.....
बिटिया!ये सब तो ना जाने कब से चल रहा है इस घर में,हम तो कई दफ़ा ये सब देख चुकें हैं,तूने जो देखा वो तूने हमसे तो बता दिया लेकिन बाहर किसी से मत कहना कि तेरी सौतेली माँ और तेरे दादाजी के बीच ऐसे सम्बन्ध हैं अगर ये बात तेरी सौतेली माँ को पता चल गई ना तो ना जाने तेरा क्या हाल करेगी?मैनें तो तेरी सौतेली माँ को अपने पति के साथ भी कई बार देखा है,लेकिन मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे धमकी मिली है कि यदि मैनें किसी से कुछ कहा तो इसका अन्जाम अच्छा नहीं होगा,,
लेकिन चाची!ये सब तो गलत है,गौरी चीखी।।
हाँ! लेकिन कहें कौन?चाची बोली।।
मैं कहूँगी सबसे,गौरी बोली।।
ना बिटिया!,तेरे दादाजी बहुत बुरे इन्सान हैं,मैनें भी एक बार कोशिश की थी तो उन्होंने...ये कहते कहते चाची रूक गई....
उन्होंने....क्या किया उन्होंने....बोलो ना चाची?गौरी ने पूछा।।
तब चाची बोली...
तो उन्होंने मेरी इज्जत को जार जार कर दिया,मैं अनाथ थी और समाज में अपनी धाक जमाने के लिए वें मुझे इस घर में बहु बनाकर लाएँ थे,लेकिन उनकी गंदी नज़र थी मुझ पर,मेरा कोई सहारा नहीं है इसलिए पड़ी हूँ यहाँ पर,कई बार सोचा कि चली जाऊँ यहाँ से लेकिन जब तुझे देखती हूँ तो जाने का मन नहीं करता बिटिया!इतना दुख भगवान किसी को ना दे,मुझे तेरे दादा पर बिलकुल भरोसा नहीं है इसलिए तुझे मैं अकेला नहीं छोड़ती,उसने ना जाने कितनी लड़कियों का जीवन बर्बाद किया है,
चाची की बात सुनकर गौरी के दिल को बड़ा आघात पहुँचा,उसने सोचा वो कैसें परिवार में रह रही है जहाँ किसी को भी किसी मर्यादा का कोई भी ख्याल नहीं है,जब घर का सबसे बड़ा बुजुर्ग ऐसा घिनौना काम कर सकता है तो फिर मैं किससे क्या उम्मीद करूँ?
फिर उस दिन गौरी ने रोते हुए मुझे सारी बात बताई,मैनें उसे दिलासा दिया और समझाया कि तुम पढ़ाई पर ध्यान दो,तभी तुम इस घर से निकल सकती हो,उसे मेरी बातों से बहुत तसल्ली मिलती और उसकी हिम्मत बढ़ जाती,फिर वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगती.....
लेकिन उसकी पढ़ाई उसकी सौतेली माँ सुनीता की नज़रों में बहुत खटकती थी,सुनीता को लगता था कि अगर गौरी पढ़ लिखकर आगें बढ़ गई तो इस घर में अपना हिस्सा माँगने लगेगी,इसलिए वो गौरी की पढ़ाई में कोई ना कोई अड़चन खड़ी करती रहती थी,किसी तरह मुश्किलों के साथ गौरी ने बाहरवीं पास कर ली ,अब वो अठारह की हो चली थी इसलिए उसकी सौतेली माँ सुनीता उसकी शादी करवाकर उससे अपना पीछा छुड़वाना चाहती थी और उसने उसके लिए एक लड़का भी ढूढ़ लिया था,जो कि गौरी से उम्र में बड़ा था और इतना ही नहीं वो एक नम्बर का आवारा और बदचलन था,लेकिन गौरी अभी शादी नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने साफ साफ इनकार कर दिया,
उसने मुझसे भी ये बात कही तो मैनें उससे कहा कि तुम किसी हाँस्टल में रहने लगों,वहाँ तुम्हें तुम्हारी माँ ज्यादा परेशान नहीं कर पाएगी,उसने बहुत कोशिश की कि उसे हाँस्टल में रहने को मिल जाएं लेकिन उसकी सौतेली माँ के मारे उसकी एक ना चल पाई और वो हाँस्टल ना जा पाई,
फिर एक रोज़ उसकी माँ को मेरी और उसकी दोस्ती के बारें में पता चल गया और वो ये मौका ढूढ़ ही रही थी,सुनीता ने बात गौरी के दादाजी को बता दी,अब गौरी के विधायक दादा को अपनी इज्जत पर ऐसा दाग लगना मंजूर ना था,इसलिए उन्होंने सुनीता से कह दिया कि इसके लिए लड़का ढूढ़कर फौरन ही इसके हाथ पीले कर दो,सुनीता तो इसी ताक में थी और उसने उस बदचलन और आवारा लड़के जिसका नाम पंकज था उसके घरवालों को बुला लिया,पंकज के घरवालों को मुँहमाँगे रूपए मिल रहे थे इसलिए उन्होंने इस रिश्ते के लिए मंजूरी दे दी....
अब जब रिश्ता पक्का हो गया तो जब देखो तब पंकज गौरी के घर आने लगा,कभी उसके साथ घूमने की जिद़ करता तो कभी डिनर करने की लेकिन गौरी को ये सब पसंद नहीं था,वो पंकज को बिल्कुल पसंद नहीं करती थी,गौरी का घर से निकलना भी बंद था इसलिए वो अपनी बात मुझ तक भी नहीं पहुँचा पा रही थी,फिर एक दिन गौरी ने अपने मंगेतर पंकज को और उसकी सौतेली माँ सुनीता को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया,ये देखकर वो चुप ना रह सकी और उसने सुनीता से कह ही दिया......
तू औरत के नाम पर धब्बा है,तुझे माँ कहते हुए मुझे शर्म आती है,तुझे इतना ही शौक है रंगरलियाँ मनाने का तो कहीं और क्यों नहीं चली जाती,इस घर को अपनी अय्याशी का अड्डा क्यों बना रखा है,तूने चाचा को नहीं छोड़ा,तूने दादाजी को भी नहीं छोड़ा,अब तूने इसे भी नहीं छोड़ा,थोड़ी शरम बची है तो कहीं जाकर चुल्लू भर पानी में डूब मर....
और पंकज तू इतना गिरा हुआ निकला कि एक बुढ़िया की बाँहों में फिसल गया....छीः...मुझे घिन आ रही है तुझसे,अब तो मैं हरगिज़ तुझसे शादी नहीं करूँगी और सारी दुनिया को तुम दोनों की सच्चाई बताऊँगीं और इतना कहकर ही जैसे ही गौरी वहाँ से जाने लगी तो सुनीता बोली...
ए...जाती कहाँ है?तू बड़ी शरीफ़जादी बनती है ना!अभी तेरी शराफ़त को मैं कैसें चकनाचूर करवाती हूँ और फिर इतना कहकर सुनीता ने पंकज से कहा.....
ए...तू खड़ा खड़ा क्या देखकर रहा है? इसे काबू में करना आज से ही सीख लें,ले जा इसे उस कमरें में और जाकर मज़े लूट,बड़े पर निकल आएं हैं ना इसके,आज इसके पर कुचल दें और फिर उस दिन पंकज ने गौरी की दशा बिगाड़ दी,भीतर गौरी अपनी इज्ज़त की भीख माँगती रही और सुनीता बाहर खड़ी खड़ी मुस्कुराती रही,उसे उस पर जरा भी दया ना आई....
पंकज अपना काम खतम करके चुपचाप निकल गया और गौरी उसी अँधेरे कमरें में पड़ी पड़ी रोती रही और जब उसकी चाची उसे ढूढ़़ते हुए उसके पास पहुँची तो उसकी हालत देखकर उसके होश उड़ गए,वो उससे माँफी माँगते हुए बोली.....
मुझे माँफ कर दे मेरी बच्ची ,मैं तुझे बचा ना सकी।।
और फिर चाची ने उस दिन गौरी को दूसरे कपड़ें लाकर दिए ,तब उन्हें पहनकर वो बाहर निकली,ये देख कर सुनीता मुस्कुरा बोली.....
आज के बाद मुझसे मत उलझना।।
सुनीता की बातें सुनकर चाची तड़प उठी ,चाची की आँखों में क्रोध की अग्नि थी और वो रात को खंजर लेकर सुनीता के कमरें में पहुँची,लेकिन चाची अपने मकसद में कामयाब ना हो सकी और पकड़ी गई,सुनीता ने उसके सिर पर जोर से फूलदान मारा और चाची बेहोश हो गई,फिर सुनीता ने चाची को बाँलकनी से फिकवा दिया और उसे आत्महत्या का रूप देकर मामले को रफा दफा करवा दिया......
अब चाची के जाने से गौरी बिलकुल अकेली पड़ गई,वो दिनबदिन कमजोर होती जा रही थी,ऐसे ही दो ढ़ाई महीने बीते तो उसे उल्टियाँ हुई और वो चक्कर खाकर गिर पड़ी,सुनीता ने डाक्टर बुलवाया तो पता चला कि गौरी माँ बनने वाली है,तब सुनीता बोली.....
ये उसी हरामी का बच्चा होगा,जिससे तू चोरी छुपें मिलती है,
ये सुनकर गौरी के पास रोने के सिवाय कोई और चारा ना था,तब गौरी ने मुझे एक चिट्ठी लिखी और अपने माली से मेरे पास भिजवाई और मुझे तब जाकर सारी सच्चाई पता चली....
मैनें उससे मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मुझे उससे मिलने नहीं दिया गया,मेरी जान की धमकी देकर उन लोगों ने तुम सबका मुँह भी बंद करवा दिया,फिर अपनी शादी के एक रोज़ पहले ही उसने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली और मेरी गौरी हमेशा के लिए मुझसे दूर हो गई.....
इतना कहकर मुरारी फूट फूटकर रोने लगा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....


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