कामवाली बाई--भाग(७) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कामवाली बाई--भाग(७)

मुरारी को रोता देखकर कावेरी के आँसू भी छलक पड़े,उसे आज महसूस हुआ कि उसके बेटे ने अपने सीने में इतना बड़ा दर्द छुपा रखा था,उसकी बात सुनकर कावेरी बोली....
बेटा!गौरी की सौतेली माँ बहुत ही खतरनाक औरत है,हम उससे नहीं लड़ सकते,हमारे पास ना तो इतना पैसा और ना ही इतनी शक्तियांँ,
लेकिन तब भी मैं गौरी की मौत का बदला लेकर रहूँगा,मुरारी बोला।।
नहीं बेटा!तू अकेला उन सबसे नहीं जीत पाएगा,कावेरी बोली।।
इसलिए तो मुझे तुमलोगों का साथ चाहिए,मुरारी बोला।।
मैं कोशिश करूँगीं तेरा साथ देने की ,कावेरी बोली,
अपने माँ के ये शब्दसुनकर मुरारी को बहुत तसल्ली हुई ,
और उस दिन मुरारी ने अपनी माँ कावेरी के सामने अपने मन का सारा गुबार निकाल दिया,वो उस दिन कावेरी की गोद पर सिर रखकर बहुत रोया और उस रात घर पर सबके साथ रूका,उसने बाद में गीता से राखी भी बँधवाई और गीता को पाँच सौ रूपए भी दिए,पूरा परिवार मुरारी के इस व्यवहार से खुश था,यहाँ तक कि मुरारी का बापू भी.....
लेकिन मुरारी ने सोच ही लिया था कि गौरी की मौत का बदला लेकर रहेगा,वो हुस्ना के पास इसलिए जाता है क्योंकि हुस्ना उसकी मदद के लिए तैयार है,हुस्ना बेगम इसलिए उसकी मदद को तैयार है क्योंकि उसके अतीत को गौरी के विधायक दादा युद्धवीर सिंह ने बर्बाद किया है उसकी बदौलत ही वो आज इस जगह आकर फँसी है,हुस्ना की माँ नसीबन बानो से ये कहानी शुरु होती है,
बात उस समय की है नसीबन बहुत ही गरीब घर से थी उसके अब्बा बकरियाँ पालते थे और उन्हीं बकरियों के दम पर उनका इतना बड़ा परिवार चलता था,परिवार में नसीबन सबसे बड़ी सन्तान थी,नसीबन के अब्बा ,उसकी दो बहनें और दो भाई भी थे साथ में अम्मी भी थी,अम्मी घर के गुजारे के लिए ईटों के भट्ठे में काम करती थी,घर में सुबह खाना जुटता तो शाम को ना जुटता अगर शाम को जुटता तो सुबह ना जुट पाता ,बस इन्हीं हालातों के बीच उनका परिवार जैसे तैसे जिन्दगी जी रहा था कहा जाए तो जिन्दगी घसीट रहा था,लेकिन नसीबन की अम्मी अपने अपने बच्चों को जब भूखा ना देख पाती तो ईटों के भट्ठे का मालिक रामदास जो नसीबन की अम्मी को पसंद करता था,वो उसे मुँहमाँगा दाम देता और नसीबन की अम्मी अपना जमीर और बदन बेचकर जो रूपए मिलते उनसे अपने बच्चों के लिए पेट भर खाना खरीद लाती,
उस दिन उनके घर में माँस पकता,अण्डे पकते और कभी कभी तो मछलियांँ भी तलीं जातीं,नसीबन के अब्बा को सब मालूम रहता कि ये सब कहाँ से आया लेकिन वो कुछ ना बोलते थे और वें भी उस खाने को खाकर अपनी भूख शांत कर लेते थे,दिन बीतें नसीबन अब पन्द्रह की हो चली थी,देखने में सुन्दर और छरहरा बदन ,फटे पुराने कपड़ों में भी उसकी खूबसूरती सोने की तरह दमकती थीं,वो अपने गाँव में जहाँ से निकलती तो जवान मर्द हो चाहें बूढ़ा उसकी ओर एक नज़र डाले बिना ना रह पाता था,
इसी बीच ठाकुर साहब का बेटा युद्धवीर सिंह शहर से पढ़ाई करके लौटा,जो कि अपने काँलेज के छात्रसंघ का नेता था,ठाकुर साहब चाहते थे कि अब उनका बेटा लगभग पच्चीस साल का हो चुका है तो कोई अच्छी सी लड़की देखकर उसका ब्याह रचा दिया जाएं लेकिन युद्ववीर सिंह कभी भी शादी-ब्याह के पचड़े में नहीं फँसना चाहता था,उसकी जिन्दगी का का केवल एक ही उद्देश्य था और वो उद्देश्य था केवल अय्याशी,पहले तो उसने शहर में रहकर काँलेज की तमाम लड़कियों का जीवन बर्बाद किया लेकिन जब काँलेज की लड़कियाँ उसके गंदे इरादों को जानकर उससे दूर रहने लगी तो फिर उसने अपने गाँव का रूख़ किया जहाँ का वो रहने वाला था,जब कि उसके पिता समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गिने जाते थे,वें चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह बनें और समाज में उनका नाम रौशन करें,लेकिन उनके सपने चूर चूर हो गए,जब वें उसके बारें में कुछ सुनते तो यही सोचते कि ऐसी नालायक औलाद होने से तो वें बेऔलाद रहते तो अच्छा रहता,उनकी पत्नी भी बहुत पहले गुजर चुकी थी,इसलिए वें अपने मन की बात किसी से साँझा भी नहीं कर पातें और दिन रात इसी चिन्ता से ग्रसित रहने लगें और फिर एक दिन हृदयाघात उनके प्राणों को हर कर अपने साथ ले गया,
अब युद्ववीर सिंह बिल्कुल आजाद हो चुका था,उस पर अब अंकुश लगाने वाला कोई ना रह गया था,फिर उसने एक दिन नसीबन को अपनी बकरियाँ चराते हुए गाँव के खेतों में देखा वो उसका रंगरूप देखकर पागल हो गया और उसने उसे अपना बनाने की चाहत मन में पाल बैठा,वो अब उसका पीछा करने लगा,उसने एक दिन नसीबन से ये कह ही दिया कि वो उसे चाहने लगा है,ये सुनकर नसीबन आगबबूला हो उठी क्योंकि वो ऐसी लड़की नहीं थी,इसलिए उसने युद्ववीर सिंह के गाल पर एक तमाचा रसीद दिया और अपनी बकरियाँ हाँकतीं हुई घर को चली गई,युद्ववीर सिंह बेचारा अपना गाल सहलाता हुआ उसे जाते हुए देखता रहा,लेकिन अब युद्ववीर सिंह के सीने में बदले की आग जलने लगी और इस आग को बुझाने के लिए उसे नसीबन की अकड़ को तोड़ना था और उसकी अकड़ तोड़ने के लिए उसे एक अच्छा उपाय चाहिए था,इसलिए उसने एक उपाय सोचा और अपने सोचे हुए उपाय के अनुसार एक दिन वो फिर से नसीबन के पास पहुँचा,नसीबन ने उसे देखा और भड़ककर बोली....
तुम फिर आ गए,अब क्या अपना दूसरा गाल भी लाल करवाने आएं हों,
नसीबन की बात सुनकर युद्ववीर सिंह बोला....
नहीं!मैं तुमसे माँफी माँगने आया हूँ,मैनें उस दिन जो तुम्हारे साथ बर्ताव किया उसके लिए,बोलो मुझे माँफ करोगी ना!
अब नसीबन तो भोली भाली थी युद्ववीर की चालों को वो समझ ना सकीं इसलिए उसकी मीठी मीठी बातों में आ गई,जब युद्ववीर को लगा कि नसीबन उसकी बातों में आ गई है तो उसने नसीबन से पूछा....
क्या हमारी दोस्ती हो सकती है?
तब नसीबन बोलीं....
तुम तो बहुत अमीर लगते हो ,ऊपर से मुझसे उम्र में भी तो बड़े हो,हम दोनों की भला कैसें दोस्ती हो सकती है?
मैं अमीरी गरीबी नहीं मानता,बस इन्सानियत होनी चाहिए,बोलो बनोगी मेरी दोस्त,युद्ववीर बोला।।
और फिर बेचारी सीधी सादी नसीबन युद्ववीर की बातों में आकर उससे दोस्ती कर बैठी,अब युद्ववीर उसे लुभाने के लिए खाने के लिए नई नई चींजें देने लगा,क्योंकि वो उसकी कमजोरी जानता था कि वो गरीब है और गरीब की सबसे बड़ी कमजोरी भूख होती है और वो उसे शांत करने के लिए कोई भी कदम उठा सकता है,
खाने के साथ साथ अब नसीबन को भी कपड़े भी देने लगा,रोटी कपड़ा मिलने से अब नसीबन खुश रहने लगी तो उसकी अम्मी को उस पर शक़ हुआ,नसीबन ने सोचा कि कहीं उसकी बच्ची किसी गलत राह पर तो नहीं चल पड़ी,नसीबन की अम्मी ने जब उससे पूछा तो नसीबन ने सबकुछ साफ साफ बता दिया क्योंकि नसीबन के मन में खोंट नहीं था ,तब नसीबन की अम्मी उससे बोली....
बेटी!ये दुनिया बहुत गंदी है,जिसे तू अच्छा समझेगी वही यहाँ गद्दार निकल जाएगा,इसलिए बेटी यहाँ लोगों से सोच समझकर ही मेल जोल बढ़ाना,.
नसीबन को अपनी अम्मी की बात समझ में आ गई तो फिर उसने युद्ववीर से बात करनी बंद कर दी,इस बात से युद्ववीर तिलमिला गया और उसे जब नसीबन मैदानों में बकरियाँ चराती हुई मिली तो उसने ना मिलने का कारण पूछा,तब नसीबन बोलीं.....
मेरी अम्मी नहीं चाहतीं कि मैं तुमसे मिलूँ?
लेकिन क्यों?युद्ववीर ने गुस्से से पूछा।।
क्योंकि उन्हें किसी पर भी भरोसा नहीं,अगर तुम्हारी बात खतम हो गई हो तो अब तुम यहाँ से जाओ,नसीबन बोली।।
अब नसीबन का जवाब सुनकर युद्ववीर के गुस्से का पार ना रहा और वो आगबबूला होकर वहाँ से चला आया लेकिन अब उसे नसीबन भी चाहिए थी और उससे बदला भी,युद्ववीर के सम्पर्क में कई ऐसे लोंग भी थे जो गुण्डागर्दी वाला काम करते थे,यहाँ तक कि लोगों की हत्या करने से भी वें पीछे नहीं हटते थे,अब युद्ववीर ने उन्हें अपना काम पूरा करने के लिए बुलाया...
एक रात उसने नसीबन के घर में आग लगवा दी और नसीबन को अगवा करवाकर उसे शहर भेज दिया,उसे एक पुरानी सी कई सालों से बंद पड़ी फैक्ट्री में बंद करवा दिया,एक दिन बाद जब वो गाँव से शहर लौटा तो नसीबन के पास पहुँचा,नसीबन युद्ववीर को देखकर खुश हो गई उसे लगा कि युद्ववीर उसे बचानै आया है,लेकिन जब युद्ववीर ने स्वयं ही सारी सच्चाई नसीबन के सामने रखी तो नसीबन ये सुनकर बिलख पड़ी और युद्ववीर से बोली....
मैनें तुम्हारा क्या बिगिड़ा था जो तुमने मेरे साथ ऐसा किया?
मुझे तू पसंद थी लेकिन आसानी से तू मेरे जाल में नहीं फँसी इसलिए मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा,युद्ववीर बोला।।
लेकिन मैं अब भी तेरी कोई भी बात मानने को तैयार नहीं हूंँ,नसीबन गुस्से से बोली।।
तुझे मेरी बात तो माननी होगी,नहीं तो तेरा भी वही अन्जाम होगा जो तेरे घरवालों का हुआ,युद्ववीर बोला।।
कमीने!क्या किया तूने उनके साथ?नसीबन चीखी।।
तुझे अगवा करने के बाद मेरे लोगों ने तेरे परिवार वालों को लाठियों से पीटा और जब सब बेहोश हो गए तो मैनें तेरे घर में आग लगवा दी,अब कोई भी जिन्दा नहीं बचा है,सब जलकर ख़ाक हो चुका है,अब तू भी नहीं बचेगी,मुझे मना किया था तूने,थप्पड़ मारा था मेरे गाल पर ,आज मैं उस थप्पड़ का तुझसे बदला लूँगा,तू रो और कितना भी चिल्ला इस फैक्ट्री की दीवारों से तेरी आवाज़ बाहर जाने वाली नहीं और फिर उस दिन नसीबन युद्ववीर के सामने बहुत रोई और बहुत गिड़गिड़ाई लेकिन युद्ववीर ने उसकी एक ना सुनी और उसकी अस्मत से खिलवाड़ कर बैठा और फिर उसे जोहराबाई के कोठे पर भी बेच दिया,अब नसीबन जाती भी कहाँ क्योंकि जो उसका था वो तो पहले ही जलकर ख़ाक हो चुका था,इसलिए उसने जोहराबाई के कोठे पर रहना मंजूर कर लिया....
जोहराबाई बहुत दयालु थी इसलिए उसने नसीबन को सहारा दिया और उससे बोली....
बेटी!जब तक तू नहीं चाहती तो तब तक मैं तुझसे ये काम करने को नहीं कहूँगी,
लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था,जोहराबाई के कोठे पर रहने के तीन महीने बाद नसीबन को पता चला कि वो माँ बने वाली है,अभी वो केवल पन्द्रह साल की थी और पन्द्रह साल की उम्र में ही वो उस दरिन्दे युद्ववीर के बच्चे की माँ बनने वाली थी,अब तो नसीबन को खुद से नफरत सी होने लगी,पहले ही उसे अपनी अस्मत और परिवारजनों को खोने का सदमा लगा था,अब ये बच्चा जो उसके लिए आफ़त ही थी,जोहराबाई डाक्टरनी से मिली कि शायद नसीबन का हमल गिर सके लेकिन डाक्टरनी ने ये कहकर मना कर दिया कि.....
अभी लड़की की उम्र बहुत कम है,ऊपर से बच्चा तीन महीने का हो चुका है ,किसी भी प्रकार का गलत कदम उठाने से लड़की की जान को खतरा हो सकता है,इस बच्चे को उसके गर्भ में पलने दीजिए,जितना हो सकेगा मैं इसका ख्याल रखूँगी,इधर ज्यों ज्यों नसीबन के पेट का आकार बढ़ रहा था त्यों त्यों वो और भी परेशान होती जा रही थी,जिस इन्सान से वो सख्त नफरत करती थी उसकी नाजायज़ औलाद को अपने गर्भ में पाल रही थी और इसी कश्मकश़ के बीच आठवें महीने के अन्त में नसीबन को प्रसवपीड़ा उठी,जोहराबाई उसे फौरन अस्पताल ले गई,नसीबन ने वहाँ एक बच्ची को जन्म दिया और बच्ची को जन्म देते ही वो अल्लाह को प्यारी हो गई लेकिन मरते समय उसने जोहराबाई से वादा लिया कि वो उसकी बेटी को अपनी माँ की सारी सच्चाई बताएंगी ताकि एक दिन उसकी बेटी उस युद्ववीर से अपनी माँ के साथ हुए अन्याय का बदला ले सकें,जोहरा ने नसीबन से वादा किया कि वो उसे सब कुछ बताएगीं......
फिर जोहराबाई ने ही नसीबन की बेटी को पाल पोसकर बड़ा किया और उसका नाम हुस्ना बानो रखा,जवान होते होते जोहराबाई ने हुस्ना को उसकी माँ की सच्चाई से रुबरू करवाया,जोहराबाई तो मर गई लेकिन जाते जाते इस कोठे की मालकिन वो हुस्ना को बना गई,जब मुरारी हुस्ना के पास आया और उसने गौरी के बारें में उसे बताया तो हुस्ना और मुरारी का दुश्मन एक ही निकला,हुस्ना भी युद्ववीर से बदला लेना चाहती और मुरारी भी,इसलिए दोनों में इतनी पटती है,दोनों मिलकर कोई ना कोई योजना बनाते रहते हैं युद्ववीर से निपटने के लिए.....
लेकिन अभी तक अपनी किसी भी योजना को वें दोनों परिणाम तक नहीं पहुँचा पाएं हैं.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....