कामवाली बाई - (अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कामवाली बाई - (अन्तिम भाग)

हम आराम कर ही रहे थें कि वें बुजुर्ग फिर से हमारे पास आएं तो अम्मी ने पर्दा कर लिया,तब बुजुर्गों को देखकर पर्दे का चलन था,फिर चाहें वो बुजुर्ग किसी भी गाँव का ही क्यों ना हो और वें मेरे अब्बाहुजूर से बोलें....
बेटा!कौन से गाँव जाना है?
जी!यहाँ से कुछ कोसों दूर इमलिया गाँव है वहाँ जाना है,अब्बाहुजूर बोलें...
जी!बहुत अच्छा!लेकिन बेटा थोड़ी सावधानी बरतना,क्योकिं मैनें देखा है कि बहु और बच्चियों ने कीमती जेवरात पहनें हैं?बुजुर्ग बोलें....
जी!सावधानी किसलिए चचाजान?मेरे अब्बा ने पूछा।।
बेटा!इधर आस पास के इलाकें में बहुत डकैत लगते हैं और ख़ासकर ब्याह बारातों के समय वें और भी सक्रिय हो जातें हैं और उन्हें खून खराबे से भी कोई परहेज़ नहीं होता,वें बुजुर्ग बोलें।।
जी!चचाजान!हम सावधानी बरतेगें,मेरे अब्बा बोलें।।
हो सके तो दिन डूबने से पहले अपनी मंजिल तक पहुँच जाओ तो अच्छा होगा,बुजुर्ग बोलें।।
जी हम कोशिश करेगें कि दिन डूबने से पहले पहुँच जाएं,अब्बा बोलें....
फिर हमें कुछ और हिदायतें देकर वें बुजुर्ग चले गएं,तब अब्बाहुजूर हम सबसे बोलें....
अब यहाँ आराम करने का कोई मतलब नहीं,हमें अभी इसी वक्त यहाँ से चल देना चाहिए और फिर अब्बाहुजूर के हुक्म पर हम सब ताँगें में बैठकर इमलिया गाँव की ओर रवाना हो गए ,रहीम चाचा ने ताँगें की रफ्तार बढ़ा दी,बस थोड़ी देर के लिए हम एक जगह और रूकें क्योंकि घोड़े को दाना पानी देना था,फिर उसके बाद हम सीधे इमलिया गाँव अपने रिश्तेदार के घर पर ही रूकें,गनीमत थी कि हम दिन डूबने से पहले वहाँ पहुँच गए थे,हम निकाह में शरीक हुए,अम्मी और अब्बा तो बड़ो के बीच जाकर काम में हाथ बँटाने लगें लेकिन हम तीनों बहने और बच्चों के साथ वहाँ धमाचौकड़ी करने लगे,निकाह़ दो दिन बाद ही था,इसलिए सब अपने अपने लिबासों को तैयार कराने या उसकी माप सही कराने में जुटीं थीं,लड़की का निकाह था इसलिए और धूमधाम मची थी,
एक दिन ऐसे ही बीत गया,हम सबने वहाँ जायकेदार लजीज खानों का लुफ्त उठाया,फिर आई मेंहदी वाली रात और सभी जनानियाँ मेंहदी लगवाने बैठी और सभी मर्द बाहर का काम सम्भाल रहें थें,ऊपर से ठण्ड का मौसम था ,इसलिए जगह जगह आग सेंकने के लिए अँगीठियाँ भी जलाईं गईं थीं,
आधी रात होने को थी और सभी जनानियाँ मेंहदी लगवाकर,नाच गाकर सोने की तैयारियों में लगीं हुई थीं,मर्द भी बाहर का काम समेटकर एक एक करके भीतर ही आ रहें थें,तभी गोलियों की आवाज़ से सारा माहौल गूँज उठा,हम सब डरकर भीतर दुबक गए,मर्दों ने जनानियों से कहा कि कोई भी औरत बाहर ना निकलें ,शायद डकैत गाँव में घुस आएं हैं,हम सब यहाँ सम्भाल लेगें,तब मेरी अम्मी भी बहुत डर गई थीं,बगल वाली कोठरी में भूसा ठूँसा पड़ा था तो मेरी अम्मी ने हम तीनों बहनों को उसी भूसें के ढ़ेर में घुसा दिया और बोलीं जब तक मेरी या अब्बू की आवाज सुनाई ना दें तो बाहर मत निकलना....
उस रात हम तीनों बहनें भूसे के बड़े से ढ़ेर से बाहर ना निकले,बाहर से हमें तड़ातड़ गोलियाँ बरसने की आवाजें आतीं रहीं,लेकिन हम मुर्दों की भाँति उस कोठरी में भूसे के भीतर ही घुसे रहें और वहीं सो भी गए क्योंकि भूसा गरम था इसलिए हमें नींद आ गई,सुबह हुई हम जागें,हमें कहीं से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी,हमने सोचा हमें हमारी अम्मी आवाज़ देगीं तभी हम बाहर निकलेगें और तभी वहाँ हमें कुछ आवाज़े आईं,किसी ने उस कोठरी के दरवाजे खोलें और भीतर आया फिर उसने किसी को हुक्म दिया....
जरा इस भूसे के ढ़ेर में भी टटोल लो कोई यहाँ छुपकर ना बैठा हो और तभी दो तीन लोगों ने भूसे में डण्डे घोंपना शुरू कर दिए ,एक डण्डा मेरी सबसे बड़ी बहन नूरजहाँ के सिर से जा टकराया और वो चीख पड़ी,उसकी चीख सुनकर वहाँ मौजूद लोगों ने कहा....
सर!यहाँ पर कोई है,किसी के चीखने की आवाज़ आई।।
उन सभी लोगों ने पूरे भूसे को इधरउधर करके हमें ढूढ़ निकाला,वें पुलिस की वर्दी में थे,हमें तब थोड़ी तसल्ली हुई और तब उन पुलिसवालों ने हमसे बड़े प्यार से कहा....
बच्चियों!डरो मत ,बाहर आ जाओ ।।
और फिर वें सब हम तीनों बहनों को बाहर ले गए,जहाँ सबकी लाशें पड़ी थ़ी,इतनी सारी लाशें देखकर हम तीनों बहनें डर गए और हम तीनों से कहा गया कि पहचान कर बताओं भला,इन में से कोई तुम्हारा रिश्तेदार तो नहीं....
और वहाँ मौजूद लाशों में हम तीनों बहनों ने अपने अम्मी अब्बू की लाशों की शिनाख्त की,हमें पुलिस ने फौरन शहर के बड़े से यतीमखाने पहुँचा दिया,हमने कहा भी हमारा घर भी है तो वें बोलें...
वहाँ तुम्हारी हिफ़ाज़त कौन करेगा?
हम तीनों बहनें शहर के बड़े से यतीमखाने में रहने लगें तो गाँव के दबंग लोगों में से किसी ने हमारी हवेली पर कब्जा कर लिया तो किसी ने हमारी जमींने हड़प लीं,हम तीनों बहने यतीमखाने में बड़े हो रहे थे और फिर यतीमखाने में हैजा फैला,सभी बच्चे बीमार होकर अल्लाह को प्यारे हो रहे थे,तब मेरी बड़ी आपा नूरजहाँ भी बीमार पड़ी और एक दिन में ही खुदा ने उन्हें अपने पास बुला लिया,उसके बाद दूसरी आपा फातिहा भी बीमार हो गई और उसने मुझे मशविरा दिया कि मैं इस यतीमखाने से भाग जाऊँ ,नहीं तो मैं भी बीमार पड़ जाऊँगी,लेकिन मैं उस यतीमखाने से नहीं भागी और फिर उस रात मेरी फातिहा आपा भी इस दुनिया से रूखसत हो गई,फिर मैनें सोचा कि मैं अब इस यतीमखाने में नहीं रहूँगी और उस रात मैं उस यतीमखाने से भाग आई,रात को सड़क के किनारें मैं अकेले बैठी रो रही थीं,तभी वहाँ से एक मोटर गुजरी,सुनसान सड़क के किनारे मुझे अकेली देखकर मोटर मालिक ने अपने ड्राइवर से मोटर रोकने को कहा,मोटर रूकी और वो मोटर मालिक मेरे पास आकर बोलें.....
बेटी!यहाँ इतनी रात को अकेले क्या कर रही हो?
तब मैनें कहा कि....
मेरी दोनों बहनों का यतीमखाने में हैजे की वज़ह से इन्तकाल हो गया,मैं वहाँ रहती तो मैं भी मर जाती इसलिए वहाँ से भाग आई,अब मेरे रहने का कोई भी ठिकाना नहीं है,
ओह....तो चिन्ता मत करो बेटी!जिसका कोई नहीं होता ,उसका खुद होता है,वो ऊपरवाला बहुत रहम दिल है,एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है,उसकी रहमतों के दम पर ही ये दुनिया चल रही है,तुम मेरे साथ मेरे घर चलो,वहाँ मेरी बूढ़ी माँ है,जो तुम्हारा अच्छी तरह से ख्याल रखेगी,वें मोटर मालिक बोलें....
वो मोटर मालिक और कोई नहीं,शहर के जाने माने रईस फारूख़ चौधरी थे,उनके पास मनमानी दौलत थी लेकिन सुकून नहीं था,इसलिए वें सुकून की तलाश में कभी थियेटर जाते तो कभी क्लब,मैं उनके घर आई तो उनकी माँ ने मुझे बड़े प्यार से अपना लिया,तब बातों बातों में पता चला कि उनकीं पत्नी बच्चे को जन्म देते वक्त अल्लाह को प्यारी हो चुकीं थीं,फिर उन्होंने दोबारा निकाह़ नहीं किया,
लेकिन उनकी अम्मी उनसे बार बार जिद़ करतीं कि वें दोबारा निकाह कर लें और वें ना मानते,तभी उनकी अम्मी बीमार पड़ीं और उन्होंने अपनी अम्मी की देखभाल के लिए एक नर्स रखी,जिसका नाम तमकीन खान था ,नर्स ने उनकी अम्मी का इतना ख्याल रखा कि वें कुछ ही दिनों में सेहदमंद हो गईं,अब फारूख़ साहब की अम्मी को वो नर्स भा गई,तमकीन काफी खुशमिजाज और हँसमुँख भी थी,देखने में तो इतनी सुन्दर थी जैसी की शायरा बानों,तंग चूड़ीदार सलवार कमीज और ऊँचे जूड़े में वो किसी फिल्म की अदाकारा से कम ना लगती थी और फारूख़ साहब से उम्र में भी काफी कम थीं,फारूख़ साहब की तो अम्मी का बस उन पर दिल ही आ गया,अब अपनी अम्मी के लाख समझाने पर उन्हें तमकीन से निकाह के लिए राजी होना ही पड़ा...
बहुत ही सादगी के साथ मौलवी जी ने फारूख़ साहब और तमकीन खान का निकाह़ पढ़वा दिया,दोनों के निकाह के बाद फारूख़ साहब की अम्मी ने एक पार्टी रखी केवल अपनी बहु से सबका तआरूफ़ करवाने के लिए,अब तमकीन घर में तो आ गई लेकिन फारूख़ साहब ने उन्हें अपनी बेग़म के तौर पर कुबूल नहीं किया,क्योंकि वे अपनी पहली बेग़म को अभी तक भूल ना पाएं थे,ये निकाह तो उन्होंने केवल अम्मी की खुशी के लिए किया था,ऐसे ही पाँच साल गुजर गए और उन्होंने तमकीन को अपनी बेग़म का दर्जा नहीं दिया,मैं अब ग्यारह साल से सोलह साल की हो चुकी थी,लेकिन अब भी तमकीन बेऔलाद और अपने शौहर के प्यार से महरूम थीं...
फारूख़ साहब को अपनी पहली बेग़म से इतनी मौहब्बत थी कि वें तमकीन को अपनाने को राजी ही नहीं थे,इस बात से फारूख़ साहब की अम्मी भी ग़मज़दा थीं,अब तमकीन दिनभर घर में उदास बैठीं रहतीं क्योंकि अब तो उन्हें नौकरी करने की भी इजाजत नहीं थी,इसलिए वें और भी ग़मज़दा हो गईं,लेकिन तभी बगीचें में काम करने वाले रमजान मियाँ बीमार पड़े,वें घर में बागवानी करते थें,अब उन्होंने अपनी जगह अपने जवान और खूबसूरत बेटे राहिल को बागवानी के लिए घर भेज दिया,तमकीन ने जैसे ही राहिल को देखा तो अपने होश खो बैठीं,वो उसकी खूबसूरती पर फिदा हो गई और मन ही मन उसे चाहने लगी,फिर एक दिन उसके पास जाकर उसने अपने इश्क का इजहार भी कर लिया....
मैनें एक दिन उन दोनों को साथ में देख लिया,इससे तमकीन डर गई और मुझे बोली....
तुम चौधरी साहब को ये बात मत बताना,नहीं तो वें मेरी जान ले लेगें,फिर मैनें फारूख़ साहब से उस बात का कभी भी जिक्र नहीं किया,इसी दौरान फारूख़ साहब अपनी अम्मी को हज़ पर लेकर गए और उन्हें लौटने में काफी वक्त लग गया,उनके नदारद रहने पर तमकीन को अब किसी का भी डर नहीं था,इसलिए वो राहिल से खुलेआम मिलने लगी,फारूख़ साहब और उनकी अम्मी को गए हुए अब दो महीनों से ज्यादा हो चुके थे,इसी बीच उनका एक ख़त आया कि हज़ से लौटते वक्त रास्ते में उनकी अम्मी की तबियत ज्यादा खराब हो गई और वें अल्लाह को प्यारी हो गईं हैं और वें कुछ ही दिनों में घर वापस आ जाऐगें...
फारूख़ साहब की अम्मी के जाने का मुझे बहुत ग़म हुआ क्योंकि वें मुझे बहुत प्यार करतीं थीं,उन्होंने मुझे हमेशा अपनी बेटी की तरह चाहा था,उस ख़बर को सुनकर उस दिन मैं बहुत रोई और फिर कुछ ही दिनों में फारूख़ साहब भी घर आ पहुँचें,अभी फारूख़ साहब को घर आएं कुछ ही दिन बीतें थे कि एक दिन तमकीन चक्कर खाकर गिर पड़ी,डाक्टर साहिबा को बुलाया गया तो पता चला कि वें हामिला से हैं...
फारूख़ साहब ये बात सुनकर बिल्कुल सन्न हो गए,डाक्टर साहिबा ने फारूख़ साहब को मुबारकबाद दी और फारूख़ साहब के चेहरे पर एक बनावटी और रूखी मुस्कान बिखर गई,जब डाक्टर साहिबा चलीं गईं तो फारूख़ साहब ने तमकीन से पूछा.....
तमकीन ये मैं और आप दोनों ही अच्छी तरह जानते हैं कि ये हमल मेरा नहीं है,तो फिर आप ही बताएं कि ये हमल किसका है और अगर आप उसे चाहतीं हैं और उससे ही निकाह करना चाहतीं हैं तो आपको मेरी तरफ से पूरी इजाजत है लेकिन इसके लिए एक शर्त होगी....
शर्त का नाम सुनकर तमकीन अवाक् रह गई और उसने फारूख़ साहब से पूछा...
कौन सी शर्त?
कि ये बच्चा तुम हमें दे दोगी,बच्चे की पैदाइश के बाद आपका बच्चे पर कोई हक़ नहीं होगा,उस पर पूरी तरह से मेरा हक़ होगा,अगर आप मेरी ये शर्त पूरी करने को तैयार हैं तो आपको तलाक देने में मुझे कोई दिक्कत नहीं,लेकिन आपका बच्चा फिर मेरी सारी मिल्कियत का वारिस होगा और फिर कभी आप बच्चे पर कोई हक़ नहीं जताऐगीं....
तमकीन ने फारूख़ साहब की ये शर्त मंजूर कर ली,वो भी राहिल के साथ रहना चाहती थी,वैसें भी फारूख़ साहब तमकीन को चाहते ही नहीं थे,उन्होंने तो केवल अम्मी के कहने पर उससे निकाह किया था और अब फारूख़ साहब की अम्मी भी इस दुनिया में नहीं थे तो वें अपना फैसला लेने के लिए बिल्कुल आजाद थें,वें भी चाहते थे कि तमकीन घुट घुट कर ना रहें,उसे भी हक़ है अपने मनपसंद शौहर के साथ रहने का और फिर कुछ महीने बाद तमकीन ने एक बेटी को जन्म दिया,
बेटी के जन्म के बाद फारूख़ साहब ने तमकीन को तलाक़ दे दिया और तमकीन से बच्ची के गोद लेने के कागजात पर दस्तखत करवा लिए,अब फारूख़ साहब भी खुश थे और तमकीन भी खुश थी,उन्होंने तमकीन को तलाक देते वक्त बहुत रकम भी दी थी जिससे उसे अपनी आगें की जिन्दगी में दिक्कतों का सामना ना करना पड़े....
और फिर फारूख़ साहब ने मुझसे उस बच्ची की परवरिश करने को कहा,मैं भी बच्ची की परवरिश जी जान से करने लगी,कुछ दिनों बाद उन्होंने मेरा निकाह़ एक जमील नाम के लड़के से करवा दिया,वो उनके कारखाने में काम किया करता था,अब जमील भी उसी घर में रहने लगा था,हम सब बहुत खुश थे,मेरे शौहर जमील मुझसे बहुत मौहब्बत करते थे,लेकिन मेरी खुशियाँ केवल चंद दिनों की ही मेहमान थीं....
एक दिन जमील कारखाने में काम कर रहे थे,उस दिन बहुत बारिश हुई थी,पता नहीं कहीं से कोई बिजली की तार टूट गई थीं,किसी ने उस ओर ध्यान नहीं दिया,एकाएक कारखाने की मशीन बंद हो गई तो जमील ये देखने गये कि आखिर मशीन किस वज़ह से बंद हुई....
उन्हें पता नहीं था कि वहाँ बिजली के तारों में आग लग चुकी है और तार टूटकर जमीन पर गिर गए हैं जिसकी वजह से उस जगह में करंट फैल गया था,जमील वहाँ पहुंँचे और उन्हें वहाँ करंट के झटके लगें,उन्हें इतना वक्त ही नहीं मिला की वें चींख पाते और उसी वक्त वहीं पर उनकी जान चली गई....
फिर मैनें दोबारा निकाह का सोचा ही नहीं,जमील के जाने के बाद फारूख़ साहब ने मुझे बहुत सहारा दिया,अपनी बेटी की तरह रखा और मैनें उनकी बेटी जन्नत को अपनी बेटी की तरह रखा,फिर जन्नत बड़ी होने लगी और उसकी आदतें खराब होने लगीं,तब फारूख़ साहब ने उसे जेबखर्च देना बंद कर दिया,जेबखर्च ना मिलने पर वो थोड़ा सुधर गई,लेकिन जवान होते होते वो फिर से मनमानी करने लगीं,अब फारूख़ साहब बूढ़े हो चले थे,जन्नत को सम्भालना उनके वश की बात नहीं रह गई थीं,इसलिए पढ़ाई के लिए उन्होंने उसे विदेश भेज दिया,
पढ़ाई खतम होते होते उसे वहीं नौकरी मिल गई और उसने वहाँ फारूख़ साहब की मर्जी के बिना किसी अंग्रेज के साथ निकाह कर लिया,इस बात से फारूख़ साहब को सदमा लगा और उनकी तबियत नासाज़ सी रहने लगी, फिर एक दिन उन्होंने जन्नत से खफ़ा होकर अपनी वसीयत लिख दी कि जब तक मदीहा जिन्दा रहेगी तब तक उनकी सारी मिल्कियत की हक़दार वें ही रहेगीं,जब वों इस दुनिया से रूखसत हो जाएगी तब ये मिल्कियत मेरी बेटी जन्नत को मिलें ,तब से जन्नत मुझसे ख़फा रहने लगी उसे लगा मैनें ये सब धोखे से करवाया है और फिर एक दिन फारूख़ साहब को दिल का दौरा पड़ा और वें इस दुनिया को अलविदा कह गए,तब से जन्नत मेरे मरने की उम्मीद लगाएं बैठी है कि कब मैं इस जहाँ से उठूँ और ये सारी मिल्कियत उसके नाम हो जाएं,अब तो मुझे भी लगता है कि ऊपरवाला जन्नत की फरियाद सुन लें....
ये कहते कहते मदीहा की आँखें भर आईं....,गीता भी उनकी बातें सुनकर थोड़ी सी दुखी हो गई थी....
दिन ऐसे ही गुजर रहे थे ,उस दिन गीता घर पर थी,तभी दरवाजे पर दस्तक हुई,कावेरी लेटी थी और तीनोँ बच्चे स्कूल गए थे, इसलिए गीता ने दरवाजा खोला....
उसने देखा सामने ड्राइवर की वर्दी में एक व्यक्ति खड़ा है,गीता ने उससे पूछा....
जी कहिए,आपको किससे मिलना है?
जी!कावेरी जी यहीं रहतीं हैं,ड्राइवर ने पूछा।।
जी!हाँ!यहीं रहतीं हैं,गीता बोली।।
तो उन्हें बुला दीजिए,मेरे साहब ने उन्हें फौरन बुलवा भेजा है,उनके पास जरा भी वक्त नहीं है,ड्राइवर बोला।।
तब गीता ने कावेरी को बाहर बुलाया और कावेरी ने ड्राइवर से पूछा...
तुम्हें किसने भेजा है?
जी!सतवीर चोपड़ा साहब ने,उन्होंने आपको और आपकी छोटी बेटी को फौरन बुलवाया है,उनकी बहुत तबियत खराब है,उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है,ड्राइवर बोला।।
ये सुनकर कावेरी फौरन ही गीता से बोली...
चल गीता!साहब के पास जाना है और दोनों माँ बेटी घर का ताला लगाकर कार में बैठकर सतवीर साहब के घर चल दीँ,थोड़ी ही देर में वें उनके घर पर थीं,कावेरी को देखकर सतवीर साहब लरझती आवाज में बोलें.....
तुम ...आ गईं ...कावेरी! मैं जानता था कि तुम .....जरूर आओगी .....और ये कौन है ?गीता .....है ना!
तब कावेरी उदास मन से बोली...
हाँ!साहब!ये गीता है आपकी बेटी।
ये तो बहुत बड़ी हो गई हैं,सतवीर साहब बोलें...
बस!जैसे तैसे पालपोसकर बड़ा कर दिया मैनें,कावेरी बोली।।
कावेरी!मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है,इसलिए मैनें अपनी सारी जायदाद गीता के नाम कर दी है,अब तुम दोनों माँ बेटी को गरीबी में नहीं जीना पड़ेगा....
गीता अपने पिता से मिलकर बहुत खुश थीं ,सतवीर साहब ने उसके सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरा और फिर ऐसे ही उन सबके बीच बातें होतीं रहीं और ये मिलन केवल एक दो रोज का ही था फिर सतवीर साहब इस दुनिया को छोड़कर चले गए,सतवीर साहब के जाने का कावेरी को बहुत ग़म हुआ क्योंकि वो उनसे सच्चा प्यार करती थी और वो ये ग़म सह नहीं पाई ,कुछ रोज़ के दौरान कावेरी भी चल बसी....
अब गीता इस दुनिया में तीनों बच्चों के साथ अकेली रह गई,अब उसके पास दौलत भी थी लेकिन परिवार के नाम पर केवल तीन बच्चे ही थे,उसने अब कामवाली बाई का काम छोड़कर किताब की एक दुकान खोल ली थी,जहाँ वो गरीब बच्चों को मुफ्त में किताबें दिया करती थीं,तीनों बच्चे भी अब ठीक से पढ़ रहे थे,इसी दौरान उसे त्रिवेणी जी की बात याद आई....
उन्होंने कहा था कि तू अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखती?तब गीता ने अपनी किताब लिखना शुरू किया और उसका नाम रखा "कामवाली बाई", उसने उस किताब में अपनी सारी आपबीती लिखी और जब वो किताब बाजार में उतरी तो लोगों को बहुत पसंद आई,अब गीता ने लिखने का शौक पाल लिया था,वो किताब की दुकान चलाती और उसके साथ साथ लिखती भी.....
फिर एक दिन उसे ख़बर मिली कि मदीहा आपा नहीं रहीं और जन्नत ने सारी मिल्कियत पर कब्जा कर लिया है,उसे उनके जाने का बहुत दुख हुआ,लेकिन किसी के जाने से जिन्दगी नहीं रुकती और गीता की जिन्दगी भी नहीं रूकी यूँ ही चलती रही,उसने कभी शादी नहीं की और तीनों बच्चों को इस काबिल बना दिया कि अब उन्हें कोई भी कामवाली बाई के बच्चे ना कहता....
अब गीता की उम्र ढ़ल चुकी थी,जानकी विदेश में जाकर डाक्टरी कर रही थीं,शिव ने खुद की अपनी कम्पनी खोल ली थी और पूजा आर्मी आँफिसर थी,जब गीता उन्हें देखती थी तो उसे उन पर बड़ा गर्व होता,आखिर गीता ने समाज में अपनी पहचान बना ली थी और उन बच्चों को भी उस ऊँचाई तक पहुँचा दिया था जहाँ अब उन्हें कोई नीची नज़र से नहीं देखता था,एक कामवाली बाई ने दुनिया के इतने रंगों को देखने के बाद आखिरकार अपनी जिन्दगी में रंग भर ही लिए तो ये थी गीता कामवाली बाई की कहानी.....🙏🙏😊😊

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....