कामवाली बाई - भाग(२८) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कामवाली बाई - भाग(२८)

मैं मिस्टर सिसौदिया से दूसरे दिन मिली तो वें बोलें....
माँफ करना कैमिला!मैं कल अपने होश खो बैठा था,मैने बहुत ज्यादा पी ली थी,मुझे तो याद भी नहीं कि मैनें गुस्से में तुमसे क्या क्या कहा?
तब मैने उनसे कहा ....
सर!आपने नशे में कहा कि आप अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं...
मैं ऐसा कभी कह ही नहीं सकता कैमिला!क्योंकि मैं उनसे बहुत नफरत करता हूँ,सिसौदिया साहब बोलें....
लेकिन आपने ऐसा ही कहा था,मैनें कहा।।
मेरी माँ प्यार के काबिल ही नहीं थी,सिसौदिया साहब बोलें...
तो फिर आपको उनके जाने का इतना ग़म क्यों हैं?मैनें उनसे पूछा।।
मुझे उनके जाने का कोई ग़म नहीं है,सिसौदिया साहब बोलें...
झूठ बोलते हैं आप!मैनें कहा।।
नहीं!ये झूठ नहीं सच है,सिसौदिया साहब बोले।।
तब मैनें उनसे कहा.....
सच तो ये हैं सर!कि आप अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे और अब भी करते हैं,उनकी एक गलती ने उन्हें आपसे दूर कर दिया,लेकिन आप इतनी कोशिशों के बावजूद भी उन्हें आज तक भुला नहीं पाएं,अगर आप उन्हें अब भी माँफ कर देगें ना तो आपको अब भी सुकून मिल जाएगा और उनकी आत्मा को शांति,जब हम किसी से नफरत हैं तो उसकी वजह केवल प्यार होती है क्योंकि हम उनसे प्यार करते हैं तभी तो हम उनसे नफरत कर पाते हैं,हम ऐसा अजनबियों के साथ तो नहीं कर पाते ना!क्योंकि अजनबी हमारे दिल के करीब नहीं होते,आपकी माँ आपके दिल के सबसे ज्यादा करीब थी,इसलिए आप उन्हें भूल नहीं पा रहें,
आपको उनकी मौत का ग़म होता है तभी तो आप उनकी मौत वाले दिन इतना पीते हैं,आपको लगता है कि आप शराब में डूब जाऐगें तो आप उन्हें भूल जाऐगें लेकिन ऐसा कभी नहीं होता सर!जो हमारे दिल के सबसे करीब होते हैं उन्हें हम आसानी से नहीं भूल सकते,आप उन्हें भूलने की कोशिश करते हैं तभी तो आपको इतना दुख होता है,अगर आप उनकी गल्तियों को भूलने की कोशिश करेगें तो आपको इतना दुख नहीं होगा और आप अपनी माँ को फिर से पा लेगें,आपके मन से उनके प्रति कड़वाहट निकल जाएगी और आप खुद को हल्का महसूस करेगें,
आप जरा खुद से सोचकर देखिए कि जब आपके पिता अपने व्यापार में इतने ब्यस्त थे और आप अपनी पढ़ाई में तो वें खुद को कितना अकेला महसूस करती होगीं,कभी आपने और आपके पिता ने उनके मन की बात जानने की कोशिश की,अगर उन्होंने अपनी खुशी के लिए दो पल का सुकुन ढूढ़ लिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई,
और किसी पराएं मर्द के साथ हमबिस्तर हो जाना,इसे तुम क्या कहोगी?इसका जवाब है तुम्हारे पास,जब वो मेरे पिता को धोखा दे रही थी तब...सिसौदिया साहब चिल्ला उठे.....
तब मैनें उनसे कहा.....
आपके पता भी तो दौलत कमाने में लगे हुए थे,वो दौलत अपने घरवालों के लिए ही कमा रहे थें ना!लेकिन उन्होंने भी तो अपनी असली दौलत यानि कि अपने परिवार को अहमियत नहीं दी ना,आपके पिता की भी गलती थी जो एक जवान मर्द को उन्होंने अपने घर में रहने की इजाजत दे दी,माना कि उन्होंने दोनों पर भरोसा करके ऐसा किया लेकिन ये सही नहीं था,एक औरत के शरीर की कुछ ख्वाहिशें होतीं हैं कुछ जज्बात होते हैं जिन्हें आपके पिता ने पूरा नहीं किया तो उन्होंने किसी और को चुन लिया,सच तो ये हैं सर कि इन्सान चींजें तो ले लेता है लेकिन उन्हें अधिक समय तक चलने के लिए उनका रख रखाव करना बहुत जरूरी होता है,वैसे ही शादी भी होती है,शादी करने बस से सारी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती,रिश्तों को वक्त देना पड़ता है तभी वें ज्यादा वक्त तक चलते हैं लेकिन आपके पिता ने तो उन्हें वक्त ही नहीं दिया,तो उस रिश्ते का ऐसा हाल तो होना ही था,हमेशा हर जगह औरत ही गलत नहीं होती,आप जरा ठंडे दिमाग से सोचिए,वो वहाँ अस्पताल में मर रही थीं और आप दोनों बाप बेटे उन्हें देखने भी नहीं गए,जरा सोचिए क्या गुजरी होगी उन पर,वो तो अपने किए की सजा वैसे भी भुगत रही थीं लेकिन आप दोनों ने उन्हें जीते जी मार डाला,कैसें उनकी आत्मा ने अपना शरीर छोड़ा होगा जरा सोचिए....
अच्छा!एक बात बताइए अगर उनकी जगह आपके पिता के सम्बन्ध किसी और औरत के साथ होते और उनकी हालत भी ऐसी हो जाती,वें बीमार होकर बिस्तर पर लेट जाते तो क्या आपकी माँ उनके आखिरी वक्त में उनकी सेवा नहीं करतीं,क्या उनको यूँ ही अकेले मरने के लिए छोड़ देतीं जैसा आप दोनों ने उनके साथ किया,......नहीं....क्योंकि एक औरत कितनी भी सख्त क्यों ना हो जाएं लेकिन उसकी संवेदनाएंँ नहीं मरतीं,वो एक मर्द का साथ तभी छोड़ती है जब वो भीतर से टूट जाती है और दर्दो को सहन करना भी तभी छोड़ देती है,क्या आपकी माँ को खुश रहने का हक़ नहीं था?अगर उन्होंने अपनी खुशी के लिए कुछ कर लिया तो इसमें गलत क्या था?माना कि वो एक गैर मर्द के साथ हमबिस्तर हुईं ,मैं मानती हूँ कि उन्होंने गलत किया उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था,लेकिन सोचिए जरा वो उस मुकाम तक क्यों पहुँची?क्योंकि उनका कोई हमदर्द नहीं था,उनकी मनोदशा उस समय क्या रही होगी कि वो इतनी स्वार्थी हो गईं कि उन्हें कुछ भी होश नहीं रहा,ना उन्होंने अपने बच्चे के बारें में और ना ही अपने पति के बारें....और वें गैर मर्द की बाँहों में जाकर बहक गईं.....
सच तो ये हैं कि वो ऐसा करके खुद को और आपके पिता को सज़ा दे रहीं थीं,वे बेवफा नहीं थीं,वें तो बस ये जता रहीं थीं कि उन्हें भी खुश रहने का अधिकार है,वें हमेशा से बाहर पलीं बढ़ी थी,लेकिन शादी के बाद उस चारदीवारी में कैद हो गई,उन्हें भी साँस लेने का हक़ था,लेकिन उनकी जिन्दगी सिमटकर रह गई थी,वें किस से क्या बतातीं,उनके पास अपना कहने के लिए कोई भी नहीं था,बस इसी घुटन में उनसे ये अपराध हो गया....
मेरी माँ सच में गुनाहगार नहीं थी,सिसौदिया साहब बोले....
नहीं!...बिल्कुल नहीं!मैनें कहा....
तो क्या मुझे उन्हें माँफ कर देना चाहिए?सिसौदिया साहब ने पूछा।।
जी!बिल्कुल!मैनें कहा।।
और फिर उस दिन हम कब्रगाह गए,जहाँ सिसौदिया साहब की माँ को दफनाया गया था,हमने बहुत से फूल खरीदे और फिर सिसौदिया साहब अपनी माँ की कब्र पर फूल चढ़ाते हुए रो पड़े और बोलें.....
माँ!मुझे माँफ कर दो,मैनें आपको बहुत दुख दिए हैं....
और फिर सिसौदिया साहब अपनी माँ की कब्र के पास बैठकर बहुत देर तक रोते रहें...
और फिर उस दिन के बाद वें मुझे अपना सबसे अच्छा दोस्त मानने लगें,धीरे धीरे मैं भी उन्हें पसंद करने लगी और एक दिन उन्होंने मुझसे कह ही दिया कि क्या तुम मेरी जीवनसाथी बनना चाहोगी....
वें मुझसे उम्र में काफी बड़े थे ,मैं उस समय उनसे केवल इतना कहकर चली आई कि मुझे थोड़ा वक्त दीजिए मैं सोचकर बताऊँगीं,मैंने उस रात बहुत सोचा...
और फिर मैनें उनसे शादी के लिए हाँ कर दी लेकिन फिर मैनें उनसे कहा कि मैं भी आपसे अपने बारें में कुछ कहना चाहती हूँ तब आप मुझसे शादी करने के लिए राजी होइएगा और फिर मैनें उन्हें अपनी सारी सच्चाई बता दी,उन्हें मेरे अतीत को जानकर कोई भी परेशानी नहीं हुई और वें मुझसे बोलें....
मैं कल आष्ट्रेलिया जा रहा हूँ,एक डील पक्की करने ,वापस लौटकर हम दोनों पहले सगाई करेगें और फिर शादी,अब तुम्हें काम करने की कोई जरूरत नहीं,मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं हरगिज़ भी वैसा नहीं करूँगा ,जैसा मेरे पिता ने मेरी माँ के साथ किया था,व्यापार अपनी जगह और परिवार अपनी जगह होगा,हम तीनों अब एक साथ रहेगें ,तुम अगर चाहोगी तभी हम बच्चा पैदा करेगें नहीं तो एलिस ही हम दोनों की बेटी बनकर रहेगी और फिर ऐसा कहकर उस दिन सिसौदिया साहब चले गए....
लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि वो हमारी आखिरी मुलाकात थी,जब सिसौदिया साहब आष्ट्रेलिया से वापस लौट रहे थे तब उनका प्लेन क्रैश हो गया और वो मुझे छोड़कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए......
उनके जाने के बाद एक बार फिर से मैं अकेली हो गई,सिसौदिया साहब के जाने का मुझे बहुत ग़म हुआ,एक सच्चा दोस्त मिला था ईश्वर ने वो भी मुझसे छीन लिया,मेरी जिन्दगी एक बार फिर से उदास और वीरान हो गई,अब मेरे पास कोई काम भी नहीं था क्योंकि सिसौदिया साहब के व्यापार और सम्पत्ति का कोई भी दावेदार नहीं था,इसलिए सरकार उसे अपने कब्जे में ले लिया,जिससे मेरा काम भी जाता रहा,काँलेज में भी कोई और माँडल आ गई थी वो भी मुझसे कम उम्र की थी तो वहाँ भी मेरी जरूरत नहीं थीं,ऐसे ही छः महीने बीत गए,मेरे पास जो भी जमापूँजी थी वो अब खतम हो चली थी और मुझे अब तक कोई भी काम ना मिला था,तभी एक दिन मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई,मैनें दरवाजा खोला तो मूर्तिकार माधव खड़ा था,उसने मुझसे नमस्ते कि और बोला....
कैमिला मैडम !मुझे आपसे कुछ काम था,
मैनें कहा,हाँ कहो,
तब वो बोला.....
साहब के चले जाने से मेरा काम भी बंद हो गया,लेकिन ईश्वर की कृपा से एक जगह और काम मिला है लेकिन उनके पास कोई माँडल नहीं है,जिसकी मैं मूर्तियांँ गढ़ सकूँ,अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो आप ये काम करना चाहेगीं....
मैनें कहा,मैं भी कब से काम तलाश रही हूँ,अच्छा हुआ जो तुम आएं और मैनें उसे अंदर बिठाकर चाय नाश्ता कराया,वो मुझे एक पता देते हुए बोला आज शाम को आप यहाँ आ जाइएगा मैं भी वहीं मौजूद रहूँगा,आपको काम मिल जाएगा,उस दिन माधव मेरे लिए आशा की किरण बनकर आया था,वो मुझसे नफरत करता था लेकिन इसके बावजूद भी वो मेरी मदद करने आ पहुँचा,शाम को मैं उस पते पर गई और उन्होंने मुझे काम पर रख लिया,फिर से एक बार मेरी जिन्दगी ठीक से चलने लगी....
फिर मैनें माधव से एक बार पूछ ही लिया....
माधव तुम मुझे पसंद नहीं करते तब भी तुमने मुझे काम दिलवाया...
तब वो बोला....
आप एक औरत हैं इसलिए मैं आपकी इज्जत करता हूँ,लेकिन मैं आपके काम से नफरत करता हूँ,सभी औरतें घटिया नहीं होतीं,हो सकता है इस काम को करने के लिए आपकी कोई मजबूरी रही होगी।।
उस दिन मुझे लगा कि माधव की सोच गलत नहीं है....
अब मैं बहुत सी जगहों पर काम करने लगी थी,किसी भी एक जगह का काँन्ट्रेक्ट साइन करने से मैनें मना कर दिया था,इसलिए मुझे अब ज्यादा पैसें मिलने लगें,मैं अब काम के हिसाब से पैसें लेती,जिस दिन काम किया उसी दिन पैसें ले लिए,अब धीरे धीरे एलिस भी और बड़ी होने लगी थी,इस बीच मैनें केवल अपने फायदे के लिए कई पुरूषों से प्यार का नाटक किया,मुझे अब पता चल गया था कि सीधी सादी औरत के लिए इस दुनिया में कोई जगह नहीं है,इसलिए मैनें भी अब खुद को दुनिया के हिसाब से ढ़ाल लिया था,कई उद्योगपतियों को अपनी खूबसूरती के जाल में फाँसकर रखा और उनके दम पर ही मैनें खूब दौलत और शौहरत हासिल कर ली,लेकिन अब मेरे चेहरे की मासूमियत और बदन की नजाकत मेरा साथ छोड़ने लगी थी,अब मुझे अपनी खूबसूरती को निखारने के लिए मेकअप का ज्यादा सहारा लेना पड़ता था.....
इसी बीच मेरी मुलाकात स्वाराज मलिक से हुई ,जो बहुत ही अमीर और अपने माँ बाप की बिगड़ी हुई औलाद था,उसके बाप दादा खानदानी रईस थे,उन्हीं बाप दादा की दौलत के दम पर वो बहुत उछलता था,उसका बहुत सारी चीजों का व्यापार था,उसके एक फार्महाउस में तो घोड़े ही घोड़े पले थे,उसके ज्वैलरी स्टोर भी थे और सबसे बड़ा शोरूम तो उसका संगमरमर की मूर्तियों का था,जहाँ वो औरतों की अर्धनग्न मूर्तियाँ बेचा करता था और उसकी उन मूर्तियों की माँडल मैं थीं,मैंने अपने काम के लिए उसे फँसा रखा था और उसका तो शौक ही था नित नई नई लड़कियों से सम्पर्क बनाना,मैं उसे अपने घर में केवल इसलिए घुसने देती थी क्योंकि मैं उसके लिए काम करती थी और वो मेरे घर में केवल एलिस के लिए घुसा करता था,वो मुझसे अक्सर कहता कि तुम्हें अपनी छोटी बहन को भी माँडल बनाना चाहिए ,उसका फिगर कितना अच्छा है और उसकी ये बात मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी,मैनें तो मजबूरी में ये राह पकड़ी थी लेकिन मैं ये काम एलिस से कभी भी नहीं करवा सकती थी,जवान होती एलिस पर उसकी गंदी नजर थी.......
उससे दोस्ती बनाएं रखना मेरी मजबूरी थी क्योंकि मैं उसके लिए काम करती थी,मैं हरदम कोशिश करती कि वो एलिस से दूर रहें लेकिन मैं जब भी घर पर नहीं होती तो वो आ धमकता और अपनी मीठी मीठी बातों से वो एलिस को फँसाने की कोशिश करता,एलिस कमउम्र और मासूम थी,उसे बहकाना बहुत ही सरल था,इसलिए वो घर पर मेरी नामौजूदगी मे ही आता और उसके लिए महँगें महँगें तोहफें लाता,जब मैं घर लौटती तो उसे घर पर मौजूद पाकर मेरा पारा चढ़ जाता और इससे ज्यादा गुस्सा मुझे तब आता जब एलिस उसका लाया हुआ उपहार मुझे चहकते हुए दिखाती,मैं जब एलिस को उससे दूर रहने के लिए कहती थी तो वो मुझसे कहती.....
दी...मिस्टर मलिक इतने अच्छे इन्सान तो हैं,पता नहीं आपको क्यों पसंद नहीं हैं...?
मैं भला उससे कैसें कहती कि तू मेरी बेटी है और वो एक भेड़िया जो तुझे हमेशा नोचने की ताक में रहता है,मैं दिनभर ऐसी निगाहों के बीच रहती हूँ,कई बार ऐसा लगता कि एलिस को सब सच सच बता दूँ लेकिन फिर मैं सोचती कि ना जाने वो कैसी प्रतिक्रिया दें,कहीं वो इस बात को लेकर मुझसे नफरत करने लगी तो मैं उसकी नफरत लेकर जी नहीं पाऊँगी.....
दिन ऐसे ही गुजर रहे थे और अब स्वाराज मलिक के यहाँ मुझे काम करते दो साल होने को थे,फिर मुझे कहीं और काम मिल गया तो मैनें स्वाराज मलिक का काम छोड़ दिया,मैनें सोचा था कि स्वाराज मलिक का काम छोड़ दूँगीं तो उससे दूरियाँ भी बढ़ जाएंगी लेकिन नहीं,वो तब भी मेरे घर आता जाता रहता और धीरे धीरे आखिर उसने मासूम एलिस को अपने जाल में फँसा ही लिया और उस रात जब मैं काम से लौटी तो मैने दरवाजे पर मलिक की कार को खड़े पाया,मुझे कुछ शंका हुई,मैनें घर का दरवाजा खोला क्योंकि मेरे पास भी घर की एक चाबी रहती थी,तो मैं बिना शोर मचाएं घर के भीतर घुसी,मेरी आदत थी कि घर आने के बाद मैं एलिस के कमरें में उसे देखने जरूर जाती थी ,लेकिन उस रात माजरा कुछ और ही था क्योंकि स्वाराज मलिक घर पर था, फिर मैं चुपके से एलिस के कमरें की ओर गई तो मैनें देखा कि स्वाराज मलिक और एलिस उसके बिस्तर पर एक साथ थे,मैनें उन दोनों को देखते ही कहा.....
मुझ तुम दोनों से ये उम्मीद नहीं थी...
मेरी आवाज़ सुनते ही दोनों अपने अपने कपड़े सम्भालने लगें,लेकिन तब कोई फायदा नहीं था मैनें सब देख लिया था,मैं डाइनिंग हाँल की ओर आई और दोनों भी मेरे पीछे आएं,लेकिन मेरी आँखों में तो खून सवार था,मलिक मेरे पास आकर बोला...
कैमिला ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रही हो?
मैं उस वक्त बहुत गुस्से में थी और मैनें वहीं कोने पर रखा पीतल का फूलदान उठाकर मलिक के सिर पर दे मारा,उसे लगी तो वो गुस्सा हो उठा,लेकिन फिर मैनें उसी फूलदान से बिना रूके उसके सिर पर छः सात वार और किए और वो खून से लथपथ होकर फर्श पर गिर पड़ा फिर एलिस मेरे पास आकर बोली....
दी...आपने ये क्या किया?
मैनें आव देखा ना ताव डाइनिंग टेबल पर मौजूद फलों की बास्केट में रखा चाकू उठाया और एलिस के पेट में घोंप दिया और फिर दो तीन बार उसके पेट से निकाल निकालकर घोंपती रहीं,फिर एलिस भी वहीं फर्श पर गिर पड़ी और फिर मैं सुबह होने का इन्तजार करने लगी क्योंकि मैं पहले जी भर के रोना चाहती थी,सुबह होने पर मैंने पुलिस को फोन किया तब तक गीता भी आ पहुँची,बस यही कहानी थी मेरी....
एलिस की कहानी सुनकर गीता आश्चर्यचकित थी.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....