करोड़ों-करोड़ों बिजलियां - 5 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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करोड़ों-करोड़ों बिजलियां - 5

अध्याय 5

इंटरकॉम पर थोड़ी देर बात करके रिसीवर को वापस जगह पर रखने पर आदित्य का चेहरा पसीने से भीग गया |

“मिस वैगई.........”

“सर.............”

“मैुझे और आपको तुरंत अकाउंट सेक्शन में जाना है....”

“सर एनीथिंग रॉन्ग.....?”

“आई. टी. के लोग आए है..........”

वैगई के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आई| आई. टी. के लोग ही तो हैं ? आने दो......!”

“क्या है वैगई........ वे हम लोगों के साथ बैठ कर चाय पीने नहीं आ रहे हैं | दे हेव कम फॉर रेड ” आदित्य के घबराने से वैगई की मुस्कान बड़ी हो गई |

“साहब...........! क्या टैक्स देने में कुछ कमी करने वालों को आई. टी. के लोगों को देख कर डरना चाहिए | अपने अस्पताल के अकाउंटस में सब क्रिस्टल क्लियर है | हम किसलिए डरें ?”

“अकाउंट ठीक रहे, तो भी वे लोग हजारों प्रश्न पूछ कर कोईन कोई रास्ता निकाल लेते हैं| अप्पा भी शहर में नहीं है |”

“सर.......... उनके पूछे जाने वाले उन हजारों प्रश्नों का जबाब मेरे पास है | आपको कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं | मैं बात कर लूँगी | लेट अस गो वे लोग वेट कर रहे होंगे |”

“आप उन्हें फेस कर सकेंगी ?”

“यू डोन्ट वरी सर........ आई केन.......” लिफ्ट खाली इंतजार कर रही थी, उससे वे ग्राउंड फ्लोर पर आ गए और फिर अकाउंट सेक्शन आए | सेक्शन के कर्मचारी एक तरफ खड़े थे, एशग्रे कलर के सफारी सूट पहने पाँच लोग गंभीर चेहरे के साथ दिखाई दिये | आदित्य को देखते ही गंजे सिर वाला एक व्यक्ति पास में आया | अपने आई. टी. के कार्ड को दिखा कर उसने पूछा-

“मिस्टर आदित्य |”

“यस..........”

“पिछले साल आपने जो रिटर्न फ़ाइल किया उसमें हमें कुछ संदेह है........ उसी संदेह के निवारण के लिए आए हैं | हमें आपका सहयोग चाहिए |” वे अँग्रेजी में बोले, वैगई भी बीच में अँग्रेजी में बोली |

“एक्सक्यूज मी......... ! ये विदेश से कल ही आए हैं | आपको कुछ संदेह हो तो मुझसे ही पूछना पड़ेगा.......”

“आप ?”

“मैं वैगई हूँ...............असिस्टेंट अकाउंट ऑफिसर.........”

“देन नो प्रॉबलम..... यहाँ कुल ग्यारह अलमारियां हैं | उनकी चाबी चाहिए………..”

“एक मिनिट साहब” कह कर वैगई ने अपने मेज पर जाकर ड्रायर को खोल, चाबी के गुच्छे को निकाल कर दिया |

“हर एक अलमारी का एक नंबर है, वही नंबर चाबी में भी लिखा है साहब | आप आराम से एक-एक अलमारी को जरूरत के हिसाब से खोल कर रिकॉर्ड और फाइलों को देख सकते हैं” |

गंजे सिर वाला चाबियों के गुच्छे को लेकर वैगई को देख मुस्कराया |

“साधारण: हम जहां एंक्वायरी करने जाते हैं, वहाँ हमें देख कर ही लोग मुंह खोल कर पसीना-पसीना होकर देखते रहते हैं | चाबी का गुच्छा मांगों तो मैनेजर लेकर गए या कहीं गुम गया ऐसा बोलते हैं | परंतु आप तो चाबी देकर सहयोग कर रहे हो हमें आश्चर्य हो रहा है |”

वैगई अपने कंधे को जरा उछाल कर हँसते हुए बोली, “सर........|” “ये कोई बड़े मंत्री जी का आडंबर वाला बंगला नहीं है | अस्पताल है | सेवा भाव मन में रखकर काम करने वाला एक उच्च स्तर का अस्पताल | गरीब और मध्यम वर्ग यहाँ झांक कर भी नहीं देख सकते ये एक कमी के अलावा और कोई कमी नहीं है अस्पताल में | हिसाब किताब में कम्प्यूटर ही गलत कर दें पर हम नहीं करते | आप अपना काम कर सकते हैं साहब |”

उनके चाबी का गुच्छा लेकर जाते समय दो लोग और उनके साथ हो लिए और जो बाकी दो लोग थे वे एक अलमारी के पास गए, दूसरा ‘डस्ट बिन’ के पास जाकर पैरों को मोड कर बैठकर उसमें जो कागज मोड-माड़ के फेंके गए थे उन्हें खोल देखना शुरू किया | वैगई उनके पास जाकर झुकी |

“क्यों साहब कचरे में कोई गोमेद मिलेगा ऐसा सोच रहे हो क्या ?”

वे मुस्कराये | “ये हमारा देखने का साधारण तरीकों में से एक तरीका है | आपने जैसे कहा कई जगह हमें गोमेद ही नहीं हीरा भी मिला है |”

“इस जगह आप इस तरह की चीजों की आशा नहीं कर सकते साहब | इस वेस्ट बिन का काम होते ही बताइएगा | इस सेक्शन में ऐसे तीन और वेस्ट बिन हैं | उसे भी खंगाल कर देख लें |”

उस अधिकारी के घूरने की परवाह किए बिना वैगई आदित्य के पास आई | आदित्य का माथा पसीने से भीग रहा था | बाएँ हाथ में रखेरुमाल से हर 10 मिनिट में एक बार कार के वाइपर जैसे रगड़ कर पोंछ रहा था |

“सर बी कम्फ़र्टेबल............ आपको इतना रेस्टलेस होने की जरूरत नहीं |”

“नो वैगई........ आई फील गिल्टी | आई. टी. के विषय में हम साफ रहें..... टैक्स ठीक से दिया है | फिर इस तरह इन लोगों के आकर देखने से हमारा अपमान नहीं है क्या ?”

“ये अपमान नहीं साहब | पत्थर मारना है |”

“हाँ साहब....! फल के पेड़ को ही पत्थर की मार खानी पड़ती है एेसा बोलते हैं....... पूरे तमिलनाडु में नंबर वन अस्पताल है अपना हंसा हॉस्पिटल | पेशेंटस ‘एक्यूरेट’ दूसरे अस्पतालों से ज्यादा यहीं पर हैं ये सत्य है, अपने शत्रु इसे हजम नहीं कर पाये | उस अजीर्ण का फल ही ये रेड.... है |”

“यहाँ अकाउंट सब ठीक रहेगा ना वैगई ? कुछ खोद-खाद कर ढूंढ के निकाल दें |”

वैगई हंसी | “सर........... यहाँ सब साफ है | कोई भी कुछ भी खोद नहीं सकता, छीन भी नहीं सकता |”

उनके देखते हुए जब आधा घंटा हुआ, तब सातवीं अलमारी के पास खड़े गंजे ने मुड कर देखा , “मिस वैगई” बुलाया | उनके हाथ में कम्प्यूटर से प्रिंट किया कागज था |

“यस |” वैगई पास गई| उस समय गंजा तमिल में बोला |

“पिछले साल इस अस्पताल में कुल 721 बाय-पास सर्जरी हुई थी ?”

“हाँ साहब”

“अर्थात साधारण: एक या दो सर्जरी |”

“यस |”

“बात यह है इस स्टेटमेंट में 711 सर्जरी का ही बिल पे किया है | बाकी दस सर्जरी के बिल का पे नहीं किया क्यों ?”

“वह दस सर्जरी फ्री किया था साहब |”

“वे कौन-कौन हैं उनका विवरण और पता दे सकते हो ?”

“रक्षा, न्याय, छाया, करुणा जैसे वृद्धाश्रम में रहने वाले दस जनों का किया | आप उनसे वहीं जाकर क्रॉस चेक कर सकते हैं |”

“हर साल ये फ्री सर्विस होता है |”

“जरूरत के हिसाब से होता है |”

“इस अस्पताल को दवाई सप्लाई करने वाली फॉर्मसुटेकल कंपनियों की लिस्ट चाहिए |”

“एक मिनिट........” बोली वैगई फिर पास में रखे कम्प्यूटर के सामने जा बैठी और की बोर्ड के बटनों को दबाया | अगले कुछ क्षणों में पैदा हुआ प्रिंट आउट लिस्टों को झाड कर उनके हाथों में दिया |

उसके करीब तीन घंटे बाद |

अलमारियों से निकाली गई सैंकडों फाइलों को पलटा उन्हें जहां संदेह हुआ प्रश्न पूछा तो उन प्रश्नों का जवाब एक क्षण भी बिना सोचे माथे पर बिना बल डाले, वैगई ने जवाब दिया, तो आदित्य स्तंभित होकर जम सा गया |

आई. टी. के अधिकारी लोग ढाई बजे बाद ही रवाना हुए | आदित्य के हाथ को पकड़ कर गंजा बोला- “सॉरी............ सर..........! आपके अस्पताल के बारे में हमको मिली सभी सूचनाएँ झूठी निकली | हिसाब- किताब में कहीं भी कोई गलती नहीं है |”

पास में आकर खड़ी हुई वैगई हंसी |

“साहब........! आपका तीन घंटा वेस्ट गया | राजनैतिक नेता के घर नहीं तो सिनेमा हीरोइन के घर गए होते, तो कई करोड़ समेट कर जा सकते थे |”

“न्याय की बात है | चले एम. सी............?”

वैगई आश्चर्य से देखी |

“साहब मेरा नाम एम. सी. नहीं वैगई है |”

“मालूम है | हमने आपके नाम को एम. सी. में बदल दिया |”

“एम. सी. का मतलब ?”

“मोबाइल कम्प्यूटर”

अस्पताल के केंटीन में आमने सामने बैठ कर चाय पी रहे थे वैगई और अर्चना |

शाम साढ़े चार बजे |

“वैगई ! आज ‘टॉक ऑफ दी हॉस्पिटल’ तुम ही हो......... दो डॉक्टर हों....... या दो नर्स मिलें तो तुम्हारे बारे में ही बात हो रही है|”

वैगई मुस्कुराइ | “अकाउंट सेक्शन में काम करती हूं , आई. टी. के लोगों को फेस किया........ ये मेरा कर्तव्य है | अकाउंट में किसी तरह की गलती नहीं थी साफ था | उन्होंने देखा चले गए | इसमें मेरा एडवेंचर क्या है अर्चना ? आई. टी. इज माई जॉब...........”

“फिर भी उन्हें धैर्य से फेस करना वह हिम्मत कितने लोगों को होता है ? चीफ डॉक्टर का सन् आदित्य, उन तीन घंटों में वे पूरी तरह हिल गए और एक हफ्ते वे अस्पताल की तरफ झांक कर भी नहीं देखेंगे ऐसा मैं सोचती हूँ |”

“मैं भी आप लोगों को जॉइन कर सकता हूं क्यामिस वैगई..........?” अपने पीछे आवाज सुन मुड़ कर देखा वैगई ने |

ईलम चेरियन कंधे पर टंगे झोला टाइप थैले को लटकाये, छाती पर दोनों हाथों को बांधे खड़ा था |

“ओह ! ईलम चेरियन............ आइये ! कैसे इतनी दूर.......... अस्पताल में किसी को देखने आए ?”

“इस अस्पताल में मेरी जानने वाला चेहरा एक आप ही हो...... आपको देखने आया |”

“क्या बात है.........? बैठिए..........” कह कर वैगई अर्चना की तरफ मुड़ कर बोली “अर्चना ! ये मेट्टिओचै पत्रिका प्राइम रिपोर्टर ईलम चेरियन है |”

“दोनों के हैलो कहने के बाद अर्चना ने पूछा |

“पत्रिका कैसे चल रही है ?”

“बहुत बढ़िया ! हफ्ते में छ: लाख प्रतियाँ हॉट केक सेल...... महिलाओं के पत्रिका में ये मेट्टिओचै पहली स्थान पर थी |”

“सुनने में ही आश्चर्य हो रहा है | इस इंटरनेट युग में एक पत्रिका इतनी बिकती है ?”

“हम लोगों को भी यही आश्चर्य होता हैं |”

“कहिए ईलम चेरियन ! किस विषय के बारे में मुझे देखने आए |”

“वह…………. जो है............. ईलम चेरियन के हिचकिचाते समय ही, वैगई के बाए हाथ में पकड़ा मोबाइल बज उठा |

उसने कान में लगाया |

“हैलो”

“कौन वैगई है ?” एक आदमी की आवाज ने अधिकार के साथ पूछा |

“हाँ........ आप.............?”

“मैं नित्यानंदन बोल रहा हूँ | दयानिधि ट्रस्ट का मुखिया |”

“ओह....... आप हैं क्या ? बोलिए सर |”

“हमने जो दिया वह चेक बैंक में डाल दिया क्या ?”

“डाल दिया सर |”

“हमारे हिस्से के रुपये कब मिलेंगे ?”

“कल सुबह ग्यारह बजे बैंक से लाकर मैं ही आपकी जगह आकर दे दूँगी |”

“भूल मत जाना माँ”

“आप लोगों को भूल सकते हैं क्या सर ? कल सुबह ग्यारह बजे आपके सामने रुपये के साथ हाजिर होउंगी | कह कर सेल फोन को बंद किया वैगई | अर्चना हाथ धोने वोशबेसिन पर गई थी | सामने बैठा ईलम चेरियन ने पूछा “फोन पर कौन था ?”

गुस्से से सीधी हुई वैगई | “लुक मिस्टर ईलम चेरियन ये आपकी जरूरत की बात नहीं |”

वह चालीस डिग्री सिर को झुका कर हंसा |

“आपसे बात करने वाला कौन था मैं बताऊँ ?”

वैगई ने थोड़े आश्चर्य से उसे देखा, वह बोला | आपसे जिसने बात की वो दयानिधि ट्रस्ट का अध्यक्ष नित्यानंदन ही था न! ठीक है मिस वैगई.........?”

..........................