हॉंटेल होन्टेड - भाग - 24 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 24

मनीष चुपचाप जंगल में बैठा हुआ था, उसे इसी बात का डर था की कहीं वह जो सोच रहा है,वह सच ना हो पर अंकिता आखिर ऐसा क्यों करेगी? वह इन्हीं सब खयालों में खोया हुआ था कि तभी पाटिल उस पर दबाव बनाते हुए कहता है "क्या तुम जानते हो कि यह रिंग किसकी है?" मनीष के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता है "अंकिता......" अंकिता का नाम सुनकर पाटिल को भी जैसे एक झटका सा लगता है, वह भी यही सोचना लगता है कि आखिर अंकिता ऐसा क्यों और कैसे कर सकती है? अभी वह इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी मनीष को उसने दौड़ते हुए होटल की ओर जाते हुए देखता है। वहां जोर से चिल्लाता है "मनीष रुक जाओ जल्दबाजी में कोई गलत कदम मत उठा लेना" इतना कहकर वो और सभी पुलिसवाले उसके पीछे दौड़ने लगते है।

मनीष बहुत तेजी से दौड़ने जा रहा था,उसे इस वक्त किसी चीज की फिक्र नहीं थी। पाटिल और उसके ऑफिसर भी उसके पीछे दौड़ रहे थे। ऊपर आसमान में भी अब बदलाव आने लगा था, अचानक जंगल में धुंध छाने लगती है जिसकी वजह से पाटिल को अब मनीष साफ़ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। पाटिल को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि अचानक यहां धुंध कैसे आ गई? वह जैसे तैसे उस धुंध से बाहर निकलते हैं तो उन्हें मनीष कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।

इस तरफ होटल के कमरे में कविता निलेश से किसके बारे में बात ही कर रही थी कि तभी होटल की सभी लाइट चली जाती है और पूरे होटल में अंधेरा छा जाता है। निलेश कविता से कहता है "अरे लाइट कैसे चली गई?" कविता भी पहले थोड़ा डर जाती है पर जब वह खिड़की से बाहर देखती है तो बाहर सोरों से बादल गरज रहे थे इसीलिए वह नीलेश से कहती है "लगता है आज रात बहुत बारिश होने वाली है इसलिए तेज हवाओं की वजह से शायद कोई प्रॉब्लम हो गई होगी, तुम फोन रखो मैं पता करती हूं।" इतना कहने के बाद वह फोन कट कर देती है।

फोन रखने के बाद वह अपने कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर कोरिडोर में देखती है तो कॉरीडोर में काला अंधेरा और दिल को चुभनेवाला सन्नाटा छाया हुआ था। उसने अपनी फोन की लाइट ऑन की और कॉरीडोर में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी, पर अंधेरा इतना ज्यादा था कि उसे ज्यादा दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। तभी एक ठंडी हवा का झोंका उसके शरीर को छूता है और वह अपने दोनों हाथों को अपने शरीर के ऊपर लपेट ते हुए कहती है "इस वक्त इतनी ठंड!"

कॉरीडोर में चलते हुए एक खिड़की के पास पहुंचने वाली थी कि तभी बाहर बहुत जोर से बिजली कड़कती है और उसकी रोशनी में कविता को खिड़की के पास एक इंसानी आकृति दिखाई देती है पर उसके अगले ही पल वह उसकी नज़रों के सामने से गायब हो जाती है। अब उसे थोड़ा डर लगने लगा था और वह खुद को हौसला देते हुए आगे चलने लगती है।

नीचे कार में निलेश कविता के फोन का wait करते हुए थक चुका था तभी कार के ऊपर पानी के बूंदों के गिरने की आवाज आती है और धीरे-धीरे करते हुए वह पूरी जगह पानी में भीगने लगती है। निलेश परेशान होते हुए कहता है "लो अब इसी की कमी थी।" तभी उसके दिमाग में कुछ आता है और वह अपना लैपटॉप निकालता है, लैपटॉप चलाते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

उसके लैपटॉप की स्क्रीन पर कविता के रूम की पूरी लाइव रिकॉर्डिंग दिखने लगती है, उसने अपना लैपटॉप कमरे के कैमरा से कनेक्ट कर लिया था। अभी भी पूरे कमरे में अंधेरा छाया हुआ था,पर बाहर से आती हुई कुछ रोशनी की वजह से थोड़ा उजाला था।लैपटॉप पर देखता है तो कविता अपने बेड पर लेटी हुई थी। वह थोड़ा नाराज होते हुए कहता है "मुझे कब से इसकी फिक्र हो रही है और यह सुकून से आराम कर रही है,चलो कोई बात नहीं।" इतना कहकर वह अपना लैपटॉप साइड में रख देता है।वह कार की खिड़की से बाहर देखता है तो अभी भी बारिश जोरो से पड रही थी इसलिए वह थोड़ी देर वहीं रुकने का डिसाइड करता है।


इस तरह कविता को एक बात बहुत अजीब लग रही थी होटल में लाइट नहीं थी फिर भी पूरे कॉरिडोर या होटल में एक भी आदमी की आवाज़ या चहल पहल नहीं दिख रही थी, जैसे पूरा होटल खाली हो, तभी उसके कंधे पर कोई हाथ रखता है।वह घबराते हुए पीछे मुडती है तो पाती है की उसके पीछे अंकिता खड़ी हुई है। उसे देख कर कविता चौंकते हुए कहती है "अंकिता तुम यहां?"


उसकी बात सुनकर अंकिता मुस्कुराते हुए कहती है "वैसे मैंने तो अभी तक तुम्हें अपना नाम नहीं बताया और मुझे नहीं याद आ रहा कि हम पहले भी कभी मिले हैं?" अंकिता की बात सुनकर कविता को एहसास होता है कि उसने जल्दबाजी में कितनी बड़ी गलती कर दी है। वह बात को छुपाते हुए कहती है "अरे वह तो मैंने तुम्हें नीचे कल बात करते हुए देखा था तो तुम्हारा नाम ऐसे ही याद रह गया था।"


उसका जवाब सुनकर अंकिता मुस्कुराते हुए कहती है "तुम्हें और नीलेश को रिया के बारे में जानना ही था तो इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत थी, मुझसे पूछ लेती तो मैं ही बता देती।" अंकिता की बाइक सुनकर वह चौंकते हुए कहती है "तुम्हें यह सब कैसे पता?" अंकिता इस वक्त पीछे मुड़कर खड़ी थी और जैसे ही वह रिया की तरफ मुड़ती है रिया के मुंह से चीख निकल जाती है। उसके पैर कांपने लगते हैं क्योंकि इस वक्त उसका पूरा चेहरा रिया के जैसा दिख रहा था चेहरे पर कई घाव के निशान, आंखों में से निकलता हुआ खून, वह कविता की तरफ देखते हुए कहती है "मुझे नहीं पता तो और किसे पता होगा? आखिर मौत की तो मेरी ही हुई है।"


यह देखकर कविता भागने के लिए खड़ी होती है, पर जैसे ही वह भागने की कोशिश करती है, अंकिता दीवार पर लगी एक पेंटिंग पर हाथ मारती है जिससे उसका कांच टूट जाता है। उसमें से एक कांच का टुकड़ा उठाकर वह कविता की गर्दन के आर पार कर देती है, कविता अभी भी दर्द की वजह से छटपटा रही थी। अंकिता हंसते हुए उसके पास घूमते हुए कहती है "अरे....रे..तुम्हें इतने दर्द में देख कर मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा चलो आखिर मैं तुम्हें इस दर्द से आजाद कर देती हूं।" इतना कहते हुए अंकिता बाकी के कांच के टुकड़े भी उठाती है और एक के बाद एक कविता के चेहरे के आर-पार कर देती है। बाहर गरजते हुए बादलों के साथ यह शोर भी कहीं दब कर रह जाता है।


To be continued......

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