➤ छोटी मोटी कामणी सगळी विष की बेल
(छोटी या बड़ी, सभी कामिनियाँ जहर की बल । अथवा विषय वासना की ओर ले जाने वाली हैं।)
➤ जवान में ही रस अर जबान में ही बिस।
(बोली में ही रस है और बोली में ही विष रहता है।)
➤ जल को दूव्यो तिर कर निकले, तिरियो डूब्यो बह ज्याय।
(जल का डूबा हुआ बच कर निकल सकता है, लेकिन जो नारी में आसक्त है, वह अवश्य डूब जाता है।)
➤ जी की खाई बाजरी, ऊँकी भरी हाजरी।
(जिसका अन्न खाय, उसी की खुशामद की जाती है।)
➤ जेठा बेटा र जेठा बाजरा राम दे तो पावै।
(ज्येष्ठ लड़का और ज्येष्ठ मास में बढ़ा हुआ बाजरा भाग्य से ही मिलता है।)
➤ जीवइल्यां घर ऊजई. जीवड़याल्यां घर होय।
(कटु भाषा से घर उजड़ जाते हैं, मधुर भाषा से घर बस जाते हैं।)
➤ जेर सैंई सेर हुया करै है।
(छोटे बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, वे कालांतर में बलवान हो जाते हैं।)
➤ जीवती मांखी कोन्या गिटी जाय।
(जान-बूझकर कोई बुरा काम नहीं किया जा सकता)
➤ जुग देख जीणूं है।
(समयानुसार चलना चाहिए।)
➤ जुग फाट्यां स्यार मरै।
(संगठन टूटने से ही नाश होता है।)
➤ टुकड़ा दे दे बछड़ा पाल्या, सींग हुया जद मारण चाल्या।
(टुकड़ा दे-देकर बछड़ों का पालन-पोषण किया, जब वे बड़े हुए तो मारने आये। यह उक्ति कृतघ्न आश्रितों के लिए है।)
➤ टूटी की बूटी कोनी।
(जब आयु शेष नहीं रह जाती तो कोई दवा काम नहीं देती।)
➤ टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी।
(हमारी तो थोड़ी-सी हानि हुई, किंतु दुष्ट के स्वभाव का पता चल गया।)
➤ ठोकर खार हुंस्यार होय।
(मनुष्य ठोकर खाकर ही होशियार होता है।)
➤ ठाडै के धन को बोजो-बोजो रुखाळो है।
(शक्तिशाली के धन को कोई जोखिम नहीं)
➤ ठंहो लोह ताता नै काटे।
(शील सम्पन्न मनुष्य अपने शील से दूसरे की उग्रता को दूर कर देता है।)
➤ ठांगर के हेज घणू, नापेरी के तेज घणूं।
(दूध न देने वाली निकम्मी गाय बछड़े के प्रति अधिक स्नेह करती है और उसके पीहर न हो, या अधिक झल्लाती है।)
➤ डूंगरा ने छाया कोनी होया।
(महापुरुषों की मदद करना साधारण आदमियों का काम नहीं, वे अपनी मदद स्वयं ही करते हैं या ईश्वर उनकी मदद करता है।)
➤ ढांढा मारण, खेत सुकावण, तु क्यूं चाली आधै सावण?
(आधा सावन बीत जाने पर मनोरम हवा का चलना पशुओं और कृषि के लिए हानिप्रद होता है।)
➤ तवै की काची नै, सासरै की भाजी ने, कठेई ठोड कोनी।
(तवे पर जो रोटी कच्ची रह जाती है तथा जो स्त्री ससुराल से भाग जाती है, इन दोनों का कहीं ठौर-ठिकाना नहीं रहता।)
➤ ताता पाणी सै कसी बाड़ बलै?
(केवल क्रोध भरे वाक्यों से किसी का अनिष्ट नहीं हो सकता।)
➤ ताळी लाग्यां ताळो खुलै।
(युक्ति से ही काम होता है।)
➤ तेल तो तिल्यां सै ही निकलसी।
(तेल तो तिलों से ही निकलेगा।)
➤ थावर कीजे थरपना, बुध कीजे व्योहार
(स्थापना शनिवार को और व्यवहार बुधवार को शुरू करना चाहिए)
➤ थोथो चणो बाजै घणो।
(जिनमें गुण नहीं होते, वह ही बढ़-चढ़ कर बातें करते हैं।)
➤ थोथो संख पराई फूंक से बाजै।
(जिसमें स्वयं की बुद्धि नहीं होती, वह स्वतः कोई कार्य नहीं कर सकता)
➤ दलाल के दिवाळो नहीं, महजीत के ताळो नहीं।
(दलाल के दिवाला नहीं होता, मस्जिद के ताला नहीं होता क्योंकि मस्जिद में रखा ही क्या है जो ताला लगाना जाए?)
➤ देखते नैणां, चालते गोडां।
(आँखों में देखने की तथा पैरों में चलते रहने की शक्ति रहते ही मृत्यु हो जाए तो सुखद है।)
➤ दोनूं हाथ मिलायां ही धुपै।
(दोनों ओर से कुछ झुकने पर ही समझौता होता है।)
➤ दीवां बीती पंचमी सोम सुकार गुरु मूल।
डक कहै है भडुली, सातू निपजै तूल॥
➤ धायो मीर, भूखो फकीर, मयां पाछै पीर।
(मुसलमान के लिए कहा गया है कि वह तृप्त हो तो अमीर कहलाता है, भूखा हो तो फकीर कहलाता है, मरने के बाद पीर
कहलाता है।)
➤ धीणोड़ी के सागै हीणोड़ी मर ज्याय।
(दुधारी गाय के साथ बिना दूधवाली को कोई नहीं पूछता)
➤ धोबी की हांते गधोखाया
(नीच का धन नीच खाता है।)
➤ नंदी परलो-जद, कर होण विणास।
(नदी-तट पर स्थित वृक्ष चाहे जन नष्ट हो जाता है।)
➤ नकटा देव, सूरडा पुजारा।
(जैसे देव, वैसे ही पुजारी)
➤ न कोई की राह में, न कोई दुहाई में।
(वह अपने काम से काम रखता है।)
➤ नागारां में तूती की आवाज कुण सुणे?
(जहाँ बड़े आदमियों की चलती है, वहीं छोटी को कौन पूछता है?)
➤ नर मानेरै, घोड़ो दावे।
(आकृति-प्रकृति में पुरुष मातृकुल का अनुसरण करता है और घोड़ा पितृकुल का।)
➤ नरूका नै नरुका मारै, के मारे करतार।
(जबरदस्त को जबरदस्त ही मार सकता है या ईश्वर।)
➤ नांव राखै गीतड़ा के भींतड़ा।
(मनुष्य का यश चिरस्थायी रहता है या तो काव्य-निर्माण से या भवन-निर्माण से।)
➤ नाजुरतिये की लुगाई, जगत की भोजाई।
(सामर्थ्यहीन की लुगाई, जगत की भोजाई।)
➤ नानी कसम करै, दूयती नै डंड।
(नानी तो दूसरा पति करती है और दोहिती को दंड मिलता है।)
➤ नारनोल की आग पटीकड़ो दाजै।
(अपराध कोई करता है और फल किसी और को मिलता है।)
➤ निकळी होठां, चड़ी कोठां।
(बात मुंह से निकलते ही सब जगह फैल जाती है।)
➤ नीत गैल बरकत है।
(ईमानदारी से ही धन की वृद्धि होती है।)
➤ नेम निमाणा, धर्म ठिकाणा।
(नियम और धर्म नियमी और धर्मी के पास ही रहते हैं।)
➤ न्यारा घरां का न्यारा घारणा।
(अपने-अपने घर की अपनी-अपनी रीति होती है।)
➤ पड़-पड़ कै ई सवार होय है।
(गलती करते-करते ही मनुष्य होशियार हो जाता है।)
➤ पर नारी पैनी छुरी, तीन ओड सै खाय,
धन छीजै, जोबन हडै, पत पंचा में जाए।
(परनारी पैनी छरी के समान है। वह तीन ओर से खाती है-धन क्षीण होता है, यौवन का नाश करती है और लोकोपवाद होता है।)
➤ पाप को घड़ो भर कर फूटै।
(पाप अंत में प्रकट हो ही जाता है।)
➤ पीरकां की आस करै, जकी भाईड़ा नै रोवै।
(जहाँ से कुछ मिलने की आशा न हो, वहाँ से आशा रखना व्यर्थ है।)
➤ पीसो पास को, हथियार हाथ को।
(पास में रखा हुआ पैसा और हाथ का हथियार ही समय पर काम देते हैं।)
➤ पुल का बाया मोती निपजें।
(अवसर पर किया हुआ काम ही फलदायी होता है।)
➤ पाँच आंगळिया पूंच्यो भारी।
(एकता में बल है।)
➤ पांचू आंगकी एक सी कोनी होय।
(सब भाई समान नहीं होते।)
➤ पांव उमाणे जायसी, कोडीयज कंगाल।
(धनी-गरीब सभी भरने के समय नंगे पैर जाएंगे।)
➤ पूत का गल पालणे ही दीख्यावै।
(बाल्यावस्था में ही बालक के भविष्य की कल्पना कर ली जाती है।)
➤ फाडुणियै नै सीमणियूं कोनी नाव।
(जहाँ बेहद खर्च होता हो, वहाँ कमाने वाला कहाँ तक कमाये।)
➤ बड़े लोगों के कान होय हैं, आँख नहीं।
(बड़े लोग सुनी हुई बात पर विश्वास कर लेते हैं, क्योंकि वे स्वतः जाँच-पड़ताल नहीं कर पाते।)
➤ बालक देखै हीयो, बूडो देखै कीणे।
(बालक तो हृदय देखता है, प्रेम को पहचानता है, और अवस्था में बड़ा मनुष्य किए हुए काम को देखता है। उसे काम चाहिए, वह केवल भाव का भूखा नहीं। )
➤ बावै सो लूणे।
(जो जैसा बोता है, वैसा काटता है।)
➤ भाठे सैं भाठो भिड्यां बीजली चिमकै।
(दो दुर्जनों की लड़ाई में नाश ही होता है।)
➤ भाण राड लडूंगी, कुराड नहीं लडूंगी।
(हे बहिन! उचित झगड़ा करूँगी अनुचित नहीं)
➤ महंगो रोवै एक बार, साँगो रोवै बार-बार।
(जो महंगे दामों पर चीजें खरीदता है, वह एक बार कष्ट उठाता है और जो सस्ती चीजें खरीदता है उसे सदा हैरान होना
पड़ता है।)
➤ माया अंट की, विद्या कंठ की।
(अपने पास का ही पैसा काम आता है, विद्या भी जो कण्ठस्थ हो, वही मौके पर काम देती है।)
➤ मारणु ऊंदरो, खोदणूं डूंगर।
(जरा से काम के लिए बहुत बड़ा कष्ट उठाना बेकार है।)
➤ माल सै चाल आवै।
(धन से ही चाल आती है।)
➤ मतलब की मनुहार जगत जिमावै चूरमा।
(अपने स्वार्थ के लिए लोग दूसरों की खुशामद करते हैं।)
➤ मन कै पाज कोनी।
(मान के मर्यादा नहीं होती)
➤ मांटी की भींत डिगती बार कोनी लगावै।
(मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती।)
➤ मा मरी आधी रात, बाप मर्यो परभात।
(विपत्ति पर विपत्ति आती है।)
➤ यारी का घर दूर है।
(प्रेम निभाना बहुत मुश्किल है।)
➤ राख पत, रखाय पत।
(तुम दूसरों का आदर करोगे, तो वे तुम्हारी इज्जत करेंगे।)
➤ राड को घर हांसी, रोग को घर खांसी।
(हँसी-हँसी में लड़ाई-झगड़ा हो जाता है। खाँसी सब रोगों की जड़ है।)
➤ रात च्यानणी, बात आँख्यां देखी मानणी।
(रात तो चाँदनी रात ही है, आँखों देखी बात पर ही विश्वास करना चाहिए।)
➤ रूप की रोवै, करम की खाय।
(रूपवती स्त्री भी दुःखी रहती है किंतु कुरूप स्त्री भी यदि भाग्यशालिनी हो तो उसे भोजन की कमी नहीं रहती।)
➤ रोयां राबड़ी कुण पालै?
(केवल रोने से कुछ नहीं होता। परिश्रम करने से ही कुछ मिलता है।)
➤ लोहा लक्कड़ चामड़ा, पहळा किसा बखाण।
बहु बछेरा डीकरा, नीमटियाँ पखाण।।
(लोहा, लकड़ी, चमड़ा इनका पहले कुछ पता नहीं चलता। बहू, घोड़े का बच्चा और लड़का, इन सबका वयस्क होने पर ही पता चलता है।)
➤ संवारता बार लागै, बिगाड़ता कोनी लागै।
(किसी वस्तु को सुधारते देर लगती है, बिगाड़ते देर नहीं।)
➤ सागलै गुण की बूज है।
(सभी जगह गुणों का आदर होता है।)
➤ सदा न जुग जीवणा, सदा न काला केस।
(हमेशा संसार में जीना नहीं होता और यौवन भी सदा स्थिर नहीं रहता)
➤ साथ कई थी मावड़ी, झूठ कहै था लोग।
खारी लाग्यी मावड़ी, मीठा लाग्या लोग।
(माता का कहना सत्य निकला, अन्य लोग झूठ बोल रहे थे, किंतु उस समय लोगों के शब्द मधुर जान पड़े और माता के शब्द कटु प्रतीत हुए।)
➤ सांप कै मांवसियों की के साख?
(दुष्टकिसी का लिहाज नहीं करता।)
➤ सिर चदाई गावही गाँवई के लागी।
(दुर्जन को जब मुंह लगा लिया जाता है तो वह अनिष्ट करने लगता है।)
➤ सोनै के काट कोन्या लागै।
(सज्जन के कलंक नहीं लगता।)
➤ हर बहा क हिरणा बड़ा, सगुणा बड़ा क श्याम।
अरजन रथ नै हांक दे, भली करै भगवान।।
(हरिण का बायाँ आना अपशकुन समझा जाता है। हरिणों को बायीं ओर देखकर रथ हाँकने में अर्जुन को हिचकिचाहट होने लगी। इस पर किसी ने कहा, "जब भगवान अनुकूल हो तब शकुन का क्या देखना?")
➤ होत की भाण अणहोत को भाई।
(यदि किसी के पास धन होता है तब वह किसी को बहिन बनाता है, यदि स्त्री के पास कुछ नहीं होता तो वह दूसरे को अपना भाई बनाती है।)
➤ हांसी में खांसी हो ज्याय।
(हंसी-हंसी में लड़ाई हो जाया करती है।)
➤ सेल घमोड़ा जो सहै, सो जगीरी खाय।
(जो युद्ध में शस्त्रों की मार सहता है, वही जागीरी का उपभोग भी करता है।)
➤ हतकार की रोटी चौवटे ढकार।
(फोकट की रोटी खाये और बाजार के चौराहे पर डकार ले, थोथे अहंकार का प्रदर्शन)
➤ हाकिमी गरमाई की दुकानदारी नरमाई की।
(हाकिमगिरी कड़ाई से होती है और दुकानदारी नम्रता से)
राजस्थानी कहावतों में वर्षा
राजस्थान की कृषि तो मूलतया वर्षा पर ही निर्भर है, अतः कहावतों के रूप में वर्षा संबंधी कहावतें पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजस्थान के लोक जीवन में समाई हुई हैं-
मनुष्य, पशु-पक्षी एवं कीट पतंगों की क्रियाओं से वर्षा की संभावना का घनिष्ठ संबंध है। वायुमंडल आकाश, विद्युत इंद्रधनुष, आँधी आदि के आधार पर भी वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
मनुष्य शरीर की क्रियाएँ
➤ अत पितवालों आदमी, सोए निद्रा घो।
अण पढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर।।
(पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में भी घोर निद्रा निकाले तो समझो कि बहुत जोर से वर्षा होगी।)
➤ वात पित युत देह, ज्यांक, होय रहे घास-घूम।
अण भणियां आलम कथी, कहे मेहा अति घोर।।
(वात प्रकृति वाले व्यक्ति का गर्मी से सिर दर्द हो तो समझो जोर से वर्षा आएगी।)
विभिन्न उद्यमियों से अनुमान
➤ कुंदन जड़े न जड़ाव, अजे सलायत कीट,
को जड़ियां सूण जे लगत, उड़े मेह की रीठ
(नगीने जड़ते समय जो कुंदन न लगे और सलाइयों पर कीट जमने लगे तो समझिए कि वर्षा खूब होगी।)
➤ देख खुरड़ कहे ढेढ़ की, कंथा टूटे नेह,
लहेई चढ़ने चामड़े, मुकता बरसे मेह।।
(जूते बनाते समय यदि चमड़े पर लेई न चिपके तो समझो कि वर्षा आने वाली है।)
➤ धोब्या धोखे मिट गयो, मन में हुआ हुलास।
देख सूदणी बज बजी, मेह आवण री आस।।
(धोबी द्वारा कपड़े के खूम देने के माट में खंभीर उठे तथा माट में गर्मी अधिक हो तो वर्षा आने वाली है।)
➤ ढोल दमामा बुड़बड़ी,बैठे सावर बाज,
कहे डोम दिन तीन में इंद्र करे आवाज।।
(ढोल, नगाड़े और ताश आदि चमड़े से मढ़े हुए बाजे यदि ठीक से न बजें तो समझो तीन दिन में वर्षा आने वाली है।)
➤ बिगड़ी घिरत बिलोवणों, नारी होय उदास।
असवारी मेंह की रहे छास की छास।।
(दही बिलोने पर घी जल्दी एकत्रित न हो और छाछ में घुलमिल जाता हो तो समझो कि बहुत जोर से वर्षा होगी।)
पक्षियों की चेष्टाएँ
➤ चड़ी जो न्हावे धूल में, मेहा आवण हार।
जल में नहावे चिड़कली, मेह विदातिण बार।।
(जब चिड़िया धूल में नहाने लगे तब वर्षा की संभावना है, परंतु जब चिड़िया पानी में नहाने लगे तो वर्षा की विदाई समझो।)
➤ टोले मिल की कांवली, आय थला बैठंत।
दिन चौथे के पाँचवें, जल-थल एक करंत।।
(बहुत चीलें जब भूमि पर आकर बैठें तो चार-पाँच दिन में वर्षा अवश्य होगी।)
➤ पपैया पीऊ-पीऊ करै, मोरा घणी अजग्म।
छत्र करै, मोरया सिरे, नदिया बहे अथग्म।।
(पपीहा पीऊ पीऊ करने लगे, मोर बोलने लगे तथा सिर पर छत्र बनाकर नाचने लगे तो वर्षा होगी।)
कीट पतंगों की क्रियाएँ
➤ साँप, गोयरा, डेडरा, कीड़ी-मकोड़ी जाय।
दर छोड़े बाहर थमे, नहीं मेहण की हाण।।
(साँप, गोयरा, मेढक, चींटी, मकोड़ी अपने-अपने स्थान को
छोड़कर इधर-उधर फिरने लगें तो समझो वर्षा आने वाली है।)
➤ गिरगिट रंग बिरंग हो, मक्खी चटके देखें।
मकड़ियाँ चहचहा करें, जब अतजार मेह।।
(गिरगिट रंग बदले, मक्खी मनुष्य की देह पर चिपक जाए और मकड़ियाँ बार-बार शब्द करने लगे तो समझो वर्षा निकट है।)
हवा का प्रभाव
➤ वजनस पवन सुरिया बाजे।
घड़ी पलक मांहि मेहे गाजे।।
(यदि उत्तर-पश्चिमी हवा चले तो घड़ी दो घड़ी में वर्षा होगी।)
➤ पवन गिरि छूटे परवाई।
घर गिर छोबा, इंद्र धपाई।।
(यदि पूर्वी हवा चले तो भूमि और पर्वत को वर्षा तृप्त करेगी।)
बादल के लक्षण
➤ संवार रो गाजियो एलो नहीं जाए।
(प्रातःकाल बादल गर्जना अवश्य वर्षा लाता है।)
➤ बादल रहे रात को वासी।
तो जाणों चोकस मेह आसी।।
(पिछली रात के बादल सवेरे तक छाए रहे तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ शुक्रवार की बादली, रही शनिचर छाय।
डंक कहे है, भड़ली बरस्या बिना जाए।।
(शुक्रवार के बादल यदि शनिवार तक बने रहें तो वे बादल बरसे बिना नहीं रहेंगे।)
➤ तीतर पंखी बादली, विधवा काली रेख।
या बरसे वा धर करे, इण में मीन न मेख।।
(तीतर पंखों के समान छोटे-छोटे बादलों से आकाश यदि आच्छादित रहे तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ आकाश का स्वरूप
अम्बर राच्यों, मेह माच्यो।
(लाल आसमान वर्षा का सूचक है।)
➤ तारा तग-तग करे, अम्बर नीला हुन्त
पड़े पटल पाणी तणी, जद संजया फूलंत।।
(आसमान नीला हो, तारे बार-बार टिमटिमाते रहें और संध्या फूले तो समझो कि अवश्य वर्षा होगी।)
चंद्र व सूर्य के लक्षण
➤ सामा, सुकरां सुरगरां जो चंदो उंगत।
एक कहे है भड्डली, जल थल एक करंत।।
(यदि आषाढ़ में चंद्रमा सोमवार, गुरुवार व शुक्रवार को उदय हो तो अवश्य वर्षा होगी।)
➤ सावण सुतो भलो, उभो आषाढ़।
(श्रावण माह में द्वितीय का चंद्रमा सोया हुआ (टेढ़ा) और आषाढ़ में खड़ा दिखाई दे तो वर्षा के लिए शुभ)
➤ सूरज कुंड और चंद्र जलेरी।
टूटा टीबा भरगी डेरी।।
(यदि सूर्य के चारों ओर कुंड हो, वैसे ही चंद्रमा के चारों ओर चलेरी हो तो इतनी जोर से वर्षा होगी कि टीले टूट कर पानी के साथ बह जाएंगे और सरोवर जल से भर जाएँगे।)
महीनों का प्रभाव
➤ जेठ बदी दसमी, जे शनिवार होय।
पाणी होयन धरण में, बिरला जीवे कोय।।
(जेठ कृष्ण दशमी यदि शनिवार को हो तो वर्षा नहीं होगी।)
➤ पेली पड़वा गाजे, दिन बहत्तर बाजे।
(आषाढ़ की प्रतिपदा को यदि बादल गरजें तो बहत्तर दिन तक हवा चलती रहेगी और वर्षा नहीं होगी।)
➤ आषाढ़ की पुनम निरमल उगे चंद।
कोई सिंध कोई मालवे जायां कटसी फंद।।
(आषाढ़ की पूर्णिमा को चंद्रमा के साथ कोई बादल न हो तो अकाल पड़ेगा। मालवा व सिंध जाने पर ही अपने दिन
निकलेंगे।)
चाकरी सैं सूं आकरी।
(नौकरी सबसे कठिन है।)
➤ च्यार दिनारी चानणी, फेर अंधेरी रात।
(वैभव क्षणभंगुर है।)
➤ चाँदी देख्यां चेतना, मुख देख्यां व्योहार
(चाँदी को आँखों से देखने पर चेतना और किसी के आमने-सामने देखने पर ही उससे व्यवहार होता है।)
➤ चिड़ा-चिड़ी की कै लड़ाई, चाल चिड़ा मैं आई।
(चिड़िया और चिड़े की परस्पर कैसी लड़ाई है? हे चिड़े! चलो मैं आई यानि दम्पति की लड़ाई स्थायी नहीं होती।)
➤ चीकणी चोटी का सै लगावळ।
(धनवान से सभी लोग कुछ लेने की इच्छा करते हैं।)
➤ चीक धई पर बूंद न लागै, जै लागो तो चीठो।
(चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है।)
➤ छाज तो बोले सो बोले पण चालणी बी बोले के ठोतरसो बेज।
घर तो नागर बेल पड़ी, पाड़ोसण को खोसै फूस।
(अपने पास सब कुछ होते हुए भी दूसरे की तुच्छ वस्तुओं को भी हड़पता है।)
➤ के बेरो ऊँट के करोट बैठे?
(भविष्य की असंदिग्धता पर क्या पता ऊँट किस करवट बैठे?)
➤ डर तो घणे खाये को है।
(डर तो अधिक खाने में है।)
➤ चतर नै चोगणी, मूरख नै सौ गणी।
(लक्ष्मी दूसरे के पास चतुर मनुष्यों को चौगुनी दिखलाई पड़ती है और मुर्ख को सौ गुनी)
➤ झूठ की डागला तांई जोर।
(झूठ की दौड़ छत तक होती है, झूठ अधिक नहीं चल सकता।)
➤ भांखड़ी के कांटा को आगड़े तांई जोर।
भांखड़ी (एक छोटा गोक्षुरक पौधा) का काँटा उद्गम स्थान तक ही शरीर के अंदर चुभ सकता है अर्थात् वह बहुत छोटा है। यानि, परिमित साधन वाला मनुष्य किसी का बड़ा अहित नहीं कर सकता)
➤ पान पडतो यूं कहै, सुन तरुवर बनराय।
इबका बिछड्या कद मिला, दूर पड़ांगा जाय।।
(गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो।)
➤ धरम को धरम, करम को करम।
(जब स्वार्थ-परमार्थ दोनों सिद्ध हों)
➤ दूसरां को माल तूंतड़ां की धड़ में जाय।
(दूसरों का धन लापरवाही से व्यय किया जाता है।)
➤ मीडंका नै तिरणु कुण सिखावै?
(मेढक को तैरना कौन सिखलाता है अर्थात् कोई नहीं। यह उसका सहज गुण है।)
➤ बड़े-बड़े गाँव जाऊँ, बड़ा बड़ा लाडू खाऊँ।
(मनुष्य को अपने परिश्रम का ही फल मिलता है, फिर भी वह अपनी आकांक्षाओं की तृप्ति के लिए हवाई किले बाँधता रहता है।)
➤ बाड़ के सहारै दूब बीघै।
(कमजोर मनुष्य भी आश्रय पाकर बढ़ता है।)
➤ जावो कलकत्तै सूं आगै, करम छांवळ सागै।
(कहीं चले जाओ, भाग्य साथ जाता है।)
➤ तंगी में कुण संगी।
(जब पैसा पास में नहीं रहता तो कोई साथ नहीं देता)
कम खावणो, र गम खावणो फायदो ही करे।
भाई भूरा, लेखा पूरा।
आँख फडकै बांई, के वीर मिले के सांई।
खेती करैन बिणजी जाय।
विद्या के बल बैठयो खाय।।
➤ अकल सरीरां ऊपजै दिवी न आवै सीख।
अण माँग्या मोती मिले, माँगी मिलै न भीख।।
ग्रामीण जन सामान्य के लिए कहावतें वेद व शास्त्रों के अनुरूप कार्य करती हैं। अपनी बात या विचार तथा सोच या मत के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए वे प्रायः कहावतों को प्रयोग करते हैं और अपने प्रति आस्था या विश्वास उत्पन्न करने में सफल होते हैं। राजस्थान में गाँवों में यह कहावतें इतने अधिक विषयों और संदर्भो से संबंधित होती हैं कि अगर इनका अध्ययन किया जाए तो इनसे राजस्थान की सभ्यता एवं संस्कृति को भली-भाँति समझा जा सकता है।
अतः संस्कृति के भग्नावशेष इन लोकोक्तियों में छिपे पड़े हैं। भारतीय संस्कृति की अखंडता का स्वरूप राजस्थानी कहावतों से स्पष्ट रूप से झलकता है। राजस्थान में प्रचलित कुछ प्रमुख कहावतों का विवरण इस प्रकार है-
➤ आजकल बिना ऊँट उमाणा फिरे
(मूर्ख बुद्धि का अभाव होने के कारण साधनों का प्रयोग नहीं कर पाते)।
➤ अनहोणी होणी नहीं, होणी होय सो होय।
(जो होना है, वह होकर रहेगा)
➤ अभागियो टावर त्युंहार नै रूसै।
(मनभागी सुअवसर से लाभ नहीं उठा पाता है।)
➤ अम्मर को तारो हाथ सै कोनी टूटे।
(आकाश का तारा हाथ से नहीं टूटता)
➤ अरडावतां ऊँट सदै।
(किसी की दान पुकार पर भी ध्यान न देना)
➤ असो भगवान्यू भोलो कोनी जको भूखो भैंसा में जाय।
(भगवानिया ऐसा मूर्ख नहीं है जो भूख ही भैंस चराने जाए।)
➤ आँख मीच्यां अंधेरो होय।
(आँख मूंदने पर अंधेरा हो जाता है अर्थात् दुनिया के दुःखों की ओर से तटस्थ हो जाना।)
➤ अत्रे-अत्रे वाहाण, नदी नाला गरजते।
(सब कामों में ब्राह्मण आगे रहता है किंतु कहीं नदी नाला आया तो वह पीछे ही रहता है अर्थात् ब्राह्मण खतरे से दूर रहता है।)
➤ अणदोखीनै दोख, बीनै गति मोख।
(जो निरपराध पर दोष लगावे, उसे गति या मोक्ष कुछ न मिले।)
➤ आप मां बिना सुरग
(अपने हाथ से काम करने पर ही पूरा पड़ता है।)
➤ आम खणा क पेड़ गिणना?
(मनुष्य को अपने काम से मतलब रखना चाहिए।)
➤ आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटू, तू मर्ने चाट।
(दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम निरर्थक होता है।)
➤ आँख कान मोती करम, ढोल बोल अर नार।
ओता फूटा ना भला, ढाल तोप तलवार।।
(उपर्युक्त सारी चीजों का न फूटना ही अच्छा है।)
➤ आज मरयो, दिन दूसरो।
(जो गया सो गया)
आज हमां अर काल थमां।
(आज जो हम पर बीत रही है, वह कल तुम पर भी बीत सकती है।)
➤ आँख्याँ देखी परसराम, कदे न झूठी होय।
(प्रत्यक्ष देखी हुई बात कभी झूठी नहीं होती।)
➤ आँ तिलां में तेल कोनी।
(इन तिलों में तेल नहीं अर्थात् यहाँ कोई सार नहीं।)
➤ आँधा में काणो राव।
(अंधों में काना राजा)
➤ आपकी छोड़ पराई तक्कै, आवै ओसर के थक्कै।
(जो अपनी छोड़ पराई की ओर दृष्टि रखता है, उसे समय का आघात सहना पड़ता है।)
➤ आप गुरुजी कातरा मारे, चेलां नै परमोद सिखावै।
(स्वयं गुरुजी तो कातरे मारते हैं और शिष्यों को उपदेश देते हैं।)
➤ आगो थारो, पीछो म्हारो।
(आपके आगे हमारी पीठ, चाहे जो कीजिए।)
➤ आ छाय तो ढोलया जोगी ही थी।
(निरुपयोगी वस्तु के नाश पर खेद न होना)
➤ आदै थाणी न्याय होय।
(बेईमानी का फल मिल ही जाता है।)
➤ आप कमाड़ा कामड़ा, दई न दीजै दोस।
(अपने किए हुए कर्मों के लिए दैव को दोषी नहीं ठहराना चाहिए)
➤ आडा आया, मा का जाया।
(सहोदर भाई ही संकट के समय सहायक होते हैं।)
➤ आड़ू चाल्या हाट, न ताखड़ी न बाट।
(मूर्ख का काम अव्यवस्थित होता है।)
➤ आँख गई संसार गयो, कान गयो हँकार गयो
(जिस प्रकार आँखों की दृष्टि के साथ संसार अदृश्य हो जाता है उसी प्रकार बहरा होने के साथ अहंकार समाप्त हो जाता है।)
➤ इसे परथावां का इसा ही गीत।
(ऐसे विवाहों के ऐसे गीत होते हैं।)
➤ ई की मा तो ई नै ही जायो।
(इसकी माता ने तो इसे ही पैदा किया है अर्थात् यह अद्वितीय है।)
➤ इव ताणी तो बेटी बाप कै ही है।
(अभी कुछ नहीं बिगड़ा है।)
➤ उल्टो पाणी चीलां चडै।
(जहाँ अनहोनी होती है, वहाँ इस उक्ति का प्रयोग किया जाता है।)
➤ उठे का मुरदां उठे बळेगा, अठे का अठे।
(एक स्थान की वस्तु किसी अन्य स्थान पर काम नहीं दे सकती।)
➤ उत्तर पातर, मैं मियां तू चाकर।
(उऋण होने में जो आत्म-संतोष है, उसके संबंध में गर्वोक्ति है।)
➤ ऊँखली में सिर दे जिको धमकां सैं के डरै।
(जिसको कठिन-से-कठिन काम करना है, विघ्नों से उसे डरने की आवश्यकता नहीं।)
➤ एक घर तो डाकण ही टाळै है।
(बुरे से बुरे व्यक्ति को भी कहीं न कहीं लिहाज रखना पड़ता है।)
➤ एक हाथ में घोड़ो, एक हाथ में गधो है।
(भलाई-बुराई दोनों मनुष्य के साथ हैं।)
➤ ऐं बाई नै घर घणा।
(योग्य पुरुष का सर्वत्र की आदर होता है।)
➤ ओछा की प्रीत कटारी को मरवो।
(ओछा मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान हैं।)
➤ ओसर चूक्या नै मोसर नहीं मिलै।
(गया हुआ अवसर दुबारा हाथ नहीं आता।)
➤ ओ ही काल को पड़यो, ओ ही बाप को मरबो।
(विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।)
➤ और सब सांग आ ज्यायं, बोरै वाळो सांग कोन्या आते।
(निर्धन बोहरे का स्वांग नहीं भर सकता।)
➤ कंगाल छैल गाँव नै भारी।
(गरीब शौकीन गाँव के लिए भार स्वरूप होता है।)
➤ कनफड़ा दोन्यू दीन बिगड्यां
(निकृष्ट साधु दोनों दीन से गये।)
➤ कबूतर ने कुवों ही दिखै।
(गरीब अपनी रक्षार्थ शरणदाता के पास जाता है।)
➤ कमाऊ आवै डरतो, निखट्टू आवै लड़तो।
(कमाऊ डरता हुआ आता है और निकम्मा लड़ता हुआ।)
➤ कमेडी बाज ने कोनी जीतै।
(निर्बल सबल को नहीं जीत सकता।)
➤ कलह कलासै पैडे को पाणी नासै।
(गृह-कलह के कारण परीडे का पानी भी नष्ट हो जाता है क्योंकि घर में फूट पड़ने के कारण कुएं से पानी लावे कौन?)
➤ काटर कै हेज घणों।
(दूध न देने वाली गाय अपने बछड़े से अधिक प्रेम दिखलाती है।)
➤ काणत्ती भेड़ को रायड़ो ही न्यारो।
(विशिष्ट पुरुषों में स्थान न मिलने के कारण निकृष्ट व्यक्ति अपना संगठन अलग कर लेते हैं।)
➤ कांदे वाला छीलका है, उचींदै जितणी ई बास आवै।
(बुराई की जितनी तह में जाएँगे, उतनी ही अधिक बुराई नजर आएगी।)
➤ कागलां के काछड़ा होना तो उड़ता के ना दीखता।
(गुण यदि मनुष्य में हो तो साफ दिखाई देते हैं।)
➤ काळा कने बैठया काट लागै।
(दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है।)
➤ काम की मा उरैसी, पूत की मा परैसी।
(काम करने वाला अच्छा लगता है, नहीं काम करने वाला सुंदर और प्रिय भी अच्छा नहीं लगता।)
➤ कदे न घोड़ा हींसिया, कदे न खीच्या तंग।
कदे न रांड्या रण चढ्या, कदे न बाजी बंब।।
(कायर पुरुष कभी भी दुस्साहसपूर्ण कार्य को अंजाम नहीं दे सकता।)
➤ कूवै में पड़कर सूको कोई भी नीकळे ना।
(कार्य के अनुरूप फल मिलता है।)
➤ खर घूघू मूरख नरा सदा सुखी प्रिथिराज।
(गधा, उल्लू और मूर्ख मनुष्य सदा सुखी रहते हैं, क्योंकि उनको किसी प्रकार भी चिंता नहीं सताती।)
➤ खैरात बटै जठे मंगता आपै ही पूंच ज्यावै।
(जहाँ खैरात बंटती है, वहाँ भिक्षुक अपने आप ही पहुंच जाते हैं।)
➤ खोयो ऊँट घड़ा में ढूंते।
(यदि किसी मनुष्य की कोई चीज खो जाए, उसका नुकसान हो आए, अथवा यदि वह बुरी तरह ठगा जाए तो वह इतना विकल हो जाता है कि उसे संभव-असंभव का ज्ञान नहीं रहता।)
➤ खावै पूणु, जीणै दूणू
(जो पूरा पेट न भर कर चतुर्थांश खाली रखता है, उसकी आयु दुगनी हो जाती है।)
➤ खिजुर खाय सो झाड़ पर चडै।
(जिसे लाभ की आकांक्षा हो, वही खतरा मोल लेता है।)
➤ खेती धणियाँ सेती।
(खेती मालिक की निगरानी से ही फलदायिनी होती है।)
➤ खावै तो ई डाकण, न खावै तो ई डाकण
(बदनाम व्यक्ति यदि बुरा कार्य न भी करे तो भी उस पर लांछन लग जाता है।)
➤ गोद लडायो गीगलो, चढ्यो कचेड़याँ जाट।
पीर लड़ाई पदमणी, तीनू हिं बारा बाट।।
(अधिक लाड़ चाव में पला लड़का, कचहरियों में मुकदमेबाजी करते रहने वाला जाट, पीहर में लड़ाई कर गई स्त्री ये तीनों बर्बाद हो जाते हैं।)
➤ गाडा ने देख कर पाडा का पग सूजगा
(संकट को देखकर महिष के भी पैर सूज गये)
➤ गणगोयां नै ही घोड़ा न दौड़े तो कद दोडै?
(यदि मौके के दिन ही आनंद न मनाया जाए तो कब मनाया जाएगा।)
➤ गंगा तूतिये में कोनी नावहै।
(गंगा मिट्टी के छोटे-से बर्तन में नहीं समा सकती।)(निधि तो दूसरे को कुछ कह सकता है किंतु जो स्वयं दोषी हो, वह दूसरे को क्या कर सकता है।)
➤ गई भू गयो काम, आई भू आयो काम।
(काम किसी के भरोसे नहीं रुकता)
➤ गेरदी लोई तो के करैगो कोई?
(जब मर्यादा छोड़ दी तो कोई क्या कर लेगा?)
➤ गैली रांड का गैला पूता।
(पगली औरत के पगले पुत्र होते हैं)
➤ गैली सारां पैली
(अयोग्य आदमी का हर काम टाँग अड़ाना।)
➤ गुड़ देतां मरै, बीनै झैर क्यूं देणूं?
(मीठे बोलने से काम चले, वहाँ कटु क्यों बोला जाए?)
➤ गुण गैल पूजा।
(गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है।)
➤ गोलो र मूंज पराये बल आंवसै।
(दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है, मूंज भी पानी का बल पाकर ऐंठ जाती है।)
➤ घर में कोन्या तेल न तांई, रांड मरै गुलगळ तांई
(घर में तेल तक नहीं है और रांड गुलगुलों के लिए लालायित हो रही है।)
➤ घण जायां घण ओळमा घण जायं घण हाण।
(अधिक बच्चों के होने से अधिक उपालम्भ मिलते हैं और गालियाँ सुननी पड़ती हैं।)
➤ घण जायां घण नास।
(संतान की अधिकता कुटुम्ब की एकता का नाश करती है।)
➤ घणी सूघी छिपकली चुग-चुग जिनावर खान।
(ऊपर से सीधा-सादा दिखलाई पड़ने वाला ही कभी-कभी बड़ा घातक सिद्ध होता है।)
➤ घणूं बळ भयां घूडो पड़ै।
(खींचातानी से वैमनस्य बढ़ जाता है।)
➤ घर-घर मांटी का चूला।
(घर-घर सभी की सामान्य आर्थिक स्थिति है।)
➤ घण मीठा में कीड़ा पड़े।
(अति प्रेम में अंत में कभी-कभी कटुता बढ़ती देखी गई है।)
➤ घूमटा सै सती नहीं, मुंहाया सै जती नहीं।
(कोई स्त्री घूंघट निकालने से ही सती नहीं हो जाती, और मूंड मुंडा लेने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता)
➤ घोड़ी तो ठाण बिके।
(गुणी की उपयुक्त जगह पर ही कीमत होती है।)
➤ चून को लोभी बातां सूं कद माने।
(आटे का लोभी बातों से कैसे मान सकता है।)
➤ चोखो करगो. नाम धरगो।
(जो अच्छा कर गया, उसका हमेशा के लिए नाम हो गया।)
➤ चालणी में दूद दुवै, करमा नै दोस देवै।
(स्वयं मूर्खता करता है और व्यर्थ में भाग्य पर दोषारोपण करता है।)
1. हंसले घर बसेला– उन्नति करना
2. हेलल भंईसिया पानी में– सब खत्म हो जाना
3. करिया अच्छर से भेंट ना, पेंगले पढ़ऽ ताड़ें– असमर्थ होकर भी बड़ी-बड़ी बातें करना
4. नव के लकड़ी, नब्बे खरच– बेवकूफी में खर्च करना
5. हाथी चले बाजार, कुकुर भोंके हजार– गंभीरता से काम करना
6. खेत खाय गदहा, मारल जाय जोलहा– किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलना
7. नन्ही चुकी गाजी मियाँ, नव हाथ के पोंछ- सम्भलने से परे
8. क, ख, ग, घ के लूर ना, दे माई पोथी– औकात से अधिक माँगना
9. जिनगी भर गुलामी, बढ़-बढ़ के बात– छोटी मुँह बड़ी बात
10. ना नईहरे सुख, ना ससुरे सुख– अभागा
11. बिनु घरनी, घर भूत के डेरा– नारी बिना घर सूना
12. सुपवा हंसे चलनिया के कि तोरा में सतहत्तर छेद– खुद दोषी होकर किसी को कोसना
13. सब धन बाईसे पसेरी– सब एक समान
14. रामजी के चिरईं, रामजी के खेत, खाले चिरईं भर-भर पेट– अपने धन पर ऐश
15. अबरा के मउगी, भर घर के भउजी– कमजोर का मजाक बनाना
16. केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर– चोर-चोर मौसेरे भाई
17. हवा के आंगा, बेना के बतास– सूरज को दीपक दिखाना
18. फुटली आँखों ना सोहाला– बिल्कुल नापसंद
19. चिरईं के जान जाए, लईका के खेलवना– किसी का कष्ट देख खुश होना
20. घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत– सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को
21. नवकि में नव के पुरनकी में ठाढ़े– नये-नये को इज्जत देना
22. लईकन के संग बाजे मृदंग, बुढ़वन के संग खर्ची के दंग– जब जैसा तब तैसा
23. इहे छउड़ी इहे गाँव, पूछे छउड़ी कवन गाँव– जानबूझ के अनजान बनना
24. घीव के लड्डू, टेढो भला– मांगी हुई चीज़ हर हाल में अच्छी
25. उधो के लेना, ना माधो के देना– अलग-अलग रहना
26. काठ के हड़िया चढ़े न दूजो बार– बिना अस्तित्व का
27. गुरु गुड़ रह गइलन, चेला चीनी हो गइले– गुरु से आगे निकल जाना
28. घर के भेदिया लंका ढाहे– चुगली करने वाला
29. मुअल घोड़ा के घास खाइल– मिथ्या आरोप
30. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए– कंजूस
31. भाग वाला के भूत हर जोतेला– भाग्यवान का काम बन जाना
32. जइसन बोअबऽ, ओइसने कटबऽ– जैसी करनी वैसी भरनी
33. जेकर बनरी उहे नचावे, दोसर नचावे त काटे धावे– जिसकी चीज़ उसी की अक्ल
34. दुधारू गाय के लातो सहल जाला– लाभ मिले तो मार भी सहनी पड़ती है
35. बाण-बाण गइल त नौ हाथ के पगहा ले गइल– खुद तो डूबे दूसरे को भी ले डूबे
36. नया-नया दुलहिन के नया-नया चाल– नई प्रथा शुरू करना
37. जे न देखल कनेया पुतरी उ देखल साली– उन्नति कर जाना
38. जेतना के बबुआ ना ओतना के झुनझुना– अधिक खर्च करना
39. बाग़ के बाग़ चउरिये बा– बेवकूफ जनता
40. ऊपर से तऽ दिल मिला, भीतर फांके तीर– धोखेबाज
41. नव नगद ना तेरह उधार– लेन-देन बराबर रखना
42. पइसा ना कउड़ी बीच बाजार में दौड़ा-दौड़ी– बिना साधन के भविष्य की कल्पना
43. माई चले गली-गली, बेटा बने बजरंगबली– खुद की तारीफ़ करना
44. रूप न रंग, मुँह देखाइये मांगताड़े– ठगी करना
45. खाए के ठेकान ना, नहाये के तड़के– परपंच रचना
46. रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा– असमर्थता
47. कफन में जेब ना, दफन में भेव– ईमानदार
48. लगन चरचराई अपने हो जाई– समय पर काम बन जाना
49. भूख त छूछ का, नींद त खरहर का– आवश्यकता प्रधान
50. गज भर के गाजी मियाँ नव हाथ के पोंछ– आडम्बर
51. छाती पर मुंग दरऽ– बिना मतलब का कष्ट देना
52. भेड़ियाधसान- घमासान, भेड़-चाल
53. हंस के मंत्री कौआ– बेमेल
54. भर घरे देवर, भसुरे से मजाक– उल्टा काम करना
55. हम चराईं दिल्ली, हमरा के चरावे घर के बिल्ली– घर की मुर्गी दाल बराबर
56. अगिला खेती आगे-आगे, पछिला खेती भागे जागे– अग्र सोची सदा सुखी
57. हंसुआ के बिआह, खुरपी के गीत– बेमतलब की बात
58. ओस के चटला से पिआस ना मिटे– ऊँट के मुंह में जीरा
59. आंगा नाथ ना पाछा पगहा– बिना रोक-टोक के
60. ओखर में हाथ, मुसर के देनी दोष– नाच न जाने आँगन टेढ़ा
61. काली माई करिया, भवानी माई गोर– अपनी-अपनी किस्मत
62. माड़-भात-चोखा, कबो ना करे धोखा– सादगी का रहन-सहन
63. करम फूटे त फटे बेवाय– अभागा
64. कोइला से हीरा, कीचड़ से फूल– अद्भुत कार्य
65. तेली के जरे मसाल, मसालची के फटे कपार– इर्ष्या करना
66. तीन में ना तेरह में– कहीं का नहीं
67. दउरा में डेग डालल – धीरे-धीरे चलन
68. भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले– मौसमी अंदाज
69. कंकरी के चोर फाँसी के सजाए– छोटे गुनाह की बड़ी सज़ा
70. कहला से धोबी गदहा पर ना चढ़े– मनमौजी
71. दाल-भात के कवर– बहुत आसन होना
72. होता घीवढारी आ सराध के मंतर– विपरीत काम करना
73. ससुर के परान जाए पतोह करे काजर– निष्ठुर होना
74. बिलइया के नजर मुसवे पर– लक्ष्य पर ध्यान होना
75. लूर-लुपुत बाई मुअले प जाई– आदत से लाचार
76. हड़बड़ी के बिआह, कनपटीये सेनुर– हड़बड़ी का काम गड़बड़ी में
77. बनला के सभे इयार, बिगड़ला के केहू ना– समय का फेर
78. राजा के मोतिये के दुःख बाऽ– सक्षम को क्या दुःख
79. रोवे के रहनी अंखिये खोदा गइल– बहाना मिल जाना
80. बुढ़ सुगा पोस ना मानेला– पुराने को नयी सीख नहीं दी जा सकती
81. कानी बिना रहलो न जाये, कानी के देख के अंखियो पेराए– प्यार में तकरार
82. अक्किल गईल घास चरे- सोच-विचार न कर पाना
83. घर फूटे जवार लूटे– दुसरे का फायदा उठाना
84. ना खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ब– किसी को आगे न बढ़ने देना
85. मंगनी के बैल के दांत ना गिनाये– मुफ्त में मिली वस्तु की तुलना नहीं की जाती
86. ना नौ मन तेल होई ना राधा नचिहें– न साधन उपलब्ध होगा, न कार्य होगा
87. एक मुट्ठी लाई, बरखा ओनिये बिलाई– थोड़ी मात्रा में
88. हथिया-हथिया कइलन गदहो ना ले अइलन– नाम बड़े दर्शन छोटे
89. चउबे गइलन छब्बे बने दूबे बन के अइलन– फायदे के लालच में नुकसान करना
90. राम मिलावे जोड़ी एगो आन्हर एगो कोढ़ी– एक जैसा मेल करना
91. आन्हर कुकुर बतासे भोंके– बिना ज्ञान के बात करना
92. बईठल बनिया का करे, एह कोठी के धान ओह कोठी धरे– बिना मतलब का काम करना
93. घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध– घर की मुर्गी दाल बराबर
94. भूखे भजन ना होइहें गोपाला, लेलीं आपन कंठी-माला– खाली पेट काम नहीं होता
95. ना नीमन गीतिया गाइब, ना मड़वा में जाइब– ना अच्छा काम करेंगे ना पूछ होगी
96. लाद दऽ लदवा दऽ, घरे ले पहुँचवा दऽ– बढ़ता लालच
97. पड़लें राम कुकुर के पाले– कुसंगति में पड़ना
98. अंडा सिखावे बच्चा के, बच्चा करु चेंव-चेंव– अज्ञानी का ज्ञानी को सिखाना
99. लात के देवता बात से ना माने– आदत से लाचार
100. जे ना देखन अठन्नी-चवन्नी उ देखल रूपइया– सौभाग्यशाली
101. भोला गइलें टोला प, खेत भइल बटोहिया, भोला बो के लइका भइल ले गइल सिपहिया– ना घर का ना घाट का
अ, आ
अकल बिना ऊंट उभाणे फिरैं
अकल मारी जाट की, राॅघङ राख़या हाली, वो उस नै काम कह, वो उस नै दे गाली
अपनी रहिय्याँ नै न रोती, जेठ की जायियाँ नै रोवे
अंधा न्यौतै और दो बुलावै अर तीसरा गैला आवे
अरै, क्यूकर ब्याह में नाई की तरियां हो रहया सै ?
अगेती फसल और अगेती मार करणियां की होवै ना कदे बी हार
आई तीज, बिखेर गई बीज - आई होली, भर ले गई झोली
आगै-पाछै नीम तळै ("one and the same thing")
आड़ की पड़छाड़ की, मेरे नाना की ससुराड़
आया मंगसिर, जाड्डा चाल्या रंग-सिर - आया पौह, जाड्डे हा हुआ छोह - आया माह, जाड्डा चाल्या राह-ए-राह - आया फागण, जाड्डा चाल्या हागण !
आब-आब कहते मरे सिरहाणै धरया रहया पाणी (आब मतलब पानी) means use language that all understand
औंधै जाट नै लागी अंघाई, भैंस बेच कै धोडी बसाई
आँकल-झोट्यां का खाया कदे बेकार ना जाया करै
आन्धी पिस्से कुत्ते खा
आंध्यां की माखी राम उडावै
आंध्यां बांटै सीरणी अप अपणा नै दे - औरां की के फूट-गी, आगा बढ़-कै ले
आंधा गुरू आंधा चेला - कूंऐं में दोनूं ढ़ेल्लम-ढ़ेल्लां
आपना मारे छाया में गेरे
इ, ई
इबै किमै ना बिगङया, इबै तै बेटी बाप कै सै (Situation tensed but under control)
इतनै काणी का सिंगार होगा.... मेळा बिछड़ ज्यागा
इतनी चीकणी हांडी होती तै कुत्ते ए ना चाट लेते !
इसा भाज्या हांडै सै जणूं गहण में चूड़े हांड्या करैं
इसे बावळे तै भैंसवाळ में पावैंगे जो नहा कै सान्नी काटैं
इसे पिलूरे ना पाळियो जो जाड्डे में रजाई मांगैं
उ, ऊ
ऊत न ऊत ग°गा जी के घाट पै टकरा ए जाया करै
ए, ऐ
एक घर तै डायण भी छोड दिया करै
एक भैंस सोवां कै गार लावै (एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा करती है)
ओ, औ
ओछा बाणियां, गोद का छोहरा, ओछे की प्रीत, बाळू की भीत - कदे सुख नहीं दें (A cunning money lender, adopted son, cruel love and a sand-wall will never give happiness)
क, ख
काठ की हांडी रोज न चढ़ती
कमीना का बालक त्यौहार के दिन रूस्या करै
कद (कब) मरी मेरी सासू -- कद आये मेरै आँसू
करजा (debt) भला ना बाप का, बेटी भली ना एक
करमा के लेख उघाङ-उघाङ देख
कर जावै घूंघट आळी, नाम झुरमट आळी का (someone does the mischief, blame goes to someone else)
कदे कदे तै गधे की बी ग्यास आया करै
काका के हाथ में कस्सी हळवी (हल्की) लाग्या करै
काका के हाथ में कुलहाङी पैनी लाग्या करै
काका कहे त कोए काकडी ना दे
काग पढ़ाया पींजरै, पढ-ग्या चारूं वेद, समझायां समझया नहीं रहया ढेढ का ढेढ (You cannot educate a crow like a parrot even if you teach him in a cage, he will not understand anything just like a foolish man will remain foolish and wont change.)
काणी के ब्याह में सौ जोखिम
काणे, टूंडे और लंगड़े में एक ऐब फालतू-ए पाया करै
काणे की आंख में घाला घी अर नू कह मेरी फोड दी
काने की अर तेरी बणे नही, काणे बिना तुझे सरे नही
काम का ना काज का ... ढाई मण अनाज का
काम चुड़ैलां का, मिजाज परियां के ..
काळे-काळे - सारे मेरे बाप के साळे
काळे सिर आळे का कदे ना भरै (Human beings are never satisfied with their wealth)
काया रहै निरोग जो कम खावै- उसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै (He who eats less remains healthy. He never fails who does not get depressed)
किमें मेरी का मन था, किमें आ-गे लणिहार
कुत्ते कै घी हजम ना होया करै
कुत्ते भोंके जा अर गाङी चाले जा
कुम्हार की कुम्हारी पै तै पार बसावै ना, गधी के कान ऐंठण भाजै
कुणबा खीर खा और देवते राजी हों (कनागत)
के बाबा रेल में - के जेल में (Either this way, or that way)
के जाणै भेङ बिंदौला की साह नै
काटड़े की मां तलै 9 मण दूध, पर काटड़े का के ?
काणे दादा पॉ लॉगू , वोहे लडाई के लच्छन
खड़ा डरावा खेत में - ना खा, ना खाण दे
खा तै खा घी तैं, ना तै जा जी तैं
खाद पड़ै तै खेत, नांह तै कूड़ा रेत (Related to agriculture)
खच्चरी मरी पड़ी सै, भाड़ा सोनीपत का ।
खेती खसम हेती
खांड का पानी होना अर्थ करे कराये पे पानी फिरना.
ग, घ
गंजे रे गंजे टेरम टेर, लाठी ले के डांगर हेर
गू खाओ तो हाथी का जो पेट भी भरे
बकरी की मिंगन का क्ये खाया जो जाड भी न भरे
गधे की आँख में घाल्या घी - वो बोल्या मेरी तै फोड़-ए दी !
गधे की लात अर्र बीर की जात का कोए भरोसा नही होता
गधी मरी पड़ी, सुणपत के भाड़े करै
गरीब की बहु गाम की भाभी
गोदी में छोरा और गांव में ढ़िंढ़ोरा
गोबर में डळा मारै, अर खुद छींटम-छींट
गाम बस्या ना, मंगते फिर गये
गादड़ बिना झाड़ी में कौन हागै ?
गादड़–गादड़ी का ब्याह, सूसा भात न्यौतण जा । चिड़िया गीत गाती जा, लौबाँ लाकड़ी चुग ल्या ।।(this one is children's favourite)
गादड़ की तावळ तैं बेर ना पाक्या करैं
गादड़ी के कान ना तो छुड़ाये जां, ना पकड़े जां ! (The situation when you can neither walk on, nor walk out)
बोळी गादड़ी के कान पकड़ना
गादड्डी की मौत आवे जब गाम काने भाजा करे
गावड़ी की लात खाली कोन्यां जाती
गंडे तैं गंडीरी मीठी, गुड़ तैं मीठा राळा - भाई तैं भतीजा प्यारा, सब-तैं प्यारा साळा
गंजी की मौत आवै जब वा कांकरां में कुल्लाबात्ती खाया करै
गोह के जाए, सारे खुरदरे
गुजर के सौ, जाट के नौ अर्र माली के दौ किल्ले बराबर होया करेँ
गरीब की बहु सबकी भाभी
घणी स्याणी दो बार पोवै - और भूखी सोवै
घणी सराही ओड़ कुतिया मांड में डूब्या करै
घर देख कै खावै, पड़ौसी देख कमावै (Spend according to your income and earn as your neighbor)
घर तै जळ-ग्या पर मूस्यां कै आंख हो गई
घर बेशक हीणा टोह दे, वर हीणा ना होना चाहिये
घर में सूत ना पूणी, जुलाहे गैल लट्ठम-लट्ठां
घी सुधारै खीचड़ी, और बड्डी बहू का नाम
घी होगा तै अंधेरे मैए चमक जागा
घोड़ी नै ठुकवाई तनहाळ, तो मींडकी नै भी टांग ठाई
च, छ
चालना राही का, चाहे फेर क्यूं ना हो । बैठना भाइयाँ का, चाहे बैर क्यूं ना हो ।।
चोर नै फंसावै खांसी और छोरी नै फंसावै हांसी
चोर के मन में डूम का ढांढा (चोर की दाढ़ी में तिनका)
चोरटी बिल्ली, छीके की रुखाळी
चाहे तै बावली सिर खुजावै ना, खुजावै तै लहू चला ले
चुड़ा रग देख कै लठ मारया करै
छाज तै बाजै-ए-बाजै, छालणी बी के बाजै - जिसमै 70 छेद ?
ज, झ
जड़ै दीखै तवा-परांत, ऊड़ै गावैं सारी रात
जाट मरया जिब जानिये जब तेरहवीं हो जाये
जाट्टां का बूढा बुढापे मै बिगड्ड्या करे
जाट गंडा ना दे, भेली दे
जाट कहै जाटणी नै, जै गाम में सुखी रहना | कीड़ी खा-गी हाथी नै, हां-जी हां-जी कहना ।।
जाम दिये बाळक गूंद के लोभ में
जेठ के भरोसे छोरी ना जामना
जिस घर बड्डा ना मानिये, ढोरी पड़ै ना घास । सास-बहू की हो लड़ाई, उज्जड़ हो-ज्या बास ।।
जिस घर बड्डा ना बूझिये, दीवा जळै ना सांझ । सो घर उज्जड़ जानिये, जिस घर तिरिया बांझ ।|
जिब कीड़ी अंडा दे चलै, चिड़िया न्हावै धूल - कहैं स्याणे सुणो भाई, बरसण में ना हो भूल
जै इतनी सूधी होती तै चाचा -ताऊ कै रहती
जिसी नकटी देवी, उसे-ए ऊत पुजारी
जिस गाम में ना जाना, उसके कोस क्यूं गिने
जिसकै लागै, वोह-ए जाणै
जिसकी खाई बांकळी, उसके गाये गीत
जिसका खावै टीकड़ा, उसका गावै गीतड़ा
जिसनै करी सरम, उसके फूटे करम
जिसनै चलणी बाट, उसनै किसी सुहावै खाट
जूती तंग अर रिश्तेदार नंग - सारी जगहां सेधैं
झोटे-झोटे लड़ैं, झाड़ियां का खो
झूठा खाणा, मीठे के लोभ मै
जोबन लुगाई का बीस या तीस, और बेल चले नों साल. मर्द और घोडा कदे ना हो बुढा, अगर मिले खुराक |
ट, ठ
टांग लम्बी धड छोटा वो ही आदमी खोटा
ठाल्ली बैठे, नूण कै मांह हाथ
ठाल्ली डूम ठिकाणा ढूंढ़ै....ठाल्ली नान काटङे मूनडे
ठाढे की बहू सबकी दादी, माड़े की बहू सबकी भाभी (गरीब की जोरू सबकी भाभी)
ड, ढ
डंडा सी पूंछ, भदाणी का राह (एकदम सीधा रास्ता)
ढ़ेढ नै ढेढ गंगा जी के घाट पै टोह ले
ढूंढ में गधा लखावै - जिसकी छोटी आँख हो
ठाढा मारै ... रोवण दे ना, खाट खोस ले ... सोवण दे ना (Might Is Right, or The Survival of the Fittest)
त, थ
तडके का मीह अर्र साँझ का बटेऊ टल्ल्या नही करते
तन का उजला मन का काळा, बुगले जिसा भेस - इसां तैं तै भाई काग भला बाहर भीतर एक
तीन पाव की 3 पोई, सवा सेर का एक । तन्नै पूत्ते 3 खाई, मन्नै चिन्दिया एक ।। (This one told by ladies)
तीतर पांखी बादळी, दोफाहरे के पणिहार - खातिण चाल्ली इंधण नै, तीनूं नहीं भलार
तेरे चीचड़ ना टूटैं म्हारे तैं (Means – “we are unable to serve you”)
तेरे जामे होड़ तै इसै पाहया चालैंगे (means- Good for nothing)
थोथा चना बाजे घना
द, ध
दानी काल परखियो, गाय नै फागण-माह - बहू नै जिब परखियो जिब धाँस पल्लै ना (He who helps in need is great. A cow which gives an offsping in winter month, is best because it would lactate even in summer months. A woman is judged when you have no money)
दांतले खसम का ना रोये का बेरा पाटै, ना हांसते का !
दूसरे की थाळी में लाडू बड्डे ए दीख्या करैं
दूसरे की सौड़ में सोवै, वो फद्दू कहावै
दो पैसे की हांडी गई, कुत्ते की जात पिछाणी गई
दुबली नै दो षाढ़--Sunitahooda 00:29, 3 February 2009 (EST)
दो िदन की मुसलमानी अळलाह-अळलाह पुकाऱै
दही के भुळामै कपास खा ज्ञाणा - To take some action without judging the underlying risk and danger.
दूध आली की तो लात भी उट जाया करे
दो सामण, दो भादवे, दो कात्तिक, दो माह । सोना चांदी बेच कै नाज बिसावण जा ॥
न
नहर तले का अर्र सहर तले का मानस खतरनाक हो सै
नई-नई मुसलमाननी अल्लाह-अल्लाह पुकारै
न्यूं बावळा सा हांडै सै जणूं बिगड़े ब्याह में नाई
नानी फंड करै, धेवता डंड भरै
नाइयों की बारात में सारे ठाकर हुक्का कौन भरै ?
नाई-के-रै-नाई-के मेरे बाल कोड़ोड़ - जजमान, तेरै आगै-ए ना आ-ज्यांगे
नीम पै तै निम्बोळी ए लागैंगी
प, फ
पग पग पै बाजरा, मींडक कूदणी जवार - न्यूं बोवै जब कोए, घर का भरै भंडार
पत्थर का बाट - जितने बै तोलो, घाट-ए-घाट
पकड़ण का ढ़ंग नहीं अर मारण की साई ले रहा !
पानी में पादै, और बुलबुले ना ऊठैं !
पाटडा चडतेहे रांड होगी
पैंट की क्रीज खराब ना होण देता - और घर में मूस्से कुल्लाबात्ती करैं
पुलिस के पीटे का आर चमस्सेय के रेह्पटे का के बुरा मानना
पूत के पांव पालणे में ऐं दीख ज्याया करैं
फूहड़ चालै सारा घऱ हालै
पैसा नहीं पास मेला लगे उदास........
फूहड़ के तीन काम हगे, समेटे अर गेरन जा..........
फूफा कहे त कोए फुकनी ना दे ' अर काका कहे ते कोई काकडी ना दे.....
ब, भ
बकरी दूध तै दे.. पर मींगण कर-कै
बकरा अपनी जान तैं गया, खाण आळे नै स्वाद भी ना आया
बटेऊ खांड-मांडे खा, कुतिया की जीभ जळै
बढिया मिल गया तो म्हारी के भाग ना तो मरियो नाई बाह्मन (पुराने टेम मे नाई और ब्राह्मन ही रिश्ते करवते थे)
बहू तै सुथरी सै, पर काणी सै ..औ
बहुआं हाथ चोर मरावै, चोर बहू का भाई
ब्याहली आंवते ही सासू मत बणिये !
बोहड़िया का भाई, गाम का साळा
बहू आई रीमो-झीमो, बहू आई स्याणी भोत - आवतीं-हें न्यारी हो-गी, पाथणे ना आवैं चौथ !
ब्याह में गाये गीत सारे साची ना होते
बाप नै ना मारी मींडकी, बेटा तीरंदाज
बेर खावै गादड़ी, ड़ंडे खावै रीझ
बांदरां के बीच में गुड़ की भेल्ली
बावळा चालै तो चाल्या-ए जा
बावला या तो गाम जावे ना, जावे तो फेर आवे ना
बावळी गादड़ी के पकड़े कान - ना छोडे जां, ना पकड़े राखे जां
बारह बरस में तो कुरड़ी के भी भाग बाहवड़ आया करैं
बिटोड़े में तै गोस्से ए लिकड़ैंगे
बिन फेरयां का खसम ....
बुलध ना ब्यावै तै के बूढ़ा-ए ना हो ?
बूढ़ा मरो चाहे जवान, हत्या-सेती काम
लखमीचंद ने कहा – बुलहद सींग का, मरद लंगोट का - बाऊ नाई का जवाब – बुलहद काँध का, मरद जुबान का !
बेईमान की रुखाळ और आँख में बाळ - दोनूं करड़े काम सैं
बोवो गेहूं काट कपास, ना हो डळा ना हो घास (Related to agriculture)
बिली ढूध की रुखाली
भांग मांगै भूगड़ा, सुल्फा मांगै घी - दारू मांगै खोंसड़ा (जूता), थारी खुशी पड़ै तै पी
भीड़ मै डळा फद्दू कै-ए लाग्या करै
“भुस में आग ला कै दमालो दूर खड़ी”
भूखे की बाहवड़ जाया करै पर झूठे की ना बाहवड़्या करती
भूआ जाऊं-जाऊं करै थी, फूफा लेण आ-ग्या !
भोई-रै भोई, तन्नै रही-सही भी खोई
भोळा बूझै भोळी नै – के रांधैगी होळी नै - मोठ बाजरा सब दिन रन्धैं सक्कर चावळ होळी नै
भैंस आपणे रंग नै ना देखै, छतरी नै देख कै बिधकै
भादवे का घाम अर साझे का काम देहि तोडा करे
भीत में आला अर, घर में साला ठीक ना होते
म
मर-गी रांड खटाई बिना
मंगळ करै दंगळ, बुध बिछोह हो, जुमे रात( वीरवार) की खीर खा कै, जुमे(शुकरवार) को जाणा हो
मारते माणस का हाथ पकड़ ले...बोलते की जुबान ना पकड़ी जा
मार कै भाग ज्या, अर खा कै सो ज्या - कोई ना पकड़ सकै
मार पाछै किसी पुकार
मरोड़ मैं तै करोड़ लागैंगे
मति मारी जाट की, रांघड़ राख्या हाळी - वो उसनै काम कहै, वो दे उसनै गाळी
मींह में मूसळ का के भीजै सै
मूसे नै पा-गी हल्दी की गांठ - पंसारी ए बण बैठ्या
मूसे नै पा-गी खाकी कात्तर, वो-ए थाणेदार बण बैठ्या
मूसे नै पा-ग्या सूआ, डाक्टर-ए बण बैठ्या
मूंगफली ऊपर पानी पी ल्यो, खांसी हो ज्यागी - काणे गैल्यां ब्याह कर ल्यो, हांसी हो ज्यागी
मां तै तरसै चौथी-चौथी नै, बेटी बिटौड़े के बिटौड़े बक्शै
मान ले तो आपकी भी, ना मानै तो बाप की भी
मां पै पूत पिता पै घोड़ा, घणा नहीं तै थोड़ा-थोड़ा
मुल्ला की दौड़ मसिजद ताही
मीठे के लोभ में जम के गेर दिए
महकार कुन्धरे जितनी भी कोना नाम धरवालिया गुलाबो.महकार (Fragrance),कुन्धरे(kind of veg.)
माँ री मामा आया, बोला भाई तो मेरा ए ना है
मिन्द्की क जुखाम होना
य
या जुबान तो कह के भीतर बड जा फेर यु चाम बाहर पिटू जा
यौवन लुगाई का बीस या तीस और बैल चलै नौ साल - मरद और घौड़ा कदे हो ना बूढ़ा, जै मिलता रहवै माल (खुराक)
र
रांड तै रंडापा काट ले, रंडवे काटण दें जिब ना
रांड तै वा हो सै जिसके मर-ज्यां भाई - खसम तै और-ऐ ना कर ले !
रोता-सा जा, मरयां की खबर ल्यावै
राम उसका भला करै, जो अपणा काम आप करै
रै नाई-के, मेरे बाल कितने बड्डे सैं? - यजमान, ईब तेरै आगै-ए आ ज्यांगे !
रूप रोवै, करम खावै
ल
लीपण का ना पोतण का, गू कुत्त्यां का !
लोभ लाग़या बाणिया,चूंडे लागी गाण
लीख (ढेरे) तैं ले कै किमैं सीख - इसकी टांट नै गंजी कर दे !
लङै बरोबर रोवे बाध
व
श, ष, स
शान्ति-हे शान्ति ! गधे चरांती - एक गधा लंगड़ा, वो-ए तेरा बंदड़ा !
शेरां के हाथ-मुंह किसनै धोए ..
शेर का भाई बघेरा - वो कूदै नौ, और वो कूदै तेराह !
शिकार के वक्त कुतिया हगाई फिरै (आग लगने पर कुंआ खोदना)
शराबी के दो ठिकाने - ठेके पै जावै या थाने
साझे का मारै काम और भादवे का मारै घाम
साझे की होळी नै कोए बी जळा ज्या
सूखा कसार खा-कै तै इसे-ए सपूत जामे जांगे
सूधी छिपकली घणे माछर खावै
सू-सू ना कहै, सुसरी कह दे
सौ दिन चोर के, एक दिन शाह का
सयाना कौआ गू खाया करे
साची कहना सुखी रहना, झूठ बोले खीचा खीचा फिरे
ह
हाळी का पेट सुहाळी खा-कै ना भरै
हारे ओड़ कै दो लठ फालतू लाग्या करैं
हांडी का छो बरोली पै
हाँसी में हो-ज्या खाँसी
हँसी-हँसी में हसनगढ़ बस-ग्या
हाथ ना पल्ले, मियॉ मटकताऐ चाले
हाग्या जा ना पेट पीटे
हाथी-घोड़े बह-गे अर गधी बूझै पाणी कितना ?
हेजली के बाळक ना खिलाने चाहियें अर च्यातर का काम ना करना चाहिये
हडकाई गादडी के कान पकडे गए
खाओ पीओ, छिको मत
चालो फिरो, थक्को मत
बोलो चाल्लो, बक्को मत
देखो भालो, ताक्को मत।
ठाढा मारै - रोवण दे ना
खाट खोस ले -सोण दे ना
जिस खेत मैं खसम ना जा
वो खेत खसम नै खा।
जिस घर बड्डा ना मानिये, ढोरी पड़ै ना घास
सास-बहू की हो लड़ाई, उज्जड़ हो-ज्या बास ।
तन का उजला मन का काळा, बुगले जिसा भेस
इसां तै तो काग भला जो बाहर भीतर एक
अगेती फसल और अगेती मार करणियां की होवै ना कदे बी हार।
आपणा मारे छाया में गेरे
आँधे की माक्खी राम उड़ावै।
काका कहे त कोए काकडी ना दे।
झोटे-झोटे लड़ैं, झाड़ियां का खो।
एक घर तै डायण भी छोड दिया करै।
जूती तँग अर्र रिश्तेदार नंग, सारी जगहां सेधैं।
काम का ना काज का ... ढाई मण अनाज का
के तो बाबा रेल मैं - के ज्यागा जेल मैं।
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खाद पड़ै तै खेत, अर्र नांह तै कूड़ा रेत।
घी सुधारै खीचड़ी, अर्र बड्डी बहू का नाम।
जिसनै करी सरम, उसके फूटे करम।
जिसनै चलणी बाट, उसनै किसी सुहावै खाट।
बिटोड़े में तै गोस्से ए लिकड़ैंगे
भैंस आपणे रंग नै ना देखै, छतरी नै देख कै बिदकै
सूधी छिपकली घणे माछर खावै
हारे ओड़ कै दो लठ फालतू लाग्या करैं
आंधी भैंस बरू में चरै - बिना सोचे समझे नुकसान करना
अक्कल बड़ी के भैंस - पशु बल से बुद्धि बल श्रेष्ठ है
अहारे ब्योहारे लज्जा न कारे - भोजन और व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए
अस्सी बरस पूरा हुया तो बी मन फेरां में रह्या - वृद्ध होने पर भी वासना नहीं जाना
अल्ला अल्ला खैर सल्ला - शिष्टाचार के अतिरिक्त कुछ लेना न देना
अरडावतां ऊँट लदै - किसी की दीन पुकार पर भी ध्यान न देना
अरजन जसा ही फरजन - जैसा पिता है वैसा ही पुत्र है
अभागियों टाबर त्युंहार नै रूसै - अभागा बच्चा त्योहार के दिन रूठता है
अनियूँ नाचै, अनियूँ कूदै, अनियूँ तोडै़ तान - अन्न के बल पर ही नाच-कूद और राग-रंग सूझते हैं
अणदोखी ने दोख, बीने गति न मोख - जो निरपराध पर दोष लगावे, उसे गति या मोक्ष कुछ नहीं मिलता
इसो गुड़ गीलो कोनी - यह इतना नरम नहीं कि कोई कहे, यह वैसा कर ले
अठे गुड़ गीलो कोनी - यह आदमी ऐसा सीधा नहीं है कि कोई उसे ठग ले
अठे चाय जैंकी उठे बी चाय - सत्पुरुष दीर्घजीवी नहीं होते
अग्रे अग्रे ब्राह्मणा, नदी नाला बरजन्ते - ब्राह्मण खतरे से दूर रहता है
अठे किसा काचर खाय है? - यहाँ दाल नहीं गलेगी
अक्कल बिना ऊँट उभाणा फिरे - मूर्ख लोग बुद्धि न होने के कारण साधनों का उचित प्रयोग नहीं कर पाते
अक्कल कोई कै बाप की कौनी - बुद्धि किसी के बपौती नहीं
अम्बर कै थेगली कौनी लागै - फटे आकाश को सिया नहीं जा सकता
अण मिले का सै जती हैं - भोग न मिलने पर ब्रह्मचर्य का पालन स्वयं हो जाता है
आंधी आई ही कोनी, सूंसाट पैली ही माचगो - किसी कार्य के होने से पहले ही ढिंढोरा पीटना
आंधो बाटै सीरणी, घरकां नै ही दे - अपना स्वार्थ सिद्ध करना
आंख कान में चर आंगल को फरक है - सत्य और झूठ में बहुत अंतर होता है
आए लाडी आरो घालां, कह पूंछ ई आरै में तुड़ाई है - किसी योजना से पहले ही उस काम के लिए तैयार रहना
आसवाणी, भागवाणी - आश्विन माह में वर्षा भाग्यवानों के यहाँ होती है
आल पड़ै तो खेलूं मालूं, सूक पड़ै तो जाऊं - सुख के समय साथ रहना, दुःख आते ही छोड़कर चले जाना
आपकी छाय नै कोई खाटी कोनी बतावै - अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं बतलाता
आपकी मा ने डाकण कुण बतावै? - अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं कहता
आपके लागै हीक में, दूसरो के लागे भीत में - दूसरे के प्रति कोई सहानुभूति न होना
आपको कोढ़ सांमर सांमर ओढ़ - अपने किए का फल भोगने के अलावा कोई चारा नहीं होना
आपको टको टको दूसरै को टको टकुलड़ी - अपनी वस्तु को ही बड़ी समझना, दूसरे की वस्तु को तुच्छ समझना
आपको बिगाड्यां बिना दूसरां को कोनी सुधरै - परोपकार करने के लिए स्वार्थ को छोड़ना पड़ता है
आपको सो आपको और बिराणू लोग - अपना, अपना ही होता है, पराया, पराया ही होता है
आ बलद मनै मार - जानबूझकर विपत्ति में पड़ना
आम खाणा क पेड़ गिणना - मनुष्य को अपने काम से मतलब रखना चाहिए
आम नींबू बाणियो, कंठ भींच्यां जाणियो - आम, नींबू और बनिया, इनको दबाने से ही रस निकलता है
आम फलै नीचो नवै, अरंड आकासां जाय - सज्जन जब बड़ा बनता है तो नम्र होता है जबकि दुर्जन इतराता है
आया की समाई पण गया की समाई कोनी - मनुष्य लाभ तो बर्दाश्त कर सकता है पर हानि नहीं
आयो रात, गयो परभात - बिना रुके तुरंत चले जाना
आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट - दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम होना
आंख फडूकै दहणी, लात घमूका सहणी - स्त्री की दाहिनी आँख फड़कने पर कोई संकट सहना पड़ता है
आंधे री गफ्फी बोळै रो बटको।राम छुटावै तो छुटे, नहीं माथों ई पटको।।
आंघे और बहरे आदमी से पिंड छुड़ाना कठिन कार्य है।
आगम चौमासै लूंकड़ी, जै नहीं खोदे गेह। तो निहचै ही जांणज्यों, नहीं बरसैलो मेह।।
वर्षाकाल के पूर्व लोमड़ी यदि अपनी ‘घुरी’ नहीं खोदे तो निश्चय जानिये कि इस बार वर्षा नहीं होने वाली है।
इस्या ही थे अर इस्या ही थारा सग्गा। वां के सर टोपी नै, थाकै झग्गा।
संबंधी आपस में एक-दूसरे की इज्जत नहीं उझालते। इसी बात को गांव वाले व्यंग्य करते हुए कहतें हैं कि यदि आप उनकी उतारोगे तो वह भी अपकी इज्जत उतार देगें दोनों के पूरे वस्त्र नहीं है - ‘‘एक के सर पर टोपी नहीं तो दूसरे ने अंगा नहीं पहना हुआ है।’’
आज म्हारी मंगणी, काल म्हारो ब्याव। टूट गयी अंगड़ी, रह गया ब्याव।।
जल्दीबाजी में अति उत्साहित हो कर जो कार्य किया जाता है उसमें कोई न कोई बाधा आनी ही है।
कुचां बिना री कामणी, मूंछां बिना जवान। ऐ तीनूं फीका लगै, बिना सुपारी पान।।
स्त्री के स्तनों का उभार न हो, मर्दों को मूंछें और पान में सूपारी न होने से उसकी सौंदर्यता नहीं रहती।
दियो-लियो आडो आवै।
दिया-लिया या अपना व्यवहार ही समय पर काम आता है।
धण जाय जिण रो ईमान जाए।
जिसका धन चला जाता है उसका ईमान भी चला जाता है।
धन-धन माता राबड़ी जाड़ हालै नै जाबड़ी।
धन आने के बाद आदमी का शरीर हिलना बन्द कर देता है। इसी बात को व्यंग्य करते हुए लिखा गया है कि राबड़ी खाते वक्त दांत और जबड़ा को को कष्ट नहीं करना पड़ता है।
ठाकर गया’र ठग रह्या, रह्या मुलक रा चोर। बै ठुकराण्यां मर गई, नहीं जणती ठाकर ओर।।
ठाकुर चले गये ठग रह गये, अब देश में चोरों का वास है। अब वैसी जननी मर चुकी, जो राजपुतों को जन्म देती थी।
कहावत का तात्पर्य समाज की वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य करना है। जिसमें देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए कहा जा सकता है कि अब देश के लिए कोई कार्य नहीं करता। सब के सब ठग हो चुके हैं जो देश को चारों तरफ को लूटने में लगे हैं।
टुकरा दे-दे बछड़ा पाळ्या,
सींग हुया जद मारण आया।
मां-बाप बच्चों को बहुत दुलार से पालते हैं परन्तु जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है तो मां-बाप को सबसे पहले उसी बच्चे की लात खानी पड़ती है।
जावै तो बरजुं नहीं, रैवै तो आ ठोड़। हंसां नै सरवर घणा, सरवर हंस करोड़।।
जाने वाले को रोकना नहीं चाहिए, वैसे ही ठहरने वाले को जगह देनी चाहिए। जिस प्रकार हंस को बहुत से सरोवर मिलते हैं वैसे ही सरोवर को भी करोड़ों हंस मिल जाते हैं। अर्थात किसी को भी घमण्ड नहीं करना चाहिए।
जात मनायां पगै पड़ै, कुजात मनायां सिर चढ़ै।
समझदार व्यक्ति को समझाने से वह अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति लड़ पड़ता है।
ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।
शब्दार्थ :- कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को सिर्फ लंगोट ही मिली
भावार्थ :- कुछ विशेष चयनित लोगों का तो यथोचित सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया / कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को कर लिया परन्तु सामान्य कार्यों की उपेक्षा कर दी गयी।
ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै ! ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !
शब्दार्थ :- ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।
भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।
कमाऊ आवे डरतो ,निखट्टू आवे लड़तो ! कमाऊ पूत आवै डरतो, अणकमाऊ आवै लड़तो।
शब्दार्थ :- कमाने वाला बेटा तो घर में डरता हुआ प्रवेश करता है, लेकिन जो कभी नहीं कमाता वह लड़ाई झगडा करते हुए ही आता है।
भावार्थ :- परिवार में धनार्जन करने वाले व्यक्ति को हर समय अपने मान-सम्मान का ध्यान रहता है, लेकिन निखट्टू को अपनी बात मनवाने का ही ध्यान रहता है।
ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय ! ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !
शब्दार्थ :- विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती है, कंजूस के कम पैसा खर्च करने से और बरसात के जोरदार पानी बरसा देने से .
भावार्थ :- काम को सुव्यवस्थित करने के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है
हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा । हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा ।
शब्दार्थ :- मैं दिवाली के गीत गाता हूँ और तू होली के गीत गाता है।
भावार्थ:- मैं यहाँ किसी प्रसंग विशेष पर चर्चा कर रहा हूँ और तुम असंबद्ध बात कर रहे हो।
म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी ? म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी?
शब्दार्थ :- मैं भी रानी हूँ और तू भी रानी है तो फिर चूल्हे को जलाने के लिए उसमें कंडा/उपला कौन डाले ?
भावार्थ :- अहम या घमण्ड के कारण कोई भी व्यक्ति अल्प महत्व का कार्य नहीं करना चाहता है।
मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा ! मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !
शब्दार्थ:-मठ छोटा है और साधु बहुत ज्यादा हैं। (मोडा =मुंडित, साधु)
भवार्थ:- जगह/वस्तु अल्प मात्रा में है,परन्तु जगह/वस्तु के परिपेक्ष में उसके हिस्सेदार ज्यादा हैं।
आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै! आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै!
शब्दार्थ:-अपनी जरुरत/अपना हित गधे को बाप कहलवाती है।
भावार्थ :-स्वार्थसिद्धि के लिए अयोग्य/ कमतर व्यक्तित्व वाले आदमी की भी खुशामद करनी पड़ती है।
चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई | चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई |
शब्दार्थ:-चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई,चल चिड़ा मैं तेरे पीछे आती हूँ।
भावार्थ :- पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।
चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी | चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी |
शब्दार्थ:-पक्षी के बच्चे को कितने ही लाड़–प्यार से रखो,वह पंख लगते ही उड़ जाता है।
भावार्थ :- हर जीव या वस्तु उचित समय आने पर अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण अवश्य करते ही हैं|
पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार ! पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार !
शब्दार्थ :- पासा अनुकूल पड़े,तो गंवार भी जीत जाता है. (चौसर के खेल में सब कुछ दमदार पासा पड़ने पर निर्भर करता है, उसमें और अधिक चतुराई की आवश्यकता नहीं होती है)
भावार्थ:- भाग्य अनुकूल हो तो अल्प बुद्धि वाला भी काम बना लेता है, नहीं तो अक्लमंद की भी कुछ नहीं चलती।
नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक। नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक।
शब्दार्थ :- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति को किसी चीज के बंटवारे में नौ हिस्से चाहिए.
भावार्थ:- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति किसी साझा हिस्से वाली चीज़ या संपत्ति में से अनुचित हिस्सेदारी लेना चाहता है जबकि सज्जन व्यक्ति अपने हक़ के ही हिस्से से ही संतुष्ठ रहता है.
कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी। कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी।
अर्थ - कार्तिक महीने की वर्षा बुरी , बनिए की मनाही , भाइयों की अनबन बुरी और राजा की डांट-डपट बुरी।
आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी। आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी।
अर्थ - किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है |
कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार। कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।
अर्थ - कुत्ते को पालना अथ्वा मारना दोनों ही बुरे है। यदि भाई अपनी बहन के घर और दामाद ससुराल में रहने लगे तो उनकी क़द्र भी कम होकर कुत्ते के समान हो जाती है। लेकिन यदि ससुर अपना पेट् भरने के लिए दामाद के पीछे लगा रहे तो वो सबसे गया गुजरा माना जाता है।
आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले
अर्थ - सामान्य दिन कि उपेक्षा 'बासेड़ा'[शीतला देवी का त्यौहार ही अच्छा जो खाने के लिए मीठे चावल तो मिले।
राधो तू समझयों नई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम ………राधो तू समझयों न'ई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम !
अर्थ - दुविधा में दोनों ही चले गए , न माया मिली न राम, न खुदा ही मिला न विसाले सनम। ......
जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …। जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …।
अर्थ - जीते हुए की सिर्फ दो रोटी और मरे हुए की सौ रोटियाँ लगती है। ....
खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। …… खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील, आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। ……
अर्थ - वैश्या अपने ग्राहक से और वैद्य अपने रोगी से खाट पर पड़े हुए ही जो लेले सो ठीक है, पीछे मिलने की उम्मीद न करे। …इसी प्रकार वकील अपने मुवक्किल से जितना पहले हथिया ले वही उसका ....
कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …।
अर्थ- बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....
1 :- पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।
अनुवाद- पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।
अर्थ- रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए।
2 :- सब चाही त काम आँटी।
अनुवाद- सब चाहेंगे तो काम अँटेगा।
अर्थ- अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए।
3 :- सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी।
अनुवाद- मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी।
अर्थ- किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो।
4 :- नेबुआ तs लेगइल सागे में मती डाले।
अनुवाद- नेंबू तो ले गया, साग में मत डाले।
अर्थ- किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका।
5 :- छिया-छिया गप-गप।
अनुवाद- छी-छी गप-गप।
अर्थ- किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।
6 :- बाबा के धियवा लुगरी अउरी भइया के धियवा चुनरी।
अनुवाद- दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी।
अर्थ- बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान।
7 :- सबकुछ खइनी दुगो भुजा ना चबइनी।
अनुवाद- सब कुछ खाया दो भुजा न चबाया।
अर्थ- भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए।
8 :- हाथी आइली हाथी आइली पदलसी भढ़ाक दे।
अनुवाद- हाथी आयी, हाथी आयी पादी भढ़ाक दे।
अर्थ- अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात।
9 :- जवन रोगिया के भावे उ बैदा फुरमावे।
अनुवाद- जो रोगी को अच्छा लगे वही वैद्य बतावे।
अर्थ- किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे।
10 :- आन की धन पर कनवा राजा।
अर्थ- दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना।
11 :- बड़ के लइका पादे त बाबू के हवा खुली गइल अउरी छोट के पादे त मार सारे पदले बा ।
अनुवाद- बड़ का लड़का पादे तो बाबू का हवा खुल गया और छोट का पादे तो मार साला पाद दिया।
अर्थ- बड़ को इज्जत और छोट का अपमान।
12 :- बुढ़वा भतार पर पाँची गो टिकुली।
अनुवाद- बुढ़े पति पर पाँच टिकली।
अर्थ- वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो।
13 :- बेटा अउरी लोटा बाहरे चमकेला।
अनुवाद- पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है।
अर्थ- जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है।
14 :- खेतिहर गइने घर दाएँ बाएँ हर।
अनुवाद- खेतिहर गए घर दाएँ बाएँ हल।
अर्थ- मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे।
15 :- खेत खा गदहा अउरी मारी खा जोलहा।
अनुवाद- खेत खाए गदहा और मार खाए जोलहा।
अर्थ- गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना।
16 :- रहे निरोगी जे कम खाया, काम न बिगरे जो गम खाया।
अर्थ- कम खाना और गम खाना अच्छा होता है।
17 :- केरा (केला), केकड़ा, बिछू, बाँस इ चारो की जमले नाश।
अर्थ- इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है।
18 :- सांवा खेती, अहिर मीत, कबो-कबो होखे हीत।
अनुवाद एवं अर्थ-- साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं।
19 :- आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे।
अर्थ- उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है।
20 :- बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई।
अनुवाद- बकरी की माँ कबतक खर जिउतिया मनाएगी।
अर्थ- जो होना है वह होगा ही।
21 :- दस (आदमी) के लाठी एक (आदमी) के बोझ।
अर्थ- एकता में शक्ति है।
22 :- जवने पतल में खाना ओही में छेद करना।
अनुवाद- जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना।
अर्थ- विश्वासघात करना।
23 :- रोग के जड़ खाँसी।
अर्थ- खाँसी रोगों की जड़ है।
24 :- मन चंगा त कठवती में गंगा।
अनुवाद- मन चंगा तो कठवत में गंगा।
अर्थ- मन की पवित्रता सर्वोपरि है।
25 :- सौ पापे बाघ मरेला।
अनुवाद- सौ पाप करने पर बाघ मरता है।
अर्थ- अति सर्वत्र वर्जयेत। पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ही ।
26 :- बाभन, कुकुर, भाँट, जाति-जाति के काट।
अर्थ- ब्राह्मण, कुत्ता और भाँट अपनी जाति के लोगों के ही दुश्मन होते हैं।
27 :- गाइ बाँधी के राखल जाले साड़ नाहीं।
अनुवाद- गाय बाँधकर रखी जाती है, साड़ नहीं।
अर्थ- मर्द की अपेक्षा औरत पर ज्यादे निगरानी रखना।
28 :- जीअत पर छूँछ भात, मरले पर दूध-भात।
अनुवाद- जीवित रहने पर केवल भात, मरने पर दूध-भात।
अर्थ- मरने के बाद आदर बढ़ जाना।
29 :- एगो पूते के पूत अउरी एगो आँखी के आँखि नाहीं कहल जाला।
अनुवाद- एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता।
अर्थ- संतान एक से अधिक ही अच्छी है।
30 :- लोहा के लोहे काटेला।
अनुवाद- लोहे को लोहा काटता है।
अर्थ- समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है।
31 :- एगो हरे गाँव भरी खोंखी।
अनुवाद- एक हर्रे,गाँवभर खाँसी।
अर्थ- एक अनार सौ बीमार।
32 :- बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया।
अर्थ- पैसे का ही महत्व होना।
33 :- लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।
अनुवाद- जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।
भावार्थ :- पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना।
34 :- बूनभर तेल करिआँवभरी पानी।
अनुवाद :- बूँदभर तेल और कमर तक पानी।
भावार्थ :- कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग।
35 :- गइयो हाँ अउरी भइँसियो हाँ।
अनुवाद :- गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।
भावार्थ :- गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना।
36 :- भगीमाने के हर भूत हाँकेला।
अनुवाद :- भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।
भावार्थ :- भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है।
37 :- दुलारी घिया के कनकटनी नाव।
अनुवाद :- दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।
भावार्थ :- ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है।
38 :- साँचे कहले साथ छुटेला।
अनुवाद :- सच्चाई कहने से साथ छूटता है।
भावार्थ :- सच्चाई कहने से दुश्मनी हो जाती है।
39 :- साँच के आँच नाहीं लागेला।
अनुवाद :- साँच को आँच नहीं।
भावार्थ :- सच्चा का अहित नहीं होता ना ही डर।
40 :- हँसुआ की बिआहे में खुरपी के गीत।
अनुवाद :- हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।
भावार्थ :- जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना।
41 :- साँपे के काटल रसियो देखी के डेराला।
अनुवाद :- जिसको साँप काट देता है वह रस्सी को भी देखकर डरता है।
भावार्थ :- दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है।
42 :- जइसन देखीं गाँव के रीती ओइसन उठाईं आपन भीती।
अनुवाद :- जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।
भावार्थ :- समय को देखते हुए काम करें।
43 :- दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।
भावार्थ :- दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना।
44 :- उपास से मेहरी के जूठ भला।
अनुवाद :- उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।
भावार्थ :- बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है।
45 :- मारे छोहन छाती फाटे अउरी आँसू के ठेकाने नाहीं।
अनुवाद :- मारे प्रेम से छाती फाटे और आँसू का ठिकाना ही नहीं।
भावार्थ :- दिखावामात्र घड़ियाली आँसू बहाना।
46 :- कुत्ता काटे अनजान के अउरी बनिया काटे पहचान के।
अर्थ- कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले को ठगता है।
47 :- बिधी के लिखल बाँव ना जाई।
अनुवाद- विधि का लिखा गलत नहीम होगा।
अर्थ- विधि का लिखा अवश्य घटित होगा।
48 :- गइल माघ दिन ओनतीस बाकी।
अनुवाद- गया माघ दिन उनतीस बाकी।
अर्थ- समय (अच्छा हो या बुरा) व्यतीत होते देर नहीं लगती।
49 :- गाइ ओसर अउरी भँइस दोसर।
अनुवाद- गाय पहलौठी और भैंस दूसरे।
अर्थ- पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं।
50 :- जेकरी छाती बार नाहीं, ओकर एतबार नाहीं।
अनुवाद- जिसके सीने पर बाल नहीं, उसका भरोसा नहीं।
अर्थ- जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए।
51 :- मुरुगा ना रही त बिहाने नाहीं होई।
अनुवाद- मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी।
अर्थ- किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता।
52 :- देखादेखी पाप अउरी (और) देखादेखी धरम।
अर्थ- देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं।
53 :- जे केहु से ना हारे उ अपने से हारेला।
अनुवाद एवं अर्थ- जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है।
54 :- नरको में ठेलाठेली।
अनुवाद- नरक में भी ठेलाठेली।
अर्थ- कहीं भी आराम नहीं।
55 :- चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला।
अनुवाद- चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है।
अर्थ- गल्ती करे कोई और, पकड़ा जाए कोई और।
56 :- करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हS।
अनुवाद- कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है।
अर्थ- कर्जा लेना अच्छा नहीं होता।
57 :- ढुलमुल बेंट कुदारी अउरी हँसी के बोले नारी।
अनुवाद- हिलता बेंत कुदाल का और हँस के बोले नारी।
अर्थ- दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं।
58 :- कनवा के देखि के अँखियो फूटे अउरी कनवा बिना रहलो न जाए।
अनुवाद- काना व्यक्ति को देखकर आँख भी फूटे और उसके बिना काम भी न चले।
अर्थ- ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले।
59 :- हरिकल मानेला परिकल नाहीं मानेला।
अनुवाद- हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है। (परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो)
अर्थ- खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता।
60 :- जेकर बहिन अंदर ओकर भाई सिकनदर।
अनुवाद- जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर।
अर्थ- भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है।
जाग्रत्येव सुषुप्तस्थः कुरु कर्माणि वै द्विज । अन्तः सर्वपरित्यागी बहिः कुरु यथागतम् ॥ चित्तसत्ता परं दुःखं चित्तत्यागः परं सुखम् । अतश्चित्तं चिदाकाशे नय क्षयमवेदनात् ॥ दृष्ट्वा रम्यमरम्यं वा स्थेयं पाषाणवत्सदा । एतावतात्मयत्नेन जिता भवति संसृतिः ॥ वेदान्ते परमं गुह्यं पुराकल्पप्रचोदितम् । नाप्रशान्ताय दातव्यं न चाशिष्याय वै पुनः ॥ अन्नपूर्णोपनिषदं योऽधीते गुर्वनुग्रहात् । स जीवन्मुक्ततां प्राप्य ब्रह्मैव भवति स्वयम् ॥ इत्युपनिषत् ॥ इति पञ्चमोऽध्यायः ॥ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ॥ भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥ स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाꣳसस्तनूभिः ॥ व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ॥ स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥ स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ॥ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥