कहानी के पात्र,चरित्र,घटनाए काल्पनिक है, मनोरंजन उद्धेश्य हेतुक रचना
The Robert Rays Among The Operation Enduring Freedom – Afghanistan
यह उपन्यास - काल्पनिक रचना से लबरेज जिसमें घायल सोल्जर साहस से गांव में शरण पाता है, परिवार उसे छुपा कर करीब आठ माह तक रखता है, एंव बड़ें इलाके से, धीरे-धीरे नेशनल फोर्स में कमाण्ड कर एरिया की बेहतरी के प्रयास करता है, उस दौरान शादी-शुदा औरत से प्यार-सम्मान, सिस्टम के विरूद्ध जाकर लोगो की बेहतरी के प्रयास कर करीब 3वर्ष बाद वापिस जाकर अमेरिका में बस जाता है ।
भारत अफगानिस्तान के सम्बन्ध गहरे एंव पुराने पीढी दर पीढी सतत गतिमान है, यू भी कह सकते है रूठने मनाने, पटरी पर पुनः लाने में दोनो देशों का समान योगदान सांस्कृतिक सोपान से उदयमान है । भारत से अफगानिस्तान को रचनात्मकता के साथ विकास में अभूतपूर्व योगदान हो रहा है, जिसमें संस्कृति को सहेजने से लेकर, नवीन तकनीकी से पूर्ण शिक्षा, सुरक्षा,इलाज, एंव रोजगार परक उत्थान के मायने भी है । स्वाभाविक दोस्त के सुगम दुर्गम रास्ते खुल रहे है ।
कहानी के पात्र
कमर 4 चार साला बच्चा रज्जाक व गमेज से
राबर्ट ब्राउन के मिलर
Rapid Deployment Joint Task Force (RDJTF).
Kunwar Resing R Rana combat British Tapa Gorkha soldier
दोस्त मेहमनू अकजई- अफगान फोर्स का सार्जेट
रज्जाक मेसन वर्कर इन गजनी, इकलौता कमाउ दोस्त मेहमनू अकजई- अफगान फोर्स का सार्जेट
गमेज रज्जाक की बेगम
गज्जनी में पनाह जिला का खुर्रमषा गॉंव जहॉ राबर्ट मिसिंग हुआ -मिसिग पेलेस राबर्ट
उमर महमदुल्ला रज्जाक का पिता ,
अमजई मिजुलन्सा रज्जाक की माता
मुहम्मद शेर बक्त विलेंज हैड तालिबान फेसीलेटर इमाम
उस्मान मेहमद तूर- रज्जाक का भाई
समय 12दिसम्बर, 2001
चिनूक से 4 घण्टें की लगातार यात्रा केवल उबाउ दृश्यविहीन अधेरे को घेरे अन्तिम बिन्दु पर आ ही गई राबर्ट लगातार वाकी-टॉकी से गाने सुन-गुनाता ही रहा, डी-बार राषन का छोटा सा बाईट, बैरी के नॉवल- अफगान शेर की और ध्यान और एकाग्रता से आखें गढाये, केवल चिनूक के झटके से ही इधर-उधर देख पुनः आखे गढाये यात्रा निरन्तर !
डेस्टीनेशन एंव ड्राप का ईशारा पनाह बाहरी छोर पर स्थित पॉईण्ट पर 27 ट्रूप का एल्फा 5 में एक, पेराशूट से सिग्नल पांईट पर एप्रोच,
चांकी जो कि पोंईट 30 दरयाफत के साथ, तेजी से प्रवेश ले, 120 किलों से ज्यादा का बैग जमाये, धीरे धीरे घुम कर गाईड के साथ, पर मुख्य टेण्ट में रात का अंधेरा, हथियारों के साथ यूनाईटेड फ्रण्ट के गार्ड के साथ सलाम के साथ स्वागत लिया, दोस्त मुकर्रम ज्यादा से ज्यादा छ फुट से कम ही था, मेरे तो तीन चार इंच तो जरूर, पाकुल सिर पर लगाये, सलवार कमीज के साथ अफगानी सेण्डल पहने से परिचय दिया जो कि पास पनाह का ही रहने वाला शख्स था, टूटी-फूटी रशियन व अग्रेंजी के हैलो हाय वाटर से ज्यादा कुछ नहीं शायद, पर आखों में गजब की धमक के साथ क्लाश्निकोव को मजबूति से थामें, गोलियों का पूरे पटटे से लबरेज आवभगत में कमतर नहीं था, पानी से हाथ-पैर धोने के कहलावें के साथ, मनुहार में चावा-चाय का बेजान से लुफत लेने की कोशिश, पर बैकार सा प्रयास, घुर्रते थकान कुछ ज्यादा ही रात के नौ बज चुके थे, प्रकाश बिलकुल नहीं केवल चांदनी रात वह भी नाममात्र में, आध घण्टे के बाद कबिल-पुलाआ, सीधे हाथ से खाने का दस्तूर सबकुछ दोस्त ने सुझाया, करीब पचास से ज्यादा एक साथ नीचे जमीन पर बैठना क्या कुछ कहा जाए
रात में जमीन पर दरी पर बैठकर खाने, वह भी हाथ से शायद मेरा पहला ही अनुभव था, पर ठीक ही था रोमांचित करने वाला, चार साला ट्रेनिग में ही शायद यह जान ही नहीं पाया । भू भौगोलिकता में नियुक्ति के लिए वह स्थान, झाड़ी,दाढी या पहाड़ी के इत्तर भी बहुत कुछ बया करता है, शायद समझने का भी फेर है, दिमाग पर एक ही धण्टे में सबकुछ जोर डाल रहा, बहुत कुछ भूला रहा था, लाईन में बर्गर लेने में ज्या मजा या चावा के बाद काबुली पुलाव ।
सोने की कशिस के साथ, पैक का सहारा लेकर रफ जमीन कुछ परेशान ही कर रही थी, रिचार्जेबल बैटरी वाकीटॉकी से निकाल पाकेट में रख, एमटूफोरनाईन को ठीक से पोईट किया, दोस्त भी क्लाश्निकोव आगे बढाई, फिर कभी......
पोंईट थ्री
सुस्ती मसालेदार खाना कुछ नींद सी आ ही गई, अलसुबह पक्षीयों का कलरव, घास से हवा की रगड़ करती आवाजें उठा ही दे, दुरबीन से चारों और का नजारा लिया, दोस्त से बताया कि दक्षिण की और का इलाका, पॉच-छ किलोमीटर के बाद एरिया दुश्मन के कब्जेशुदा ही है कभी भी धमाका हो सकता है, इस अन्तिम पोस्ट पर, दुश्मन लगातार पोंइट 3 से जबरदस्त गोलीबारी से आगे बढ आया है, अभी दो तीन दिन से कुछ कमजोर है पर कभी भी, आ जाने हेतु मरने मारने वाला है, रसद-बारूद की कमी हो तो कुछ और समय लग सकता है पर ऐसी संभावना कम ही है...
मोर्टार लांचर से लबरेज तालिबान की कुछ हलचल से अगले दिन की शुरूआत हो गई पर तीनऔर से पहाड़ी की चटटान का सपोर्ट ज्यादा कुछ बिगाड नहीं रहा था, पर पोंईट थ्री पर कोनक्वर जरूरी है, मेप और रीडिग के साथ 15 सदस्यों की टूकड़ी का नेतृत्व कर रहा था, अखरोट,खजूर,फ्राई बादाम, नान किसमिस के साथ डीबार राशन को थेले में पैंक कर दोस्त से मिलती-जुलती ड्रेस कोड के साथ आगे बढे,
पहला पड़ाव
मै ओर दोस्त पगड़ण्डीयों से रेगते आगे बढें, आगे झाड़ियों और नीचे की और पहाड़ियों से घूम-घुर्र आबादी को छोड़ते तेजी से आगे बढे, हल्की धुन्ध हमें पूरा सपोर्ट साथ ही हवा की दिशा में साथ साथ बयार, शुष्क झाड़िया, झड़ते फूल, गन्धहीन वायर लेस से संदेश, दूरभाश्य पर टारगेट तीन जिसमें छितरी आबादी मडहट, कच्ची दिवारों से दूरदराज रहवास कही मुश्किल से 100-150 ग्रामीण जिसमें महिलाए,बुढढे,बच्चे,और लडकियों का डिस्काईब है, मैं कांफीडेंट था कि आबादी में 15 से ज्यादा तालिबान लड़ाके तो होगें ही, तैयारी से मैसेज कन्वे कर दिया
पोंइटथ्री दो किलोमीटर से ज्यादा का क्षेत्र है, और उबड़-खाबड़ छोटे से नये रास्ते बनाते, सकरी हो रही नक्शे से मैच की पगडडी जिसमे अधिकतम झाड़ी के पर्याप्त गैप पर इसमें कम से कम टकरते चलना, टेरिन शूज गोल्डस्पूर से काफी ठीक पश्तूनी जूती लचक बला काम कर रही थी, तीन घण्टे रेंगने के बाद पांईट थ्री 400मीटर की रेंज में था दोस्त और सडन अटैंक हेतु 200 मीटर बाई जाने तथा मोर्चा खोलने हेतु टारगेट फिक्स 6 अटेकर को रवाना कर, टारगेट फोकस लिया, मौसम, हवा बादल की आवाजाही, मौसम का हेज ठीक ठाक लगा, विजिल दस्ते से मैसेज कि समय ठीक है, दोस्त और मैने लगातार 250-300 मीटर लगातार सांप की तरह चढाई कि, एक घण्टे के जस्ट बाद सिंगनल कर दिया लगातार धमाके से पोंईट में कुछ नहीं बचा, किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं, पास जाकर देखा, मरियल से तीन दबे मिलिशिया, यकायक परन्तु 50मीटर दूर से तीन खाड़कू टारगेट को एचिव नहीं कर पा रहे थे, हम करीब 20 फिट उपर रह गये जिससे पोजीशन में उनकी पार नहीं पड़ रही थी ।
मैने दोस्त को कहा पोजीशन मजबूत गोलिया एक दो एक की शक्ल में चलाई जावे न जाने कम जावे
वह तीनों लगातार फायर के मोड में थे, दो-अढाई घण्टे की रेसिस्ट के बाद केवल एक ही मशीन गन चल रही थी वह भी रूक-रूक कर, मोर्टार फार हेतु करीब 20मीटर की लोकेशन जरूरी थी जिससे एक ही निशाने में पाइंट का एचिव उचित रहेगा, परन्तु तीखे मुह पहाड़ी चलना दुभर रहा, खैर एक आध घण्टे के बाद नीचे के रास्ते एल्फा से मैनेज हो ही गया कि , लोकेशन ठीक है एक्सचेंज जारी रहा परन्तु रूक रूक कर, जैसे ही मैसेज दिया मोर्टार फायर धमाके से शेल्टर बिलकुल साफ दो से तीन लोग खाली हाथ भाग रहे थे, चेतावनी में एक मारा गया दूसरा कुछ कम घायल था पकड़ा गया, दोस्त ने तलाशी ली, फस्ट ऐड दी, बहता खून रूका, बीटा को पीछा करने हेतु लगाया, परन्तु उसने धमाके अपने आप को उड़ा दिया,या शायद हेण्डग्रनेड मिस हो गया,
पकड़ा गया लड़ाका करीब चालिस साला होगा, पूछताछ में दो घण्टे में खास हासिल नहीं हुआ, कन्वेड मेसेज अमल करना हो, इसकी जल्दी थी, में एक और दक्षिण की और आठ किलोमीटर दूर टारगेट सेवन फिक्स किया गया, तालिबानी गुमाश्ता ज्यादा अधिक उगल नहीं पाया, पर उसने कई गोरे लड़ाके को हिट किया था,
ऐसे गेंट को रखना, जिन्दा रखना भी हैडेक होता है, पर मार दिया फिर क्या रहेगा, दोस्त ने कहा इसे गुफा में डाल आते है, सुबह शाम दो जन की डयूटी लगा, विजिल की गई, कुअर का कहना कि खुखरी मौके टोके काम में ली जावे तो ठीक पर बन्धक पर नहीं, सब ठीक होगा, दोस्त के जिम्मे रहा कि जिसमें अगले दो दिन में ही एक बारीय कवरअप पर लेना है ।
चार दिनों में एक्सपीरियंश अच्छा रहा, ताकत भी दुगनी, जोश से लबरेज मैं और दोस्त समझ गजब की बुनी, पोस्ट पोंइट थ्री का सक्सेस बडा़ अच्छा सकेंत था, लेकिन ठण्डे दिमाग से आगे बढना, दुश्मन को कभी कम न आंकना भी मेरा निशाना दागने का समय, लोकेशन का चुनाव दोस्त को गहरा लिया । दोपहर को डायरी में सब लिखा कि क्या कुछ रहा,
युनाइटेड एलायंश के साथ दो चार लडाकों को बुलाया, एल्फा टीम से भी दो और मुकर्रर किये गये, पोंईट तीन की चौकी, दिवारों तिखी चढाई से प्रापर कब्जे, चारों और देखभाल से लोकेशन बना, गॉव वालों साधन केवल गधों को लगाकर शानदार जेड आकर में चौकी नई की, असला, रसद की व्यवस्था मजबूत की पॉच और तीन का दस्ता फिक्स किया, इमेजेज अपलोड की दिन में तीन दफे ड्रिल, रात में चार चार के मजमून में 10बजे से 6बजे की डयूटी हार्डशीप करने के साथ हथियारों के सार-सभाल प्रतिदिन, असला की स्टोरेज, लोकेशन, अलसुबह योगा-ध्यान सिखाया, रूटीन पर जोर दिया ।
रिपोर्टिग के साथ लिंक हुआ जिससे हर वक्त तालिबान का रास्ता तो रूका ही, एरिया पूरा सप्लाई लाईन कनेक्टीविटी से पूरा काट दिया ।
पोंईट सेवन के लिए तैयारी का रास्ता सूझ नहीं रहा, लम्बा चोड़ा घनी झाड़ियों से लबरेज, तीखी चढाई, रफ मैदानी, कुछ आसान नहीं, परन्तु आगे बढने एंव जीत की अनिश्चिता कुअर थापा भी आश्वत नहीं था कि मुकाबला कब किया जावे 27 से 30 किलोमीटर में जिगजैग पहाड़ी तलहटी उबड-खाबड़ अनगिनत नदी नालो में स्केटरर्ड आबादी में फेला एरिया, परन्तु आज रात तक इसे अन्तिम रूप देकर ही रहना है, जबकि अन्धेरी रात में केवल हाथ पैर चलाने के जैसा है, बिलकुल चम्बल की वादियों सा’
कुछ डायरी में लिखने की कोशिस पर पैन चल नहीं रहा, फिर काफी सोचा की इन वादियों में एलिसा को कुछ लिखा दिया जावे तो जमे,
अन्तिम बार यहॉं आने से पहले वह पिछले तीन महिने से लगभग दूर सी रही, शापिंग माल से उसका हफते एक बार भी आना संभव नहीं हो पा रहा था, ग्रेच्युएशन में उसका फोकश था, शायद इसलिए बात कम ही हो पाती थी, या मेरा कॅरियर उसे परेशान कर रहा था, कि काबुल से शायद राबर्ट वापिस न आवे, लीव पर था, लॉस एंजिल्स टूर पर उससे मुलाकात मे एक साल सा समय कल का लग रहा था, घूमना-खाना लांग ड्राइव यह बस उसे खूब जमाये रखा, हर समय उससे लगा ही रहा, पर काबुल आन वॉक पर उसका मन उखड़ गया, उसके पिता को शायद जमा नहीं कि सीधे कुए क्योकर छंलाग लगा रहा है, पर मुझे शुरू से इन सब पर, उससे ज्यादा मुझे खुद पर भरोसा था, जिन्दगी को आजमानी चाहिए, हौसले को पंख देना चाहिए !
जब आप जज्बात पर हो तो कोई आपकी बात का भरोसा भी नहीं करता, अलबत्ता सुनने की कोशिश भी नहीं, इस और यह सब रिश्ते में केवल रिसाव, इससे तो ज्यादा उद्डता लोग सहन ले,
यह भी जरूरी कि हीरों को इज्जत भी फिल्म के एड में मिलती है ।
कॉमेडियन को बीच-बीच में
विलेन को शुरू-शुरू में
मन का दिल का भार की याद कर लेता है
मैसेज कन्वे कर स्कार्डन से रिप्लाई का वेट की कब तक सपोर्ट सीस्टम ऑन हो सके, परन्तु हैज अब तक बनी रही, आगे पीछे कुछ सुझ नहीं, पूरा सामान लकदक,
कोई खास हलचल नहीं, प्रतिकार को प्रत्युत्तर नहीं
अनजान या जान पहचान दोस्त, रेजिग का अलग ही अदांज
खेर सुबह सात बजे, एयरस्ट्राईक के एक घण्टे बाद पोंइट पर दो और से हमले की सूचना आगे कर तेजी से बढने का प्रयास किया, कन्ट्रोल यूनिट, टारगेट से बिलकुल सही कदमताल चली, मौर्चो से यदाकदा गोलीबारी पर सपोर्ट सीस्टम, एम्बुश की पोजीशन में कोई खास दिक्कत भी नहीं आ रही थी, दुश्मन जब बिखरा हो, गुरील्ला वार हा,े मोर्चा बेकार है, धीरे धीरे मजबूति से आगे बढो पर बैक जरूरत से ज्यादा दुरूस्त हो तभी, पर प्रकृति का नियम है कि संशाधन हमेशा ही कम होते है, ज्यादा तो जोश
दो घण्टे के बाद लगा कि कुछ गडबड़ ही शायद आबादी का अहसास, चहल-पहल का अहसास
जब दुश्मन के इलाके में लोग शान्त भाव से आपकी हलचल को नजरअन्दाज करे तो समझ ले कि चारे के चक्कर में बेचारे आ ही गये है ।
चालीस से ज्यादा टीम पर बराबर बढ रही, गधो की संख्या भी यह बता भी रही कि सामने टारगेट पूरा साजो-सामान जमा कर रखा है किसी प्रकार की दिक्कत नहीं, छापामार
गमेज
15 पर साल पहले पहल परही शायद के उम्र की रिवायत, पूर्व निर्धारित कुनबे में ब्याह होना कर दिया, शादी भी जल्दी प्रायः इसलिए हो जाती है कि समाज में भय बना ही रहता कि ना जाने किस दुष्ट की नजर पड़ें, मैली कर छोड़ें, या यह भी भय की कोई गाहे-बगाहे उठा ली जावे, धर्म कर्म नाम के है, मौके पर खुला मॉस मिला की नही, गिद्ध कब झपट पड़ें, सभी कल्पनाएॅ आम है, भय ही लड़कियों का विवाह समयपूर्व, म्यैच्यारिटी से पहले का कारण भी है, या आमरिवायात का मानना, दुर्घटना से सावचेती जरूरी भी, किसी के पल्ले बैमेल बंधी जोड़ी दससाला बड़े रज्जाक से निकाह भी कहानी बन पड़ी थी, खुशी से ज्यादा मजबूरी भी
रज्जाक नम्र स्वभाव का उम्र से बडा व्यक्ति जिसके उपर परिवार जिम्मेदारी सनातन ही ठनी है,
गमेज के पिता की दो शादिया थी, पहली से कोई औलाद नहीं थी, गमेज की मॉ दुसरी औरत उससे 14 बच्चे थे, आठ लड़के छ लड़कियों, गमेज सबसे बड़ी थी, बड़ी मॉ की दुलारी भी थी, शायद बेटी से बढकर, पिता ने मनोयोग से मदारिस में 4 जमात तक पढाया, शायद पूरे कुटुम्ब में उसके समान गहन अध्ययन में शानी न रहा था, धर्म और नैतिक शिक्षा उसकी जड़े गहरी हो रही, रूमी-रूबायत पकड़, जब भी समय कामिल एकान्त में कुछ न कुछ पढ़ने की आमद आम थी, शादी के चार साल बाद ही कमर आ गया, गजब का चंचल, मॉ का दुलारा पर पूरे कुनबे में शेरसा बच्चा था, किस्से, कहानिया बात-करामात मॉ चार साल में शायद कुछ ज्यादा ही फेमश हो, पर मॉ-बेटे का साथ, पिता के कभी कभार दुलार से ज्यादा मॉ ही सब कुछ और कमर मॉ के लिए बहुत कुछ! गजब का चंचल फुर्तीला, पर आज्ञाकारी मॉ के ही इशारों से भापने वाला,
शायद इस घर का ही पूर्वज ही है, शायद सब को ही भाये, पीहर हो या सासरा उद्भत से हरेक गले का हार,
सहज सरल मन वारसी, उतर ना भव सार
मालिक खान,सदगुण, का आदर संसार
सीस दीख से दूर दूर पराधीन मनयोग
निर्धन धान्य सनातना, पीह नही वियोग
दया दान परमात्मा, दया धर्म ना दोय
दुखिया दर्द ना बांट सके, नादवेद संयोग
अर्थ सारथ स्वर सरग, निरभयदीन मनराम
साज संत संगत सकल मुख विहीन अंतधाम
प्रकृति तो खेल सूचारू भी है खुशी,गम,उंमग,बहारे,ताने,उजाड़,बरसात बहुत सी अनगिनत सोच, इस साला घास-फूस ठीक है, फसल भी, बहार ! पर की शान्ति सा अहसास भी, कारण भी है बड़ा एरिया एलाएड ने मजबूत बना रखा है, परन्तु एक और से तालिबानी गाहे-बगाहे हिट कर देते है, लोकल मौलवीयों में नेटवर्क बना रखा है, दिन भर रेल-पेल लगी रहती है, रिसते सीस्टम में भी ये फेसीलेटर का ही काम लेते है, सब कुछ बर्बाद कर दिया पर मांईड सेट है कि बचे में ख्ुरचन को खा पी नकी कर, क्या जज्बात, या माश्यारा पूरा का पूरा ही जंगली है । जवार पर मार पड़ी ।
ऐसा तो कोई घर नहीं! पर हर-घर से ही एक दो मौत तो हुई है पागल,घायल,अपंग की मार-भरमार पड़ी है बोझ को ढोयगा कौन, खाना, मरहमपटटी की हर वक्त की कश्मकश, दो जून की दवा-दारू अधकचरा नशा
गमेज हमेशा सोचती इन्ही विषयों पर पर बात वही की वही, मर्द के बराबर बेठने कोन देता है, कौन बाबत बातचित, ऐठ गया, तो कोड़ें की मार, शायद आम है दुत्कार
बिलकुल सही की 51प्रतिशत को पहले ही बाहर कर दो, फिर बचे हुए शूरा का सुर, अजब-गजब का दौर है,
रज्जाक के साथ कन्धार में ’’धर्मात्मा’’ आधी अधूरी साथ में देखी थी, परन्तु बहुत कुछ समझ आ गया कि एक-आध धण्टे में आधी जिन्दगी की कहानी कह दी गई सिनेमा, पर है कहॉ दोजख का रास्ता!
बिसमिल्ला, शेष रही जिन्दगी पर रंगहीन, विरक्त-रत
प्रायः
जीवन पर मनन करते, शायद तीव्र सोच के मायने, पश्तो के साथ अग्रेजी पर थोड़ी बहुत सुनसूना रखा था, घर पर बात चीत में रेडियों रेल,टेलीफोन के कारण एबीसीडी कुछ पल्ले रही. कुटम्ब में शादी का रिवाज आम है तेरह चौदह साल मेंउसके भाई के लड़का रज्जाक था, सो गरज से शादी रही, सुसराल में ठीक ठाक स्थिति थी, बड़ी संख्या में मवेशी, गाय, गधे का ठोर तो था ही पर, आग क्या छोड़ती है, 15 साल में समृ़द्ध धीरे धीरे जा-ति रही, फसल,घास,फुस, फाके के और...... परन्तु बाहरी फोजेजलाता हुआ रीजन, फिर कैसा विजन कष्ट से कष्टतर ही रही है, सास दो सगे देवर, बडा जेठ सब बम-शेलिग में समाहित, केवल कब्रे-यादे पर बची है, कच्चे घासपूस के मकान-बाड़ें की नियमित मरम्मत, खाना पकाने की तैयारी, बिक्री के उपलब्ध शाल, बकरिया,भेडे सहित नियमित देखभाल
30 साला जिन्दगी में क्या कुछ नहीं सहा 4 जमात इस्लामी तालीम हासिल पर, जिन्दगी बे-मुरव्वत ही रही, जवानी की दहलीज होते होते 14 साल में 25 साला रज्जाक के पल्ले से बांध दी गई, भारी भरकम बुरका साल-छ महिने से कभी कभार शोहर से बात-मात इसके अलावा 15-16घण्टे की जिन्दगी, कभी कभी 18-20 घण्टे तक भी, एक ही बच्चा कमर आगे पीछे यही, मायूस सी पर कठोर जिन्दगी, घटटी से अनाज को पीसना 150 भेड़ बकरी,
दिन दिवस रहे बीत है साझ नहीं आसान
पिज्जा जिज्जा रहट में चर्चो में उपहास
दाम साम सा झोल पोल मोहताज को ताज
सो योजन सौ उठापटक लाट साहब नासाज
दभं करत है टेरिया, मुस्कानों में जोर
राह निहारे झारिया, उपहारों का मोर
दुन्दुभी तेरी शाकिया कछु ना मोह सुझाय
दीप प्रज्जलित होत है बेरूख पे र्मुझाय
चुनावा वादे-करामाते-जगराते-चमकाते ताज
दुविधा वोटर-खोट-चोट ना हाय दामने साथ
शादी का ये जश्न-प्रश्न यक्षगान मुस्कान
चोर चोर सा शोर है साला वाला अहसान
जलाता हुआ रीजन, फिर कैसा विजन कष्ट से कष्टतर ही रही है, सास दो सगे देवर, बडा जेठ सब बम-शेलिग में समाहित, केवल कब्रे ही बची है, कच्चे घासपूस के मकान
अकेला कोई दूर तलक नहीं फायरिंग-धमाकों लगातार आवाजे, घावों को धीमें धीमें सहलाते, ठण्डी गहरी सांसे लेकर रात होने का इंतजार, अंधेरी रात का ही इंतजार, जिससे कही शरण मिल जाये, सामने सौ मीटर दूर मडहट को दिखाई पड़ रही थी, परन्तु कोई देखे नहीं तो ज्यादा ठीक, दांव सारा उलटा पडा, इनफार्मर की सूचना पूरी झूठ पर आधारित थी, असला एंव लोकेशन दोनो ज्यादा मजबूत, तैयारी भी ऐसी की तीन महिने तक मरकटने को तैयार, पड़ोसी मुल्क से गाहे बगाहे पूरी सहायता कुछ कहानी और ही बया करते है, द्रोण-हवाई हमले सब नाकाम ही रहे, नीचे ज्यादा रहे तो राकेटलांचर, एंटीरायफल आदि का खतरा, उपर ज्यादा तो निशाना सौ मेसे निन्नानवे फेल, मौके पर मारक दस्ता एक साथ नहीं तो तीनसौ से पॉचसौ मीटर के दायरे में सिमटा रहे, दुरबीन,एरिया को भी तालिबान एकएकइंच बेध रखा था, आसपास चरवाहे, ग्रामीण, हरावल दस्ते के रूप ही है, नेटवर्क को तोड़ना आसान नहीं, एंव नफरी अधिक रही,राकेटलांचर जिससे नुकसान के साथ साथ साथी खेत रहे, परन्तु उससे भी ज्यादा शायद दोस्त का साथ भी छूट गया,
चारों और वीरान जंगल उपर से आती गोलियों की आवाजे, चुपचाप लेटे रहने में भलाई के साथ, उर्जा को बरकरार केसे रखें, ब्रेड नान रोगानी का बाईट ड्राई फ्रुट के साथ एक घण्टे तक चलता रहा, नजर में एक बच्चा मेमनों के झुण्ड के साथ खेलते हुए नजर पड़ी, आश्चर्य नजर हटी भी नहीं इंतजार केवल इंतजार रात होने तक,
पूरी ताकत के साथ लेटा हुआ पूरे एरिया पर नजर बनाई, पर कुछ नहीं नजर आया रात को ’’मडहट’’ में प्रवेश का मन बना ही लिया, समय आठ बजे होगे आराम आराम से रेगते, चलते एक मड दिवार फाद दड़बे के पास कुछ जगह बना ली, सोचने लगा, शायद कमर कुछ गिराने के तेजी से बाहर आया तो शायद देख गया, सहज शायद परन्तु कमर की नजर आ ही गई, सीधा प्रवेश कर बकरियों के दडबें के पास, परन्तु मिमियाने की आवाज से नजर स्वाभाविक है, गया
विद्रोहियों के चारे में जाने का मतलब, पचास लाख डॉलर को कम से कम, जान गई सौ अलग, पर मरता ना क्या करता बेहाल मरने से अच्छा है कि हर हाल में सघर्ष अवश्य ही रहेगा, चाहे स्ट्राईडरएसएमफ क्यो न छिलना पड़ें या एम9बरेटा से अंतिम निशाना पूरे योग से निशाना साधा जावे, खैर पूरे योग के जोर से संयोग रहा कि एक किमी रेगने के बाद भी कोई नामालूम ही रहा!
किस्मत थका देती है,बचा भी देती, अगले पल पर किसका जोर, कोई नहीं पता
असफलता कई दफे बहुत कुछ बयान करती है, सोच में सिहरन पैदा करती है, उमंग, सफलता मै सारी दुर्बलताएॅ छुप जाती है, मार्च को टारगेट में नही लेने का कारण कुछ हद तक मेरा भी, है, शायद एईडब्ल्यू पर रिपोर्टिग दुरस्त नहीं थी, मैसेज में टारगेट एचिव का दावा भी नहीं ना ही दुर-दूर छितरे टारगेट की स्थिति, शायद सभी पोंइट पर मारक नाकाम भर इसके अलावा सर्विलेंस सिस्टम, इंटरसेंप्ट मेसेज, तथा मोके पर पाईट में हलचल पर सात दिन में कुछ अधिक हासिल भी नहीं रहा होगा, कईबार चारा खाने के चक्क्कर में शेर भी गच्चा,
पोंईट पर बर्म्बाडमेंट से ज्यादा हासिल भी नहीं हुआ, हर्ड गधो पर लादे सामान, अचानक तीखे रास्ते पर गहराई झाड़ियों से ज्यादा कुछ नजर नहीं आता है, इससे भी ज्यादा यहॉ की पैदायश में यह सब खून में जमा आहाता है कि दुर्गम-सुगम पथ के कोई मायने नहीं है, किधर से किधर होकर चले जावे, ध्येय है, जिन्दगी में तुच्छता से निपुणता भरी रही! स कुछ छुपा सा ही रहता है, अचानक मौत सामने खड़ी नजर आई, वास्तव में यह इलाका ही अफगान लड़ाकों के लिए ही बना है, इससे ज्यादा दूभर दुनिया में कही नहीं, हथियारों से ज्यादा जज्बात पर भरोसा, मारकाट में पूरा विष्वास, भय-मरने भर की भावना शायद दुष्मन पर हावी होने का मौका भी देती है, इससे ज्यादा खाना-पानी-खाद मौलवी,मुल्ला,तन्कीद,जज्बात को उभारने ज्यादा से ज्यादा बच्चों को पैदायष यह सब’’ आठ मेसे दो खप भी जाय तो ज्यादा मुष्किलात नहीं’’
रोटी बोटी से बढकर ज्यादा ख्वाहीस ही नहीं, पैदा होना, 20-30साल में मर जाना, आंधी है अलबत्ता नुकसान ही करेगी, फायदा कुछ नहीं
ठोकर से हम सब का काम तमाम सा ही रहा, रहने को जीभर के खुदकश रूकन का मामला
आठ घण्टे बाद भी ठोर नहीं, दडबे से छोटे नाले की और से सहारे-सहारे मान, सरकाया है अपने आप को खून भी जब-तब बदस्तूर बह रहा है, शायद मिटटी में मिल रहा है, पूर्व से यह लिखा पढा हो या प्रकृति की उपमा
सिचने की लिए बुलावा, निढाल होते है तो दिमाग कुछ ज्यादा चलता है, पर सस्मरण के लिए डायरी कहॉ है बैंग-सामान सब कंटोनमेंट अलमारी में ही बंद रहेगें, हवा का रूख भटकते हुए जहाज को महासागर में कभी कभी सही दिषा दे देता है,षाम के समय अंधड आना सामान्य सा है, पर आज हवाओं में कुछ नरमी थी, मिटटी मात्रा कुछ कम! पर आवाज से ज्यादा हवाओं की आवाज में दब ही जाए, खैर लैटा भेड़ों से नजरे मिला भी नहीं पा रहा था, पर पर कमर से नजर मिल ही गई, अनजाने चेहरे, यदाकदा अजीब से नामालूम के साथ वह क्या सोचा पर दोड़ कर अंदर ही गया, शायद सावचेत करने, होषियारी से लोगो को इकटठा करने या इससे ज्यादा, अगले पल मार ही डाले,
गमेज को दोड़ कर आना ही पड़ा, कमर अगुंली पकड़ कर बुला ही लाया, अजनबी पर मजलूम को क्या ताकिद, मेहमान पर कुछ ज्यादा ही तवज्जो, तवोकात कुछ भी नहीं, समझ, मुझे पानी चाहिए खून से लथपथ, अन्दर कच्चे कमरे में घसीटते हुए शाम के अंधेरे में, फर्ष पर चटाई पर लेटाया, दीया कर खून का साफ करने का प्रयास गमेज करने लगी, कन्धे,घुटने,बाजू पूरी तरह से पानी तथा टींचर आयोडिन से जबरदस्त जलन भी लगी, सुती कपड़ें एंव रूई थामे मुलायम हाथ के कारण दर्द कुछ कमतर ही रहा, कमर लगातार एकटकी से हाथ बंटाने का काम कभी रूई, कभी कपड़ें का पटटी, छेड़ते,छुड़ाते, मॉ बेटे की बीच में तन्मयता,ताजगी सब कुछ भुला ही दिया घाव कहा लगा है, कहॉ लगा !
कुछ राहत तो मिली, तिखीचाय(मिठी) भरपूर एनर्जी के साथ के साथ अजब ताकत की कहॉ पर, मसद के सहारे एंव दर्द घाव, पर पूरे बदन में केवल चादर कस कपड़ें टाग एक और छिपा से दिया, एक छोटी चटाइ बिछाई कर अमजई मिजुलसा आ गई, बहु-सास आपस में पष्तों में कुछ गरिया रही, पर चाय आदि कुछ सुना इसके अधिक नहीं पर वह सब मै ले चुका था, कुछ क्या बहुत ज्यादा आराम महसूस कर मंसद में आगे पीछे के चक्कर में खो रहा था, शायद ईष्वर ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है, कहॉ का अन्न जल लिखा है, शायद यह सब प्रि-डीसाइडेड है या मर्जी, अनायास, नियती, पर शायद मैं कुछ ज्यादा ही भाग्यषाली ही रहा, जो मुझे चहकता परिवार मिला,
मॉं का रूप भी निराला है, प्यार में, तन्कीद में सब ठीक ही लगता है,
बाये कलाई आई मोच,सूजन को देख मिजुलषा ने सीधा कर सीधा मसल तेल से मालिष कर कुछ ठीक करने का प्रयास किया, तेल में शायद लहसुन डाल के तैयार किया गया, जिससे आम दर्द,मोच ठीक हो सके, इषारों से बुढिया ने बताया हाथ को सीधा ररखे, इधर-उधर नहीं करे,
गमेज व कमर तष्तरी में गोष्त व रोटी डाल कर ले आई रोटी के टूकड़ें गोष्त-साग में डाल कर के, बढउ उमर मेहमदुल्ला-गमेज का सुसर, खाने को कहा, प्याज के बारीक टूकड़ें रोटी मक्के की आराम से पेट भर गया, बातो से वह बता रहा था कि किस प्रकार एक अमेरिकी सैनिक से हाथ मिलाया, हैलो, बोला तो उसने भी वालेकुम-एस्ल्लाम मुझे अच्छा लगा, हमारे यहॉ पर ज्यादा झगड़ा नहीं है, पख्तून से ज्यादा रिवाल्ट नहीं, बाहर के लोग झगड़ा करते है, कुछ कुछ मोलवी मुल्ला
वह बता रहा था कि इस क्षेत्र का वह मोजिज व्यक्ति है, यहा पर तालिबॉ का कहर कम ही है क्योकि चारों और एलायड फोर्स मजबूत है,
मुझे कुछ जमा नहीं कि यदि मजबूत है तो यह सब हुआ कैसे 70किमी में ज्यादा तक आबादी भी बीस हजार से कम नहीं फिर भी, कही न कही, ज्यादातर चरवाहे, टेण्ट लगाकर खेतीहर किसान, बार्टेर सिस्टम में जुड़ें, मासिक वेतन, बार त्यौहार को मोलवी साहब को भेंट इससे ज्यादा जीवन नहीं, खाले,ऊन,जंगली वनस्पती का व्यापार इससे ज्यादा कुछ नहीं, परन्तु लगभग जीवनषैली में खुष रहने वाले, धार्मिक नमाजी, नैतिकता पर विष्वास रखने वाले, परन्तु इससे ज्यादा तादाद महिलाओं के प्रति नजरिया जिससें विष्वास ही है कि अधिकतम दबाव, बच्चे पैदा करना, खाना बनाना, मकानों की लिपाई पोताई, घर के आस पास से घासफूस को इकटठा करना, भण्डार करना, अनाज को पीसना, चटाई-गलीचे बनाना, पास के झरने से साल के आठ महिने पानी लाना, बाकी समय कुए लगभग पूरे साल गधे पर पानी के लाकर कुण्ड भरे रखना, गॉव, लकड़ी,गोबर,झाड़ियों को व्यवस्थित जमा करना करना, ठीक ठाक ढोरों का झुण्ड हो तो एक दो हाली मिल ही जाते है, पर आसान नहीं, यह सब नजरे जमाए फेसीलेटर को तमगा दिला ही देता है ।
गमेज कमर दिन रात सेवा में, पर उमर अमजई ने मॉ बावा से बढ कर सेवा की, गॉव में यह सब हकीम से ज्यादा ही है, पर यह सब लोगो की नजर चढ ही जाता है, इतने दिनों से यह यहॉ काफिर क्या कर रहा है, मैं सोच ही रहा कि धर्म के बिना भी क्या व्यक्ति का महत्व है, या कम ही हो जाता है, पर इससे आगे की दुनिया, पर यहॉ यह सब स्वप्न, बुरा स्वप्न यह सब जीवन है, उसके बाद कुछ नहीं!
घाव भी क्या ठीक न हो, पर
कमरा भी ऐसा की बाहर का नजारा ठीक से दिखाई ही ना दे, एंव न हीं बाहर वाले का कमरा, चोर कमरा चोर रास्ता, मिटटी घासपूस, छड़ियों से मोटा गेट, मजबूत आदमी से ही खुल सके, आगे एक ओर सुखी घास का ढेर, झुण्ड के झुण्ड के पषू शायद यही जीवन का आधार, आजीविका-जीजिवषा, जीवकोपार्जन-मॉस का ढेरो व्यापार,
पर सामान्यतया घरों में औरते प्रायः 4 से 6 घण्टे खाना पकाना, सजाना, कभी-कभार सजना-सवरना
नहाते नहाते शायद दोपहर हो ही जाती है, दोपहर में बैठ समूह में सिलाई कढाई बुनना, बनना कॉमन शायद कॉमन अफगान में कॉमन...
प्राय घरो में रहते रहते एंव कपड़ों में ढकी शायद विचित्र कम, एंव ध्यान का खिचाव ज्यादा ही नजरे टिका देता है, पर गमेज की कभी कभार की लालिमा अथवा राजियॉ से देखरेख की कुछ अजीब सारा संसार घुन कर देता है ।
राजियॉ शायद 16-17साल की उम्र में बेवा हो गई, जो कि 5-6किमी दूर गॉव में ब्याही रही थी, तिखे नाकनक्स, हाईट, छरहरी,चंचल, इससे भी ज्यादा गमेज के टक्कर की औरत(लड़की) शायद एक पति जालिम चल बसा, दूसरे का पेट भरने एंव बच्चे की अच्छी जिन्दगी की तलाष में खोया रहा, दोनो में घण्टो जमती, हर समय कुछ न कुछ काम करते, ऊन का घुनते,चरखे पर हाथ चलाते,गटठे तैयार करते, खालों को साफ करते या दही-मक्खन-घी सब साथ में तैयार कर ही लेती, गॉव में बेटी शायद इज्जत सभी करते है,
राजियॉं चार भाईयों में सबसे छोटी तथा प्यारी ही रही होगी, तभी पड़ोस के नम्बरदार परिवार में इसका ब्याह रचाया गया, परन्तु होनी को कुछ और मंजूर ही था, वह तालिबान में हिस्सा रहा होगा, अफीम के व्यापार करते करते शायद नषेड़ी भी हो गया था, चार-छ महिने का साथ और वह भी चार छः रातों में, परन्तु एलाएड के साथ टक्कर में वह काम आ ही गया, परिवार में वह तेज तर्रार होने के कारण सायद जमी नहीं रही, घरवाले उसे आगे की जिन्दगी अच्छी मिले, घर पर ही रखने लगे,
पहले तो इन परिवार अनबन कॉमन थी, पर गमेज के हुनर की प्रषसा के कारण राजियॉ ंके घर वालों को दोस्ती करनी ही पड़ी, सास-बहू की जोड़ी परन्तु दोनो एक एक ग्यारह से कमतर ही नहीं, इससे गॉंव भर में विपन्नता में चर्चा, मजबूत भी खूब बतियाने की रही, एक बारिय मौलाना मुहम्मद शेरबक्त ने कुछ यूॅं ही बोला की वेपर्दा होकर मौलाना को मैदान छोड़कर जाना ही पड़ा, कहा पर फरमाया की ’’मुहम्मद शेर वक्त’’ गॉव की जरूरत है, इससे तो अच्छा खुदा की इबादत, आदेष ठीक ठाक हम ही कर लेते है,
राबर्ट आज जाने भर से गमेज का काम काज भी बढ गया, अमजई मिजुलषा ने कभी कभार ही दूभर दिया गया हो, यह तो सुन रखाथा कि अमेरिकी क्या खाना खाते इनके क्या शोक है, पिने खाने पर की कोषिष का ख्याल
घाव एंव मोच सब ठीक ही रही, पर वजन का बढना, रंग में तल्खी कमोबेष मुझे अफगानी के नजदीक ले आई,
टमूमन उमर नूरक्तो(खच्चचर) के साथ सर्द रात में घुमाने के लिए ले ही जाता, ताकि तालिबान से बचा जा सके, रात को खेत पर ही निगरानी, भी तथा खाना पिना भी साथ साथ, नूरक्तो छकड़ों में जोत तुरन्त रात में गन्तव्य पर जरूर पहुचा देता, शायद रास्ते का वही मालिक, ग
राजियॉ का नाम भी कमर,गमेज,मिजुलषा,मेहमदुल्ला साहब के साथ मेरी तरफदारी में शामिल हो गया, दोपहर में ग्यारह बारह बजे से शाम चार होते इन चार-पॉंच घण्टों में रोमांच ही रहा, मैं भी शायद गमेज, की जो भी इच्छा रही, पर मेरी जिन्दगी भी गमेज की बदौलत ही रही, या किस्मत का साथ जिसमें मुझे लावारिष को मका मिला, अपनाया भी,
राजियॉं अमूमन दोपहर का खाना-पानी कमरे में देने आने लगी, हुक्का तैयार कर पास में बैठ ही जाती, बकौल घाव सहलाने, सेवा-सुश्रुषा का नामालूम धीरे धीरे राजियॉ से दूरी कम होने भी लगी, याह फिर गमेज! छूर करने का तरीका
जिन्दगी भी कभी ना कभी टक्कर देती है, सभाले भी रखती है,
राजियॉ का हाथ एक दिन थाम लिया, सब कुछ थम सा गया, प्लीज सिट डाउन,
चारपाई के पास बैठी, किसी प्रकार का ना नुकर ’’नही के बराबर’’ कई बार भाषा की भारी दिक्कत होती है, या दूरी का कारण भी,
केवल बालों को सहलाता रहा, वह केवल चारपाई पर सर टिकाये रही
पूरा बदन तपसा रहा, कारण शायद अनायास या मेहमाननवाजी में धोखा देना भी मन-मस्तिष्क इतेफाक,
दो तीन से लगातार ’’गुल-ए-बबूना या रोगन’’ से मालिष का तरीका भी तेल से मालिस करते करते,
रावर्ट के बारे में राजियॉं को सब बताया
अमूमन यह भी रहता भी, शायद शादी,बच्चे, तालिम, इससे आगे शायद कुछ नहीं दुनिया
गौरेया से शहतूष
का अपना संसार
टहनी डाल,पत्ते घास
से सभी सजाय
दिन या रात सुरज
की तपन हल्की छांव
औले या बारिस की शान,
ओटे पंख पसार
चील की नजर कोवे की काव,
व्याकुल तन तड़पाय
तिनका तिनका बुन कर नन्हा आसरा बनाय
चुजे चहके आगन में दिल में हुक बिसराय
यही मेरी दुनिया,यही संसारदेख देख हरजाय
नयन सहे, नीर