Nakshatra of Kailash - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

नक्षत्र कैलाश के - 12

                                                                                              12

क्षितीज का भाव परोपकार का था। समाज की उन्नती उसके लिए जरूरी थी। सब लोग अच्छे से जीवन बिताए इस भावना से वह प्रेरित थी। लेकिन यह हमारा वैयक्तिक दृष्टीकोन हैं। हमारी करूणा उनके लिए उपयोगी सिध्द होगी की नही पता नही। लोग अपने काम के लिए सिर्फ इस्तमाल करते हैं। जिनकी सेवा हम करना चाहते हैं उन्हे उसकी अच्छाई पर भरोसा हो यह जरूरी तो नही। लेकिन अच्छाई करना कभी छोड़ना नही चाहिए हम अपना काम करे बाकी प्रभू के हवाले।

क्षितिज अपने ही खयालों में डुबी हुई थी। कितने लोग ऐसे हैं जिन्होंने सेवा के लिए पूरा जीवन समर्पित किया लेकिन उन्हे भी लोगोंने बदनामी का दाग देते हुए घर बिठाया। इसी से विरक्तता छा ज़ाती होगी। जीवन में असफलता आएगी इस ड़र से कुछ ना करना इससे अच्छा हैं,जब जब जो बात करना चाहते है वह करते हुए जीवन का आनन्द लो।पर उसमें अटके नही।
किसी की आवाज सुनाई दी तो हम दोनों खाना खाने के लिए गये। खाना होने के बाद थोडा आराम के लिए समय बचा था। खाना खाते वक्त बताया गया आज राखी पुनम का दिन हैं तो गाँव में जो त्यौहार मनाते हैं वह देखने ज़ाना हैं। 
शाम के समय समतल जगह पर उत्सव मनाया ज़ा रहा था। गाँव के सभी लोग पारंपारीक पहरावों में ढोल बज़ाते एक साथ नृत्य करते हैं। नृत्य श्रृंखला में छोटे, बुढे, जवान, औरते सब शामिल होते हैं और कितने घंटों तक वह नगाडे की धून पर थिरकते रहते हैं। यहाँ ऑक्सिजन की कमी के कारन जल्दी चलने में भी साँस फूल ज़ाती हैं और यह लोग घंटों तक नाचते रहते हैं। आखिर यह थे इसी मिट्टी के। उन्होंने हमे भी नृत्य में शामिल कर लिय़ा। तभी जोत्स्ना गायब हो गयी थी वह दिखाई दी। उन लोगोंका लिबास पहने वह नाँच रही थी। सहजता भरे नृत्य का सभी आनन्द लेने लगे। 
नृत्य खत्म होने के बाद वापिस गेस्ट हाऊस आ गये और जल्दी खाना खत्म करने के बाद सोने के लिए गये।

कल हमारे मेडीकल टेस्ट होनेवाले थे। यहाँ के ITBP के डॉक्टर फिरसे सब जाँच करते हैं।विदेश मंत्रालय के तरफ से आवश्यकतापूर्ण सब मेडिकल रिपोर्टस् और एक्सरे जाँच किए ज़ाते हैं। साथ ही अभी तक जो यात्रा पूर्ण हुई उस दौरान कही बीपी तो नही बढ गया? या ठंड़ के कारण छाती में कफ तो नही भर गया ?इसकी जाँच की जाती हैं। यहाँ के डॉक्टर ज्यादा अटकाव नही करते। 
सुबह ओम नमः शिवाय के जयजयकार से नींद खुल गई। देखती हूँ तो हवाँ का जोरसे तुफान चालू था। तंबू उड़ना ही बाकी रह गया । आराम से तरोताज़ा हुए शरीर और मन को समेट कर जल्दीसे तैयार हो गई। चाय नाश्ते के बाद सब डॉक्टर के सामने खडे हो गए। एक एक की जांच पड़ताल चालू हो गई। जिनका बीपी बढ गया था ऊन्हे गोलियाँ और सुचनाएँ दी गई। जब मेरी जाँच हो गई तो डॉक्टर्स एकदुसरे के साथ बात करने लगे। वह सुनके मेरी धड़कन तेज हो गई। मेरा बीपी बढ गया था । मुझे आगे जाने देंगे या नही इस बात पर मशवरा चालू था। आखिर डॉक्टर बोले “आपको आगे जाने दिया जाएगा लेकिन एक भी कदम चलना नही हैं सिर्फ घोडे पर बैठकर ही आप आगे बढेंगी। घोडा तो घोडा आगे जाने के लिए मिल रहा हैं यही मेरे लिए बहुत था। पैदल यात्रा चालू हो गई थी तब से मैं ठीक से सो नही पाई थी। नींद ना आने के काऱण अजीबसा महसुस होने लगा  बिमारी के ड़र के कारण पाँच दिन कैसे गुज़ारे थे वह मैं ही ज़ानती हुँ। वह बात डॉक्टर को बताते हूए नींद की गोली  लूं क्या यह भी पुछ लिया। लेकिन डॉक्टर बोले धीरे धीरे हवामान से अपना शरीर समायोजित हो जाता हैं। चिंता की कोई बात नही। यह सुनने के बाद मैं निश्चिंत हो गई। हमारे ग्रूप के दो लोगों को यही से वापिस जाना पड़ा। उन्होंने अपने मेडिकल रिपोर्टस् झुठे बनवाए थे। बाकी सबका आगे जाना तय हुआ।

मेडीकल टेस्ट के बाद आज का दिन पूरा खाली था। बाहर तुफान ने हलचल मचा दी थी। इस कारण बाहर रूकना खतरे से खाली नही था। यहाँ अभी बडे पेडों की मात्रा कम होने लगी और उनकी जगह छोटे पौधों ने ली थी। यहाँ से प्राणवायू की कमी महसूस होने लगी। चार कदम चलते ही साँस फुलने लगी। यहाँ पता चलता हैं की मानवी जीवन में सबसे ज्यादा जरूरत किस चीज की हैं। आज का दिन गपशप लगाते बिस्तर पर ही निकाला। शाम को मंदिर में भजन और आरती के लिए गये। वहाँ जवान पहाडी आवाजों में रूद्र की आराधना करते हैं। घर से दूर रहने वाले जवानों का जोशभरा मन देखकर बहुत अच्छा लगा। 
मंदिर से वापिस आने के बाद खाना हो गया। फिर ब्रिफींग मिटींग में सुचनाएँ दी गई। आगे की यात्रा कितने कठीनाईयोंसे भरी होगी, वहाँ कैसे अपना खयाल रखे, प्राणवायू की कमी के कारण स्वभाव में चिड़चीडापन आ ज़ाएगा, भुख नही लगेगी, इसकी याद दिला दी गई। चीन सरहद्द के पार कॅमेरा में रोल नही रखना हैं। वहाँ चिनी सैनिक रोल निकाल लेते हैं। उनके हाथ कुछ नही लगना चाहिए। भारत सरहद्द के फोटो उनके हाथ लग गए तो वह बात खतरे की हो सकती हैं। 
इसी बात को सोचते सोचते निंदीया की आराधना सब करने लगे। चीन पाकिस्तान के खयालों ने नींद उड़ गई। एक जीवन में अपने कितने शत्रू हो सकते हैं। अपने अंदर से गिनती शुरू की तो हमारे अवगूण अपने शत्रू, समाज में धर्म, पंथ, ज़ात, शत्रू। पृथ्वी को हानी पहूँचाने वाले परग्रह शत्रू,लेकिन हम भी पृथ्वी के शत्रू हैं,पर्यावरण ह्रास के जिम्मेदार हम ही तो हैं।

सुबह आँख खुली। दुर दूर तक फैली नीरवशांती के आगोश में लिपटा नैसर्गिक वातावरण अबूजसा लग रहा था। आज तैयार होने की जल्दी नही थी। गुंजी से कालापानी सिर्फ 9 कि.मी. का फासला था। चाय नाश्ते के बाद सब मैदान में इकठ्ठा हो गए। यहाँ तक के सफर में ऊत्तर प्रदेश सरकार के दो पोलिस साथ में रहते थे लेकिन गुंजी के आगे वह नही आते। उनकी जगह लिपूपास तक ITBP के जवान ले लेते हैं। इससे पहले हमारा सफर मन में आए वैसा चल रहा था। कोई कैसे भी चलता, कभी भी पहूँच जाता था लेकिन अभी ITBP के जवानों के करारे शिस्त में सफर चालू होनेवाला था। वे जवान बंदूकधारी थे। मैदान में सबको इकठ्ठा करते हुए एक लाईन में खडा कर दिया। गिनती हो गई और यात्रा चालू हो गई। पूरे बॅच के आगे एक जवान ,बीच में और अंत में एक जवान साथ रहता हैं। डॉक्टर और मदतनीस भी साथ में थे। इन सबके बीच चलते रहना कुछ अजीबसा लग रहा था क्यों की अभी मन ने अंर्तमुखता का सफर चालू किया था। सब की यह क्रिया चालू हो गई थी। अंर्तमुखता का सफर चालू हो जाता हैं तब व्यक्ति जन समूदाय से दूर रहना चाहता हैं। जितना मन अंदर प्रवेश करे उतनाही समाज, वस्तूएँ, पेड़ पौधौं की तरंगों से भी दूर जाना चाहता हैं। इसीलिए हिमालयीन साधना ऐसी हैं की उसमें अल्फा तरंगों की मात्रा बढने लगती हैं। अल्फा किरणों की उत्पत्ती से मस्तिष्क का दायाँ और बायाँ दोनों भाग समस्थिती में कार्यरत हो ज़ाते हैं और इससे अलौकिक विचारों का ज़ागरण होने लगता हैं। यह विचार ईश्वरीय अनुभूती तक का मार्ग खुला कर देते हैं। इससे साधना बहुत फलदायी होती हैं।

चारों तरफ दूर दूर फैले पहाडों का नज़ारा, उपर नीलाभ आकाश, उसमें कही पर सफेद बादलों की नक्काशी ,कभी उडान भरता एखाद पंछी, यह सब निहारते यात्रा आगे बढ रही थी। गुंजी छोड़ने के बाद ITBP के जवानों ने चाय और वेफर्स दिए। थोडे विश्राम के बाद सफर अपनी पड़ाव के तरफ शुरू हो गया। 
कालापानी कँम्प के पहले इंडोतिबेटीयन पोलीस फोर्स के जवानों ने यात्री और बाकी लोगों की सहायता से एक कालीमाता का मंदिर बनवाया हैं। रोज शाम आरती ,भजन का माहोल वहाँ के वातावरण में नया जोश लाता हैं। काली नदी का उगम इस मंदिर के पिछे पहाडी में हुआ हैं। मंदिर के आगे एक कुंड़ बनवाया गया हैं पहाडी से गिरता हुआ पानी उसी में जमा होता हैं। वह कुंड़ तालाब जैसा लग रहा था। पानी जब ज्यादा हो जाता हैं तब तालाब से बाहर निकल जाता हैं। ठंडा, शांत, कलकल बहता पानी देख अचरज हुआ यही काली गंगा हैं? जिसका पहले देखा हुआ रूप भयावह था। और यह तो अपने स्वरूप में शांत ,मग्न ऐसी लग रही थी। मतलब कोई भी हो भगवान सान्निध्य पाते ही शांत आत्ममग्न हो जाता हैं। उसमें सिर्फ क्षणों की मात्रा का फर्क हैं। सामान्य जन भगवान की अर्चना, नमन करते हुए कुछ क्षण शांति अनुभव करता हैं। नया साधक कुछ मिनिट या घंटे के लिए शांति पाता हैं। योगीयों का काल सालों का होता हैं तो महायोगीयों का युग और देवों का काल यूगों में बीत जाता हैं। जब यह शांति की मात्रा भी समाप्त होती हैं तभी इस चक्र से मुक्ती हो ज़ाती हैं।

(क्रमशः)                                                                                                                                 

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