नक्षत्र कैलाश के - 6 Madhavi Marathe द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नक्षत्र कैलाश के - 6

                                                                                                    6

वहाँ पहूँचते ही हमें मिनार जाने की उत्सूकता थी। लेकिन हर काम अपने समय के अनुसार ही होता हैं। अपनी अपनी चाय खत्म करके सब मिनार चढने लगे। वहाँ से बहुत सारी पर्वत चोटीयाँ नजर आ रही थी। पुरीजी इसकी ज़ानकारी देने लगे। सामने दिख रहा हैं वह नंदादेवी शिखर, बाँए नंदीकोट शिखर, दाँए पंचशूल पाँच शिखर का एक पर्वत था। नेपाल तरफ का अन्नपूर्णा शिखर भी यही से दिख रहा था। सब पर्वत चोटीयाँ बर्फीली थी। सुरज की किरणें उस बर्फीली चोटीयों से परावर्तित होकर चमक रही थी। सुरज, बर्फ की उस चमचमाती दुनिया से बाहर आने का मन ही नही कर रहा था लेकिन समन्वयक का काम ही वही था। इस सुखावह दृश्य से बाहर निकालकर आगे की दृश्य के बारे में बताते हुए उसकी और जिज्ञासा ज़ाग्रत करना। ऐसे करने से मानवी स्वभावानुसार अभी जो सुखसंवेदना में डूबे हूए हैं उससे बाहर आने की तैयारी मनुष्य कर सकता हैं, नही तो कम्फर्ट झोन छोड़ने की मनुष्य की कभी इच्छा नही रहती हैं इसीलिए आगे की सुखलालसा अथवा ध्येय मन में रखने के बाद ही उस परिस्थीती से वह निकलना चाहता हैं।

खाना खाने के लिए फिर से सब गेस्ट हाऊस की तरफ जाने लगे। गर्म खाने का स्वाद लेते लेते मन वहाँ भी बर्फीली चोटीयों का अनुभव कर रहा था। वह नज़ारा देखते ही मन में अंर्तमूखता छाने लगी थी। खाना खत्म करने के बाद थोडी देर में बस में बैठने का इशारा मिला। अभी कई जगहों पर छोटे छोटे गाँव दिखाई दे रहे थे। गाँव आते ही अलग किस्म के फुलों का दर्शन होने लगा। पहाड़ और जंगल के कारण यहाँ धूल भी नही थी इसलिए यहाँ के हर बात में तेजस्विता नजर आती थी। हरे भरे पेड़ पौधे, नानाविध रंगों की फुलों की क्यारिय़ाँ, बर्फ की शुभ्र धवलता, यह सब देखते देखते हम मिरत गाँव पहूँच गए।
यही पर इंडोतिबेटियन बोर्डर पोलिस कँम्प हैं। वहाँ पहूँचते ही ओम नमः शिवाय का ज़ागर हो गया। भारत के आर्मी नौजवानों ने अनुशासनबध्दता से हमारा स्वागत किया। गर्म पकोडे, चाय, जिलेबी खाने के लिए दी गई। कही भी ज़ाओ आलू पकोडे चाय के साथ देते ही हैं। ऐसे समय में मुझे इनकी याद आती थी। उनको पकोडे बहुत पसंद थे। बाद में आर्मी के जवानों के साथ बातचीत चालू हो गई। जवानों ने अपने जीवन प्रणाली के बारें में बताया। मन में उनके प्रति आदरभाव पनप रहा था। इनके भरोसे हम लोग कितनी चैन की नींद सोते हैं इसका गहरा एहसास हुआ। वीर जवानों को स्वप्रांतीय लोग मिल गये तो बडा आनन्द आता हैं। वह आपस में जब मिलते हैं तो ऐसा लगता हैं की कोई सगेसंबंधी मिल रहे हैं। कितना अपनापन। उन वीर जवानों का दिनक्रम बहुत ही कठिन होता हैं, ऐसे में यात्री आते हैं तो चार घडियाँ उनको भी आनन्द मिलता हैं। हमारे कारण कोई खूष हो सकता हैं तो वह बडी सौभाग्यदायी बात होती हैं क्योंकी दुसरों को खुषी देकर हमारा मन दुगूना खुषी पाता हैं इसलिए मनुष्य के साथ जो भी करो वह सोच समझ के करो।

वीर जवानों से विदाई लेते वक्त मन भारी हो गया। जवानों के साथ ग्रूप फोटो ली गई, और हम लोग धारचूला के लिए रवाना हो गये। यहाँ से धारचूला ढाई घंटे की दूरी पर था।
धारचूला यह गाँव तीन पहाडों के मध्य में चुल्हे जैसा बसा हुआ हैं। इसी गाँव में आगे के सफर के लिए घोडे और पोर्टर लेने पड़ते हैं। पोर्टर मतलब सब काम करने वाला वहाँ का ज़ानकार आदमी। रास्ते में तबियत ठीक न होने पर प्राथमिक उपचार करता हैं। इनके मदद के बिना यात्रा सफल हो ही नही सकती। यह पहाडी लोग यात्रा चालू होते ही यही काम करते हैं। वहाँ कमाई के मार्ग ज्यादा नही हैं। चार महिने यात्रा चलती हैं, तो वही यात्रा उनका कमाई का जरीयाँ होता हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का खज़ाना यह हिमालय, लेकिन यहाँ के लोगों में गरीबी दिखाई दी। पैसे की भले ही इनके जीवन में कमी हो पर नैसर्गिक शांती के यह हकदार होते हैं और हम तो पैसे देकर शांति की तलाश में हिमालय में आते हैं। तो सच में गरीब कौन हुआ ? 
धारचूला पहूँचने से पहेले घमासान आवाँज से रों रों करती हूई रौद्र रूप में कालीगंगा प्रकट हूई। पानी के आवेग के साथ प्रचंड़ ध्वनी उत्पन्न हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे शिवजी के तांड़व नृत्य का प्रदर्शन करती हुई वह एक कलाकृती हैं। बेदरकार, उच्छृंखल, उन्मूक्त भाव से कालीगंगा जैसे पदन्यास कर रही हो। साथ में ड़मरू बज रहा हो। ध्वनी कल्लोळ पूरे ब्रंम्हांड़ में जैसे समा गया हो। किसी भी क्षण शिवजी की तिसरी आँख खुल ज़ायेगी और सृष्टी विलीन हो ज़ाएगी। ऐसी भय विरहीत समर्पण स्थिती से मन स्तब्ध हो गया था।

ऐसे जोर शोर से बहते पानी के तरफ एकाग्र दृष्टी से देखने के लिए हमें मनाई की गई थी। सातत्य भरा पानी का आवेग देखते रहने से मन अपना होश खो बैठता हैं। उसी पानी के ओर शरीर और मन दोनों समा जाने का खतरा हो सकता हैं, इसीलिए संथ गती से बहते पानी के उपर ध्यान लगाते हैं या त्राटक करते हैं। इस से मन एकाग्र तो हो जाता हैं और निर्विचार स्थिती भी प्राप्त होती हैं। ध्यान की यह बहुत अच्छी अवस्था हैं। धारचूला पहूँचते शाम हो गई। कालीगंगा के एक किनारे की ओर भारत सरहद्द हैं और दुसरी ओर नेपाल सरहद्द इसी नदी के दोनों किनारों पर एक पूल बंधवाया गया हैं। इस तरह से दोनों अध्यात्मिक देश एक दुसरे से जूड़ गये हैं। नदी किनारे एक गेस्ट हाउस था। आज रात हम वही ठहरने वाले थे। बस से नीचे उतरने के बाद सब इधर- उधर घूमने लगे। बैठे बैठे पाँव अकड़ गये थे। एक टेबल पर चाय का सरंज़ाम नजर आया। चाय की प्याली हाथ में नदी किनारा साथ में ऐसी दुनिया रोज अनुभव करने नही मिलती हैं। क्षण क्षण जीना हैं। यही पंक्तिया बार बार दोहरा रही थी।

दिए गये कमरे में सामान रख दिया। जोस्त्ना और मैं दूर तक सैर करने के लिए चले गये। पूरे वातावरण में पानी का नाद समाया हुआ था। फिर भी एक नैसर्गिक निःस्तब्धता मन को मोहने लगी । कुछ बात करने की इच्छा दोनों के मन में नही हो रही थी। कुछ लोग गपशप करते टहल रहे थे। भगवान ने हर व्यक्ति को अपना अपना अंदाज दिया हैं। सबको एक जैसा बनाते तो जीवन एकसूरी बन जाता, जीवन जीने में जो मज़ा हैं वह ही निकल जाता।
एक जगह देखकर हम दोनों बैठ गये और सृष्टी की सौंदर्यता निहारने लगे। काफी देर बाद मेरा मानस पटल अंधकार में डुबने लगा। आँखे मुँदते हुए बंद हो गई। मन जो गहरे अन्धकार में डूब रहा था वह आँखों के सामने छाने लगा। वह छलछलाता अंधेरा एक बिंदू की ओर ज़ा रहा था। कितने क्षणों की मात्रा थी पता नही पर मुझे वह अनंत काल का क्षण महसूस हुआ। एक चमकता हुआ तेजस्वी बिंदू सामने आया और लूप्त हो गया। मैं वह क्षण फिरसे पकड़ने की कोशिश करने लगी लेकिन प्राकृतिक नियम के अनुसार गया हुआ क्षण वापिस नही आता। फिरसे वही अनुभव पाने की ख्वाइश मन में निराशा निर्माण कर सकती हैं इसीलिए हर एक क्षण जीने की कला आत्मसात करो। क्षणों की पुनरावृत्ती में लग ज़ाओगे तो आनन्द के कई क्षण तुमसे छूट ज़ाऐंगे।
हलके से नाद से मेरी तंद्रा भंग हो गई । हम दोनों वापिस गेस्ट हाऊस की तरफ बढने लगे।

रात के खाने के बाद पती और बच्चों से फोन पर बात हो गई। अब कल की तयारी करनी थी। अभी तक का जो सफर था वह गाडी से था, लेकिन कल से पैदल या घुड्सवारी से आगे का सफर तय करना था। इसीलिए अब एक छोटी बॅग साथ रखते हुए उसमें एक ड्रेस ,पानी की बोतल, खाने का थोडा सामान, यह सब रखना पड़ता हैं। आगे के सफर में साडी नही पहन सकती थी तो वह सब, अलग से पॅक कर के रख दिया। पासपोर्ट तो एक अलग पाऊच में रख दिया था। वह हमेशा कमर में बंधा हुआ रहता था या पहने हुए जॅकेट में रख दिया करती थी, क्योंकी अगर पासपोर्ट गुम होता हैं तो तुम्हे बहुत मुसिबतों का सामना करना पड़ सकता हैं। बाते करते हुए सबकी तैयारी चालू थी। हमारा एक अच्छा ग्रूप बन गया था। महाराष्ट्र से मैं और जोस्त्ना, गुजरात से क्षितिज, आरती और समन्वयक मि. पूरीजी की बहन सुमित्रा हम सब साथ में रहते थे। मैं सबसे ज्यादा उम्रवाली थी इसलिए सब माँजी पुकारते मुझसे बात करते थे। सुबह जल्दी उठना था तो हम सब सोने चले गये ।
(क्रमशः)