नक्षत्र कैलाश के - 2 Madhavi Marathe द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नक्षत्र कैलाश के - 2

                                                                                                   2.

...और कई दिन बितते एक दिन टेलिग्राम ऐसी खर्ज वाणी सुनाई पडी। टेलिग्राम कहाँसे आया हैं वह मुझे पता था क्योंकी कैलाशयात्रा में जाने के लिए आप सिलेक्ट होते हो तब ही आपको टेलिग्राम भेज़ा जाता हैं। वह टेलिग्राम हाथ में लेकर कितनी देर तक एक आनन्द की तृप्ती में बैठी रही।

टेलिग्राम आते ही मेरी आनन्दमय यात्रा की शुरवात हो गई। कैलाश यात्रा के लिए 2 जून से 5 सप्टेंबर तक 16 बॅचेस निकलती हैं। हर सप्ताह में एक बॅच और एक बॅच में 35 से 40 यात्री रहते हैं। यात्रा मार्ग विकट, और यात्री निवास की कमी के कारण इतने ही लोग एक बॅच में ज़ा सकते हैं। एक एक बॅच आगे चली ज़ाती हैं। यहाँ का निसर्ग चंचल होने के कारण यात्रा कालावधी तक ही निवास व्यवस्था की ज़ाती हैं। सितंबर के बाद 8 महिने कैलाश पुरा बर्फ के नीचे ढका रहता हैं। मानससरोवर पुरा बर्फ बन जाता हैं। वहाँ के गाँव में रहने वाले लोग नीचे के गाँव में आकर रहने लगते हैं। पुरी यात्रा में 275 कि.मी का मार्ग यात्री को पैदल या घोडेपर बैठकर पार करना पड़ता हैं। पैदल यात्रा भारतीय सरहद्दी में मंगती इस गाँव से शुरू होती हैं। घोडा, या याक पर भी कभी कभी बैठना मुश्किल, ऐसी तीव्र चढ़ाई या उतार के कारण पैदल ही चलना पड़ता हैं। इसलिए रोज दो घंटे चलने की आदत चाहिए। हफ्ते में एक बार तो चढ़ाई की आदत करना जरूरी होता हैं। अब यह तैयारीयाँ चालू करना जरूरी था।

एक दिन टेलिग्राम आते ही मेरे जीवन में नया परिवर्तन आ गया। उसी परिवर्तन के फलस्वरूप पूरे संसार में मुझे एक चेतना का आभास होने लगा। उसी चेतना को पाने की मेरी जीवनभर की कोशिश आज मुझे रास्ता दिखा रही थी। वैसे तो आपका विश्वास, श्रद्धा आप को घर बैठे ही उस चेतना से जोड़ सकता हैं, लेकिन ऐसा नही हो रहा हैं, तो साधनामार्ग की सफलता की कुंजी, हिमालयीन साधना में आप अवश्य आजमा सकते हैं।
मुझे भी यह मार्ग अपनाना था, और वह मार्ग खुल गया। अब कैलाश जाने की बहुत सारी तैयारीयाँ करनी थी। रजिस्टर नंबर मिलने के बाद, बॅंक में, कुमाऊ मंड़ळ विकास निगम के नाम से डीडी निकालकर भेजना पड़ता हैं। उसके बाद 15 दिन में पूरी यात्रा का गाइड़ बुक आता हैं। उसमें लिखी सारी वैद्यकीय जाँचे करनी अनिवार्य होती हैं। वह रिपोर्टस् अगर नॉर्मल नही आते तो कैलाश यात्रा करने की अनुमती आपको नही मिल सकती। मन में वह ड़र तो था, लेकिन मेरे सारे रिपोर्टस् नॉर्मल आ गए। मैं जीवित हूँ इसका प्रमाणपत्र तैयार करके कोर्ट में नोटरी बनवानी पड़ती हैं। उस में एक दिन चला गया। रेल्वे रिझर्वेशन, पैसों की व्यवस्था यह सब काम बच्चों की मदत से पूरे हो गये।

पूरे 30 दिन की कष्टदायिनी यात्रा की, मुझे शारीरिक, मानसिक तैयारी करनी थी। वहाँ की पर्वत शृंखला की चढ़ान, ढ़लान, पार करने, शारीरिक क्षमता बढाने के लिए रोज 7,8 कि.मी. चलना, दौड़ना, योगा इन सबकी शुरूवात चालू कर दी। इसके साथ ही मानसिक स्तर बढाना भी आवश्यक था। उँचाई के कारण वहाँ ऑक्सिजन स्तर बहुत कम होता हैं, इस वजह से व्यक्ति अपने आप को असहज महसूस करता हैं। मानसिक संतुलन खो बैठते हुए उसका गुस्सा छोटी छोटी बात पर बढता जाता हैं। सुरज की रोशनी और मन इन दोनों का मिलाप बहुत अजीब हैं। बादल छाए रहते हैं तो मन, अपना काम पूरी तरह से नही करता, और कैलाश में तो कभी भी वातावरण में बदलाव होते रहते हैं इसलिए मानसिक सामर्थ बढाना बहुत आवश्यक होता हैं। इसकी शूरवात होती हैं साँस से। साँस पर अगर आप ध्यान देने लगे तो मन एक स्वाभाविक उर्जा का निर्माण करता हैं। उसी के कारण अपनी शरीरिक एवं मानसिक शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं और हम किसी भी मुसिबत का सामना करने के लिए या अपूर्व आनन्द की अनुभूती लेने के लिए सक्षम हो ज़ाते हैं। अब व्यावहारिक स्तर पर भी काम चालू करना था।

साथ में सामान की सूची बनाकर उसी हिसाब से सामान भरना था। हर तीर्थयात्री को सिर्फ 25 किलो सामान लेने की अनुमती मिलती हैं और सब सामान का स्थलांतर सरकार की तरफ से किया जाता हैं। जहाँ बस नही ज़ा सकती वहाँ सब सामान घोडीपर चढाकर सफर तय किया जाता हैं। चेनवाली कॅनव्हास बॅग भी उपर से प्लॅस्टिक लगाकर पॅक करनी पड़ती हैं। ऐसा करने से वातावरण में जो बदलाव आने के कारण जब बारिश गिरती हैं तभी सामान को कोई क्षती नही पहुँच पाती।

हमारा जीवन भी ऐसाही हैं। अपने पिछले कर्म गति के अनुसार सब सामान देकर प्रभू, हमें पृथ्वी पर भेज देते हैं। उसमें स्थूल रूपसे देखा ज़ाए तो अन्न, पानी, पैसा, मकान, रिश्ते यह सब पहिले से ही हम लेकर आते हैं। और सुक्ष्म रूपसे देखा ज़ाए तो आनन्द, समाधान, शांती भी साथ लेकर आते हैं, पर संसार में आने के बाद परिस्थितीयों में बदलाव के कारण, साथ में लायी सामुग्री का हम दुरूपयोग करते हैं तो संसार के इस बारिश से हमारा सामान भीग जाता हैं, खराब होता हैं। उसी कारण पानी की कमी का सामना करना पड़ता हैं क्योंकी हमारे हिस्से का पानी हम पहिलेही खत्म कर चूके होते हैं। शारीरिक रोग के कारण हमें अन्न का परहेज करना पड़ता हैं। मतलब हमारा अन्न खत्म हो रहा हैं, जो हैं बचाके खाना हैं। ऐसीही बात पैसा, रिश्ता सब में आती हैं। जितना साथ हम लेकर आए थे उतनाही रिश्ता साथ चलता हैं बाद में वह रिश्ता खत्म होने में कोई कारण भी नही लगता, लेकिन वही बात हम पकड़ के बैठते हैं और साथ में जो शांती, समाधान लेकर आए थे वह खो देते हैं और ऐसेही बन ज़ाती हैं अगले जन्म की कर्म गती ।

अपने शरीर के कॅनव्हास बॅग को अगर ध्यान का प्लॅस्टिक कव्हर लगा दिया तो अपनी जीवनयात्रा इतने आराम से गुजरेगी की हम अपना अगला जन्म भी अच्छेसे गुजर पा सकते हैं क्योंकी प्रभूने पिछले जन्म की कर्मगती के अनुसार से सामान तो हमारे साथ दे दिया, पर वर्तमान कर्म की डोर उसने हर व्यक्ति के हाथ में दी हैं। तभी हम अपने कर्म सुधार सकते हैं। अभी तो मुझे इस दुनिया के कागज़ात इकठ्ठे करने की तैयारी चालू करनी थी। कैलाश मानसरोवर में जाने के लिए अपने दस्तावेजों की तीन फाइलें बनानी पड़ती हैं। उसमें फॉर्म रिसिट, पासपोर्ट, डिमांड़ ड्राफ्ट, मेडिकल रिपोर्ट, जीवित होने का प्रमाणपत्र, इन सब कागज़ातों की झेरॉक्स निकाल कर एक एक सेट की तीन फाइल तैयार करनी पड़ती हैं। हर एक फाइल के उपर अपना नाम, बॅच नंबर, कॅमेरा नंबर, पासपोर्ट नंबर, लिखना पड़ता हैं। बाद में एक फाइल विदेश मंत्रालय अंड़र सेक्रेटरी को भेजनी पड़ती हैं। एक बॅग में रखनी पड़ती हैं। पासपोर्ट को अच्छेसे संभालकर रखना बहुतही जरूरी होता हैं। अगर वह गुम हो गया तो यात्रा में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हैं।

कभी कभी ऐसा लगता हैं प्रभू के जो सुक्ष्म नियम हैं वह ही हम स्थूल जगत में इस्तमाल करते हैं। हमारे जन्म के लिए माँ को नौ महिने तैयारी करनी पड़ती हैं। पासपोर्ट मतलब हमारा मेंदू, उसकी हिफाजत के लिए माँ को खास ध्यान रखना पड़ता हैं। प्रसव वेदना से निकली हुई तरंगे प्रोजेक्ट कंप्लिट का पैगाम उपर भेजती होगी। मेंदू में थोडी सी भी गड़बड़ हो गई, तो पुरे जीवनयात्रा में कितनी कठिनाई आती हैं सबको पता हैं। ऐसी कहावत हैं जो पिंडी वही ब्रंम्हांडी। उसके बाहर हम ज़ा ही नही सकते। सात रंगों की दुनिया के बाहर आठवाँ रंग हम तैयार नही कर सकते। अगर यह सच हैं तो मनुष्य यह सब क्यों नही समझ पा रहा हैं, वह भी तो इस ब्रम्हांड़ का हिस्सा हैं। मतलब व्यक्ति के अंदर वह फाईल तैयार पडी हैं लेकिन क्या वह उसे नजर नही आती ? मेरी जीवन विषयक ज़ानने की उत्कंठा बढती ही ज़ा रही थी। वास्तविकता का हर पहलू दुसरे दृष्टिकोन से देखने की अब मेरी आदत बन चुकी थी। उससे सामने आ रही थी, सुक्ष्म और स्थूल जगत की समानता। इसी खयालों के साथ यात्रा जाने की तैयारी चालू थी।

कैलाश जाने की तैयारी में कागज़ात, शारीरिक, मानसिक तैयारी का जिक्र तो हो गया। अब बारी थी कपडों की। यात्रा में घोडा, और याक की सवारी करनी पड़ती हैं इसलिए पॅंट, टी शर्ट, जीन्स, पंज़ाबी ड्रेस यही कपडे लेने पड़ते हैं। ठंड़ से बचने के लिए, बारिश का सामना करने के लिए अलग से कपडे लेने पड़ते हैं, जैसे ग्लोव्हज्, स्कार्फ, स्पोर्ट शूज, विंड़चिटर, रेनकोट यह सब साथ में रखना पड़ता हैं। कुछ नए कपडों का इंतज़ाम चल रहा था । यह सब करते समय मन एक उमंग से भरा था। किताबे इकठ्ठा करते हुए वहाँ के बारे में ज़ानकारी हासिल करने लगी लेकिन मन में एक अजीब उलझन भी चालू थी। एक अजीब सा ड़र लग रहा था। एक बहुत बडे व्यक्ति से हम जब मिलने ज़ाते हैं तो मन में एक तनाव आता हैं। वैसेही कुछ लग रहा था। अब सभी कपडे, कागज़ात, पैसे, ड्रायफ्रूटस् अलग अलग प्रकार की टॅाफीज् चिक्की, रोज लगने वाला सामान, सब कहाँ रखा हैं उसकी भी सूची तैयार कर ली थी।
(क्रमशः)