नक्षत्र कैलाश के - 1 Madhavi Marathe द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नक्षत्र कैलाश के - 1

प्रारंभ में,

हमारी सॄष्टी एक असीम नैसर्गिक और परा नैसर्गिक शक्तियों का सागर हैं। अगर उन शक्तियों को जानना हो, महसूस करना हो, तो उनके सान्निध्य में जाना अत्यंत आवश्यक हैं। केवल कल्पनासे हम उन शक्तियों का अंदाजा नहीं लगा सकते। इन्हें बौद्धिक स्तर पर पहचानना मुश्किल हैं, लेकिन हम उसे महसूस कर सकते हैं । इन शक्तियोंसे हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार परिचित हो जाता हैं। कोई विश्वास,श्रद्धाभाव, या वैज्ञानिक रूप से खोजते हुए उन शक्तियों के पास जाता हैं, तो वह शक्तियां व्यक्ति को कभी खाली हाथ नहीं जाने देती हैं। मानसिकता के अनुसार व्यक्ति को अपना फल प्राप्त होता हैं।      

उन असीम नैसर्गिक शक्तियों को, भगवान का नाम देकर सगुण, निर्गुण रुप में स्थित यह शक्तियां तिर्थक्षेत्र के नाम से जानी जाती हैं। वहां भगवान की अत्युच्च तरंगे होती हैं । व्यक्ति उन तरंगो में जाकर अपने आप में एक तरह से उर्जा युक्त पाता हैं।  

ऐसें अनेक क्षेत्रों में से एक क्षेत्र  हैं कैलाश मानसरोवर । केवल नाम लेने से मन में सुकून समा जाता हैं । वहां जाने के लिए अनेक लोग उत्सुक रहते हैं। बहुत सुविधा के कारण अब काफी मात्रा में लोग जाने लगे हैं।  साल 2000 मे, मैं जब जाकर आ गई वह अनुभव आज भी कल्पना जगत में महसूस करती हूं। इसीसे अध्यात्मिक विचार का उद्गम शुरु हुआ। उन विचारों को शब्दों में परिवर्तित करने की इच्छा प्रबल होती गई और भगवान शिव, जो विचार मन में भेजते रहे ,उनकी तरलता का अनुभव स्पर्श करते हुए शब्द तयार होते गए। और नक्षत्र कैलाश के किताब रुप में परिवर्तित हो गई। यही अनुभव आप सब के साथ बांटना चाहती हुं। सावन के महिने में इस माध्यम से भगवान शिव की असीम कॄपा हमपर बरसती रहेगी और उस आनंद मैं हम भावविभोर हो उठेंगे।        

अध्यात्मिकता, गिर्यारोहण, कलाकृती कोई भी माध्यम को चुनते हुए आप कैलाश मानसरोवर का सफर कर सकते हैं।

 

                                                                                                     1.

स्याह काले आँसमान में पुनम का रूपहला चाँद चमक रहा था। चांदनीयाँ अपना सौंदर्य दूर से ही प्रकट कर रही थी। उनकी और देखते देखते मैं कब खयालों के दुनिया में चली गई, मुझे पता ही नही चला। वर्तमानकाल भूतकाल में परिवर्तित होने लगा। वही चांदनियाँ, वही चाँद लेकिन कैलाश पर्वत के उपर, अध्यात्मिक तरंगोंसे भरे वातावरण में उन्हे देखकर ऐसा लगा था, की जैसे भगवान के पास जाने के रास्ते पर कोई दीप दिखाकर मार्गदर्शन कर रहा हो। उन यादोंसे मन व्याकूल होने लगा। वह भाव, वह मनकी निर्विचारता, प्रभू का अस्पर्शा स्पर्श फिरसे याद आने लगे। लेकिन दुसरेही क्षण मन में विचार आया, फिरसे तो यह यात्रा मैं नही कर सकती पर शब्दोंके माध्यम से लिखते लिखते वही अनुभव फिरसे जी सकती हूँ। इस प्रेरणासे मेरे जीवन को नई दिशा मिल गई।

हर व्यक्ति के आनन्द की अपनी अपनी परिभाषा होती हैं। निवृत्ती के बाद हिमालय जाने की इच्छा और प्रबल हो गई। मेरे भाई श्री.अरूण बसोले कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा करते हुए आ गए थे। उनसे आँखो देखा हाँल सुन कर, फोटोज् देख कर मेरी अंतःप्रेरणा फिरसे ज़ागृत हो गई। भगवान को जब तुमसे कोई कार्य करवाना होता हैं तो वे कार्य संबंधी की पूरी अनुकूलता प्रदान करते हैं। उसी के विचार दिमाग में चलने लगते हैं। उस कार्य संबंध का एक प्रशस्त मार्ग सामने खुला हो जाता हैं।

ऐसा ही मेरा कैलाश जानेका मार्ग खुल गया था। घरवालों की सम्मती और पैसों की तजवीज आसानी से हो गई। फरवरी के दुसरे हफ्ते टिव्ही, रेडिओ और प्रमुख अखबारों में कैलाश मानसरोवर का इश्तिहार आता हैं। यह यात्रा भारत सरकार व्दारा आयोजित की जाती है। वह इश्तेहार आते ही फॉर्म भरनेकी प्रक्रिया चालू हो ज़ाती हैं। डॉक्टर से तंदुरूस्ती का सर्टिफिकीट लेना पड़ता हैं। पहिले हिमालय में आप अगर ज़ा चूके हैं तो उस संबंधी ज़ानकारी देनी पड़ती हैं। फॉर्म में पासपोर्ट नंबर अति आवश्यक हैं । यह सब प्रक्रिया पुरी करने के बाद मैंने फॉर्म सचिव, चीन साउथ ब्लॉक परराष्ट्र व्यवहार मंत्रालय, नवी दिल्ली भेज दिया।

जब एक अच्छे काम की शुरूवात होती हैं, तब अपनी मानसिक तरंगे, वातावरणसे सिर्फ सकारात्मक उर्जा लेना शुरू कर देती हैं। उस वक्त कितना भी बडा मुसिबतों का पहाड़ सामने आए, फिर भी उससे टकराने की हिंम्मत व्यक्ति में अपनेआप आ ज़ाती हैं। 
जितने भी कैलाश यात्रीयों से मैंने बातचीत की, सबने अपने स्वभावनुकूल प्रतिक्रिया बताई। हर व्यक्ति की मानसिकता, शारिरीक क्षमता, अध्यात्मिकता अलग अलग प्रकार की होती हैं, उसीसे अनुरूप उनकी अनुभव ग्रहण करने की क्षमता होती हैं। इसीलिए जब हम अपने विचारों का आदानप्रदान करते हैं तो हमेशा यह याद रखना चाहिए की यह उस व्यक्ति के विचार हैं, मेरे विचार इसी बातका अलग पहलू भी देख सकता हैं। इसीलिए किसीके विचार अपनेपर हावी नही होने देने चाहिए। भलेही मेरा विचार कितना भी सामान्य हो, लेकिन उसका आनन्द मैं कितने अंतरिकतासे लेती हूँ, वह सिर्फ खुद ही समझ सकते हैं । खुशी बाँटी ज़ा सकती हैं, आनन्द खुदका अंतरिक भाव हैं जो महसूस होता हैं।
इसी बात पर सब की प्रतिक्रीया एक सी आ गई की, चीनी सैनिकों की असहकार्यता, पलभर में वातारण में होनेवाले नैसर्गिक बदलाव, रौद्ररूप में बहने वाली नदियाँ, अक्रालविक्राल पर्वतराजी, टूटे हुए पूल, खराब गाडीयाँ, रस्ते, मिलोमील पैदल चलना, ऑक्सिजन की कमी यह अनेक नकारात्मक बाते। और अद्भूत सृष्टि सौंदर्य, मानवी भावभावना विहीन तरंगे, जो मनको अपनेआप निर्विचार कर देती हैं, यह दो ही वाक्यों का मोल अनमोल हैं। सब नकारात्मकता यही पर खत्म हो गई और वहाँसे आ रही सकारात्मक तरंगे मुझे अपनी और खींचने लगी।

हिमालय की सभी यात्रांएँ बहुत ही मुश्किल होती हैं। वह अनुभव हमने बद्रिनाथ, केदारनाथ तथा अमरनाथ की यात्रा में महसूस किया था। अमरनाथ में तो नैसर्गिक तथा मानव निर्मित मुश्किलें भी आती हैं। सबका सामना करते करते जब भगवान के मंदिर तक पोहोचते हैं तो सब शारिरिक, मानसिक थकान हवा हो ज़ाती हैं। लेकिन कैलाश का रास्ता इन सबसे ज्यादा खराब और वातावरण अत्यंत चंचल रहता हैं। दुसरे भौगोलिक भागों से आनेवाले लोगों को इसका अंदाज़ा ना होने के कारण ज्यादा मुसिबतों का सामना करना पड़ता हैं। उसके लिए अलग से शारिरिक और मानसिक मेहनत करनी जरूरी हैं। वहाँ के लोगों की शारिरिक रचना उसी वातावरणनुसार अनुकूल होती हैं।

मैने फॉर्म तो भेज दिया था। अब सिलेक्शन का टेलिग्राम आनेकी देर थी। सकारात्मकता हर व्यक्ति के जीवन का अहम पहलू होता हैं। मेरे जीवन का तो वह सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं।

(क्रमशः)