हाँ, मैं अँधा हूँ। एक धमाके में मेरी आँखों की रौशनी जाती रही। देश सेवा के जूनून में बढ़ोतरी हो रही थी पर नियमों ने करने नहीं दी। फिर रिटायर होकर लाइफ एन्जॉय कर रहा हूँ और कर भी क्या सकता हूँ।" कहते कहते उनकी शक्ल पर उदासी आ गयी।
"अरे जब से तुम लोग आये हो कुछ लिया ही नहीं, अरे शकुंतला, बच्चों के लिए कुछ चाय कॉफी नाश्ता लाओ।"
गृहिणी अच्छी और समझदार थी पहले से ही रेडी थी तो अगले 5 मिनट में प्लेटें सज गयी। चूँकि उन लोगों को काफी देर रुकना था तो खाने पीने में कोई हर्ज़ न था, काफी सवाल उठ खड़े हुए उनका जवाब भी तो जानना जरुरी था।
खाते खाते अभिमन्यु ने पुछा "सर आगे बताएं उस दिन आखिर हुआ क्या था?"
मेजर कार्तिक कुछ देर सुनी आँखों से छत देखते रहे फिर बोले -" मैं कई बार अपने दोस्त से मिलने उसके घर जाता हूँ । सोचा थोड़ा पैदल घूमना भी हो जायेगा तो आते वक़्त अकेला ही पैदल निकला। अपने नौकर को किसी काम से भेज दिया और निकल पड़ा रास्ता पूछते पूछते। जब मैं म्यूजिक क्लास तक पहुँचा तो अचानक एक लड़की मेरे से टकरा गयी। मैं गिरने लगा था तब तक किसी दूसरी लड़की ने मुझे संभाल लिया। पहले वाली लड़की तो सॉरी बोलने के लिए भी न रुकी तो मुझे लगा बद्तमीज़ है। पर मैंने बात को नज़रअंदाज़ कर दिया।उस लड़की ने काफी फोर्स किया मुझे घर छोड़ने के लिए जबकि मैंने मना ही किया था फिर भी वो मेरी छड़ी पकड़ कर मुझे मेरे घर तक ले आयी।इस दौरान हम दोनों में काफी बातें हुई। एक तरह से वो बच्ची मेरी दोस्त सी बन गयी।उसके जाते ही मुझे याद आया कि मैं उसका नाम तो पूछना भूल ही गया था। पर कोई बात नहीं फिर कभी मिलेगी तब पूछूंगा। बात आयी गयी हो गयी।
अगले हफ्ते मैं फिर से मेरे दोस्त के घर गया और वहां से लौटते हुए जैसे ही मैं म्यूजिक क्लास के पास पहुंचा वो लड़की चहकते हुए आयी और मुझसे मिली और फिर जिद्द करने लगी कि वो मुझे मेरे घर छोड़ने चलेगी। अबकि बार मैंने उसका नाम पूछ लिया तो उसने चहकते हुए अपना नाम मानसी बताया। हम दोनों ने काफी बातें की। फिर मेरा घर आ गया और उसने मुझसे विदा ली।
परन्तु इस बार मेरे दिमाग में एक बात खटक गयी।वो दोनों बार मेरा बैग पकड़ी फिर घर आते ही वापस कर दी परन्तु दोनों बार में वजन में फर्क था। मैं कुछ संदिग्ध हो गया था। मेरा जासूसी दिमाग सक्रिय हो गया था। दो दिनों बाद मैं वापस गया था वहां उसी रास्ते से। वापस वही लड़की (मानसी) मिली, वापस वही घर छोड़ने की जिद्द, परन्तु अबकी बार मैंने बैग नहीं दिया।
उसने कई बार कोशिश की परन्तु मैंने बैग नहीं दिया। मुझे ऐसे लगा जैसे इस बात से वो कुछ नाराज हो गयी है। परन्तु मैंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और घर में आ गया। घर लौट कर मैंने बैग चेक किया तो उसमें मुझे एक फाइल मिली।मैंने कई बार सोचा कि किसी से पढ़वाऊं, परन्तु फिर मेरा फौजी दिमाग सक्रिय हो गया और मुझे किसी बड़े षड़यंत्र कि बू आने लगी तो मैंने किसी से उसका जिक्र न करते हुए उसे वापस मेरे बैग में रख लिया।
वो मुझे फिर कई दिनों तक न मिली, मैं समझ गया कि उसको अखर गया है मेरा बैग न देना। परन्तु लगभग 15 दिनों बाद एक दिन फिर वो मुझे बदहवाश हालत में मिली, घबराई हुई सी। मैं कुछ पूछता उस से पहले ही वो मुझसे बोली कि अंकल मैंने एक ड्रग्स गिरोह कि कुछ गतिविधियां देख ली और मैंने उसके खिलाफ सबूत भी इकट्ठे किये। परन्तु अब उन लोगों को मुझ पर शायद शक हो गया है, तो उन्होंने गतिविधियां बंद कर दी और मुझे लगता है कि कोई मुझ पर हर वक़्त नज़र रखे हुए हैं। पिछले दिनों में मेरे दो बार एक्सीडेंट भी होते होते रह गए। मुझे बहुत डर लग रहा है अंकल, प्लीज मेरी मदद कीजिये।
उसकी आवाज़ इतनी घबराई हुई और कांप रही थी कि मैं खुद बड़ी मुश्किल से पूरी बात समझ पाया। उसने मुझे एक लेटर पकड़ाया। मैंने कहा क्यों मज़ाक करती हो बेटी मैं कहाँ पढ़ पाऊँगा इसे। तब उसने माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसे आज ये लेटर मिला है जिसमे लिखा है कि 'अगर जान की सलामती चाहती हो तो पुरानी बस्ती में गोयल कंस्ट्रक्शन कि बिल्डिंग की छत पर मिलो जो अंडर-कंस्ट्रक्शन है। मैंने कहा कि तुम घबराओ मत और मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलो वहां सारी बात बताओ। मैं अँधा भला तुम्हारी क्या मदद करूँगा!! परन्तु वो मानी नहीं बोली कि उसे मेरे अलावा किसी पर भी भरोसा नहीं है। पुलिस वाले भी उनसे मिले हुए हो सकते हैं।
आगे कहानी क्या मोड़ लेगी, जानने के लिए साथ बने रहे। So be continue....