दोनों( विक्रम और अभिमन्यु) एक दूसरे की शक्ल ही देखते रहे। फिर विक्रम ने औरत से पुछा-"आपका परिचय?? वो औरत बोली "मेरा नाम मालती तिवारी है, मैं एस.बी.आई. में जनरल मैनेजर हूँ। मेरी बेटी का नाम मानसी है, वो कल रात को घर नहीं लौटी,आप उसे ढूंढिए।"
तभी विक्रम के फ़ोन पर रिंग आई। उठाने पर सामने से एस.पी. की आवाज़ आई -" मालती जी तुम्हारी चौकी पर आई हैं?? वो हमारे मित्र की धर्मपत्नी है। उनको ज्यादा देर चौकी में मत रोकना। अगर कोई काम हो तो उनके घर जाकर मिलना।"
विक्रम-" जी सर, उनको कोई तकलीफ नहीं होगी सर, जय हिन्द।"
"हाँ मैडम, आप रिपोर्ट लिखाइये और फिक्र मत कीजिये हम आपका काम कर देंगे।आप आराम से बैठिये और बताइये क्या हुआ??"
मालती-" मेरी बेटी शाम के सात बजे तक घर लौट आती है और उसको ये भी बोला हुआ है कि अगर कहीं जाए तो मुझे कॉल करके बता दे।कल शाम को 8 बजे तक वो घर नहीं लौटी तो मैंने अपनी जान पहचान और रिशतेदारों में कॉल किया परन्तु वो कहीं न मिली। मेरी रात पूरी घबराहट में निकली। फिर मैंने आज सुबह एस.पी. साहब से बात की तो उन्होंने आपको कॉल किया। परन्तु मेरी बेटी का मामला है तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी और चली आयी।" ऐसा कहते-कहते वो फुट-फुट कर रोने लगी।
विक्रम ये देख कर भड़क गया और पहले से अधमरे गौतम को सेंकने लगा और बोलने लगा कि" कमीने ये क्या झोल कर रखा है? तेरे और कितने साथी हैं, क्या प्लान है तुम लोगों का??"
गौतम तड़पने लगा और रट लगाते हुए बोला-" सर..सर मत मारिये मैं सच कहता हूँ इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है।
हाँ..हहहाँ.. वो हो सकता है, सर...सर... रुकिए सर और मत मारिये, सर मैं बताता हूँ। सर,जब-जब लड़कियाँ गायब हुई वहां पर एक आदमी बार-बार मुझे दिखा है। वही हो सकता है..
विक्रम-" फिर एक नयी कहानी। साले, तूने मुझे कोई दूध पीता बच्चा समझ रखा है??"
गौतम-"सर, प्लीज एक बार सुन लो, मैं सच बोल रहा हूँ। म..मैं उस आदमी को पहचानता हूँ, आप चाहो तो हम उसे ढूंढ़ सकते है। बस एक मौका दीजिये, प्लीज.."
अब तक अभिमन्यु जो इतनी देर से चुप था बोला-" विक्रम एक मौका दे देते हैं, देखते हैं क्या करता है। वरना जायेगा कहाँ, फिर तो मैं भी हाथ धोऊंगा। चल बे, बता कहाँ देखा तुमने इसे, पर याद रख अगर जरा सी भी होशियारी की तो तेरी खैर नहीं।"
अभिमन्यु, विक्रम और गौतम दो हवलदारों के साथ निकले। क्लास के आगे, बाजार और लगभग चौकी का पूरा एरिया उन्होंने छान लिया परन्तु तथाकथित आदमी कहीं न मिला। विक्रम का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। वो जलती निगाहों से गौतम को घूरे ही जा रहा था और गौतम आगे होने वाले कि सोच-सोच कर और मरा जा रहा था। अचानक गौतम को एक जगह भीड़ में उस आदमी कि झलक दिखी। वो खुशी से चिल्लाया "सर..सर गाड़ी घुमाइए, वो यहीं कहीं है।" फिर वापस पलट कर उन्होंने गौर से देखा पर वो दिखा नहीं। जहाँ वो आदमी खड़े होने का दावा किया गया था वहां आस-पास के लोगों को पूछा। कइयों ने उसके जाने की दिशा बताई तो 'अँधेरे में तीर छोड़ने' जैसे वो लोग बढे़। परन्तु शायद आज गौतम की किस्मत कुछ ठीक थी जो वो आदमी उसे एक घर में घुसते हुए दिखा और उसको विक्रम के कहर से बचने की उम्मीद जगी।
वो लोग उस घर तक पहुंचे और विक्रम ने गेट खटखटाया। दरवाज़ा एक औरत ने खोला, जो शरीर से कुछ भारी थी पर ओवरआल दिखने में ठीक-ठाक ही थी। सामने बावर्दी पुलिस को देख कर वो कुछ घबरा गयी।
" शकुंतला, कौन है दरवाज़े पर??" अंदर से आवाज़ आयी।
महिला-" जी, पुलिस आयी है।"
"पुलिस!!! यहाँ क्यों आयी है?? उन्हें अंदर ले आओ शकुंतला" हवलदार बाहर ही खड़े थे, गौतम की हथकड़ियां एक बार खोल दी गयी ताकि वहाँ पैनिक न हो पर अभिमन्यु उस के एकदम पास ही खड़ा था ताकि वो कोई होशियारी न करे।अंदर से घर अच्छा ही था, छोटा पर सजा हुआ और साफ़-सुथरा घुसते ही हॉल था, जिसमें सोफे लगे हुए थे और वहाँ एक तकरीबन 50 साल की उम्र का आदमी बैठा था जो कदरन शरीर से फिट था और पढ़ा लिखा मालूम होता था। जिसने रंगीन चश्मा लगा रखा था शायद अभी तक उतारने का टाइम न मिला हो। उसने तीनों को नमस्कार किया।
विक्रम-"अंकल, एक केस के सिलसिले में आप से कुछ जानकारी चाहिए थी अगर आप सहयोग कर सकें तो!!!"
वो आदमी-" बोलो बेटा, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ, मुझे खुशी होगी। "
विक्रम-"अंकल आपका परिचय??"
आदमी जोर से ठहाके लगाने लगा और बोला-" वाह बेटे, बिना नाम जाने छानबीन करने आ गए??" विक्रम और अभिमन्यु थोड़े झेंप से गए।वो आदमी आगे बोला-"कोई बात नहीं, मेरा नाम कार्तिक चावला है, मैं आर्मी में मेजर था।मेरा बेटा भी सेना में है।"
अभिमन्यु और विक्रम कि नजरों में सम्मान आ गया।अभिमन्यु बोला-" सर,आप तो जानते ही हैं कि इन दिनों शहर में चार लड़कियाँ किडनैप हो गयी है और सारी एक ही म्यूजिक क्लास की स्टूडेंट थी और लगभग हमउम्र ही थी। हमने एक सस्पेक्ट पकड़ा है और आप बुरा न माने सर तो उसने आपकी वहां उपस्थिति कि शिनाख्त की है। सर, हालाँकि हमें उस पर बिलकुल यकीन नहीं है और न ही हम आप पर शक कर रहे है पर हमें तो सब तरह से छानबीन करनी पड़ती है। तो आप हमारा किसी तरह से मार्गदर्शन कर सके तो बहुत मेहरबानी होगी। "
कार्तिक चावला ये सुनकर थोड़ा गंभीर हो जाता है और बोलता है कि-" बेटे, सच बताने से मुझे ही प्रोब्लम होगी पर मैं आर्मीमैन हूँ तो डरना सीखा ही नहीं पर उनमें से जो तीसरी लड़की गायब हुई उसके किडनैपिंग में मैंने ही मदद की थी।" जो हुआ अनजाने में हुआ पर मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूँ।"
ये सुनकर सब ऐसे चौंके जैसे उनके नीचे कोई बम रखा हुआ है।
अभिमन्यु -"अंकल आप ऐसा कैसे कर सकते हो??आप तो रक्षक हो भक्षक कैसे बन सकते हो??"
कार्तिक-" सुनो बेटा, जो हुआ वो गलती से हुआ।"
विक्रम-"अंकल, आपसे गलती कैसे हो सकती है?? आपको तो इसे रोकना चाहिए था जब सेना में जान देने से नहीं डरे तो अब क्यों डरे??"
ये सुनते ही मेजर कार्तिक कि आवाज़ तल्ख़ हो गयी वो बोले -" सुनो बच्चे, जब तुम माँ की गोद से उतरते भी न थे तब से मैंने मौत से आँख मिचोली खेली है। दुबारा ऐसी बात बोलने से पहले अपनी जुबान को काट लेना वरना मैं ही काट दूंगा।"
अभिमन्यु को स्थिति बिगड़ती लगी वो तुरंत बोला-" सर, मेरा जूनियर तो पागल है।आज ही इसकी क्लास लगाऊंगा। पर सर हमें समझने की कोशिश कीजिये क्यूंँकि आपके कन्फेशन के बाद आप पर किडनैपिंग का चार्ज लगेगा। जबकि हम ऐसा बिलकुल नहीं चाहते।"
ये सुनकर मेजर शांत हो जाता है और उसके चेहरे पर दुःख आ जाता है। वो थोड़ा शांति से बोलता है-" मेरे बच्चे, मैं अगर सजा से डरता तो आर्मी में नहीं जाता।उस बच्ची को मैं किसी भी हालत में किडनैप न होने देता चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाती, अगर मैं अँधा न होता।" ऐसा कहकर वो चश्मा हटा देता है।
सब हक्के बक्के रह जाते हैं। जैसे सबको किसी शेर ने उसके ही पीछे से दहाड़ सुनाई हो। वहाँ ऐसी शांति छा गयी जैसे सब के सब मर गए।
इस कहानी में तो एक के बाद एक धमाके हो रहे हैं। मैं खुद भी लिखने के बाद चौंक जाता हूँ कि ये कैसे लिख डाला??
एक अँधा आदमी कैसे किडनैपिंग में हेल्प कर सकता है और इसके पीछे कौन मास्टरमाइंड है जिसने एक आर्मी मेजर को भी कठपुतली बना लिया??
जानने के लिए साथ बने रहें।