अंधेरा कोना - 7 - भाड़े का घर Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंधेरा कोना - 7 - भाड़े का घर

कन्हैया लाल व्यास और उनकी पत्नी सरोज व्यास अनंतगढ़ में नए शिफ्ट हुए थे।

कन्हैयालाल को एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में क्लर्क की जॉब थी, वह राजकोट शहर से नए शिफ्ट हुए थे।

उन दोनों पति पत्नी को संतान मे दो बेटे थे उनके दोनों बेटों मे से बड़े बेटे का नाम संजीव था और उनके छोटे बेटे का नाम ऋषिकेश था।अभी के लिए सिर्फ वह दोनों पति पत्नी और उनका 6 साल का बेटा संजीव ही आए थे। जबकि उनका छोटा बेटा है ऋषिकेश अपनी, दादी का सबसे ज्यादा नजदीक था और उनके बाकी के भाइयों और उनके माता-पिता ने ऋषि को वही अपने पास रखने का निर्णय लिया था। उन दोनों की समस्या का कोई अंत नहीं था कन्हैया लाल की सरकारी नौकरी तो थी लेकिन उन दोनों पति पत्नी के दो बच्चे थे और उतना परिवार होने के कारण उनकी जो सैलरी थी, वह कम पड़ती थी। परिवार में गरीबी तो नहीं थी लेकिन पैसों की खींचातानी रहती थी हमेशा, कन्हैयालाल B. A और B. Com, डबल ग्रेजुएट हुए शख्स थे लेकिन उन्हें क्लर्क से उपर हेड क्लर्क की पोस्ट के लिए कॉम्पिटिटिव एक्साम की तैयारी कर रहे थे

अनंतगढ़ में उन दोनों ने एक घर भाड़े पर लिया था।

वो घर बहुत ही बड़ा था। 3 बेड हॉल किचन का था। लेकिन उस घर की खासियत थी कि उस घर का भाड़ा बहुत ही कम था। उस कर के मालिक ने वो घर बड़े ही सस्ते भाड़े पर उन दोनों को दिया था।

उस घर के मालिक का नाम पुष्कर था।

उनका बड़ा बेटा संजीव बड़ा ही शांत लड़का। अनंतगढ़ एक लोकल स्कूल में उसे दाखिला करवाया गया था, स्कूल से आने के बाद वह गेंद से खेलता था, बस बाकी वह कुछ भी तरह का शरारत नहीं करता था।

1 दिन की बात है, रात के 1:30 बजे का वक्त था।

कन्हैया लाल पानी पीने के लिए उठे, उन्हें कुछ आवाज सुनाई दी, उन्होंने देखा कि ऊपर आए एक कमरे के बाहर एक साया खड़ा था। उस घर में एक छोटा सा बल्ब लगा था जो पूरे घर को थोड़ी थोड़ी ही सही लेकिन रोशनी दे रहा था।

हॉल से ऊपर की सीढिया जा रही थी वही कन्हैयालाल को वो दिखा, हालांकि ऊपर कमरा जो था उस कमरे के दरवाजे के पास ही छोटा सा बच्चा था। संजीव की उम्र का ही बच्चा था। 1 मिनट के लिए तो कन्हैयालाल को लगा कि संजीव ही रात 1:30 बजे के समय पर गेंद से खेल रहा है। उन्होंने कहा

कन्हैयालाल : अरे संजू इतनी देर रात तो क्या कर रहा है, नींद नहीं आ रही क्या?

लेकिन उस लड़के ने कुछ जवाब नहीं दिया।

कन्हैया लाल ने सीढ़ियां चढ़ी ऊपर जाकर उन्होंने देखा कि वह लड़का वह बच्चा संजीव नहीं था। वह कोई और ही बचा था।

कन्हैयालाल ने जब पूछा।

कन्हैयालाल : बेटे यहां क्या कर रहे हो कौन हो तुम? क्या नाम है तुम्हारा? तुम्हारे माता पिता कौन है, कहां रहते हो?

लेकिन उस लड़के ने सिर्फ एक बाजू इशारा किया उसने।

छत की ओर इशारा किया बस। उससे ज्यादा उसने कुछ जवाब नहीं दिया।

कन्हैयालाल : तुम छत की ओर से आए हो छत के रास्ते से आए हो?

कन्हैया लाल : ठीक है बेटा तुम चले जाओ, देर रात हो गई है। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारी राह देख रहे होंगे।

लेकिन वह बच्चा! उनकी बात सुने बगैर। सिर्फ अपनी गेंद से खेल रहा था।

यह गेंद बिल्कुल वैसी ही गेंद थी जो संजीव के पास थी। यह गेंद प्लास्टिक की थी और वह लड़का जमीन से बार-बार पटक कर उसे खेल रहा था जिसकी वजह से आवाज भी बहुत आ रही थी।

कन्हैयालाल : तुम चले जाओ। बेटे रात बहुत हो गई है। चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूं।

लेकिन जैसे ही उन्होंने यह बोला, वह बच्चा खुद ब खुद उस छत के रास्ते से होकर चला गया। कन्हैयालाल को अब शांति हुई।

दूसरे दिन की बात है, सरोज ने कन्हैयालाल से सुबह बात की

सरोज : सुनिए मैं क्या कह रही हूं कि आप प्रयत्न तो कीजिए आप जरूर पास होंगे। आप ग्रेजुएट हो, पढ़े-लिखे हो क्लर्क से भी आगे की पोस्ट आपको मिल सकती है।


कन्हैयालाल : सरोज मैं तुम्हारी बात समझ सकता हूं, लेकिन मैं दो बार फेल हो चुका हूं। मुझे डर लग रहा है। यह तीसरी बार भी मैं फेल हो गया तो मेरे पास अब सिर्फ दो ही चांस बचे हैं।

सरोज :आप प्रयत्न कीजिए बिना प्रयत्न किए आप कैसे पास हो पाओगे? अगर आप पास हो गए तो हम फिर से शिफ्ट हो जाएंगे, फिर हम मुकुंद जेठजी, मनु जेठजी और बा - बाउजी के साथ रहने जा सकते हैं ।

कन्हैयालाल : ठीक है सरोज मैं अब ऑफिस के लिए निकलता हूं। मैं फिर से अप्रैल में करूंगा। इतना कहकर कन्हैयालाल ऑफिस के लिए निकल चाहते हैं? दोपहर 12:00 बजे को संजीव फिर से अपनी स्कूल से घर आता है। थोड़ी देर बाद वो खेलने के लिए चला जाता है, 1.00 बजे सरोज उसे आवाज लगा कर बुलाती है।

संजीव : मम्मी, आज मैं नए दोस्त के साथ खेला

सरोज ने पूछा :अरे वाह कौन है वह लड़का?

उसने संजीव ने भी छत की ओर इशारा किया।

यह देखकर सरोज ने पूछा

सरोज : तुम छत पर खेले गए थे संजीव!

छोटे से संजीव ने कहा: हां, हां, मम्मी मैं छत पर खेलने गया था। यह सुनकर

सरोज बहन को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा

सरोज : छत पर क्यों गए थे खेलने? छत पर से गिर जाते तो और कौन है वह लड़का जो तो मैं छत पर ले गया खेलने के लिए?

यह सुनकर संजीव थोड़ा सा। मायूस हो गया।

उसने रोती हुई आवाज़ में कहा, :

संजीव : मम्मी वह लड़का मुझे ऊपर अपने साथ ले गया, उसमें मैं क्या करूं?

उस दिन रात 1:30 बजे। फिर से कन्हैया लाल को आवाज सुनाई दी। गेंद की आवाज!

टप टप टप।

तो फिर से उठा!

उन्हें फिर से वह बच्चा दिखा वही अपनी पहली मंजिल पर मौजूद दरवाजा था उसके बाहर!

उन्होंने फिर से उस बच्चे से बात करने की कोशिश की लेकिन वह बच्चा कन्हैयालाल को देखकर। छत की ओर चला गया।

दूसरे दिन कन्हैयालाल ने ऑफिस जाते समय पड़ोसियों से बात की थी। क्या यहां कोई लड़का रहता है और उस पड़ोस में जो रात को खेलता है? यह सुनकर पड़ोसियों ने कुछ खास जवाब नहीं दिया। कन्हैयालाल को बड़ा अजीब लगा कैसे लोग हैं?

अगर यहां पर सचमुच का कोई लड़का है? ये लोग मुझे बता क्यों नहीं रहा है?

खैर उस दिन। के बाद दो-तीन दिन और बीत गए।

1 दिन की बात है।

कन्हैयालाल अपनी ऑफिस के टाइम से बड़ी ही जल्दी घर आ गए।

संजीव भी घर पर था।

कन्हैयालाल ने आते ही। सरोज के कंधे पर हाथ रख कर कहा

कन्हैयालाल : सरोज मेरा प्रमोशन हो गया। मैं अब हेड क्लर्क बन चुका हूं!! और फिर से मेरी ट्रांसफर अपने ही शहर राजकोट में हो चुकी है।

यह सुनकर सरोजबेन कभी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उस दिन उन्होंने कहीं भी अच्छे व्यंजन बनाए। मिठाइयां बनाई पड़ोस पड़ोस के कुछ घरों मे भी उन्होंने मिठाइयां बांटी। वह लोग इस घर में 1 महीने तक रहे थे। उन्होंने कुछ दिनों के बाद घर खाली कर दिया, लेकिन कन्हैयालाल अपनी एक खास फ़ाइल घर में ही भूल गए थे, वो अकेले इस घर में आए और ताला खोला, फिर उन्होंने कमरे मे जाकर वो फ़ाइल ले ली, अचानक उन्हें फिर से वो बच्चा दिखा, वो फिर से गेंद से खेल रहा था, वहीं उपर के कमरे की ओर। उन्होंने फिर से लड़के को आवाज लगाई, वो फिर से छत की और भाग गया , कन्हैयालाल को यकीन हो गया था कि यहा जरूर कुछ गडबड है, एक महीने का किराया देते वक्त उन्होंने उस घर के मालिक पुष्कर से बात की।

पुष्कर ने कहा:

पुष्कर :देखिए कन्हैया लाल जी, आप इस घर में रहते थे। मुझे पैसों की जरूरत थी। इसलिए मैंने यह बात आप को नहीं बताई, लेकिन यह बात सच है कि यहां पर सच में एक लड़का रात को 1:30 बजे के बाद कई लोगों को देखता था। आपसे पहले कई किराएदार आए। इस घर में उन सभी को यह लड़का दिखता था।

बात ऐसी है। आज से 3 साल पहले।यहां एक किराएदार रहा करते थे। वह भी आप ही की तरह दो पति पत्नी और एक बच्चा था। आपके बेटे संजीव की तरह उसकी भी उम्र 6 साल थी। वह गेंद का बड़ा ही शौकीन था। जेल से ही पूरा दिन खेलता रहता था।

1 दिन की बात है।

गर्मी के दिन थे ।

सब लोग! छत पर बैठे थे।

वह बच्चा छत पर जैन से खेल रहा था। वह अपनी प्लास्टिक की गेंद को जमीन से पटक-पटक कर खेलता था।

वह गेंद और वह बच्चा दोनों एक दूसरे में मशगूल थे, और इतने मशगूल हो गए कि वह गेंद अचानक से छत से नीचे गिर गई और बच्चा उस गेंद को लेने के चक्कर में भी छत से नीचे गिर गया। सभी लोगों का ध्यान उधर पड़ा। वह बच्चा गिर गया और सब लोग उसे देखने के लिए दौड़े तो उस बच्चे ने दम तोड़ दिया था। उसके शरीर से खून निकलने लगा था। हॉस्पिटल ले जाने पर वहां के डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

तभी से। जितने भी किराएदार आए। उन सभी को वह बच्चे की जो दिखाई देती है वह बच्चा किसी को कुछ नहीं करता। शायद वह आपके बेटे संजीव को खेलने भी ले गया होगा, लेकिन वह बच्चा किसी को भी परेशान नहीं करता। सिर्फ खेलना है, पसंद करता है। आपके बेटे के साथ भी खेला होगा। पूछेगा। आप संजीव से यह सुनकर संजीव छोटा सा संजीव भी बोलेगा। उसका नाम रवि है। बस पुष्कर ने आगे कहा रवि, रवि ही नाम था। उसका बड़ा ही अच्छा सा परिवार था। बहुत सालों बाद उसे उनका बेटा हुआ था उसे भी छीन लिया गया। अब वह परिवार गांव में रहता है। परिवार को भी पता है कि उनके बेटे की रूप में आए लोगों को दिखाई देती है। कई बार इस घर में हवन करवाए गए बहुत सारी पूजा करवाई गई। लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ और सिर्फ यही बात है कि हमारे किसी भी पड़ोसी ने भी आपको यह बात नहीं बताई क्योंकि आप डर जाते और इस घर को छोड़ देते और मुझे पैसों की सख्त जरूरत है इसलिए ये बात मैंने आपको नहीं बताई, कन्हैयालाल और सरोज दोनों को दुख हुआ।

शायद उनको अपने बेटे संजीव में कहीं ना कहीं रवि नजर आ रहा था।