Andhera Kona - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

अंधेरा कोना - 4 - अनोखा प्रेम

अंकिता और समीर ट्रेन में जा रहे थे, थोड़ी देर बाद ट्रेन अनंतगढ़ स्टेशन पर रुकी वहा पर रेल्वे क्रॉसिंग था इसलिए ट्रेन रुकी हुई थी, समीर और अंकिता दोनों उतर गए।

समीर : अब यहीं नई जिंदगी शुरू करेंगे, घर वापस जाना ही नहीं है।

अंकिता : हाँ एसा ही करेंगे

अंकिता और समीर दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे, अंकित B. Tech ( IT) और M. B. A किया हुआ 25 साल का लडका था, वहीं दूसरी ओर अंकिता भी 24 की थी और M. Tech (IT) किया हुआ था, दोनों इंजीनियरिंग के दिनों से एकदूसरे को चाहते थे, लेकिन घरवालों को ये रिश्ता मंजूर नहीं था इसलिए उन दोनों ने घर से निकल कर दूर रहने का प्लान बनाया था,अनंतगढ़ से नजदीक ही शहर था जहा समीर को जॉब मिली थी, महीने की 60,000 INR की जॉब मिली थी जो उन दोनों का गुजारा करने के लिए काफी थी। वो दोनों स्टेशन से बाहर निकले, वो थोड़ा अजीब इलाक़ा था वहा पर आगे सिर्फ एक खेत ही खेत थे, खेतों के बीच से एक रास्ता जा रहा था जोकि बहोत छोटा सा था, वहा वो दोनों खड़े थे।

समीर : आ तो गए लेकिन जाएंगे कहा? रुकेंगे कहा?

अंकिता : अभी होटल मे रूम लेके रह लेंगे, कल से शुरू करते हैं घर ढूंढेंगे।

समीर : यही करेंगे, वैसे भी हमने यही सोचा था न।

अंकिता : हाँ

पास ही खेत मे प्रेमजी खड़ा था, वो इन दोनों की बाते सुन रहा था उसने आवाज लगाई,
प्रेमजी : हैलो, आप लोग रास्ता भटक गए हो क्या?

समीर : यहा नजदीक मे कहीं होटल है? हमे दो कमरे चाहिए रहने के लिए।

प्रेमजी : मेरे घर चलिए, यहा कोई होटल नहीं मिलेगा आपको, फिर कल आप लोग सुबह चले जाना, इतनी रात को कहा जाएंगे आप दोनों।

दोनों ने कुछ सोचा, फिर दोनों तैयार हो गए रहने के लिए। प्रेमजी उसके घर दोनों को ले गया, वो एक बहोत बड़ी हवेली थी, उस हवेली मे सिर्फ वो दोनों पति पत्नी ही रहते थे, प्रेमजी की पत्नी का नाम रमीला था वो दोनों 40 साल के लग रहे थे। रमीला बहुत खूबसूरत औरत थी
प्रेमजी भी लंबा और हट्टा कट्टा पहलवान जैसा इंसान था। वो दोनों ने खाना ऑफर किया लेकिन समीर और अंकिता ने मना कर दिया, क्युकी वो ट्रेन मे कुछ ना कुछ खाते आए थे।

समीर और रमीला दोनों को अलग अलग कमरा मिला, वे दोनों थके हुए थे इसलिए कुछ भी बोले बगैर सो गए, सुबह दोनों उठे, वो पूरा इलाक़ा बहुत ही सुंदर था, लहराते हुए खेत और उसमे भी सुबह धूंध होने की वज़ह से कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन दिन उगते ही सब दिख रहा था, वहा दूर दूर तक कोई मकान नहीं था सिर्फ खेत ही खेत थे। प्रेमजी घर पर नहीं था, रमीला ने उन दोनों को नाश्ता करवाया, वे दोनों को ये घर और प्रेमजी - रमीला अच्छे लगे, उन्होंने अब तक पैसे नहीं मांगे थे समीर ने जब पैसों की बात की तो रमीला बोली

रमीला : प्रेमजी से बात हुई क्या आपकी?

समीर : नहीं हुए हैं

रमीला : ठीक है, मेरी बात हो गई है, प्रेमजी ने कहा है कि दोपहर का खाना साथ मे खाना फिर चले जाना, हमे पैसे नहीं चहिए वैसे भी यहा कोई आता नहीं है और हमारे कोई रिश्तेदार भी नहीं है।

समीर : एसे कैसे? आप प्लीज पैसे ले लीजिए।

रमीला : जी नहीं, हमे नहीं चहिए।
समीर और अंकिता दोनों आग्रह करते रहे लेकिन रमीला ने पैसे नहीं लिए, दोपहर को प्रेमजी घर पर आया चारो ने साथ मे खाना खाया,रमीला ने बड़े ही स्वादिष्ट भोजन बनाया था, खाना खाने के बाद सभी गप्पे मारने बैठे तभी प्रेमजी ने उन दोनों का एसे घूमने का कारण पूछा। जिसके जवाब मे समीर कहने लगा

समीर : हमारे घरवाले हमारा रिश्ता पसंद नहीं था, इसलिए घर से निकल गए।

प्रेमजी : हम्म, आपके घरवालों को पता था कि आप चले जाओगे?

समीर : हाँ उन लोगों को जरा पता था कि हम जाने वाले है।

प्रेमजी : देखो बेटा, मेरी बात सुनो, तुम सही हो कि घरवाले नहीं माने तो तुम दोनों अपने हिसाब से शादी कर रहे हों लेकिन बेटे घरवालों से बात नहीं करोगे, वापस नहीं जाओगे, ये सही बात नहीं है।

समीर (जोश के साथ) : पर तो मैं क्या करू, हमारे घर वाले कास्ट को बीच मे ला रहे थे, तो निकल गए हम घर से, और वैसे भी हमारे घरवालों ने कहा था कि भाग रहे हो तो वापस मत आना, वर्ना हमारा मरा हुआ मुह देखोगे।

प्रेमजी : बेटे, घरवाले है गुस्से मे बोल दिया होगा, तुम दोनों शादी कर रहे हों ये बात अच्छी है लेकिन घरवालों को छोड़ देना अच्छी बात नहीं है।

प्रेमजी बड़े प्यार से समजा रहा था, समीर गुस्से में चुप रहकर सुन रहा था, ये प्रेमजी का ही प्रभाव था कि समीर कुछ बोल नहीं रहा था.।

समीर और अंकिता ने वहीं ठहरना सोचा 2 दिन बाद दोनों ने कोर्ट मेरेज कर ली,रमीला और प्रेमजी ने गले लगाया और दोनों को ढेर सारी बधाई दी, फिर प्रेमजी के समझाने पर दोनों घर गए, वे दोनों बारी बारी से अंकिता और समीर के घर गए, घरवालों ने भी दोनों को माफ कर दिया और गले लगाया, सबकी आँखों में आंसू थे, समीर और अंकिता दोनों प्रेमजी और रमीला के बारेमे बताने लगे, उनकी बाते सुनकर दोनों पक्षों के घरवालों ने उन प्रेमजी और रमीला के घर जाकर उनका शुक्रिया अदा करने का फैसला किया।

वे सारे लोग कार मे अनंतगढ़ गए वहा उन्होंने समीर और अंकिता के बताए रास्ते पर गाड़ी चलाई लेकिन उधर खेत भी नहीं थे और ना ही कोई हवेली थी, दूर तक गाड़ी चलाने के बाद किसी का घर आया वहा पर किसीका घर था, उस इंसान का नाम मनीष था समीर एड्रेस पूछने लगा। , मनीष समीर की बाते सुनकर हैरान रह गया, वहा कोई मकान था ही नहीं। मनीष ने सबको अपने घर मे बुलाया। मनीष ने पूरी बात सुनकर बोलना शुरू किया कि,

मनीष : वहा कोई मकान है ही नहीं और ना ही कोई खेत है, वहा तो सिर्फ बंजर भूमि है जो रेल्वे वालो की है, हाँ आप लोग जो प्रेमजी और रमीला की बात कर रहे हों इस नाम का एक प्रेमी जोड़ा हमारे गांव मे रेहता था, वो दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन दोनों की अलग जाति होने के कारण एक नहीं हो पाए, दोनों के परिवार वाले जाती भेद कर रहे थे, प्रेमजी वहीं पर झोंपडी बनाकर रहता था जब कि रमीला गांव मे रहती थी , प्रेमजी गरीब था बिचारा, उसकी इच्छा थी कि वहीं पर उसकी बहुत बड़ी हवेली हो और अच्छा सा खेत हो और रमीला को रानी की तरह रखेगा , लेकिन बिचारे का सपना, सपना ही रह गया, छह महीने पहले उन दोनों ने महाशिवरात्रि के दिन यहा नजदीक ही ट्रेन के नीचे आ कर अपनी जान दे यह सोचकर कि साथ मे जी ना सके तो साथ में मर जाते हैं। वहा उस जगह कभी कभी गांव वालो को उसके होने का एहसास होता है, बाकी वहा कोई रहता नहीं है।

समीर और अंकिता दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे और दोनों की आँखों में आंसू थे, वे सोच रहे थे कि कैसे एक अधूरे प्रेम ने दूसरे प्रेम को पूरा कर दिया!!!


Note : - मेरी ये काल्पनिक कहानी उन दोनों प्रेमियों को समर्पित है जिन्होंने 01/03/2022 महाशिवरात्रि के दिन, गुजरात के सुरेंद्रनगर के नजदीक ट्रेन के नीचे आ कर आत्महत्या कर ली थी, इस ट्रेन मे मैं यानि राहुल व्यास सवार था,उन दिनों टोक ऑफ टाउन ये था कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे लेकिन सामाजिक बंधनों के कारण वे एक नहीं हो पाए। मेरी ये कहानी उन दोनों को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित।

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