अंधेरा कोना - 8 - भूतीया कॉन्फ्रेंस (सपने 2) Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंधेरा कोना - 8 - भूतीया कॉन्फ्रेंस (सपने 2)

भूतीया कॉन्फ्रेंस

(सपने 2)

मैं विवेक, बचपन से ही मुजे अजीब सपने आते हैं, कई साल पहले मैं क्रिसमस पर मैं एक फार्महाऊस पर गया था, उधर भी मुजे अजीब से दो पति - पत्नी मिले थे जो कि अजीब सी हरकते करते थे, उन्होंने मुजे सपने की बात पूछ ली तब मैं हैरान हो गया कि इनको कैसे पता चला? उस बात को आज 10 साल हो चुके हैं, मैं अब 22 साल का हो चुका हू लेकिन आज भी वो लोग और फार्म हाऊस को याद करके डर जाता हू। मैं साहित्य का शौकीन हू, एक दिन एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से मुजे एक निमंत्रण पत्र मिला, जिसमें मुजे कल्याणपुर नामक नगर से कुछ किलोमीटर दूर एक बड़ी सी जगह थी, वही साहित्य के उपर एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी, वही मुजे बुलाया गया था, मैं हॉरर कहानी लिखता था इसलिए मुजे हॉरर लेखक के तौर पर बुलाया गया था, पूरी कॉलेज में से मुजे ग्रीटिंग मिले क्युकी मैं ही इस कॉन्फ्रेंस मे सिलेक्ट हुआ था, मैं कल्याणपुर जाने के लिए उधर बस से गया। कल्याणपुर बहुत ही सुंदर शहर था, मैं बस से उतरने के बाद मैंने एक रिक्शा की, वो कॉन्फ्रेंस होल शहर से दूर था, मुजे उधर जाने मे थोड़ी देर लगी।

आधे घंटे बाद मैं वो जगह पहुच गया, वो एक बहुत बड़ा पार्टीप्लॉट जैसा था, वहा एक ऑडिटोरियम भी था, वहीं पर दूसरे दिन कॉन्फ्रेंस थी, उधर पूरे राज्य से तरह-तरह के लोग आए थे। वहीं मैंने एक आदमी से पूछा योगेन्द्र नाम था उसका, वो पूरी इवेंट का मेनेजर था उन्होंने बड़े ही आदर के साथ मुजे मेरा कमरा दिखाया। वहा बाजू में ही एक बड़ा सा घर भी था जिसमें एक होल मे हम सब लेखक को रहना था। मेरी एक लेखक के साथ बात हुई, उसने अपना नाम राजेश बताया, वो लव स्टोरी के लेखक थे मेरी उनके साथ अच्छी सी दोस्ती हो गई, मेरे बेड के बगल में ही उनका बेड था, हम लोगों खाना भी साथ मे बैठकर खाया, मुजे अच्छा लग रहा था।

दूसरे दिन की बात थी मुजे बताया गया कि कॉन्फ्रेंस शाम 7.00 बजे है, मुजे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने सोचा कोई बात नहीं l मैं उधर अगल बगल घूमने भी नहीं जा सकता था क्युकी यहा कुछ था ही नहीं, हम लोग दोपहर को खाना खाने के बाद थोड़ा आराम किया, मैं तो सो गया था लेकिन उठकर जब मैने घड़ी देखी तो घड़ी में 7.30 हो गए थे, वो कॉन्फ्रेंस शुरू हो चुकी थी, मैं उठा, मुजे झटका लगा कि मैं लेट हो गया l फिर मैं उठा, तैयार होके मैं उस ऑडिटोरियम मे गया, वहीं मैंने दरवाजा खोला तो योगेन्द्र जी स्टेज पर खड़े थे l उन्होंने मुजे स्टेज पर से ही वेलकम किया, सब लोग मुजे देखने लगे, उन्होंने स्टेज पर से कहा |

योगेन्द्र : आइए विवेक, उधर उपर की ओर जाके बैठ जाईए l

मैं : जी शुक्रिया, और मेरे लेट आने के कारण माफी चाहता हूं l

योगेन्द्र : अरे कोई बात नहीं, सब का काम हो गया है अब आप ही की बारी है!!!

ये सुनकर मुजे थोड़ा अजीब लगा, मैं उपर की ओर गया वहा मैंने देखा कि लोग सीट पर उल्टे खड़े थे, उपर देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई l

वहा पर लोगों को फांसी दी जा रही थी, कुछ लोग फांसी के फंदे पर तड़प रहे थे लेकिन वो मर नहीं रहे थे,

एक कोने में मैंने देखा कि कुछ लोग के गले टूटे हुए थे, उनकी आंखे और जीभ बाहर आ गई थी, फिर भी वो जिंदा थे और वो लोग मुजे घूर घूर के देख रहे थे, उनके बग़ल मे कुछ और लोग खड़े थे जिनको फांसी मिल चुकी थी, वो ड्राकुला मूवी मे दिखाए गए पिशाच जैसे दिख रहे थे। मुजे समज मे आ गया था कि यहा कुछ भी ठीक नहीं है, मैं वहा से भाग निकला, वो लोग मेरे पीछे आने लगे, मैं वहा से बाहर निकाला, रोड की तरफ भागता हुआ आया।

वहीं वो लोग पीछे छूट गए, मुजे वाहन नजर आने लगे मैंने लिफ्ट मांगी, एक ट्रक चालक ने मुजे लिफ्ट दी। मैं आगे कल्याणपुर उतर गया, वहा से मैं बस मे बैठ गया और रात को 12. 00 बजे ही निकल गया, रात को 3.00 बजे मैं अपने शहर आनंद पहुंच गया। मुजे शांति का एहसास हुआ, मैं दूसरे दिन कोलेज गया, वापस आते समय बाहर एक आदमी खड़ा था, उसके पास मेरा वो सामान था जो मैं कॉन्फ्रेंस मे ले गया था, मैंने ध्यान से देखा तो वो वहीं योगेन्द्र था l उसने मुजे घूरते हुए समान पकड़ा दिया और मेरी कालेज के पास आए एक नाले की ओर जाने लगा, उस नाले के पास जाकर उसने नाले मे छलांग लगा दी l मैं उधर दौड़ा, वो नाला काफी गहरा था लेकिन मुजे योगेन्द्र कहीं नहीं दिखा,!!!!