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मेरी अभिव्यक्ति किसके लियें हैं?

मेरी अभिव्यक्ति किनके लियें हैं?

ईश्वर ने सभी को अलग-अलग दिमाग दियें हैं इसका मतलब हैं कि वह चाहता हैं कि सभी अपने लियें सोचें और समझें कि उन्हें क्या करना चाहियें और क्या नहीं। इसका मतलब यह हैं कि हमारें पास उतना ही समय हैं जितनें में हम हमारें लियें क्या करना चाहियें और क्या नहीं इसका पता करें और जो सही लगें उसे करें। हमारा ध्यान इसमें ही पूरी तरह एकाग्र हों। जो उस सीमित समय को दूसरों को क्या करना चाहियें यह बतानें में लगा रहा हैं इसका मतलब हैं कि वह खुद क्या करनें योग्य हैं और क्या नहीं यही नहीं जानता क्योंकि सारा का सारा समय तो वह दूसरी जगह यानी दूसरों को सही- गलत बतानें में लगा रहा हैं यानी जो समय उसे स्वयं के अंदर झांकने में देना चाहियें वह बाहर दें रहा हैं अर्थात् उसकी जिसमें अर्थ पूर्ति हैं वह उसे छोड़ कस्तुरी मृग की भांति धैर्य खो कर बावला हुयें बाहर खोज रहा हैं; उसे जिनका ध्यान खुद पर हैं वह पागल लग रहें हैं क्योंकि जो धैर्य या आपा नहीं होने पर पागल हो रहा या हो गया होता हैं उसके अनुसार अन्य सभी पागल होतें हैं उसे छोड़ कर। नासमझी की अति तो तब होती हैं जब कोई उसे उसकी भूल दिखानें का प्रयास करें... वह उसे कहता हैं कि बात तो सही हैं कि, ‛ जो पागल होता हैं वह दूसरों को भी पागल समझता हैं ’ इसलियें.. आप भी पागल हैं क्योंकि आप मुझें पागल दर्शाना चाहतें हैं। काश वह समझ पाता कि पागल न होना धीरज होने पर संभव हैं।

मेरी अभिव्यक्ति केवल मेरे लियें हैं यानी मेरी जितनी समझ के स्तर के लियें और यह मेरे अतिरिक्त उनके लियें भी हो सकती हैं जो मुझ जितनी समझ वाले स्तर पर हों अतः यदि जो भी मुझें पढ़ रहा हैं वह मेरी अभिव्यक्ति को अपने अनुभव के आधार पर समझ पा रहा हैं तो ही मुझें पढ़े क्योंकि समझ के आधार पर मेरी ही तरह होने से वह मेरे यानी उसके ही समान हैं जिसके लियें मेरी अभिव्यक्ति हैं और यदि अपनें अनुभवों के आधार पर नहीं समझ पा रहा अर्थात् उसे वह अनुभव ही नहीं हैं जिनके आधार पर मैं व्यक्त कर रहा हूँ तो वह मेरे जितने समझ के स्तर पर नहीं हैं, मेरे यानी उसके जितनें समझ के स्तर पर जिसके लियें मेरी यह अभिव्यक्ति थी है और अनुकूल रहा तो भविष्य में भी रहेगी। मेरी अभिव्यक्ति के शब्द मेरी उंगलियाँ हैं जो मेरे उन अनुभवों की ओर इशारा कर रही हैं जिन अनुभवों के आधार पर मैं अभिव्यक्ति करता हूँ यदि पढ़ने वाले के पास या सुनने वालें के पास वह अनुभव ही नहीं हैं या उनकी पहचान ही नहीं हैं तो जिनके आधार पर अभिव्यक्ति हैं तो वह खुद के अनुभवों से तुलना नहीं कर पायेगा जिनकी ओर मैंने इशारा किया हैं जिससें मेरी अभिव्यक्ति उसकी समझ से परें होगी नहीं तो फिर वह अनुभवों का ज्ञान नहीं होने से जिनके आधार पर अभिव्यक्ति हैं वह उसके किन्ही अन्य अनुभव से तुलना कर वह ही समझ लेगा जिनकी ओर मैं इशारा ही नहीं कर रहा यानी मुझें गलत समझ लेगा।

हम किसी से भी यह उमीद रख ही कैसें सकतें हैं कि वह उसको समझ सकता या समझता हैं जो कि हमें समझ में आता हैं; भले ही उसकी भौतिक, भावनात्मक, तार्किक, काल्पनिक, आत्मिक, हर आकार तथा निराकारता संबंधित समझ उस स्तर की नहीं हों जो हमारी हैं; आखिर! यदि हम उन जितनी या उन जैसी समझ वालें होतें जो कि हमसें समझ के स्तर पर ऊँचे या फिर नीचें हैं अतः जो हमें नहीं समझनें सकतें... तो हमारा भी तो उनकी ही तरह अपनी समझ के स्तर की बात को समझ सकना संभव नहीं होता।

मेरी अभिव्यक्ति उनके ही लियें हैं जो कि मुझें समझ सकतें हैं उन अनुभूतियों को जाननें के परिणाम स्वरूप जिनके आधार पर मैंने अभिव्यक्ति की हैं; जो अनुभूतियाँ वह हैं जिनकी ओर मैं शब्दों के माध्यम् से स्पष्ट इशारे कर रहा हूँ। यह जिसें समझ में आयें उनके लियें ही हैं अतः यदि कोई असहमत हों तो मुझसें यह उमीद नहीं रखें कि मैं वह समझू या समझ सकूँ जिसे समझनें के परिणामस्वरूप आप मेरी समझ या अभिव्यक्ति को अनुचित समझ रहें हैं।

- रुद्र एस. शर्मा (ASLI RSS)
समय / दिनांक - ०७:३६ / ०१:०७:२२

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