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विविधा - 32

32--पतंगोत्सव की परम्परा

 पतंग उड़ाने की परम्परा भारत में तथा विदेशों में काफी प्राचीन है। मानव शुरु से ही आसमान में उड़ते परिन्दों को देख देख स्वयं भी उड़ने की कल्पना करता था, पतंग बाजी इसी कल्पना को साकार करने की परम्परा है। दुनिया भर के देशों में पतंग बाजी की परम्परा विद्यमान है। 

 ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार पतंगबाजी 2500 वर्प पुरानी है। चीन में पतंग बाजी का इतिहास दो हजार साल पुराना माना गया है। चीन के सेनापति हानसीन ने कई रंगों की पतंग बनाई और उन्हें उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश दिये। विश्व के इतिहासकार पतंगों का जन्म चीन में ही मानते हैं। 

 भारत में ईसा पूर्व 3500 से 2750 के मध्य में सिंधु संस्कृति में पतंगों के चित्र तथा चित्रलिपि मिलती है। पतंगों का विकास यूराप तथा पूर्व के देशो में बड़ी तेजी से हुआ। अमेरिका, इंग्लैड, हांगकांग, जापान, इटली, आस्टेलिया आदि देशों में पतंग बनने और उड़ने लगी। पतंगों के रुप में लोगों ने गरुड़, सर्प तोता, मछली, मगरमच्छ, मानव आदि बना बनाकर उड़ाना शुरु किया। अमेरिका में रेशमी कपड़े, प्लास्टिक से बनी पतंगें उड़ाई जाती हैं। वहां जून मास में पतंग खूब उड़ती हैं और पतंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। 1969 में एक अमरीकी पतंगबाज ने 10,830 मीटर उंची पतंग उडा़ई। एक अन्य पतंग बाज ने 178 पतंग एक साथ उड़ाकर एक रिकार्ड बनाया। वाशिंगटन शहर में पतंग उडाना एक अपराध है। जापानी जनता भी पतंगबाजी की खूब शौकीन है। जापान में माई में पतंग बाजी की जाती है। जापानियों के अनुसार पतंग उड़ाने से देवता खुश हो जाते हैं। जापान के होजीवाना शहर में प्रतिवर्प पतंग बाजी की प्रतियोगिता की जाती है। यहां पतंग की लम्बाई 13 मीटर व चौड़ाई 7 मीटर होती है। 1936 में जापान ने 40 बाई 50 से.मी. आकार के 3100 मीटर कागज की एक बड़ी पतंग बना कर उड़ाई थी। जो आज भी एक रिकार्ड है। 

 आधुनिक पतंग बनाने में चीन का जवाब नहीं। चीन में 2-3 लोग मिलकर बड़ी पतंग उड़ाते हैं। मनुप्य, मच्छली, मगरमच्छ,अजगर आदि आकृति की पतंगे उड़ाई जाती हैं। मलेशिया, इन्डोनेशिया, आस्टेलिया, इटली, मलाया, थाइलेंड, नीदरलेंड, हांगकांग, आदि देशों में भी पतंगें उड़ाई जाती हैं। 

 आस्टेलिया में एक बार 5 मीटर लम्बी नायलोन की पतंग उड़ाकर उड़ाने वाले ने आकाश में सैर की थी। न्यूजीलैंड में पतंगोत्सव को धार्मिक मान्यता मिली हुई है। यहां लोग भजन गाकर धार्मिक वाक्य लिख कर पतंग उड़ाते हैं। 

 भारत में प्रतिवर्प मकर संक्रांति पर पतंगोत्सव देश के कई भागों में मनाया जाता है। यह एक लोक उत्सव है। अब कागज, खपच्ची और कपड़े के अलावा, नाइलोन, पोलीथीन, प्लास्टिक आदि का प्रयोग भी पतंग बनाने में किया जाता है। मंजा, कांच, सरेस, रंग आदि से बनाया जाता है। अच्छी पतंग और मंजा बरेली, कानपुर, लखनउ, ग्वालियर आदि का होता है। सुरत का मंजा भी प्रसिद्ध है। 

 ग्ुजरात, महाराप्ट, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि प्रदेशों में पतंगों को उड़ाने के लिए विशेप समय नियत है। अलग अलग प्रदेशों में पतंगों को अलग अलग नामों से जाना जाता है। अहमदाबाद शहर पूरे भारत में ही नहीं विश्व में भी पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है। मकर संक्रंाति पर पतंग उत्सव की छटा देखते ही बनती है। पूरे देश के पतंग बाज अहमदाबाद आते हैं। यहां पर 1989 से प्रति वर्प अन्तराप्टीय पतंग महोत्सव मनाया जाता है। 

 विदेशी पतंगबाजों के आने से प्रतियोगितायें बहुत बढ़ गयी है। डिजाइनें तथा आकार प्रकार के कारण लोगों का आकर्पण भी बहुत बढ़ गया है। पतंग बाजी एक शाही शोक की तरह फैल रहा है। अहमदाबाद में एक पतंग म्यूजियम भी बनाया गया है। अमेरिका में पतंगों को बनाने की 700 कम्पनियां हैं। लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम व अमरिका के स्मिथ सोनिअन म्यूजियम में सैकड़ों वर्पो पूर्व की पतंगें सुरक्षित हैं। 

पतंगोत्सव पर पतंग बाजी एक जुनून की तरह सवार हो जाता है और मकर संक्रंाति पर बच्चा, बूढ़ा, जवान और औरतें लड़कियां सब पतंगों को उड़ाने में मशगूल हो जाती हैं। चारों तरफ ‘वो कॉंटा’, ‘वो मारा’ का शोर हो जाता है तभी तो पतंगोत्सव पूरा होता है। 

 

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