33 - राम तेरे कितने नाम
राम के चरित्र ने हजारों वर्पों से लेखकों, कवियों, कलाकारों, बुद्धिजीतियों को आकर्पित किया है, शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जिसमें राम के चरित्र या रामायण की चर्चा न होती हो। राम कथा स्वयं में सम्पूर्ण काव्य है, सम्पूर्ण कथा है और सम्पूण नाटक है। इस सम्पूर्णता के कारण ही राम कथा को हरिकथा की तरह ही अनन्ता माना गया है। फादरकामिल बुल्के ने सुदूर देश से आकर राम कथा का गंभीर अध्ययन, अनुशीलन किया और परिणामस्वरुप राम कथा जैसा वृहद ग्रन्थ आकारित हुआ। रामकथा के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य को यदि देखा जाये तो ऐसा ग्रन्थ अन्य किसी भापा में उपलब्ध नहीं हुआ है।
वैदिक साहित्य में रामकथा के पात्रों का वर्णन मिलता है। शायद राम कथा का प्रचलन उन दिनों बहुत रहा होगा। दशरथ, राम, आदि के नामों का उल्लेख भी पाया गया है। सीता को कृपि की देवी के रुप में निरुपित किया गया है तथा एक अन्य सीता को सूर्य की पुत्री के रुप में दर्शाया गया है। सीता शब्द भी अनेकों बार आया है। वैदिक साहित्य में रामायण से संबंधित पात्रों के नाम अलग-अलग ढंग से विविध रुपों में आते है, मगर ये आपस में संबंधित नहीं हैं। राम कथा की कथावस्तु भी कहीं दृप्टिगोचर नहीं होती हे। वाल्मीकि कृत रामायण रामायण का सर्व सुलभ तथा प्रामाणिक ग्रन्थ माना जा सकता है। महाभारत में भी राम कथा का वर्णन है। आरण्यक पर्व, द्रोण पर्व, शांतिपर्व आदि में राकथा का वर्णन है। बौद्धसाहित्य में भी राम कथा का विस्तृत वर्णन है। वास्तव में दशरथ-जातक नामक ग्रन्थ को रामकथा का आधार ग्रन्थ मानाजाता है। हजारों विद्वानों ने रामकथा का मूल रुप इसी ग्रन्थ में होना माना है। जैन राम कथा भी मिलती है। राम को पदम के रुप में व्याख्यायित किया गया है।
कन्नड़ में पम्प रामायण या रामचन्द्र-चरित पुराण पाई गई है।
आदिकवि वाल्मीकि के जन्म से काफी पहले ही रामकथा का आख्यान प्रचलन में आ चुका था। वाल्मीकि ने कथा को आधार बनाकर रामकथा रामायण के रुप में पहली बार विस्तार से तथा समसामयिकता के आधार पर प्रस्तुत किया। रामकथा के मूल स्रोत के लिए पाश्चात्य विद्वान ए. वेबर ने दशरथ जातक को आधार माना है। दूसरा आधार होमर का माना गया है, मगर होमर की मूल कथा रामायण की कथा से काफी अलग है, अतः राम कथा का मूलाधार दो तीन स्वतंत्र आख्या नही हैं, जिन्हें बाद में वाल्मीकि ने कथा सूत्र में पिरोकर रामायण के रुप में प्रस्तुत किया है।
डा. याकोबी ने रामकथा का आधार दो भागों में विभाजित किया है। प्रथम भाग में अयोध्या की घटनाएं है जिन्हें ऐतिहासिक माना गया है जबकि दूसरे भाग में जो कथा है उसका मूल स्रोत वैदिक साहित्य में वर्णित देवताओं की कथाओं को माना गया है। रामकथा की ऐतिहासिकता को लेकर विद्वानों में मतभेद है। एक तरफ नितान्त कल्पना को सहारा माना गया है तो दूसरी तरफ इसे ऐतिहासिक कथानक मानने वाले लोग हैं।
श्राम कथा का प्रारम्भिक विकास कैसे हुआ होगा ? वे कौन से कारक थे जिन्होंने मिलकर राम कथा का वर्णन किया होगा ? वास्तव में रामकथा प्रारम्भ से ही हमारी संस्कृति में फैली हुई है। रामकथा तीनों धर्मों यथा ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन में रुपायित की गयी। अन्य साहित्य, संस्कृति तथा कला में भी राम कथा प्रभावशाली ढंग से निरुपित की गयी।
संस्कृत साहित्य में भी रामकथा का विस्तार से उपयोग किया गया। वाल्मीकि के बाद में कई कवियों, लेखकों को आधार बनाया। धार्मिक, साहित्य एवं ललित साहित्य दोनों में ही राम कथा को विकसित किया गया।
अन्य भारतीय भापाओं में भी राम कथा को पर्याप्त स्थान दिया गया है। कम्बर कृत रामायण, रंगनाथ कृत द्विपद रामायण, तिक्कन कृत निर्वचनोतर रामायण, अध्याात्म रामायण, कण्श्श् रामायण, केरला वर्मा रामायण आदि प्रमुख रामकथा ग्रन्थ है।
सिंहली भापा, काश्मिरी भापा, असमिया, आदि में भी रामकथा का वर्णन है। कृतिवास कृत रामायण बंगाली का प्रमुख रामकथा ग्रन्थ है। हिन्दी व अवधी का प्रसिद्व रामकथा ग्रन्थ रामचरित मानस है, जिसके आगे अन्य सभी ग्रन्थ फीके हैं।
रामकथा पर आधारित नरेन्द्र कोहली की उपन्यास श्रंखला भी पठनीय है।
मराठी भापा में भावार्थ रामायण है जो एक नाथ द्वारा लिखी गयी है। उर्दू-फारसी में भी रामकथाएं लिखी गयी है। अलबदायूनी ने रामायण का फाारसी में अनुवाद किया है। रामायण मसीही भी जहांगीर काल में लिखी गयी थी।
तिब्बत, रामायण खोतानी रामायण, हिन्देशिया रामायण, मलयन अर्वाचीन रामकथा, जावा की रामकथा आदि भी उपलब्ध है।
रामकथा में कुछ है ऐसा जो सबको आकर्पित करता है। राजनीति, धर्म, आधुनिकता, देशी-विदेशी सब रामकथा से प्रभावित होते हैं। दुख सुख में, जीवन की सान्ध्य वेला में, असफलता, निराशा, हताशा के क्षणों में आज भी हजारों हजार लोगों का एक मात्र अवलम्बन रामकथा ही है। जो वाल्मीकि कृत रामायण नहीं पढ़ समझसकते। वे तुलसीकृत या अपनी भापा की रामकथा पढ़ते हैं समझते हैं और अपने दुख दर्द को कम करते हैं। राम ही नहीं, रामायण के अन्य पात्र भी चरित्र चित्रण की दृप्टि से श्रेप्ठ है और जब भी वे पढे जाते है तो लगता है कि सम्पूर्ण घटनाक्रम व्यक्ति के जीवन से ही संबंधित है। इसी कारण व्यक्ति को धार्मिकता के अलावा मनोवैज्ञानिक ढंग से भी रामकथा प्रभावित करती है। धर्म, राजनीति के अलावा रामकथा एक अत्यंत श्रेप्ठ आख्यान है और आने वाले हजारों वर्पो तक यह एक श्रेप्ठ आख्यान रहेगा तथा लेखकों को अपनी और आकर्पित करता रहेगा।
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